अथश्री कोरोना पद्मश्री’ सम्मान

                          प्रभुनाथ शुक्ल 

हिंदी साहित्य और कविता के विकास में कोरोना काल का अपना अलग महत्व होगा। इस युग की महत्ता शोध परिणामों के बाद निश्चित रुप से साबित होगी। इस युग को चाह कर भी कोई आलोचक और समीक्षक झुठला नहीँ सकता है। अगर वह ऐसा करता है तो इस काल के साथ बेहद ना इंसाफी होगी। अगर वह ऐसा करता है तो साहित्य के इस काल के साथ समुचित न्याय नहीँ कर पाएगा। उसे कोरोना काल कभी माफ नहीँ करेगा। आने वाले युग में हिंदी साहित्य के विभाजनकाल में आदिकाल, मध्यकाल, आधुनिक काल के साथ कोरोना काल भी जुट जाएगा। जिस तरह छायावाद युग का अभ्युदय हुआ उसी तरह कोरोना काल भी साहित्य और कविता विकास में अपनी अहम भूमिका निभाएगा। क्योंकि इस युग ने सृजनात्मकता का जो इतिहास लिखा है सम्भवत: वह किसी काल के लिए सम्भव नहीँ था। अभी तक हम सब तीन काल जानते हैं। लेकिन अब एक और काल जुड़ गया है जिसका नाम है कोरोना काल। तीनों कालों का उपयोग हम अपनी सुविधा के अनुसार करते रहें हैं। अब इस काल का उपयोग हमने कैसे किया है यह लम्बे शोध के बाद साबित होगा।

जिस तरह अँग्रेजी में इंग लगाने से लोग हिंगलिश प्रवक्ता बन गए। ठीक उसी तरह कोरोना काल के कवि ‘करो- ना, करो- ना करते और लिखते कवि हो गए। हमें इस काल का आभार व्यक्त करना चाहिए। क्योंकि इस काल में अचानक कवियों की बाढ़ आ गई। अभी तक कहा जाता था कि ‘पोयट इज बोर्न नॉट मेड’ यानी कवि पैदा होते हैं बनते नहीँ हैं। लेकिन इस युग ने इस मिथक को तोड़ दिया है। कवि देश, काल , वतावरण का सामना करते हुए ख़ुद बनते हैं न कि पैदा होते हैं। यानी कोरोना ने कवि बनने के इस मिथक को भी तोड़ दिया है। सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग पर यह काल भारी है। इस काल ने हमें जितनी सुविधा दी सम्भवतः किसी युग और काल में यह नहीँ मिली होंगी और न मिलेगी। इस काल में लोगों के भीतर सूसुप्त ज्वालामुखी जैसी शांत पड़ी योग्यताएं अकस्मात प्रस्फुटित हो चली हैं। देश की अस्सी फीसदी आबादी तो कवि के रुप में अवतरित हुई हैं।

सोशलमीडिया ने कोरोना काल के साहित्य विकास में अहम भूमिका निभाया है। जिसने कविता और अभिव्यक्ति को इतनी आजादी दी है। हिंदी साहित्य के विकास में इस आभासी दुनिया के योगदा का भी उल्लेख होना चाहिए। क्योंकि हिंदी और कविता के विकास में ‘वर्चुअल’ दुनिया का योगदान नहीँ भुलाया जा सकता है। वरना हमारे संपादकों की चलती तो नब्बे फीसदी कवि उसमें भी अधिकांश पुरुष मित्रों की तरफ़ से कोरोना काल में लिखी रचनाएं रद्दी की टोकरी में होती या फ़िर ईमानदार डाक विभाग सखेद का लिफाफा पहुँचा चुका होता। हमें कोरोना काल के साथ एंड्रॉयड काल का भी शुक्रगुजार होना चाहिए। क्योंकि यह काल न होता तो पवित्र कोरोना काल में इस तरह की कविताओं की रचना नहीँ हो सकती थी। भला इनकी सुध कौन लेता।

हम चाहते हैं कि सरकार हिंदी साहित्य में कोरोना काल का महत्व समझते हुए अनगिनत पुरस्कारों की घोषणा करे।यह उन कवियों के लिए बेहद गौरव की बात होगी। कवियों के लिए सरकार और हिंदी साहित्य अकादमियों को  ‘कोरोना पद्मश्री’ सम्मान के अलावा साहित्य का नॉवेल पुरस्कार की घोषणा करनी चाहिए। हिंदी साहित्य में इस युग को अविलंब जोड़ दिया जाया। जिससे आने वाली पीढ़ियां इस युग का अध्ययन करें और शोध प्रकाशित हो सकें। वास्तव में कोरोंना काल ने मानव जीवन ने सभ्यता का नया इतिहास लिखा है। जिसे आने वाले युगों में भुलाया नहीँ जा सकता है।

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