फौजी शल्य-क्रिया, फिर भी यह?

पाकिस्तान के विरुद्ध फौजी शल्य-क्रिया (सर्जिकल स्ट्राइक) हुए लगभग 15 दिन हो गए लेकिन आतंकी कार्रवाइयां रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। पिछले दो दिन से पंपोर के उद्यमिता विकास संस्थान में आतंकियों और जवानों के बीच मुठभेड़ जारी है। इसके पहले आतंकियों ने पुलिसवालों से थाने में घुसकर बंदूकें छीन ली थीं और उसके पहले कुपवाड़ा, बारामूला और पुंछ में हमारे सैन्य शिविरों पर आतंकी हमले हुए थे। फौजी शल्य-क्रिया के बावजूद लगातार इन हमलों का क्या अर्थ लगाया जाए?

इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि हमारी शल्य-क्रिया का कोई असर नहीं हुआ। अपुष्ट दावे के मुताबिक उस शल्य-क्रिया में सात ‘लांच पेड’ उड़ाए गए और 38 लोग मारे गए तो उसका कोई संदेश तो पहुंचना चाहिए था? क्या पाकिस्तान और कश्मीरी आतंकवादी यह सिद्ध करने में लगे हैं कि भारत-पाक सीमा पर शल्य-क्रिया जैसी कोई चीज हुई ही नहीं? यदि होती तो उन्हें कुछ सबक तो मिलता? लेकिन इसका उल्टा तर्क भी सही हो सकता है? भारत की शल्य-क्रिया को पाकिस्तानी सरकार फर्जी एलान कर रही है लेकिन वह उससे इतनी आहत है कि वह हर दूसरे-तीसरे दिन किसी न किसी आतंकी घटना को अंजाम दे देती है। वह मोदी-पर्रिकर सरकार की शल्य-क्रिया के कारण सारी दुनिया में बदनाम हो गई है और इतनी अकेली पड़ गई है कि उसे खिसियाहट में रोज़ कोई न कोई हरकत करनी पड़ती है।

इस घटना चक्र का एक पहलू यह भी हो सकता है कि कश्मीरी आतंकवादी किसी न किसी तरह आग को सुलगाए रखना चाहते हैं ताकि ये छुट-पुट घटनाएं दोनों देशों के बीच युद्ध का रुप धारण कर लें।

जो भी हो, जम्मू-कश्मीर की महबूबा-सरकार इन चुनौतियों के सामने काफी अक्षम सिद्ध हो रही है। यह संतोष का विषय है कि केंद्र सरकार अपना संयम नहीं खो रही है। वह सारे मामले को ठंडा करने की फिराक में है। पाकिस्तान का तेवर भी बहुत आक्रामक नहीं है। यदि इन घटनों को लेकर युद्ध छिड़ेगा तो वह दोनों देशों के लिए विनाशकारी सिद्ध होगा। लेकिन पाकिस्तान की फौज को यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि कश्मीर में ऐसी आतंकवादी घटनाएं होती रहीं तो मोदी-सरकार की प्रतिष्ठा पैंदे में बैठ जाएगी और उसे बचाने के लिए मजबूर होकर उसे जबर्दस्त फौजी शल्य-क्रिया करनी पड़ सकती है, जो सिर्फ सीमांत तक सीमित नहीं रह पाएगी।

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