अपने ही हाथों मे संभाला था उसे
किसी फूल की तरह
समझदार तो था मगर
हरबार हौसला बढाता रहा मैं
वो आगे बढता रहा
आगे बढते हुए वो
इतना आगे निकल गया कि अब
वो मुडकर भी नहीं देख पाता
गिला वो नहीं कि
वो आगे बढ़ गया मगर
एक सपना बोया था हमने मिलकर
आज वो भी दरख़्त बन गया मगर
वो खुद से हरापन सोखने लगा है
अति सुन्दर अभिव्यक्ति