प्रत्याशित परिणाम, अप्रत्याशित प्रदर्शन

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-राजेश कश्यप-

लोकसभा-2014 के चुनाव परिणाम प्रत्याशित हैं, लेकिन भाजपा का देशभर में अनूठा एवं अद्भूत प्रदर्शन अप्रत्याशित रहा है। सर्वेक्षण अनुमानों में भी लगभग यह स्पष्ट हो गया था कि ‘इस बार मोदी सरकार’ ही बनने वाली है। लेकिन, अनुमानों से कहीं बढ़कर चौंकाने वाले परिणाम आयेंगे, यह शायद किसी ने सोचा भी नहीं था। यह यकीन था कि कांग्रेस अपनी कुनीतियों और कुशासन के कारण सत्ता से बेदखल होगी। लेकिन, इतनी बुरी तरह से होगी, यह भी शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। तीस साल बाद भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में यह अनूठा चुनाव आया है। इसका श्रेय स्पष्ट तौरपर नरेन्द्र मोदी के अद्भुत नेतृत्व, अथक मेहनत, कर्मठ व्यक्तित्व, अटूट संघर्ष, अडिग रणनीति, असीम ज़ज्बे और अनुपम जुनून को जाता है। यह परिणाम ऐतिहासिक प्रदर्शन ‘नमो’ का चमत्कार है। यह ‘मोदी की लहर’ का प्रत्यक्ष प्रमाण है। अगर इसे भाजपा अथवा यूपीए की जीत की बजाय ‘मोदी की जीत’ करार दिया जाये तो कदापि गलत नहीं होगा। नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी पार्टियों के तीखे, अनैतिक, अमर्यादित एवं असभ्य जुबानी और बेबुनियादी आरोपों का डटकर सामना तो किया ही, साथ ही अपनी ही संगठन एवं सहयोगी दलों के अन्दरूनी असहज रवैये को भी बराबर झेला।
किसी राज्य का मुख्यमंत्री हैट्रिक लगाकर, एकदम से राष्ट्रीय फलक पर पूर्ण रूप से छाने का अद्भुत करिश्मा करके दिखाए, यह सहज संभव हो ही नहीं सकता। लेकिन, नरेन्द्र मोदी ने इस असहज संभावना को बड़ी सहजता के साथ संभव कर दिखाया है। इस समय नरेन्द्र मोदी की शान व सम्मान में कसीदे गढऩा, भले ही प्रपंच अथवा प्रचलन की श्रेणी में गिना जाये, लेकिन जब तथ्यों और परिस्थितियों के तराजू में नरेन्द्र मोदी को तोला जाता है तो मोदी की अपार बहुमूखी प्रतिभा का लोहा मानने के लिए हर कोई मजबूर हो जाता है। ऐसे कई सवाल हैं जो स्वभाविक रूप से लगभग हर किसी के दिलोदिमाग में कौंधते हैं। मसलन, नरेन्द्र मोदी में ऐसा क्या था जिसे पूरे देश की जनता ने रातोंरात अपने सिर-आंखों पर बैठा लिया? उनके तरकश में ऐसे कौन से तीर अथवा ब्रह्मास्त्र थे, जिनके वार एकदम अचूक रहे? उनमें ऐसी कौन सी वो जादूई शक्ति थी, जो हर किसी को उनकी ओर खींचा चला आने के लिए विवश करती रही? उनमें ऐसा क्या था, जो हर कोई उनकीं हर बात को पूरी गम्भीरता से लेने और उस पर पूर्ण यकीन करने को विवश करती रही? उनके वायदों और इरादों में वो कौन सी ताकत थी, जो अपना अमिट असर हर दिल पर छोड़ने में कामयाब हुई? उनकी ऐसी कौन सी रणनीति थी, जिसको बड़े-बड़े धुरन्धर भेद नहीं पाये?

बेशक इस तरह के सवाल हर किसी को सोचने के लिए असहज करने की क्षमता रखते हों। लेकिन, इन सभी सवालों का बेहद ही सहज और सारगर्भित जवाब है, ‘ज़ज्बा, जोश, जुनून, जिद एवं जिम्मेदारी’ का जबरदस्त पंच है। नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह राष्ट्रसेवा का अनूठा ज़ज्बा लोगों के सामने दिखाया, उसने हर किसी का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने जिस जोश और बुलन्द हौंसले का प्रदर्शन किया, उसने लोगों में एक नई सोच और विश्वास का संचार हुआ। उन्होंने राष्ट्रीय फलक पर छा जाने का जो जुनून दिखाया, उसे देखकर विरोधियों के हौंसले पस्त हो गये। उन्होंने लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करने की जो जिद्द ठानी उसका तोड़ कोई नहीं ढूंढ़ पाया। उन्होंने जिस जिम्मेदारी और तार्किकता के साथ लोगों और मीडिया के बीच अपनी बात रखी, उसने हर किसी को लाजवाब करके रख दिया। भले ही उनके विरोधी दिखावे के लिए कुछ भी कहें, लेकिन उनके इस अद्भुत, अनूठे एवं अनुपम पंच का लोहा जरूर मानते हैं।

नरेन्द्र मोदी ने जिस जिम्मेदारी के साथ अपने वायदों और इरादों से देश को अवगत करवाया, उसमें लोगों को सच्चाई नजर आई। लोगों को यह यकीन करने के लिए बाध्य होना पड़ा कि यदि अबकी बार मोदी सरकार आई तो महंगाई, भ्रष्टाचार, बेकारी, बेरोजगारी और गरीबी से मुक्ति मिल सकती है। जिस प्रकार से मोदी ने युवाओं में नए संकल्प और जोश का संचार किया और जिस तरह से किसानों को सपने दिखाये, उसने देश में एक सकारात्मक माहौल का निर्माण किया। मोदी ने जिस प्रकार से ‘गुजरात मॉडल’ को प्रस्तुत किया और जिस प्रकार से उसी तर्ज पर पूरे देश का विकास करवाने का संकल्प उठाया, उसने लोगों में एक उम्मीद जगा दी कि सच में अच्छे दिन आ सकते हैं। मोदी ने जिस अकाट्य कूटनीति के अपने इर्द-गिर्द रचे गए साम्प्रदायिकता के विपक्षी चक्रव्यूह को भेदा, उसने अत्याशित परिणाम देने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि ‘जीत के आगे क्या’? जनता ने मोदी की ‘ये दिल मांगे मोर’ की अपील और दलील को शत-प्रतिशत मान दिया है। देश के लोगों ने मतदान प्रतिशत से लेकर एकल पार्टी को पूर्ण बहुमत देने तक लोकतांत्रिक इतिहास में एक नया स्वर्णिम अध्याय लिख डाला है। अब बारी नरेन्द्र मोदी की है। देश के लोगों को भाजपा से नहीं, बल्कि नरेन्द्र मोदी से उम्मीदें बंधेगी, क्योंकि लोगों ने वोट भाजपा को नहीं, बल्कि नरेन्द्र मोदी को दिया है। पूरे देश में नरेन्द्र मोदी के नाम से वोट मांगे गए हैं और पूरे देश को नरेन्द्र मोदी ने आश्वस्त किया है कि उन्हें कांग्रेस के 60 सालों की तुलना में केवल 60 महीने सेवा करने का मौका दे दो तो देश की तस्वीर बदल दूंगा। जनता अपनी जिम्मेदारी पर खरी उतरी है। अब मोदी को अपनी जिम्मेदारी पर खरा उतरना होगा।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि वायदे और इरादे जितनी सहजता के साथ किया जा सकता है, उन्हें पूरा करना उतना ही मुश्किल होता है। जिन मूलभूत समस्याओं से देश पिछले साढ़े छह दशक से जूझ रहा है, उन्हें एकाएक दूर करना असंभव नहीं तो कम से कम कठिन तो जरूर होगा। मोदी के सिर पर कांटों भरा ताज रखा जाने वाला है। जहां वे विरोधियों के निशाने पर रहेंगे, वहीं उन्हें अन्दरूनी कड़वाहटों का सामना भी करना पड़ेगा। जहां उनके सामने आम आदमी की अपार उम्मीदों व अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती होगी, वहीं विदेशों के साथ सम्बंधों को प्रगाढ़ बनाये रखने की कसौटी पर भी खरा उतरने की चुनौती भी होगी। एक तरफ उन्हें देश में साम्प्रदायिक परिस्थितियों से निपटने की कौशलता का परिचय देना होगा, वहीं कश्मीर व राम-मन्दिर पर कथित छिपे एजेण्डों जैसी दोधारी तलवार पर संतुलन साधने की कला भी दिखानी होगी। नरेन्द्र मोदी को जहां ‘गुड गवर्नेंस’ और ‘सबका विकास’ के दावे को पूरा करना होगा, वहीं सीमा पार से अक्सर होने वाली घुसपैठों व आंतरिक आंतकवादी घटनाओं पर अंकुश लगाने का जिम्मा भी उठाना होगा। उन्हें जहां सभी बेरोजगार एवं बेकार लोगों को काम देने के वायदों को पूरा करना होगा, वहीं अनवरत रूप से कर्ज में दबकर मौत को गले लगा रहे किसानों को भी अच्छे दिन आने का अहसास करवाना होगा।

कहने की आवश्यकता नहीं है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार के समक्ष विकट चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। इन चुनौतियों के इस पहाड़ को कैसे पार करेंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। लेकिन, फिलहाल इतना जरूर है कि उनके समक्ष जीत का जश्न मनाने के लिए ज्यादा समय नहीं है। यदि वे जीत के जश्न में डूबे रहने और अभिमान की हवा में बहते रहने की आम परंपरा को भी तोडऩे का कारनामा कर दिखाने का साहस दिखाएं तो यह न केवल सर्वत्र सराहनीय होगा, अपितु देश के लोकतांत्रिक इतिहास में एक अनूठी मिसाल भी कायम होगी। वैसे भी नरेन्द्र मोदी को अपनी जिम्मेदारी और विकट चुनौतियों का सहज अहसास जरूर होगा, क्योंकि उन्होंने यह अप्रत्याशित अनूठा मुकाम पाने के लिए अपना सर्वस्व अर्पण किया है। यदि बदकिस्मती से वे अपने वायदों और इरादों पर खरा नहीं उतर पाये तो यह न केवल देश का दुर्भाग्य होगा, बल्कि लोगों की भावनाओं और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ गहरा कुठाराघात भी होगा।

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