डॉ घनश्याम बादल
बाबा रामदेव एक बार फिर चर्चा में हैं । वैसे वे ऐसे बाबा हैं जिन्हें चर्चा में रहने के ‘फन’ में उस्तादी हासिल है । कभी साइकिल के करियर पर लकड़ी की संदूकची रखकर चूरण और दवाइयां बेचने वाला हरियाणा का दुबला पतला यदुवंशी दाढ़ीधारी रामदेव नाम का साधु जैसा व्यक्ति किस तरह देखते ही देखते पतंजलि योगपीठ स्थापित करके अरबों रुपए के संस्थान का सर्वेसर्वा हो गया, यह इस देश ने देखा है ।
पूरे देश में अपनी लच्छेदार बातों और घने काले बालों के साथ योग प्रदर्शन करने वाले रामदेव ने बेशक योग को घर-घर पहुंचाने का काम किया है । शुरुआती दौर में उनके साथी रहे कर्मवीर आज भी हरियाणा में योग सिखा रहे हैं लेकिन न चर्चा में हैं और न ही उन्होंने कोई बड़ा औद्योगिक संस्थान खड़ा किया है. बस उनका काम धंधा चल रहा है जबकि रामदेव का साथ निभा रहे आचार्य बालकृष्ण कभी नेपाली मूल के होने एवं भारत में अवैध प्रवास करने के आरोपी होने के बाद भी मजबूती के साथ उनके साथ खड़े हैं।
बाबा रामदेव ने कुशल प्रबंधन, चतुराई भरा प्रचार, अपने उत्पादों में घोली गई राष्ट्रवाद की चाशनी, केंद्र एवं प्रदेश सरकारों के साथ गज़ब का संयोजन एवं समायोजन अपनाते हुए पतंजलि योगपीठ को ऊंचाइयों तक पहुंचाया है । हालांकि बीच में उन्होंने कांग्रेस सरकार को आंखें भी दिखाने की कोशिश की लेकिन कपिल सिब्बल के कठोर रुख के चलते उन्हें सलवार पहन कर भागना भी पड़ा था। लालू यादव एवं वृंदा करात भी एक समय उनके पीछे पड़े और उनके सबसे प्रसिद्ध उत्पादों में से एक दंतकांति टूथपेस्ट जिसे वह आज विज्ञापनों में ‘ट्रुथपेस्ट’ कह रहे हैं, में हड्डियों का चूरा होने के आरोप भी उन पर लगे हैं तो साथ ही साथ पतंजलि के शहद के भी गुणवत्ता के मानकों पर घटिया होने के चर्चे भी बाजार में आए लेकिन यह बाबा का चतुर प्रबंधन ही रहा कि उन पर न कोई आंच आई और न ही उनके उत्पादों पर ।
आज बाबा रामदेव केवल योग के सहारे नहीं है बल्कि वह एक मल्टीपरपज उत्पाद संस्थान की प्रतिमूर्ति के रूप में डटकर खड़े हैं जिनमें आयुर्वेदिक दवाइयां, कॉस्मेटिक क्रीम, पाउडर, शक्ति वर्धक औषधीयां, खाद्य पदार्थ, शीतल पेय, कपड़े, मसाले और भी न जाने कितने ही उत्पाद उन्होंने पतंजलि के माध्यम से दिए हैं। साबुन, सर्फ, टॉयलेट क्लीनर, बर्तन साफ करने वाले उत्पाद, साबुन तेल फुलेल आदि क्या नहीं शामिल है, यानी बाबा ने जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा न छोड़ने का संकल्प लिया है जिसमें पतंजलि के उत्पादन न खप सकें।
भले ही बाबा रामदेव की शिक्षा दीक्षा कैसी भी रही हो लेकिन उनकी व्यापारिक समझ देश की बड़ी से बड़ी कंपनी के एमबीए या सीईओ पदधारक पढ़े लिखे लोगों को आईना दिखाने वाली है और उन्होंने सिद्ध किया है कि लग्न ,संकल्प एवं जुनून के साथ यदि योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ा जाए तो फिर सफलता कदम चूमती ही है ।
बेशक, आज बाबा एक बहुत सफल योगाचार्य ही नहीं अपितु व्यापारी, प्रबंधक एवं सफल सीईओ बनकर सामने हैं । बाबा रामदेव अच्छी तरह से जानते हैं कि अपना एवं अपने उत्पादों का प्रचार – प्रसार कैसे किया जाए। चाहे सोशल मीडिया, टेलीविजन, अख़बार, पत्रिकाएं एवं दूसरे मंचों से विज्ञापन देने हों या फिर कोई विवाद खड़ा करके चर्चा पानी हो, रामदेव हर तरह की रणनीति से अच्छी तरह न केवल वाक़िफ हैं अपितु उसका उपयोग करना भी जानते हैं और अपने इन सब आजमाए हुए तरीकों की बदौलत वे एक बड़ी हस्ती बन चुके हैं मगर अति महत्वाकांक्षा के चलते हुए कई बार खुद को अनावश्यक रूप से विवादास्पद भी बनाते रहे हैं एवं अपने लिए ही संकट भी खड़ा कर लेते हैं या फिर यूं कहिए कि यह भी उनके रणनीति है और वह आपदा पैदा करके उसे अवसर में तब्दील करने की कला अच्छी तरह से जानते हैं।
इन दिनों बाबा शरबत जेहाद के अपने बयान के चलते सुर्खियों में हैं । हालांकि उन्होंने किसी उत्पाद का या उत्पादक का नाम नहीं लिया लेकिन इशारों ही इशारों में देश भर में सबसे ज्यादा एवं सबसे लोकप्रिय शरबत पर प्रहार कर दिया है। अब यह तो सब जानते हैं कि वह कौन सा शरबत है जिसका उत्पादन मुस्लिम उद्योगपति करते हैं एवं दूसरे कई बड़े औद्योगिक घरानों के उत्पादों के बावजूद यह उत्पाद आज भी सबसे ऊपर नज़र आता है और उसके प्रयोग करने वाले मानते हैं कि उसके पीने से रूह अफजा होती है ।
अपने उत्पादों का प्रचार करना किसी भी उत्पादक का अधिकार है लेकिन विज्ञापन नीति यह भी कहती है कि आप किसी दूसरे उत्पाद की न कमियां ढूंढेंगे एवं न ही उस पर आरोप लगाएंगे मगर बाबा ऐसा करते रहे हैं और उन्होंने ऐसा पहली बार नहीं किया है। एक ओर जहां भी दूसरे सारे दंत मंजनों को ‘झूठ पेस्ट’ बता रहे हैं वहीं अपने उत्पाद को ‘ट्रुथपेस्ट’ कहते हैं। कोरोना काल में भी उन्होंने कोरोनिल का इसी तरह से प्रचार किया था जिसको लेकर बाद में उन पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने मुकदमा भी किया तथा उन्हें न्यायालय से माफ़ी भी मांगनी पड़ी लेकिन बाबा तो बाबा ठहरे वे न डरते हैं, न घबराते हैं और इसका कारण भी स्पष्ट है ऐसा क्यों है ।
लेकिन बाबा एक बात भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में सत्ता एवं सरकारें बदलती रहती है न भी बदलें तो सत्ता की निगाहें बदलने में भी ज़्यादा समय नहीं लगता। इसलिए उन्हें बहुत सावधानी की भी ज़रूरत है ।
हर सफल व्यक्ति एवं संस्थान की सफ़लता किसी दूसरे व्यक्ति एवं संस्थान की असफलता को भी उजागर करती है । जब एक ही रस्सी पर एक व्यक्ति ऊपर चढ़ता है तो दूसरा उसके मुकाबले नीचे भी आता है और इस तरह दोनों में विरोधाभास शुरू हो जाता है । निःसंदेह बाबा के एक नहीं अनेक विरोधी भी मौक़े की तलाश में रहेंगे मगर तब तक तो बाबा सफल भी हैं और सेफ भी । हां, इतना तो कहना पड़ेगा कि बहती हुई राजनीतिक हवाओं के साथ चलकर बाबा को मिठास में कड़वाहट घोलने से बचना चाहिए । बजाय दूसरों के उत्पादों को तथाकथित राष्ट्रवाद ,धर्म या संप्रदाय के आधार पर मार्केट से उखाड़ने की कोशिश के, बेहतर हो कि वे अपने उत्पादों को इतना श्रेष्ठ एवं गुणवत्ता परक बनाएं कि कोई उनके बराबर में ठहर ही न पाए। (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
डॉ घनश्याम बादल