डॉ घनश्याम बादल

डॉ घनश्याम बादल

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लेखक वरिष्ठ हिंदी कवि एवं समीक्षक हैं

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राजनीति

भारतीय रणबांकुरों की वीरता से पाक पस्त।

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‘सिंदूर’ की जय!  डॉ घनश्याम बादल  22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा बहाए गए खून और मारे गए पर्यटकों के सगे संबंधियों के आंसुओं का जवाब सात मई  प्रातः 1:05 से 1:30 के बीच पाकिस्तान स्थित नौ आतंकवादी ठिकानों को जिस तरह भारतीय सेनाओं ने ध्वस्त करके दिया वह भारतीय सेवा के पराक्रम का एक अद्भुत उदाहरण बनकर सामने आया है।  इससे पहले भी भारतीय सेना ने उड़ी में हुए हमले का जवाब बालाकोट पर सर्जिकल स्ट्राइक करके दिया था तब ऐसा लगा था कि वहां आतंकवाद की कमर टूट चुकी है लेकिन जब उसे वहां से ऑक्सीजन, संरक्षण एवं संसाधन मिलते गए तो वह किसी दैत्य की तरह एक बार फिर से खड़ा हो गया मैं केवल खड़ा हो गया अपितु भेड़िए की तरह गुर्राने लगा, उसे अपनी ताकत का कुछ ज्यादा ही घमंड हो गया, और भारत की संपन्नता, ताकत, समृद्धि और विश्व भर में उसके रसूख और लगातार प्रगति के रास्ते पर बढ़ने से डाह का मारा आतंकवाद पहलगाम में एक बार फिर 26 लोगों की जान लेकर गया ।  जब ये निर्दोष लोग मारे गए सभी तय हो गया था कि आतंकवाद को मिट्टी में मिलाने वाला ऑपरेशन जरूरी है । उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी ने दो लाइन के वक्तव्य में साफ कर दिया था कि धरती के आखिरी छोर तक भी उसे नहीं छोड़ेंगे और यह घृणित कृत्य करने वाले तथा उनके आकाओं को मिट्टी में मिलाकर दम लेंगे। उन्हें ऐसी सजा मिलेगी जिसकी भी कल्पना भी नहीं कर पाएंगे।  तब इस वक्तव्य को एक बार बोला पान समझ गया था खासतौर पर मोदी एवं उनकी सरकार के आलोचकों का मानना था कि यह एक प्रकार का इज्जत फेस सेविंग स्टेटमेंट है और जल्दी ही लोग इसको भूल जाएंगे इस पर भी जब भी बजाएं सर्व दलीय बैठक में शामिल होने के बिहार गए और वहां से उन्होंने तब कड़ी आलोचना की गई और कहा गया कि यह केवल चुनाव के मद्दे नज़र किया गया  ड्रामा है।  लेकिन मोदी को जानने एवं समझने वाले लोग जानते हैं कि वह भले ही राजनीति करते हुए अतिशयोक्ति भरे भाषण देते हों मंचों पर दहाड़ते हों और विपक्षियों पर तीखे प्रहार करते हों यानी प्रधानमंत्री रहते हुए भी खुलकर खुलकर राजनीति करते हैं लेकिन जब बात देश की आती है तब वह ना चूकते हैं और न टूटते हैं इसका प्रमाण पिछले दो सर्जिकल स्ट्राइक एवं एयर स्ट्राइक से मिल भी चुका था मगर उनके इस वक्तव्य को पाकिस्तान ने हल्के से लिया ।   जब उन्होंने पाकिस्तान पर सिंधु नदी संधि स्थगित की , व्यापार के सारे रास्ते बंद कर दिए, हवाई रास्ते बंद करके एवं वहां के दूतावास में रक्षा विशेषज्ञ सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भारत से विदा किए और बाघा बॉर्डर एवं दूसरी सीमाओं को सील करने के कदम उठाए तब उसकी बौखलाहट बढ़ गई और वहां के आतंकी सरगने तथा सेना के जनरल और शाहबाज शरीफ के प्यादे मंत्री परमाणु बम की धमकियां देने लगे बिना यह सोचे हुए कि यदि उन्होंने भूले से भी परमाणु बम का उपयोग कर लिया तो फिर दुनिया से उसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।     मोदी सरकार यहीं पर नहीं रुकी और उसने ताबड़तोड़ एक के बाद एक उच्च स्तरीय बैठकें की और 7 मई को युद्ध की तैयारी के लिए देशभर के 300 जिलों में युद्ध की मॉक ड्रिल एवं ब्लैक आउट के अभ्यास के भी आदेश दे दिए तब शायद पाकिस्तान के फौजी और सरकार यह सोच रहे होंगे कि अभी तो हमले की कोई संभावना ही नहीं बनती । लेकिन ‘मोदी है तो  मुमकिन है’ के नारे को सिद्ध करते हुए 6 मई की रात और 7 मई की प्रातः पूर्व की बेला में 1:05 से 1:30 के बीच केवल 25 मिनट की स्ट्राइक में भारतीय जांबाजों ने वहां के आतंकी ठिकानों पर जो तांडव मचाया वह उसे वर्षों तक याद रहेगा।    इस हमले की सबसे खास बात यह रही कि इसमें किसी भी नागरिक ठिकाने को कोई क्षति नहीं पहुंचाई गई और जिस तरह कूटनीतिक व  रणनीतिक तरीके से इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया वह उसकी काट पाकिस्तान के पास नहीं है । वह इसे न तो युद्ध घोषित कर सकता है और न ही कह सकता है कि बिना उकसावे व अवसर दिए भारत ने यह कार्यवाही की।      दुनिया भर के देशों का समर्थन भारत को ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी मिला है तो इसके निहितार्थ स्पष्ट हैं कि तुर्किया चीन और मलेशिया तथा एक अज़रबेजान जैसे गिने-चुने देशों को छोड़कर सारी दुनिया यह जानती और मानती है कि पाकिस्तान दहशतगर्दी का केवल अड्डा ही नहीं बल्कि उसकी प्राणवायु का स्रोत भी है।    पहले ही इस बात की संभावना थी कि भारत सीधे युद्ध में जाने की बजाय पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को निशाना बनाएगा और उसने ऐसा किया भी । न केवल हाफिज सईद और मसूद अजहर के ठिकाने ध्वस्त किए गए बल्कि पाक अधिकृत कश्मीर से कहीं आगे जाकर पंजाब के सियालकोट एवं  बहावलपुर तक तक बिना सीमा पार किए अपनी अचूक मिसाइलों से दुनिया को यह बताया कि यदि भारत को निरर्थक कोई चढ़ेगा तो फिर भारत भी उसे नहीं छोड़ेगा।     होना तो यह चाहिए था कि पाकिस्तान को इस प्रहार से सीख लेनी चाहिए थी और उसे खुद आगे बढ़कर आतंकी ठिकानों को नष्ट करना था, आतंकवादियों को दंड देना था ताकि उसकी अपनी प्रतिष्ठा बच सके लेकिन बजाय इसके उसने कश्मीर और आसपास के इलाकों पर जिस तरीके से गोलीबारी एवं गोलाबारी की उससे लगता नहीं कि एक ऑपरेशन सिंदूर से यह देश मानने वाला है।  हालांकि भारत एक शांति प्रिय देश है और परमाणु ताकत होने के बावजूद उसने कभी किसी देश पर न आक्रमण किया है और न ही कभी आतंकवाद को प्रश्रय दिया है लेकिन जब बात राष्ट्रीय संप्रभुता एवं आत्मसम्मान की आए तब आगे बढ़कर कदम उठाने से वह कभी पीछे हटा भी नहीं है और ऑपरेशन सिंदूर इसका ताज़ा नमूना है।  अस्तु, ऑपरेशन सिंदूर सफल रहा । ऑपरेशन सिंदूर की जय ।  लेकिन अभी लापरवाह होने यह यह यह मानकर बैठने का वक्त नहीं है कि पाकिस्तान अपना चेहरा बचाने के लिए कुछ नहीं करेगा । यदि सामने से नहीं तो वह पीछे से वार ज़रूर करेगा । इसलिए पूरे देश को जागरुक एवं दृढ़ रहने की जरूरत है और इससे भी बढ़कर हमारे देश में जो सांप्रदायिक सौहार्द्र एवंं संकट के समय कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहने की परंपरा रही है उसको बनाए रखने एवं आगे बढ़ाए जाने की ज़रूरत है।  डॉ घनश्याम बादल 

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लेख

आओ बनाएं एक स्वस्थ संसार

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विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल  डॉ० घनश्याम बादल खानपान की ग़लत आदतें, फास्ट फूड की बढ़ती लत, भोजन में लगातार बढ़ती रसायन एवं कीटनाशकों की मात्रा, ज़मीन में निरंतर बढ़ते खाद एवं रसायनों के प्रयोग से उसका ज़हरीला हो जाना, भौतिक प्रगति की लालसा के चलते लगातार बढ़ते प्रदूषण एवं अन्य कारणों से दुनिया भर में करोड़ों लोगों का स्वास्थ्य ख़तरे में है।रोज नई नई बीमारियाँ  पैदा हो रही हैं।  पेट्रोल, डीज़ल, केरोसिन एवं  कारखाने तथा वाहनों में प्रयोग होने वाले विभिन्न इंधनों  से एक  ओर जलवायु संकट  बढ़ रहा है वहीं स्वच्छ हवा में सांस लेने के हमारे अधिकार को भी छीन रहा है,वायु प्रदूषण हर पांच सेकंड में एक जीवन का लील रहा है। डब्ल्यूएचओ का निष्कर्ष हैं कि अधिकांश देशों की बड़ी आबादी  को समुचित स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त नहीं  मिल रहीं है।  रसायनों एवं प्रदूषण ने न हवा शुद्ध छोड़ी है और न पानी , पहाड़ों की ऊंचाई से लेकर, समुद्र व ज़मीन की गहराइयों तक उनकी उपस्थिति खतरनाक सिद्ध हो रही है। आंकड़े कहते हैं कि कम से कम 4.5 बिलियन आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं से आज भी वंचित है ।  ऐसी ही स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए  साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस‌ के रूप में मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य दिवस 2025 की थीम सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है,  इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी व्यक्तियों और समुदायों को वित्तीय कठिनाई का सामना किए बिना उनकी ज़रूरत की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच हो। यह स्वास्थ्य समानता, पहुँच और गुणवत्ता में अंतर को पाटने के लिए वैश्विक प्रयास का आह्वान करता है।    विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने का  मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के लोगों के अच्छे स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा करना और उन्हें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है ।   विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य एवं दुनिया को अपनी सेहत के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य के साथ 1950 से 7 अप्रैल के दिन दुनिया भर में विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाना शुरू किया गया था। ‌ स्वास्थ्य क्या है ? आमतौर पर माना जाता है कि जो व्यक्ति बीमार नहीं है वह स्वस्थ है परंतु स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों के न होने का नाम नही है । विश्व स्वास्थ्य संगठन” के अनुसार स्वास्थ्य “शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक अध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से सही होने की संतुलित स्थिति का नाम स्वास्थ्य है ।  हमें बहुमुखी स्वास्थ्य के बारें में नई सोच से संबंधित जानकारी अवश्य होनी चाहिए| स्वास्थ्य को मुख्य रूप से शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य में बांटा जाता सकता है । शारीरिक स्वास्थ्य  – शारीरिक स्वास्थ्य शरीर की उस  स्थिति को दर्शाता है जब शरीर के आंतरिक और बाह्य अंग, ऊतक व कोशिकाएं ठीक से काम करते हैं । इसमें शरीर की संरचना, विकास, कार्यप्रणाली और रख रखाव शामिल होता है। जब शरीर के सभी अंग सही तरह से काम करते हैं जैसे सुनाई देना, दौड़ना , चलना, दिखाई देना व अन्य सामान्य गतिविधियां| अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य  के मापदंडों में संतुलित आहार की आदतें, सही श्वास का क्रम गहरी नींद । बड़ी आंत की नियमित गतिविधि व संतुलित शारीरिक गतिविधियां नाड़ी स्पंदन, ब्लडप्रेशर, शरीर का वजन व व्यायाम, सहने की क्षमता आदि सब कुछ व्यक्ति के ऊंचाई, आयु व लिंग के लिए सामान्य मानकों के अनुसार होना चाहिए। शरीर के सभी अंग सामान्य आकार के हों तथा उचित रूप से कार्य कर रहे हों। पाचन शक्ति सामान्य एवं सही हों। बेदाग एवं कोमल सुंदर त्वचा हो, आंख नाक, कान, जिव्हा, आदि ज्ञानेन्द्रियाँ स्वस्थ हों। जिव्हा स्वस्थ एवं दुर्गंध मुक्त हों। दांत साफ सुथरे व मोतियों जैसे चमकदार हों। मुंह से दुर्गंध न आती हो।समय पर भूख लगती हो। रीढ़ की हड्डी सीधी हो। चेहर पर कांति ओज तेज हो।चेहर से सकारात्मकता का आभास हो। कर्मेन्द्रियां (हाथ पांव आदि) स्वस्थ हों। मल विसर्जन सम्यक् मात्रा में समयानुसार हो।शरीर की आकार और उंचाई के हिसाब से वजन हो। शारीरिक संगठन सुदृढ़ एवं लचीला हो। मानसिक स्वास्थ्य   मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ हमारे भावनात्मक और आध्यात्मिक लचीलेपन से है जो हमें अपने जीवन में पीड़ा आशाहीन और उदासी, दुःख की स्थितियों में जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती है। मानसिक स्वास्थ्य हमारी मजबूत इच्छा शक्ति को भी दिखाती है। इसे यूं समझिए कि मन में प्रसन्नताव  शांति हो, भीतर ही भीतर कोई संघर्ष न हो, भय क्रोध, इर्ष्या, से दूरी हो। मानसिक तनाव एवं अवसाद न हो तभी कहा जा सकता है कि व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य है अच्छा है।  बौद्धिक स्वास्थ्य  –  बौद्धिक स्वास्थ्य  हमारी रचनात्मकता और निर्णय लेने की क्षमता में सुधार करने में मदद करता है। बौद्धिक रुप से हम  मजबूत होते हैं तो आलोचना को सहज स्वीकार करने की क्षमता व  विषम परिस्थितियों से व्यथित न होकर सकारात्मक रहना सहज में सरल हो जाता है । किसी की भी भावात्मक आवश्यकताओं की समझ,  व्यवहार में शिष्ट रहना व दूसरों के सम्मान को भी ध्यान में रखना, नए विचारों को सहजता से स्वीकार करना, आत्मनियंत्रण , डर , क्रोध, मोह, ईर्ष्या  या तनाव मुक्त रहना भी अच्छे बौद्धिक स्वास्थ्य की पहचान है । आध्यात्मिक स्वास्थ्य – हमारा स्वास्थ्य आध्यात्मिक स्वास्थ्य बिना वर्ड व्यर्थ है। जीवन के वास्तविक अर्थ और उद्देश्य की खोज करना हमें आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है।  अच्छे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने का कोई निश्चित तरीका नहीं है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में जीवन का सार आध्यात्मिकता के माध्यम से समझाया -कि ज़िंदगी को जो न समझे उसका जीना व्यर्थ है। तो लिए इस विश्व स्वास्थ्य दिवस पर संकल्प लें कि हमने केवल अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें अपितु हवा पानी धरती एवं आसमान के स्वास्थ्य को भी अच्छा रखने के लिए निरंतर प्रयास करें।  डॉ० घनश्याम बादल

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