समाज शादी ब्याह मेँ जोड़ियाँ ऊपर वाला ही बनाता है – कितना सही!! November 13, 2025 / November 13, 2025 | Leave a Comment लो जी शादियों का मौसम आ गया. लोगों को पति -पत्नी के लिए ठीक से वर वधु की ढूंढ करनी होती है. कई शादी एजेंसीज इस कम मेँ तत्परता से लगी नजर आती हैँ. Read more » शादी ब्याह मेँ जोड़ियाँ
खान-पान स्वास्थ्य-योग कैंसर को जानिए -इलाज करवाएं और जीवन का मज़ा उठायें November 13, 2025 / November 13, 2025 | Leave a Comment भारत में कैंसर का इलाज अब संभव है और कई तरह के उन्नत उपचार उपलब्ध हैं, हालांकि इलाज की सफलता कैंसर के प्रकार, अवस्था और व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर निर्भर करती है. Read more » कैंसर
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार यहाँ दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती ? October 17, 2025 / October 17, 2025 | Leave a Comment चंद्र मोहन दिल्ली से 30-35 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश, ग्रेटर नॉएडा का एक गांव है बिसरख जलालपुर जहाँ के लोग दिवाली नहीं मनाते क्योंकि वे खुद को रावण के वंशज मानते हैं. उनका मानना है कि उनका गांव रावण के पिता ‘विश्रवा’ से आया है और रावण का जन्म यहीं हुआ था, इसलिए वे उसकी हार का जश्न नहीं मना सकते. इसके बजाय वे दशहरा जैसे त्योहारों में रावण की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और उसकी आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए पूजा-अर्चना में शामिल होते हैं. वंशावली का दावा – गांव के लोगों का मानना है कि यह स्थान रावण के पिता विश्रवा से जुड़ा है, और रावण का जन्म भी यहीं हुआ था. रावण के प्रति सम्मान: क्योंकि वे रावण को अपना पूर्वज मानते हैं, वे उसके पुतले जलाने का विरोध करते हैं और इसके बजाय उसके पतन का जश्न मनाने के बजाय उसके लिए प्रार्थना करते हैं. परंपरागत उत्सवों से दूरी – इस वजह से वे दीवाली और दशहरा जैसे त्योहारों के दौरान परंपरागत उत्सवों में भाग नहीं लेते हैं. अनहोनी का डर – कुछ ग्रामीणों का यह भी मानना है कि अगर कोई त्योहार मनाने की कोशिश करता है तो अनहोनी हो सकती है जैसे कि लोग बीमार पड़ जाते हैं. गांव के बुजुर्ग बताते है कि बिसरख गांव का जिक्र शिवपुराण में भी किया गया है. कहा जाता है कि त्रेता युग में इस गांव में ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था. इसी गांव में उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की थी. उन्हीं के घर रावण का जन्म हुआ था. अब तक इस गांव में 25 शिवलिंग मिल चुके हैं. एक शिवलिंग की गहराई इतनी है कि खुदाई के बाद भी उसका कहीं छोर नहीं मिला है. ये सभी अष्टभुजा के हैं. गांव के लोगों का कहना है कि रावण को पापी रूप में प्रचारित किया जाता है जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्विमान, शिवभक्त, प्रकाण्ड पण्डित और क्षत्रिय गुणों से युक्त थे. जब देशभर में जहां दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गांव बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है. दशहरे के त्योहार को लेकर यहां के लोगों में कोई खास उत्साह नहीं है. इस गांव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है. गांव बिसरख में न रामलीला होती है और न ही रावण दहन किया जाता है. यह परंपरा सालों से चली आ रही है. मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है. इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है. रावण के मंदिर को देखने के लिए लोगो यहां आते रहते है. बिसरख गांव के मध्य स्थित इस शिव मंदिर को गांव वाले रावण का मंदिर के नाम से जाना जाता है. नोएडा के शासकीय गजट में रावण के पैतृक गांव बिसरख के साक्ष्य मौजूद नजर आते हैं. गजट के अनुसार बिसरख रावण का पैतृक गांव है और लंका का सम्राट बनने से पहले रावण का जीवन यहीं गुजरा था. इस गांव का नाम पहले विश्वेशरा था, जो रावण के पिता विश्वेशरा के नाम पर पड़ा है. कालांतर में इसे बिसरख कहा जाने लगा. बिसरख गांव में दशहरे की अलग परंपरा है, जो अन्य गांवों और शहरों से भिन्न है. यहां रावण की पूजा और सम्मान किया जाता है, न कि उनकी निंदा। गांव के लोग इस अनोखी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रावण की महानता और उनके विद्वता को याद करते हैं, साथ ही उनकी आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करते हैं. भारत में कई स्थानों पर दीपावली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. इन स्थानों पर दिवाली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा भी नहीं होती है और लोग पटाखे भी नहीं जलाते हैं. आपको यह जानकर हैरानी हो रही होगी लेकिन यह बिल्कुल सच है. आइए जानते हैं कि आखिर भारत के इन जगहों पर रोशनी का त्योहार दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती है, इसकी क्या मान्यता रही है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जब 14 वर्ष बाद भगवान श्री राम वनवास से लौटकर अयोध्या वापस आए थे, तो लोगों ने घी के दीपक जलाए थे.तभी से ही दिवाली मनाई जाती है. हिंदू धर्म में दीपावली के त्योहार का बेहद खास महत्व है. इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा होती है.इसके साथ ही लोग अपने घर और मंदिरों में दीपक जलाते हैं.भारत के अलावा दुनिया के अलग-अलग देशों में भी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. भारत के केरल राज्य में दिवाली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. राज्य के सिर्फ कोच्चि शहर में धूमधाम से दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. आपके मन में सवाल खड़ा हो रहा होगा कि आखिर इस राज्य में दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती है? यहां पर दिवाली नहीं मनाए जाने के पीछे की कुछ वजह हैं. मान्यता है कि केरल के राजा महाबली की दिवाली के दिन मौत हुई थी.इसके कारण तब से यहां पर दिवाली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. केरल में दिवाली न मनाने की पीछे दूसरी वजह यह भी है कि हिंदू धर्म के लोग बहुत कम हैं. यह भी बताया जाता है कि राज्य में इस समय बारिश होती है जिसकी वजह से पटाखे और दीये नहीं जलते. तमिलनाडु राज्य में भी कुछ जगहों पर दिवाली नहीं मनाई जाती है. वहां पर लोग नरक चतुदर्शी का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर राक्षस का वध किया था. भारत के कुछ स्थानों पर राम और रावण दोनों की पूजा एक साथ की जाती है जैसे कि इंदौर (मध्य प्रदेश) का एक मंदिर जहाँ राम के साथ रावण की भी पूजा होती है क्योंकि उन्हें ज्ञानी माना जाता है, और मंदसौर (मध्य प्रदेश) जहाँ रावण को दामाद के रूप में पूजा जाता है. कुछ जगहों पर रावण को पूजा जाता है क्योंकि उन्हें विद्वान और भगवान शिव का भक्त माना जाता है, जैसे कि कानपुर (उत्तर प्रदेश) में दशहरा के दिन पूजा जाने वाला मंदिर, या आंध्र प्रदेश के काकिनाडा में जहाँ मछुआरे शिव और रावण दोनों की पूजा करते हैं. मुख्य स्थान जहाँ राम और रावण दोनों की पूजा होती है. मंदसौर, मध्य प्रदेश – यहाँ रावण को उनकी पत्नी मंदोदरी के मायके के कारण पूजा जाता है. इंदौर, मध्य प्रदेश – एक विशेष मंदिर में राम के साथ रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण और अन्य पात्रों की भी पूजा होती है क्योंकि उन्हें ज्ञानी माना जाता है. कानपुर, उत्तर प्रदेश: यहाँ एक ऐसा मंदिर है जो केवल दशहरा पर खुलता है, जहाँ रावण की पूजा की जाती है. काकीनाडा, आंध्र प्रदेश: यहाँ के मछुआरे समाज के लोग शिव के साथ रावण की भी पूजा करते हैं. अन्य स्थानों पर जहाँ पर रावण की पूजा होती है. बिसरख, उत्तर प्रदेश – इसे रावण का जन्मस्थान माना जाता है और यहाँ रावण के सम्मान में मंदिर है. गढ़चिरौली, महाराष्ट्र: यहाँ गोंड जनजाति के लोग रावण और मेघनाद को श्रद्धांजलि देते हैं. जोधपुर, राजस्थान – यहाँ रावण के वंशज पूजा-अर्चना करते हैं. चंद्र मोहन Read more » यहाँ दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती
लेख पानी कितना जरूरी! इसकी बचत भी उतनी जरूरी September 25, 2025 / September 25, 2025 | Leave a Comment चंद्र मोहन सावन अभी अभी ख़तम हुआ. कहीं बादल फटा तो कहीं बाढ़. चारों और पानी ही पानी. धरती पर 70 प्रतिशत पानी है तो हमारे शरीर में भी पानी लगभग 70 प्रतिशत है. इतना सारा पानी है, फिर भी उसकी बचत भी बहुत जरूरी है. बचपन में खेलते हुए कई बार दोहराया है कि… […] Read more » पानी की बचत
कला-संस्कृति खेत-खलिहान कृषि मेँ नवाचार – किसान और खेती हेतु नयी क्रांति का प्रसार September 23, 2025 / September 23, 2025 | Leave a Comment चंद्रमोहन परम्परागत तरीके से अलग से कुछ नया सोचना और उस पर अमल करना. लीक से हट कर नयी पद्धति को अपना कर आकर्षक परिणाम का मिल जाना नवाचार का पहला कदम है. किसी भी काम मेँ चाहे वह खेती – बाड़ी ही क्यों ना हो, नवाचार की अपनी एक खास भूमिका रहती है. इसी […] Read more » कृषि मेँ नवाचार
कला-संस्कृति श्राद्ध में कौओं का महत्व – पितरों तक भोजन पहुँचाना September 15, 2025 / September 15, 2025 | Leave a Comment चंद्र मोहन प्यासा कौआ की कहानी हम बचपन से सुनते आ रहे हैँ. कई कहावतें भी कौओं से सम्बंधित काफी प्रसिद्ध और प्रचलित है. जैसे जैसे समय बीतता गया, कौआ भी सयाना और अकलमंद होने लगा. अब तो कौआ पानी की टोंटी पर बैठ, चोंच से टोंटी भी खोल कर पानी पीने लगा. सयाना कौआ […] Read more » श्राद्ध में कौओं का महत्व