स्‍वास्‍थ्‍य-योग

व्याकुलता संबधित विकार [anxiety disorder]

problemकल क्या होगा ? कैसे होगा ? लगता है कुछ अनिष्ठ होने वाला है , कभी इस बात की चिन्ता कभी उस बात का डर, जैसे विचार एक प्रकार का भय और बेचैनी बढ़ाते हैं, जिसे व्याकुलता [anxiety] कहते हैं। थोड़ी बहुत व्याकुलता सभी कभी न कभी महसूस करते हैं, यही व्याकुलता जब बहुत बढ़ जाती है तो एक मनोविकार का रूप ले लेती है जिसे व्याकुलता संबधित विकार [anxiety disorder] कहते हैं। व्याकुलता संबधी विकार के कारण हमेशा तो नहीं पर अधिकाँशतः बचपन मे घटी किसी दुर्घटना से जुड़े होते हैं जिसको पीड़ित व्यक्ति भले ही समझे कि वह भूल चुका है, पर वह बात अवचेतन मन की किसी सतह पर अंकित रहती है।

इस मनोविकार से पीड़ित व्यक्ति अत्यधिक मनन, चिन्ता और शंकाओं से धिरा रहने के कारण बेचैनी और धबराहट महसूस करता है। वह भविष्य की अनिश्चितताओं के कारण कुछ सत्य कुछ काल्पनिक डरों को मन मे बिठा लेता है। कुछ शारीरिक बीमारियों मे भी ऐसे लक्षण आते हैं जैसे हायपरथायरौयडिज़म आदि, पूरी जाँच पड़ताल के बाद ही निदान किया जा सकता है कि ये व्याकुलता संबधित विकार है या नहीं। यह निश्चित होने पर कि यह व्याकुलता संबधी विकार है पीड़ित व्यक्ति को दो श्रेणियों मे रख सकते हैं, जिनकी व्याकुलता हमेशा बनी रहती है उसे सामान्यीकृत व्याकुलता [generalized anxiety disorder] कहते हैं दूसरी श्रेणी मे अचानक उत्पन्न व्याकुलता [ episodic anxiety disorder] आती है जो काफ़ी ज़्यादा भी हो सकती है, कितने अन्तराल के बाद व्यक्ति व्याकुलता से पीड़ित होता है यह हर पीड़ित व्यक्ति के साथ अलग अलग होता है।

व्याकुलता संबधित विकार को कई वर्गों मे रक्खा जा सकता है-

1 सामान्यीकृत व्याकुलता विकार (Generalized anxiety disorder )(GAD)

इस प्रकार की व्याकुलता का कोई विशेष आधार नहीं होता यह धीरे धीरे बढ़कर पुरानी (chronic) बीमारी का रूप ले लेती है। बस पीड़त व्यक्ति हर समय बेचैन ,व्याकुल और थका हुआ रहता है।मास पेशयों मे खिंचाव महसूस होता है नींद कम आती है।जब व्यक्ति छोटी छोटी या बिना बात की चिन्ताओं से घिरा रहता है तो उसकी कार्य क्षमता पर असर पड़ता है। वह एकाग्रचित्त नहीं हो पाता निर्णय नहीं ले पाता मस्तिष्क चिन्ताओं से घिरा रहने के कारण कोई भी काम नहीं हो पाता।कुछ शारीरिक लक्षण हाथों मे पसीना दिल ज़ोर से धड़कना, पेट ख़राब होना भी इसके लक्षण होते हैं पर इस विकार का निदान करने से पहले यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि कोई अन्य शारीरिक बीमारी तो नहीं है।

2 भयगग्रस्त विकार( phobic disorde )

भयग्रस्तविकार मे कोई भी डर अत्यधिक चिन्ता का कारण बनता है। कोई भी वस्तु या परिस्थिति भय का कारण हो सकती है। ये भय तर्क संगत नहीं होते, परिस्थिति के संदर्भ मे अनुपातहीन होते हैं। अपने भय पर क़ाबू पाना कठिन होता है। कोई ज़रा से ख़ून को देखकर डरता है, कोई पानी को, कोई अंधेरे को ,कोई किसी रंग को या ऊँचाई या किसी भी अन्य वस्तु या परिस्थिति को। ये डर सामान्य नहीं होते।

अचानक तेज़ खलबली के दौरे (Panic disorder )

अचानक तेज़ खलबली के दौरे के कारण शंका, आतंकित होना, थरथर काँपना इसके प्रमुख लक्षण हैं जो कुछ समय तक रहते हैं। ये 10 मिनट के लिए भी हो सकता है और कुछ घन्टे भी के लिए भी। इसकी वजह तनाव या भय भी हो सकती है या संभव है कि वजह का पता ही न चल पाये। बार बार इस तरह के दौरे अचानक जल्दी जल्दी पड़ने से बीमारी पुरानी (chronic) पड़ जाने से नतीजे कष्टदायक हो सकते हैं। दिल की बीमारी का ख़तरा बढ़ जाता है। व्यक्ति अपनी बीमारी के बारे मे सोचते रहने की विवशता महसूस करता रहता है। इस प्रकार के दौरों मे कभी कभी पीड़ित व्यक्ति को लगता है कि वह कंहीं भीड़ मे फंस गया है है और बाहर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा। ऐसी स्थिति मे वह बहुत सी चीज़ो से डरने लगता है और की बीतें बातों को सोच-सोच के घबराया हुआ रहता है। इसे ऐग्रो फोबिय कहते हैं ।

सामाजिक व्याकुलता विकार(Social anxiety disorder SAD )

इस कठिनाई से जूझते व्यक्ति को किसी से मिलने जुलने मे डर लगता रहता है। वह सोचता है कि हर दूसरा आदमी उसको ही देख रहा है, उसी के बारे मे बात कर रहा है। दूसरों से बात करने मे शरमाता है, पसीना पसीना हो जाता है और बात करने मे कठिनाई होती है। धीरे धीरे वह बिल्कुल अकेला पड़ जाता है।

जुनूनी बाध्यकारी विकार(Obsessive–compulsive disorder )

यह भी मूलतः व्याकुलता से ही संबधित विकार है(anxiety ) इसमे एक ही काम को बार बार करने विवशता महसूस होती है। बार बार नहाना, बार बार हाथ धोना या किसी भी काम को गिनगिन के करना। किसी विचार को मन से हटाने पूर्णतः असमर्थ रहना इसके मुख्य लक्षण हैं। पीड़ित व्यक्ति कभी बार बार ताले चैक करेगा या गैस तो खुली नहीं छूट गई यह चैक करेगा फिर भी संतोष नहीं होगा।

अभिघात से उत्पन्न तनाव(Post-traumatic stress disorder (PTSD) )

यह व्याकुलता किसी घातक घटना या दुर्घटना के बाद हो सकती है जैसे किसी मुक़ाबले मे हार, प्राकृतिक विपदा, बंधक रहना, बलात्कार, बालयौन उत्पीड़न, दूसरों की बदमाशियाँ सहना या कोई दुर्घटना। इससे पीड़ित व्यक्ति अत्यधिक चौकन्ने रहते हैं, पुरानी यादें उनका पीछा नहीं छोड़ती वो क्रोधित और दुखी रहते हैं। कुछ स्थितियों से बचना चाहते हैं।

जुदा होने के डर से व्याकुलता (Separation anxiety ,Sep AD)

इस प्रकार की व्याकुलता किसी व्यक्ति स्थान या वस्तु से जुदा होने के डर के कारण पनपती है और कभी-कभी बहुत गंभीर स्थिति होजाती है। बढ़ते बच्चों मे यह घबराहट बहुत हती है। कभी कभी समस्या इतनी गंभीर हो जाती है कि खलबली मच जाती है और बेचैनी बहुत बढ़ जाती है।

परिस्थिवश उत्पन्न व्याकुलता(Situational Anxiety )

यह परिसथितियों मे बदलाव के कारण होती है। कोई शहर या नौकरी बदलने से घबरा जाता है, तो कोई विवाह से नया रिश्ता जोड़ने मे घबराहट महसूस करता है। नये बच्चे के जन्म के बाद भी बदली परिस्थिति मे ऐसी व्याकुलता देखी जाती है।कुछ लोग बदलाव आसानी से स्वीकार लेते हैं, कुछ को समय लगता है ,पर कुछ लोग अपनी व्याकुलता पर क़ाबू नहीं पा पाते तो उन्हे इलाज की ज़रूरत होती है।

कारण

व्याकुलता संबधित विकार के मानसिक कारणों का उल्लेख तो उनके प्रकार के साथ ही कर दिया गया है इसके अतिरिक्त कुछ शारीरिक कारण अनुवाँशिक भी हो सकते हैं। मस्तिष्क के न्यूरोट्राँसमीटर मे रासायनिक गड़बड़ी से भी यह विकार हो सकता है।

चिकित्सा

सबसे पहले यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि तीव्र व्याकुलता का कोई अन्य शारीरिक कारण तो नहीं है। व्याकुलता किस प्रकार की है उसके साथ अवसाद के या किसी और मनोरोग के लक्षण तो नहीं हैं। मनोचिकित्सक जो भी दवाइयाँ दें समय पर सही मात्रा मे लेनी चाहियें। शुरू मे मनोचिकित्सक से जल्दी जल्दी संपर्क करने की आवश्यकता होती है क्योंकि पीड़ित व्यक्ति की प्रगति देखकर दवाई की मात्रा निश्चित करनी पड़ती है। कभी कभी दवाई बदलने की भी ज़रूरत होती है। मनोरोगों का इलाज केवल दवाइयों से नहीं होता उन्हे मनोचिकित्सा और परामर्श भी देना ज़रूरी होता है जिससे वे अपने सोचने के तरीकों और जीवन शैली मे परिवर्तन करके अपनी व्याकुलता पर क़ाबू पा सकते हैं। मनोरोगों के ठीक होने मे समय लगता है, अतः धैर्य से इलाज करवाना चाहियें। सही समय पर सही चिकित्सा मिलने से लाभ होता है। मनोचिकित्सक के पास केवल पागलों का इलाज होता है यह धारणा बहुत ग़लत है इसलियें कष्ट को छुपाना नहीं चाहिये । इलाज होना चाहिये।