व्यंग्य जेन जी November 17, 2025 / November 17, 2025 | Leave a Comment दुनिया हिला दूंगा,सब कुछ जला दूंगा टाइप का एटीट्यूड रखने वाले जेन जी एक तबका नेपाल में सरकार पलट देने से बहुत उत्साहित है। उसी टाइप के एक जेन जी के पास एक हिंदी के Read more »
व्यंग्य जरा हटके ,जरा बचके September 2, 2025 / September 2, 2025 | Leave a Comment कई दशकों पूर्व एक गाना बड़ा मशहूर हुआ था “ए दिल है मुश्किल है जीना यहाँ, जरा हटके जरा बचके ये है बॉम्बे मेरी जां ”। तब भारत की आर्थिक राजधानी के दो नाम हुआ करते थे । बंबई और बॉम्बे। बम्बई आम जन की जुबान में शहर को बोला जाता जबकि इलीट क्लास के […] Read more » जरा बचके जरा हटके
व्यंग्य जाने से पहले July 14, 2025 / July 14, 2025 | Leave a Comment पत्नीजी गर्मी की छुट्टियों में मायके जाने लगीं ।साले साहब लेने आये थे और उस पर तुर्रा यह था कि चारपहिया से लेने आये थे। बरसों पहले एम्बेसडर से ब्याह कर मेरे घर आई पत्नी अब स्कार्पियो से मायके जारही थी ये और बात है कि मेरी मोटरसाइकिल भी ईयमआई पर चल रही थी।बाहर गाड़ी […] Read more » मेरे जाने से पहले।।
कहानी गिरहकट December 9, 2024 / December 9, 2024 | Leave a Comment पन्ना, मैक, लंबू,हीरा, छोटू इनके असली नाम नहीं थे लेकिन दुनिया अब इसे ही इनका असली नाम मानती थी। मंगल प्रसाद गुप्ता ही पन्ना था, मथुरादास पांडे मैक बन चुका था। लंबू का असली नाम खलील अहमद था। अब का हीरा कभी हरजिंदर हुआ करता था और आफताब को सब छोटू के नाम से जानते […] Read more »
व्यंग्य लखनऊ का संत October 18, 2024 / October 18, 2024 | Leave a Comment बरसों पहले लखनऊ के एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार ने “विश्रामपुर का संत “ नामक एक विराट कथा लिखकर खूब प्रसिद्धि बटोरी थी । अब लखनऊ कुछ दूसरी वजहों से चर्चा में है । “लखनऊ है तो महज गुम्बदो मीनार नहीं, सिर्फ एक शहर नहीं कूच ओ बाजार नहीं, इसके आँचल में मोहब्बत के फूल खिलते हैं, […] Read more » लखनऊ का संत
कविता दिन का गांव September 10, 2024 / September 10, 2024 | Leave a Comment वैसे तो गांव का हर वक्त नीरस ही होता है,पर दिन का गांव कुछ ज्यादा ही बेरंग होता ,कोई उम्मीद न बचती और न ही कोई निश्छल हँसी रहती है दिन के गांव में,गांव के लड़के, गांव का दूधगांव की फसल,गांव की सुंदरता,सब तो दिन में शहर चले जाते हैं,शहरों की शान और मेयार बढ़ाने,दिन […] Read more » दिन का गांव
व्यंग्य समाज और क्या चाहिए August 19, 2024 / August 19, 2024 | Leave a Comment भले ही प्रेम, अफेयर, लिव -इन रिलेशनशिप,लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप,प्लूटोनिक लव तथा साहचर्य के विभिन्न विकल्प मौजूद हों मगर आज भी भारतीय परिवेश में शादी बेहद जरूरी मानी जाती है । ऊर्दू के एक उस्ताद राइटर ने फरमाया था कि “इश्क का ताल्लुक दिल से होता है मगर शादी -विवाह का ताल्लुक तनखाहों से होता है “। पहले शादी- विवाह अपने […] Read more »
कहानी नानक दुखिया सब संसार August 7, 2024 / August 7, 2024 | Leave a Comment शहर की झोपड़पट्टी माने वाले इलाके का नाम इंद्र पुरी था । अपने नाम के उलट मुर्गी के दड़बों की तरह बेतरतीब बसी हुई इंद्रपुरी झोपड़पट्टी की एक झोपड़ी से निब्बर रोजगार पर जाने के लिये बाहर निकला। दरवाजे के पास एक लोहे के मजबूत पाए से बंधे जंजीर का ताला खोलकर उसने रिक्शा निकाला […] Read more »
व्यंग्य “सदी की शादी” (व्यंग्य) July 22, 2024 / July 22, 2024 | Leave a Comment “जय श्रीराम शुक्लाजी, कहाँ से लौट रहे हैं इतनी गर्मी में ? आसमान स आग बरस रही है और आप स्कूटर घर में रखकर साइकिल भांज रहे हैं । काहे बचा रहे हैं इतना पैसा” मैंने उन्हें अभिवादन करते हुए उन्हें शब्दों की चिकोटी काटने की कोशिश की। “राम -राम, कैसे हो कुमार खुराफाती। तुम […] Read more » सदी की शादी
व्यंग्य उस्ताद और शागिर्द May 29, 2024 / May 29, 2024 | Leave a Comment व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के आज से लगभग 50 साल पहले के रचित अलग-अलग व्यंग्य लेखों से कुछ लाइनें चुन कर आपके समक्ष पेश हैं,जो आज भी बेहद मौजूं हैं और मिर्ची से भी तीखी लगेंगी। लेकिन यदि परसाई जी के शब्द भेदी बाणों को आज के समय की नजीर में देखा जाए तो शायद ये […] Read more » master and disciple उस्ताद और शागिर्द
कविता पेट्रोल पंप April 16, 2024 / April 16, 2024 | Leave a Comment उसे पेट्रोल पम्प मिल गया है ये सुना अभी, कैसे हुआ ये चमत्कार अवाक हैं सभी , अब और भी लघु लगने लगी है मेरी लघुता, इस पेट्रोल पंप से उसकी कितनी बढ़ेगी प्रभुता अब सालेगी न उसे कोई बात चिंता की, भले ही बाबूजी की पेंशन रहे जब-तब रुकती, क्योंकि पेट्रोल पंप को होना […] Read more »
व्यंग्य “महिमा अमित न जाई बखानी” March 27, 2024 / March 27, 2024 | Leave a Comment चाय की दुकान पर सिगरेट का कश फूंकते हुये इतवार का अखबार मैंने इस उम्मीद में खोला कि अगर मेरा व्यंग्य छप गया होगा तो तीन सौ रुपये मिलेंगे। उम्मीद थी कि इससे चाय- सिगरेट की उधारी निबटाने में आसानी रहेगी। चाय की दुकान पर मैं मुफ्त का अखबार पढ़ने और उधारी की सिगरेट पीने […] Read more »