धर्म-अध्यात्म

वर्तमान समय में श्रीराम की जीवन गाथा बेहद प्रेरक

– मृत्युंजय दीक्षित

श्री रामनवमी का पर्व हिंदुओं के आराध्य मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव है। इस पर्व का हिंदू समाज में विशेष महत्व है। वर्तमान समय में जब पूरे देश का समाज पतन की ओर जा रहा है उन परिस्थितियों में भगवान श्रीराम का चरित्र समाज को एक नई दिशा देने में अत्यंत सहायक हो सकता है।

आज सामाजिक वातावरण हिंसा व भय से ग्रसित होता जा रहा है। हर जगह हिंसा, लूट, डकैती, बलात्कार, छेड़छाड़, भ्रष्टाचार, जातिवाद व भाई-भतीजावाद की जड़ें गहराती जा रही हैं। वर्तमान समय में अश्लीलता का प्रचलन इतनी तीव्रता से फैल रहा है कि युवा वर्ग का तेजी से अधोपतन हो रहा है। जिस देश की धरती पर श्रीरामलला का जन्म हुआ वह धरती असुरक्षित है। आज पूरा विश्व आतंकवाद व आतंकवादियों के गिरफ्त में आने के कारण भयाकांत हो रहा है। सरकारी व गैर-सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओें द्वारा जनता को शिक्षित व समाज को स्वास्थ्य बनाने के प्रयास नाकाफी सिध्द हो रहे हैं।

इन परिस्थितियों में समाज को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जीवन दर्शन ही मार्ग दिखा सकता है। भगवान श्रीराम की कथा से यह सीखा जा सकता है कि हम अपने राष्ट्र की सुरक्षा आंतरिक व वाह्य शक्तियों से किस प्रकार कर सकते हैं। भगवान श्रीराम की कथा हमें सिखाती है कि हमें अपने माता-पिता, गुरु व बड़ों का किस प्रकार से सम्मान करना चाहिए तथा उन्हें आदर-सत्कार देना चाहिए। भगवान श्रीराम ने लंका पति रावण का वध करने के पूर्व उसके कई सेनापतियों व राक्षसों का वध किया था। राक्षसों के अत्याचार से पूरे क्षेत्र की जनता को मुक्ति दिलायी थी। इसके लिए उन्होंने समाज के कई वर्ग के जनसमुदाय का साथ लिया था। हम भी आज वैसा कर आतंकवाद से लड़ सकते हैं। भगवान श्रीराम के अनुज भरत ने उनकी खड़ाऊं लेकर 14 वर्ष तक सिंहासन के उत्तराधिकारी का इंतजार किया। क्या इस प्रकार की नैतिकता आज भारत के राजनीतिज्ञों में शेष रह गयी है, वह पूरा देश देख रहा है। अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए राजनेता व राजनैतिक पार्टियां विश्वासाघात-प्रतिघात का ऐसा खेल-खेल रही हैं कि अब देश की जनता का उन पर से विश्वास समाप्त होता जा रहा है।

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आजादी के पूर्व स्वतंत्रता के बाद स्वशासन आने पर रामराज्य की संकल्पना की थी। लेकिन आजादी के बाद देश के नेताओं ने भगवान श्रीराम का अपने-अपने हिसाब से राजनीतिकरण कर दिया है।

रामनवमी का पर्व, एक पर्व नहीं अपितु गहन चिंतन करने का भी पर्व है। भगवान श्रीराम हमारे आराध्य ही नहीं अपितु हर आस्थावान व्यक्ति के रोम-रोम में बसे सभी नामों में श्रेष्ठ है। रामनवमी पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने भीतर के छल-छदम अहंकार व अन्य रावणी बुराइयों से दूर रहेंगे और श्रीराम को अपने हृदय में बसायेंगे।

रामनवमी के दिन भगवान श्रीरामलला का जन्म अयोध्या के महाराज दशरथ के घर हुआ था। इस दिन अयोध्या सहित देश के सभी प्रमुख मंदिरों में श्रीरामलला का उत्सव पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। उस दिन सभी रामभक्त व धर्मप्राण हिंदू जनता व्रत रखती है तथा मंदिर व अपने घरों में रामायण, रामचरित मानस व सुंदर कांड इत्यादि का पाठ किया जाता है तथा उसके बाद प्रसाद आदि का वितरण किया जाता है। श्री रामनवमी यानी श्रीराम जन्मोत्सव का यह पर्व भारत में ही नहीं विदेशाें में भी उल्लास के साथ मनाया जाता है।

पेरू के राजा अपने को सूर्यवंशी ही नहीं कौशल्यासुत राम का भी वंसज मानते हैं। ‘राम सीतव’ नाम से आज भी यहां ‘राम सीता’ का उत्सव मनाया जाता है। इस प्रकार थाईलैंड, कंबोडिया, जावा व सुमात्रा द्वीप समुहों में रामायण व उनके चरित्रों का भरपूर प्रचार-प्रसार है।

भगवान श्रीराम का चरित्र संपूर्ण समाज के लिए प्रेरक व मार्ग दर्शक है। आइये हम सब मिलकर रामनवमी पर भगवान श्रीराम के नाम को अपने हृदय में बसायें। वे ही एक बार फिर हम सभी का कल्याण करेंगे व मार्ग प्रशस्त करेंगे।

* लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है।