अनूप की वापसी और उससे जुड़े गुणा-लाभ

सिद्धार्थ शंकर गौतम

वरिष्ठ भाजपा विधायक व पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा की शिवराज मंत्रिमंडल में बहुप्रतीक्षित वापसी आखिरकार हो ही गई| शुक्रवार को राजभवन में ५ मिनट चले शपथ ग्रहण समारोह में जब अनूप मिश्रा पद एवं गोपीनयता की शपथ ले रहे थे तो उनके चेहरे के भाव यही बयां कर रहे थे कि जिस बेलगाँव मामले में उनके परिवार का नाम आने से उनकी मंत्रिपद से छुट्टी कर दी गई थी और न्यायालय द्वारा दोषमुक्त करार दिए जाने के बाद भी पार्टी ने उन्हें दोषमुक्त नहीं माना था; अब वे सर झुककर नहीं सर उठाकर अपने उसी रूप में आने को तैयार हैं जिसके लिए वे विख्यात हैं| प्रशासनिक एवं सांगठनिक रूप से बेहद मजबूत अनूप मिश्रा ग्वालियर की राजनीति के लिए तो बेहद अहम हैं ही; प्रदेश में भी उनके राजनीतिक अनुभव का फायदा मिल सकता है| शायद यही सोचकर शिवराज सिंह चौहान ने उनकी मंत्रिपद हेतु वापसी पर मुहर लगाई है| देखा जाए तो यह वापसी एक तरह से अनूप मिश्रा के लिए नया राजनीतिक पुनर्वास लेकर आई है| गौरतलब है कि ग्वालियर की राजनीति में भाजपा के कई क्षेत्रीय क्षत्रपों से लेकर चम्बल संभाग के कई वरिष्ठ नेताओं के राजनीतिक हित जुड़े हुए हैं| इस लिहाज से देखा जाए तो अनूप की मंत्रिपद पर वापसी ग्वालियर-चम्बल संभाग में नए राजनीतिक समीकरणों को जन्म दे सकती है| भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव नरेन्द्र सिंह तोमर हो या सिंधिया राजघराने की यशोधरा राजे, इसी घराने की माया सिंह हों या वर्तमान में भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई के प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा; सभी का राजनीतिक गढ़ रहा है ग्वालियर| फिर नरोत्तम मिश्रा जैसे कद्दावर मंत्री के पास ग्वालियर का प्रभार होना भी इस बात का संकेत देता है कि आने वाले समय में अनूप की वापसी कहीं न कहीं कुछ तो गुल खिलाएगी ही| हालांकि अनूप जैसी शख्सियत और लोकप्रियता ग्वालियर से जुड़े किसी भाजपाई के पास नहीं है लेकिन सभी के पास अपने समर्थकों की भरी-पूरी फौज है|

माया सिंह-प्रभात झा वैसे तो संभाग से राज्यसभा सांसद हैं और इनका क्षेत्र की जनता में कोई सीधा दखल नहीं है किन्तु संगठन स्तर पर दोनों ही यहाँ की राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं| वहीं भाजपा महासचिव नरेन्द्र सिंह तोमर का ग्वालियर से जुड़ाव काफी पुराना है| मुझे याद है, अभी हाल ही में जब नरेन्द्र सिंह ग्वालियर प्रवास पर आए थे तो रेलवे स्टेशन पर उनके उतरते ही उनके समर्थकों ने जिस तरह से स्वागत किया और ताबड़तोड़ प्रतिबंधित हर्षफायर किए गए उससे उनकी लोकप्रियता का भान होता है| जहां तक बात नरोत्तम मिश्रा की है तो शिवराज सरकार के संकटमोचक की भूमिका का निर्वहन करने वाले मिश्रा और अनूप की अंदरखाने नहीं पटती और यह बात दबी जुबान से संगठन स्तर पर हर कोई स्वीकार भी करता है| कयासों के बाजार में ऐसी भी खबरें आती रही हैं कि नरोत्तम और प्रभात झा की जोड़ी ही अनूप का राजनीतिक पुनर्वास खत्म करवाने में रोड़ा अटका रही है| हालांकि इसकी पुष्टि कभी नहीं हो सकी और इस बात से अनूप ने भी दोनों के प्रति बैर भाव नहीं रखा किन्तु यह भी सच है कि धुंआ वहीं उठता है जहां आग लगी हो| खैर, राजनीति में सभी के स्वहित होते हैं और यदि नरोत्तम-प्रभात की जोड़ी ने ऐसी कल्पना भी की हो तो उसका कोई औचित्य नहीं है| राजनीति में यह सब चलता रहता है| हाँ, अनूप और नरेन्द्र सिंह के बीच संवाद की शुरुआत होना ही अनूप के लिए संजीवनी का कार्य कर गई है| वहीं अनूप की वापसी में यशोधरा राजे की भी महती भूमिका रही है| कहा जाता है कि अनूप की राजनीति को प्रदेश भाजपा के नेता स्वीकार नहीं कर पाते| चूँकि अनूप की राजनीति में टालू स्वभाव की गुंजाइश नहीं होती अतः तुरंत नीतिगत निर्णय और आम जनता के लिए हमेशा उपलब्ध रहने की आदत उन्हें बाकी नेताओं के निशाने पर ला खड़ा करती है| अपने मामा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई से विनम्र स्वभाव से इतर आक्रामक स्वभाव के धनी अनूप को मैंने स्वयं गोरखी में सिंधिया के खिलाफ मैदान बुलंद करते देखा है वहीं महाराजवाड़ा अग्निकांड में विस्थापित हुए दुकानदारों के समर्थन में राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते भी प्रत्यक्ष देखा है| अनूप मिश्रा की राजनीति की खासियत ही है कि वे अपनी जनता के लिए सर्वदा सुलभ राजनेता हैं जो उनके हितों के संरक्षण हेतु अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी कर सकते हैं और करते भी हैं| हालांकि इस स्वभाव का उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ता है किन्तु यही उनकी राजनीति का उजला पक्ष भी है जो उन्हें जनप्रिय नेता की उपाधि से नवाजता है|

एक समय प्रदेश के मुखिया के संभावित दावेदारों में अनूप का नाम सम्मान से लिया जाता रहा है और उनकी मंत्रिपद से छुट्टी ने उनके नाम को भले ही बिसरा दिया हो किन्तु इस खांटी जननेता का भविष्य कहीं अधिक उज्जवल है| अब जबकि अनूप मिश्रा शिवराज मंत्रीमंडल में शामिल हो चुके हैं और बुरे वक़्त में अच्छे बुरे की पहचान भी उन्हें हो गई है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि अब अनूप मिश्रा रुकने वाले नहीं हैं और अपने राजनीतिक अनुभव का लाभ वे अपनी जनता की तकलीफों को दूर करने में लगायेंगे| खासकर ग्वालियर चम्बल संभाग में इस कद्दावर ब्राह्मण नेता का जादू चलता रहा है और अब उसकी गति में अधिक तेजी आएगी| हाँ, अनूप की मंत्रिपद पर वापसी से कुछेक नेताओं के सीने पर सांप ज़रूर लोट गए होंगे और वे अनूप की भावी राजनीतिक राह में कठिनाई भी उत्पन्न करने का प्रयास करेंगे पर शायद वे यह भूल रहे होंगे कि या वही अनूप हैं जो विपरीत परिस्थितियों से लड़कर ससम्मान वापसी सुनिश्चित करवा पाए हैं|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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