कविता साहित्य नारी का दर्द September 17, 2016 | Leave a Comment क्यों दर्द हैं उसकी बातों में हमेशा मुस्कुराती है जो , इतना अकेली क्यों हैं वो जो मर्यादित है , जो संयमित है, जो नाजुक है , जो शांत है , आखिर एक अबला है वह उसकी की देह तो सबको दिखती है। उसकी आंतरिक सुंदरता क्यों नहीं दिखती.. कहाँ सुरक्षित है वो घर -बाहर […] Read more » नारी का दर्द
व्यंग्य साहित्य उम्मीद August 9, 2016 | Leave a Comment उम्मीद (क्षणिकाएं ) उम्मीद सालों की सुस्त पड़ी ज़िंदगी में , कुछ मुस्कुराहट आ है । फिर से जीने की उमंग और खुद को जानना जैसे लौटे पंछी अपने देश डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है । प्यार शाख से टूट कर अलग हो गए हवा से भी खफा हो गए क्या […] Read more » उम्मीद
कविता साहित्य तन्हाई July 27, 2016 | Leave a Comment तन्हाई छोड़ देती हूँ सिलवटे अब ठीक नहीं करती, मन सुकून चाहता , जो शायद मिल पाना मुश्किल, मुस्कान भी झूठी लगती, अच्छी थी कच्ची मिट्टी की मुस्कान, वक्त के साथ, सोच बदल गयीं। पर हकीकत कुछ और हैं. सहारा नहीं साथ की दरकार हैं, अब उसकी भी नहीं आस है, ढूंढती नजरें पर सब […] Read more » तन्हाई
कविता साहित्य वक्त July 20, 2016 / July 20, 2016 | Leave a Comment वक्त ने वक्त के साथ बहुत कुछ सिखा दिया वक्त ने “चलना” सिखा दिया वक्त ने “मुस्कुराना”सिखा दिया वक्त ने “आसूओं” को छुपा ना सिखा दिया वक्त ने हर “जख्म” को भरना सिखा दिया वक्त -वक्त की बात है…. कभी “तितली” की तरह मंडराना, कभी “भवरें”की तरह गंजन । कभी “बेले” की तरह महकती थी […] Read more » वक्त