अनुप्रश्न

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 विजय निकोर

स्तब्धता को मसोसती

बूँद-बूँद

टपकते पानी की टप-टप

रसोई की साँस हो जैसे !

 

थाली में गरम रोटी परोसे

पुकार रही है प्रतिदिन

कई सालों से बार-बार

तुम्हारी प्यारी आवाज़ ।

 

जीभ पर स्वाद तो अभी भी है

तुम्हारी मलका-मसूर का,

तुम्हारे कोमल हाथों के खिलाए

मक्की की रोटी के कौर का ।

 

पड़ा है जहाँ-तहाँ, कब से

सभी कुछ यहाँ

यह पतीला, कलछी, यह थाल

तुम्हारी उपस्थिति के साथ ।

 

लेकिन दीवारों पर अब

सालों से लगी सीलन,

काँसे की कटोरी पर

कभी न उतरती कलौंस

और रसोई की हवा में फैली

सदैव निगरानी रखती

तुम्हारी चेतना का विस्तार,

अब यह सभी

चूल्हे से उठते धुएँ के संग

मेरी साँसों में घुल-घुल

मुझे छिन्न-भिन्न कर रहे हैं ।

 

माँ, आज बस एक दिन

तुम मुझको

हाथ में गरम रोटी लिए

इतने प्यार से न पुकारो,

और बस इतना बता दो

कि दूर उस परलोक में

तुम कैसी हो ?

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विजय निकोर
विजय निकोर जी का जन्म दिसम्बर १९४१ में लाहोर में हुआ। १९४७ में देश के दुखद बटवारे के बाद दिल्ली में निवास। अब १९६५ से यू.एस.ए. में हैं । १९६० और १९७० के दशकों में हिन्दी और अन्ग्रेज़ी में कई रचनाएँ प्रकाशित हुईं...(कल्पना, लहर, आजकल, वातायन, रानी, Hindustan Times, Thought, आदि में) । अब कई वर्षों के अवकाश के बाद लेखन में पुन: सक्रिय हैं और गत कुछ वर्षों में तीन सो से अधिक कविताएँ लिखी हैं। कवि सम्मेलनों में नियमित रूप से भाग लेते हैं।

2 COMMENTS

  1. माँ की याद का एक भावभीना अहसास
    बहुत सुन्दर रचना..क्या बात है।

    • कविता की सराहना के लिए अतिशय धन्यवाद !
      विजय निकोर

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