कविता मैं सिर्फ तुम्हारी लिखी May 28, 2013 | 1 Comment on मैं सिर्फ तुम्हारी लिखी अब मैं सिर्फ तुम्हारी लिखी कविताएँ ही पढ़ता हूँ कविता ही क्या ? तुम्हें भी तो पढता हूँ… महज़ एक कोशिश ! तुम्हारी मुस्कान के पीछे छुपा वो दर्द कचोटता है मेरे मन को तुम्हारी खिलखिलाती हँसी सुनकर लगता है जैसे किसी गहराई से एक दबी सी आवाज़ भी उसके पीछे से कराहती है […] Read more » मैं सिर्फ तुम्हारी लिखी
कविता कितने प्यार से May 28, 2013 | 1 Comment on कितने प्यार से सींचा था मैंने उस रिश्ते को अपने ही हाथों मे संभाला था उसे किसी फूल की तरह समझदार तो था मगर हरबार हौसला बढाता रहा मैं वो आगे बढता रहा आगे बढते हुए वो इतना आगे निकल गया कि अब वो मुडकर भी नहीं देख पाता गिला वो नहीं कि वो आगे […] Read more »
कविता मेरे होने, न होने के बीच का अवकाश है तुम्हारे लिये … May 27, 2013 | Leave a Comment मेरे होने, न होने के बीच का अवकाश है तुम्हारे लिये … कितना कुछ घुमड़ रहा है मेरे अंदर और बाहर से मेरे अंदर तक फैलता कोलाहल किसी धुएँ की तरह प्रदूषित कर देता है मेरे मन को… मैं हरपल – मेरे होने के साथ जीना चाहता हूँ मगर मेरे होने, न होने के […] Read more » न होने के बीच का अवकाश है तुम्हारे लिये ... मेरे होने