आस्था को आहत करती विद्वेष की राजनीति

सुरेश हिन्दुस्थानी
स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत की राजनीति का वास्तविक स्वरुप क्या होना चाहिए? इस बात का अध्ययन करने से जो स्थिति सामने आती है, उससे वर्तमान स्थिति पूरी तरह से भिन्न दिखाई दे रही है। आज की राजनीति को देखकर ऐसा लगता है कि देश के महापुरुषों ने आजादी के बाद जैसे भारत की कल्पना की थी, वैसा बिलकुल भी दर्शित नहीं हो रहा है। इसके पीछे यकीनन यही कहा जा सकता है कि पाश्चात्य जगत की चकाचौंध के चलते राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोग भारतीयता को पूरी तरह से समाप्त करने का षड्यंत्र कर रहे हैं। इसके अलावा ऐसे षड्यंत्र में अगर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता सीधे तौर पर शामिल हो जाते हैं, तब स्थिति और खतरनाक हो जाती है, क्योंकि जिन लोगों को देश का स्वाभिमान जाग्रत करना चाहिए, अगर वही लोग संस्कृति का मजाक उड़ाने लगें तो देश के भविष्य का कैसा स्वरुप हमारे सामने उपस्थित होगा, यह सोचने का विषय है।
एक ताजा मामला केरल में कांगे्रस नेताओं द्वारा दी गई बीफ पार्टी का है। ऐसा लगता है कि यह सोच समझ कर किया गया कांगे्रसी राजनीति का एक और कारनामा है। वैसे भी कांगे्रस को हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खेलने में हमेशा ही मजा आता है। इसके विपरीत अन्य संप्रदाओं के विरोध में उनका मुंह बंद हो जाता है। हम जानते हैं कि कांगे्रस ने हमेशा ही तुष्टिकरण का खेल खेलकर समाज में विघटन की स्थिति का प्रादुर्भाव किया। यानी फूट डालो और राज करो की अंगे्रजों की नीति का अक्षरश पालन किया। हालांकि बाद में केरल के कांगे्रसी नेताओं का पार्टी ने निलंबन कर दिया, लेकिन सवाल यह है कि जिस समय वह गाय काट रहे थे, तब कांगे्रस के जिम्मेदार कार्यकर्ता थे, उनकी पहुंच भी राहुल गांधी तक थी।
देश में चल रही इस प्रकार की विद्वेष फैलाने वाली राजनीति का नेतृत्व करने वाली कांगे्रस पार्टी का वर्तमान स्वरुप यकीनन भारतीय आस्थाओं पर आघात करने वाला है। हमारे देश के कानून में यह स्पष्ट कहा गया है कि राजनीति में ऐसा कोई काम नहीं किया जाना चाहिए जिससे जनमानस की आस्था पर आघात होता है। लेकिन कांगे्रस ने ऐसा दुष्कर्म किया है। इसके पीछे कौन से कारण माने जा सकते हैं? यह तो वही बता सकते हैं, लेकिन कांगे्रस का यह कदम भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने वाला तो कतई नहीं कहा जा सकता। कांगे्रस के पूर्व के कार्यों का अध्ययन किया जाए तो उसमें भी उसकी कई बार भारत विरोधी मानसिकता परिलक्षित हुई है। लक्षित हिंसा अधिनियम के नाम पर मुसलमानों को कुछ भी करने की दी जाने वाली छूट कांगे्रस की हिन्दू विरोधी मानसिकता का उदाहरण कहा जा सकता है, वह तो भला हो देश की जनता का, जिसने विरोध करके इस विधेयक को वापस लेने के लिए कांगे्रस को मजबूर कर दिया।
इसी प्रकार का एक प्रकरण उत्तरप्रदेश के सहारनपुर का भी कहा जा सकता है, जिसमें सरकार और प्रशासन के मना करने के बाद भी कांगे्रस नेता राहुल गांधी जाने के लिए अड़ गए थे। केन्द्र में मोदी और उत्तरप्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद विपक्षी राजनीतिक दल ऐसी राजनीति करने लगे हैं कि इन दोनों के आने के बाद देश और प्रदेश के हालात बिगड़ गए हैं, जैसे इससे पहले सब कुछ बहुत अच्छा था। वास्तव में मात्र विरोध करने के लिए की जाने वाली राजनीति किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकती। समाधान तभी आता है, जब ऐसे मामलों में आरोप लगाने वाली राजनीति न होकर समाधान तलाशे किए जाएं। हमारे देश की यह विसंगति ही कही जाएगी कि यहां की वर्तमान राजनीति समाधानकारक न होकर समस्या कारक होती जा रही है।
कहा जाता है कि जहां विश्व का ज्ञान समाप्त होता है, वहां से भारत का दर्शन प्रारंभ होता है। भारतीय दर्शन ज्ञान की वह पराकाष्ठा है, जहां व्यक्ति की चतुर्दिक आभा का विस्तार स्वत: ही होता चला जाता है। हमारे दर्शन और संस्कारों में प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करने की मानसिकता है, तो विश्व कल्याण का भाव भी समाहित है। लेकिन लम्बे समय से भारत में जिस प्रकार का खेल खेला जा रहा है। वह एक षड्यंत्र का हिस्सा लगने लगा है। अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के नाम पर किया गया समाज का विभाजन इसकी परिणति का परिचायक है। हमारे देश के हिन्दू समाज ने मन से कभी भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक प्रथा को कभी स्वीकार नहीं किया, वह केवल सबको भारत माता की संतान मानकर व्यवहार करता है, लेकिन हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल भारत के संस्कारों को तहस नहस करने का कुत्सित खेल खेल रहे हैं। इस खेल में वह भारत के सांस्कृतिक मूल्यों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। केरल में कांगे्रस पार्टी द्वारा दी गई बीफ पार्टी एक घिनौनी साजिश तो है ही, साथ भारतीय संस्कारों का खुला मजाक है। हम जानते हैं कि गौहत्या पर कानूनन प्रतिबंध है, लेकिन कांगे्रस पार्टी ने इस कानून का उल्लंघन किया है। अब सवाल उठता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दावा करने वाली कांगे्रस ने क्या इस बात की कसम खाई है कि वह भारत के संस्कारों से जुड़ी वस्तुओं पर आघात करते रहेंगे। कौन नहीं जानता कि कांगे्रस ने भगवान श्रीराम के अस्तित्व को नकारने का प्रयास किया। देश के हिन्दू जनमानस के दबाव में हालांकि उसने अपनी गलती स्वीकार की। अगर यह दबाव नहीं होता तो कांगे्रस ने तो हिन्दुओं के साथ खिलवाड़ करने का काम कर ही दिया था। वर्तमान में कांगे्रस के चरित्र को देखकर ऐसा लगता है कि हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खेलना उसका प्रिय शगल बन गया है। भारत का हिन्दू जिस गौमाता में सभी देवों के दर्शन करता है, उसको सरेआम काटा जा रहा है। भारत के सांस्कृतिक मानबिन्दुओं को नष्ट करने का ऐसा ही कृत्य मुगलों और अंगे्रजों ने भी किया। आज ऐसा लगता है कि कांगे्रस भी मुगलों के पद चिन्हों का अनुकरण कर रही है। कांगे्रस के कार्यों को देखकर ऐसा भी लगने लगा है कि वह भारत को नष्ट करने का सपना अपने मन में पाले हुए है, और उसी के अनुरुप अपने सभी कामों को अंजाम दे रही है। अंगे्रजों ने देश को लूटा, तो कांगे्रस ने भी सरकार में रहकर भ्रष्टाचार करके देश को लूटने का किया। कांगे्रस कार्यकर्ताओं ने गौमाता का मांस परोसकर जो घिनौना काम किया है, उससे भारत माता आहत हुई है। वास्तव में कांगे्रस के नेताओं के साथ ही देश के अन्य नागरिकों को भी गाय की वास्तविकता की जानकारी लेनी होगी कि गाय वास्तव में समस्त विश्व के लिए तो कल्याणकारी है ही, साथ मानव जीवन के उत्थान के लिए सर्वथा उपयोगी है। गाय को माता का दर्जा दिया गया है, उसके पीछे अनेक ऐसे शाश्वत कारण सिद्ध हो चुके हैं, जो गाय के माता होने की पुष्टि करते हैं, लेकिन जो पहले से ही विद्वेष की भावना रखता होगा होगा, उसे गाय मात्र जानवर ही नजर आएगी। समाज के सभी नागरिकों को एक दूसरे की भावना का सम्मान करते हुए अपने कार्य करना चाहिए और हिन्दू समाज की शाश्वत श्रद्धा की पात्र गौमाता को काटने से बाज आना चाहिए, जिससे हिन्दू समाज की भावनाओं का सम्मान तो होगा ही, साथ ही सामाजिक भाईचारा का मार्ग भी प्रशस्त हो सकेगा।

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