समाज

क्या आप भावनात्मक रूप से बुद्धिमान है?

10_2008_1-sak4591-1_1222797615संजय ऑफिस से घर लौट कर आया, बेटे से पानी लाने को कहा, बेटा टी.वी. देखने में मशगुल था, उसने अनसुना कर दिया। संजय अपना आप खो बैठा, पास पड़े डंडे से उसने बेटे की बुरी तरह पिटाई कर डाली। कारण बड़ा सामान्य था, संजय का दिन काफी परेशानी भरा था, वह अपना प्रोजेक्ट समय पर नहीं कर पाया और उसे अपने बॉस से काफी कुछ सुनना पड़ा था।

आए दिन हम अपने घरो में, अडोस पड़ोस में, रास्ते में, ऑफिस में देखते है; लोग छोटी-छोटी बॉतो पर अपना आप खो देते है। मम्मिया बच्चों पर झुंझलाती रहती है, मिंया बीबी छोटी छोटी बातोँ पर झगड़ते रहते है, यहाँ तक कि तलाक़ ले लेते है। किशोरवय के बच्चे मर्डर और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध कर रहे है। छोटी-छोटी बातों पर वाहन चालक सड़क पर हाथापाई कर रहे है, यह लिस्ट अनंत है, पर इस सबके पीछे कारण एक है – भावनात्मक समझदारी, जिसे इंग्लिश में इमोशनल इंटेलिजेंस कहते है।

भावनाए हमारे व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है। हमारे दिमाग के दो मुख्य हिस्से है – एक जो तार्किक है, हर चीज को तर्क के हिसाब से ही देखता है और दूसरा भावनात्मक, जिसका तर्क से दूर दूर तक का कोई रिश्ता ही नहीं है। कहते है हमारा भावनात्मक दिमाग, तार्किक दिमाग से यही कोई दस करोड़ साल पुराना है।

दिमाग का मुख्य भाग ‘ब्रेन स्टेम’ जो रीढ़ की हड्डी के उपरी भाग को घेरे रहता है, यह सामान्यतः सभी प्राणियो में पाया जाता है।साँस लेना और पाचन तंत्र जैसे स्वचालित लगने वाले काम दिमाग के इसी भाग के कारण होते है। दिमाग का यह हिस्सा न तो सोंच सकता है और न ही सीख सकता है, पर यह जीवन चलने वाले सारे स्वचालित कामो को अंजाम देता है।

इसी मुख्य दिमाग के एक भाग, ‘ओलफैक्ट्री लोब’ जो की सुगंध से जुडा है, से हमारे भावनात्मक दिमाग का उदभव हुआ। शुरुआती दिनों में यह ‘ओलफैक्ट्री लोब’ ही गंध को याद कर रखती थी और बताती थी की सामने जिससे वास्ता पड़ा है वह दुश्मन है, भोजन है या प्रेयसी है और प्रतिक्रिया तय करती थी की खाना है, आगे बढना है या जान बचाने के लिए भागना है।

‘ओलफैक्ट्री लोब’ के विकास से बना हमारा भावनात्मक दिमाग ‘लिम्बिक सिस्टम’ कहलाता है। विकास के कई करोडो वर्षो के दौरान हमारा तार्किक दिमाग जो ‘नियो कोर्टेक’ कहलाता है, अस्तित्व में आया।

दिमाग के दो और मुख्य अवयव होते है – एक ‘अमिगडला’ और दूसरा ‘थेलामस’। ‘अमिगडला’ बड़े ही कमाल की चीज होता है, हमारी भावनात्मक समझदारी का बहुत कुछ दारोमदार ‘अमिगडला’ पर ही होता है। वही ‘थेलामस’ किसी छोटे मोटे कम्युनिकेशन सेंटर की तरह काम करता है। जो कुछ हम इन्द्रियों के द्वारा महसूस करते है, वह हमारे दिमाग में ‘थेलामस’ के जरिये ही पहुचता है।

‘अमिगडला’ बादाम के आकार का होता है और यह भावनात्मक दिमाग के ड्राईवर की तरह होता है। यह सूचनाओ के भावनात्मक पहलुओ को याद रखता है और जो कुछ भावनाए हम महसूस करते है और उस पर जो प्रतिक्रिया देते है, वह सब कुछ ‘अमिगडला’ के कारण ही होता है।

‘अमिगडला’ का सूचनाओ को परखने का तरीका जुदा होता है, वह हर सुचना को पहले से संकलित भावनात्मक सूचनाओ से तुलना कर, किसी परेशानी की सम्भावना को परखता है। वह देखता है की आई हुई सुचना कुछ ऐसी तो नहीं है जिससे वह घ्रणा करता है या जो नुकसान पहुंचा सकती है या जिससे भय है, अगर कही भी उसे ऐसी किसी भी आशंका का अहसास हुआ की वह तुंरत संकट का अलार्म बजा देता है और पूरा शरीर उसी हिसाब से संकट के खिलाफ उत्तजित हो, संकट से सामना करने के लिए तैयार हो जाता है।

अभी तक विशेषज्ञों का यह मानना था की जो कुछ हम इन्द्रियों के द्वारा महसूस करते है वह पहले ‘थेलामस’ में जाता है, और वहा से ‘नियो कोर्टेक्स’ में, जंहा सुचनाए इकठ्ठा हो कर पूर्ण आकार लेती है, उन्हें समझा जाता है और तब यह संवर्द्धित सुचना ‘लिम्बिक सिस्टम’ में जाती है जहा उसका भावनात्मक विश्लेषण होता है और उसके अनुसार शरीर को आवश्यक निर्देश जारी होते है।

एक विशेषज्ञ ली डॉक्स ने अपने अनुसन्धान में पाया की ‘थेलामस’ से ‘लिम्बिक सिस्टम’ के मध्य जो संचार तंत्र ‘नियो कोर्टेक्स’ से होकर जा रहा है, उसके अलावा एक और अपेक्षाकृत कम जटिल और छोटा संचार तंत्र सीधा ‘थेलामस’ से ‘अमिगडला ‘ तक आ रहा है।

यह छोटा संचार तंत्र पूर्ण सुचना तो ‘अमिगडला ‘ तक नहीं पहुच पाता वरन आंशिक या अधूरी सुचना ही पहुंचा पाता है।यह अपेक्षाकृत छोटा संचारतन्त्र तब काफी उपयोगी था जब आदमी जंगल में रहता था और उसे क्षणमात्र में किसी भी खतरे से निपटना होता था।तब आदमी के लिए यह मुश्किल था की वह लम्बे सूचनातंत्र जो की ‘नियो कोर्टेक्स ‘ से होकर आता है, पर अपने अस्तित्व के लिए निर्भर रहता। एक क्षण मात्र की देरी का अर्थ था अपनी जान गवा बैठना।तब ‘अमिगडला ‘ उस अधूरी परन्तु क्षण मात्र में मिली सुचना का विश्लैषण कर तुंरत कार्यवाही कर पाता था।

आज के हालत में जब मनुष्य एक सामाजिक प्राणी बन चुका है और उसे जंगल की तरह के खतरों का सामना नहीं करना पड़ता है, इस तरह की अधूरी सुचना पर काम करने वाला संचारतन्त्र काफी भयंकर हो सकता है।

जैसा कि हमने देखा की ‘अमिगडला ‘ हर सूचना का विश्लेषण संभावित खतरे को आकने के हिसाब से करता है, ऐसी कोई भी अधूरी सुचना जो खतरा लगे, उसे आक्रामक बना सकती है और परिणाम भयंकर एवं कष्टप्रद हो सकते है

हम स्वयं अपनी जिन्दगी में इस बात के गवाह है जब हम या हमारे आस पास के लोग क्षणिक आवेश में ऐसे कार्य कर बैठते है, जिस पर बाद में पछताना पड़ता है।

जिन्दगी में सकून, शांती से रहने और सफल होने के लिए जरुरी है की हम उपयुक्त निर्णय ले सके, और इसके लिए जरुरी है की हम इमोशनल इंटेलिजेंट या भावनात्मक बुद्धिमान बने। इस तरह की बुद्धिमानी हमें सक्षम बनाती है कि हम आवेश में आकर कार्य करने के बजाये शांतचित होकर काम कर पाए और हमारी जिन्दगी में सफलता और ख़ुशी सुनिश्चित कर पाए।

भावनात्मक बुद्धिमान बनना आज आसान हैं। विज्ञान ने आधुनिक शोध कार्यों के द्वारा यह प्रमाणित कर दिया हैं कि योग व मनोवेज्ञानिक प्रशिक्षणों के द्वारा हम अपनी भावनात्मक बुद्धिमानी का विकास कर सकते हैं। इसका प्रशिक्षण भारत में भी प्रारंभ हो चुका हैं इसलिए यदि आप इसकी आवश्यकता अनुभव करते हैं तो विज्ञान का ज्ञान सहज उपलब्ध हैं।

-अमित भटनागर