कविता

अरुणा की चार प्रेम कविताएं

(1)

हर मुलाकात के बाद

जो चीज हममें

कामन थी

वो था हमारा भोलापन

और बढता गया वह

हर मुलाकात के बाद

पर दुनिया हमेशा की तरह

केवल सख्‍तजां लोगों के लिए

सहज थी

सो हमारा सांस लेना भी

कठिन होता गया

और अब हम हैं

मिलते हैं तो गले लग रोते हैं

अपना आपा खोते हैं

फिर मुस्‍कुराते हंसते

और विदा होते हैं

(2)

प्‍यार में पसरता बाजार

सारे आत्मीय संबोधन

कर चुके हम

पर जाने क्यों चाहते हैं

कि वह मेरा नाम

संगमरमर पर खुदवाकर

भेंट कर दे

सबसे सफ्फाक और हौला स्पर्श

दे चुके हम

फिर भी चाहते हैं

कि उसके गले से झूलते

तस्वीर हो जाए एक

जिंदगी के

सबसे भारहीन पल

हम गुजार चुके

साथ-साथ

अब क्या चाहते हैं

कि पत्थर बन

लटक जाएं गले से

और साथ ले डूबें

छिह यह प्यार में

कैसे पसर आता है बाजार

जो मौत के बाद के दिन भी

तय कर जाना चाहता है …

(3)

प्‍यार एक अफ़वाह है

प्‍यार

एक अफ़वाह है

जिसे

दो जिद्दी सरल हृदय

उड़ाते हैं

और उसकी डोर काटने को उतावला

पूरा जहान

उसके पीछे भागता जाता है

पर

उसकी डोर

दिखे

तो कटे

तो

कट कट जाता है

सारा जहान

उसकी अदृश्‍य डोर से

यह सब देख

तालियाँ बजाते

नाचते हैं प्रेमी

और गुस्‍साया जहान

अपने तमाम सख्‍त इरादे

उन पर बरसा डालता है

पर अंत तक

लहूलुहान वे

हँसते जाते हैं

हँसते जाते हैं

अफ़वाह

ऊँची

और ऊँची

उड़ती जाती है।

(4)

कुछ तो है हमारे बीच

कुछ तो है हमारे बीच

कि हमारी निगाहें मिलती हैं

और दिशाओं में आग लग जाती है

कुछ तो है

कि हमारे संवादों पर

निगाह रखते हैं रंगे लोग

और समवेत स्‍वर में

करने लगते हैं विरोध

कुछ तो है कि रूखों पर पोती गयी कालिख

जलकर राख हो जाती है

कुछ तो है हमारे मध्‍य

कि हर बार निकल आते हैं हम

निर्दोष, अवध्‍य

कुछ तो है

जिसे गगन में घटता-बढता चाँद

फैलाता-समेटता है

जिसे तारे गुनगुनाते हैं मद्धिम लय में

कुछ तो है कि जिसकी आहट पा

झरने लगते हैं हरसिंगार

कुछ है कि मासूमियत को

हम पे आता है प्‍यार….