जन-जागरण शिक्षा का आधा अधिकार April 4, 2013 | 2 Comments on शिक्षा का आधा अधिकार ये ठीक है कि शिक्षा के अधिकार क़ानून-2009 के दबाव में ही सही मगर दिल्ली में 38 वर्ष पुरानी शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की मंशा से दिल्ली सरकार अंतत: गत वर्ष जागी और आनन-फानन में 20 अप्रैल 2012 को दिल्ली सरकार के पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी […] Read more »
राजनीति लौह पुरुष ने अभी हार कहाँ मानी है ? February 11, 2013 / February 11, 2013 | 2 Comments on लौह पुरुष ने अभी हार कहाँ मानी है ? ज़ाहिर है, भारतीय राजनीति की दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा इन दिनों आगामी लोकसभा चुनावों के लिए मुद्दे और नेता की तलाश में जुटी हुयी है। अरसे बाद कांग्रेस के उपाध्यक्ष पद पर पड़ी धूल को हटाते हुए उस पर राहुल गांधी की ताजपोशी की गयी। मौके की नज़ाकत को समझते हुए कुंभ […] Read more » लौह पुरुष ने अभी हार कहाँ मानी है ?
विविधा विवाह में सामाजिक दखल बंद हो December 15, 2012 / December 15, 2012 | Leave a Comment अनूप आकाश वर्मा बात, पिछले वर्ष की है जब दिल्ली विश्वविद्यालय की एक दलित छात्रा ने अपने ही विभाग के विभागाध्यक्ष पर ये आरोप लगा कर खलबली मचा दी थी कि वो उसे इसलिए ज्योतिषशास्त्र नहीं पढ़ने देना चाहते क्योंकि वह दलित है| इसलिए बड़ा सीधा सवाल है, यदि कोई ब्राह्मण पुत्र व्यापारी जीवन व्यतीत […] Read more » विवाह में सामाजिक दखल
कला-संस्कृति कहीं लुप्त न हो जाएँ कुड़बुङिया वाले? September 11, 2012 / September 11, 2012 | Leave a Comment अनूप आकाश वर्मा बात,शादी-ब्याह से शुरू करते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि भारत में वैवाहिक कार्यक्रमों में होने वाली धमाचौकङी समूचे विश्व में प्रसिद्ध है,जो उमंग जो जुनून यहाँ की बारात और बारातियों में है वो कहीं और नहीं। बेशक!आज शहरों में रिवाज़ अब बदल रहे हों लोग आधुनिक से अत्याधुनिक हो रहे हों,गाँवों […] Read more » कुड़बुङिया
खेत-खलिहान खेतिहर मजदूरी को मनरेगा से जोड़ा जाना चाहिए September 6, 2012 / September 6, 2012 | Leave a Comment अनूप आकाश वर्मा दरअसल, सवाल नज़रिए का है..ज़रा विचारिये, आज छटे वेतन आयोग ने सरकार की सेवा में कार्यरत एक चपरासी को तकरीबन १५ हज़ार रूपये मासिक दने की वकालत की है| अच्छी बात है| मगर अब उन किसानों की नियति को क्या कहेंगे जो पूरे माह दिन-रात एक कर खेतों में खून-पसीना बहा कर […] Read more » खेतिहर मजदूर