लेख चरमपंथी अपने हितों के लिए पवित्र धार्मिक ग्रंथों की तोड़-मरोड़ कर करते हैं व्याख्या September 23, 2025 / September 23, 2025 | Leave a Comment गौतम चौधरी किसी भी आस्था के साथ खिलवाड़ किया जा सकता है। यह आसान है और इसे करना कठिन नहीं है। धर्म मानवता को संमृद्ध करने और समाज को आगे बढ़ाने के लिए काम करने वाला चिंतन है लेकिन इसी चिंतन को कभी-कभी चरमपंथी अपने हितों के लिए उपयोग करने लगते हैं। यह किसी भी […] Read more » Extremists distort sacred religious texts to suit their own interests. चरमपंथी
राजनीति स्थानीय निकाय शासन प्रबंधन में बढ़ रही मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी भारतीय लोकतंत्र की सफलता का प्रतीक September 15, 2025 / September 15, 2025 | Leave a Comment गौतम चौधरी स्थानीय निकाय शासकीय व्यवस्था भारत की अहम और पुरातन सांस्कृतिक सल्तनत की प्रभावशाली राजनीतिक इकाई रहा है। सच पूछिए तो भारत कभी पूर्ण रूप से राजा और महाराजाओं के द्वारा शासित रहा ही नहीं। राजा या चक्रवर्ती सम्राट का काम बाहरी आक्रमण से आम जन की सुरक्षा का होता था और उसके बदले […] Read more » Participation of Muslim women is increasing The growing participation of Muslim women in local body governance is a symbol of the success of Indian democracy बढ़ रही मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी
राजनीति भारतीय बहुलवाद संस्कृति और दाऊदी बोहरा समुदाय, आधुनिकता और धार्मिकता का उदाहरण July 14, 2025 / July 14, 2025 | Leave a Comment गौतम चौधरी भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता की विशाल कैनवास में दाऊदी बोहरा समुदाय एक शांत लेकिन प्रभावशाली उदाहरण के रूप में खड़ा है। कर्तव्य, व्यापारिक उद्यमिता और अन्य धार्मिक समूहों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का उदाहरण खासकर अन्य मुस्लिम समाज में देखने को कम ही मिलता है। बोहरा, इस्माइली शिया मुस्लिमों का एक उप-संप्रदाय है जिनकी वैश्विक आबादी लगभग दस लाख है। हालांकि इस समुदाय में कुछ सुन्नी मुसलमान भी हैं लेकिन दोनों की प्रकृति लगभग एक जैसी ही होती है। भारत में ये गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में विशेष रूप से बसे हुए हैं। ये लोग अब भारतीय ही हैं लेकिन इनका दावा है कि इनके पूर्वज, इस्लाम के अंतिम नबी, हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी फातिमा के परिवार से तालुकात रखते थे। इस समुदाय के लोगों का यह भी दावा है कि किसी समय अफ्रीका के उत्तरी भाग पर उनका शासन था और मिस्र के काहिरा में जो इस्लामिक विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है वह उनके पूर्वजों के द्वारा ही की गयी। उत्तरी अफ्रीका में शासन के अंत के बाद इस समुदाय के लोग भारत के तटवर्ती क्षेत्र में आकर बसने लगे। यहां के हिन्दू राजाओं ने इनका संरक्षण और पोषण किया। इसके बाद इस समुदाय के लोग फिर भारत के ही होकर रह गए। बाद के दिनों में बोहरा समुदाय के लोग मध्य-पूर्व, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर आदि देश में जाकर बसे हैं। कुछ बोहरा प्रवासी संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देशों में भी जाकर बसे हैं। बोहरा समाज के पेशेवर और व्यापारी भारत की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह समुदाय ऐसे विवादों से दूर रहते हैं जो भारत में नकारात्मक सुर्खियां बनते रहे हैं। इस समुदाय को भारत ही नहीं दुनिया में इसलिए जाना जाता है कि ये जहाँ कहीं भी निवास करते हैं, वहां की संस्कृति और राष्ट्र जीवन को ध्यान में रखकर अपना व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। बोहरा समुदाय मुसलमानों के लिए ही नहीं, अन्य धार्मिक समुदायों के लिए एक उदाहरण हैं. धार्मिकता के साथ आधुनिकता भी है, यानी इस समाज का लगभग प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक के साथ आधुनिक भी है। भारत में इनकी आमद यह दर्शाती है कि कोई व्यक्ति धार्मिक भी हो सकता है और आधुनिक भी, पारंपरिक भी हो सकता है और प्रगतिशील भी और पूरी तरह से भारतीय होते हुए भी वैश्विक चिंतन से ओतप्रोत हो सकता है। इनकी धार्मिक जड़ें फातिमी मिस्र से जुड़ी हैं और ये लोग 11वीं शताब्दी में भारत आए। इतने वर्षों में इन्होंने भारतीय समाज में न केवल खुद को समाहित किया बल्कि जिस क्षेत्रों में ये बसे, वहाँ के आर्थिक और नागरिक जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाने की पूरी कोशिश की। दाऊदी बोहरा समुदाय अपने मजबूत व्यापारिक नैतिक मूल्यों के लिए जाना जाता है और व्यापार, निर्माण व उद्यमिता में सफलता प्राप्त की। सूरत, उदयपुर और मुंबई जैसे शहरों में इनके व्यापारिक नेटवर्क खूब फले-फूले हैं। ये नेटवर्क ईमानदारी, पारदर्शिता और स्थिरता जैसे मूल्यों पर आधारित हैं जिससे इन्हें धार्मिक और भाषाई सीमाओं के पार जाकर सम्मान मिला है। आज जब धनार्जन को सामाजिक जिम्मेदारी से अलग समझा जाता है, तब बोहरा समुदाय यह साबित करता है कि सामुदायिक नैतिकता को अपनाकर भी समृद्ध हुआ जा सकता है। समुदाय की सामाजिक संस्थाएँ मुस्लिम दुनिया में सबसे प्रभावशाली मानी जाती हैं। मुंबई स्थित इनका केंद्रीय नेतृत्व प्रणाली, दाई अल-मुतलक के अधीन है। यह संसाधनों को संगठित करने, जनकल्याण योजनाओं को लागू करने और सामूहिक पहचान को मजबूत बनाने के लिए जाना जाता है। फैज़ अल-मवाइद अल-बुरहानिया नामक सामुदायिक रसोई योजना के तहत हर बोहरा परिवार को प्रतिदिन ताजा और पौष्टिक भोजन मिलता है। इससे खाद्य अपव्यय कम होता है, सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं और परिवारों का दैनिक बोझ घटता है। समुदाय द्वारा संचालित स्कूल और कॉलेज लड़कों व लड़कियों दोनों को धार्मिक व आधुनिक शिक्षा देते हैं और शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। विशेष रूप से बोहरा महिलाओं में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। इनके द्वारा शहरों की स्वच्छता, सौंदर्यीकरण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी गहरी प्रतिबद्धता दिखाई देती है। स्वच्छ भारत अभियान जैसी पहलों में भागीदारी और नियमित स्वच्छता अभियान इस बात का उदाहरण हैं कि धार्मिक पहचान और राष्ट्रीय हित कैसे एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। मुंबई की हाल ही में पुनर्निर्मित सैफी मस्जिद केवल पूजा स्थल नहीं बल्कि वास्तुशिल्प धरोहर और सामुदायिक गर्व का प्रतीक है। इसके निर्माण में पारंपरिक और पर्यावरण अनुकूल विधियों का उपयोग किया गया जो अतीत के प्रति श्रद्धा और भविष्य की चिंता दोनों को दर्शाता है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि दाऊदी बोहरा समुदाय अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखते हुए भी संकीर्ण नहीं है। वे पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, लिसान अल-दावत नामक मिश्रित भाषा बोलते हैं (जो गुजराती, अरबी और उर्दू का संयोजन है) और अपने विशिष्ट रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। फिर भी वे देश के लोकतांत्रिक और सामाजिक जीवन में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं। इन्हें शायद ही कभी सांप्रदायिक हिंसा या कट्टरता से जोड़ा गया। ये लोग शालीनता, संवाद की वरीयता और संघर्षों के समय शांतिपूर्ण कूटनीति के लिए जाने जाते हैं। इनके द्वारा कानून का पालन, अंतरधार्मिक सम्मान और सामाजिक सौहार्द पर बल दिया जाता है जो धार्मिक सह-अस्तित्व का एक उच्च आदर्श प्रस्तुत करता है। इस समुदाय की जीवन यात्रा में समुदाय के नेतृत्व की अहम भूमिका रही है। दिवंगत सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन और उनके उत्तराधिकारी सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन ने विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारों से अच्छे संबंध बनाए रखे हैं। जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक, सभी भारतीय नेताओं ने बोहरा नेताओं के योगदान की सराहना की है और उनके एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के संदेश से प्रेरणा ली है। ये रिश्ते इस बात को उजागर करते हैं कि जब कोई समुदाय राष्ट्र निर्माण में भागीदारी करता है, तो विशेषाधिकार की मांग किए बिना भी उसे विशिष्टता प्राप्त हो जाती है। वह स्थानीय लोगों का दिल जीत लेता है और कालांतर में अपने व्यवहार के बल पर आगे की पंक्ति में अपना स्थान सुरक्षित कर लेता है। धार्मिक समुदायों की आलोचना में अक्सर आंतरिक पदानुक्रम और पुरोहितवादी सत्ता का उल्लेख होता है। ये चिंताएँ विचार और विमर्श की मांग करती हैं। फिर भी यह भी सच है कि बोहरा समुदाय ने बदलाव के लिए तत्परता दिखाई है। बोहरा महिलाएँ अब शिक्षा, व्यवसाय और संवाद में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं, वह भी अपने सांस्कृतिक ढाँचे के भीतर रहकर। बाहरी दबाव में झुकने की बजाय, यह समुदाय भीतर से परिवर्तन की दिशा में शांतिपूर्ण प्रयास कर रहा है। यह मॉडल पहचान संकट और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण के समय में एक रचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में जहाँ मुसलमानों को या तो पीड़ित या खतरे के रूप में देखा जाता है, बोहरा समुदाय इन रूढ़ छवि को चुनौती देता दिखता है। यह सिद्ध करता है कि आस्था प्रगति में बाधा नहीं है और धार्मिक निष्ठा संविधानिक मूल्यों के साथ सामंजस्य बैठा सकती है। उनका जीवन यह दर्शाता है कि बहुलवाद केवल संविधान में दिया गया वादा नहीं है, बल्कि यह एक दैनिक अभ्यास है, जो भव्य वक्तव्यों में नहीं, बल्कि नागरिक जिम्मेदारी, पारस्परिक सम्मान और नैतिक जीवन के सामान्य कार्यों में प्रकट होता है। ऐसे समय में जब भारत नागरिकता, धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर जटिल बहसों से गुजर रहा है, बोहरा अनुभव बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, एक कठोर मॉडल के रूप में नहीं, बल्कि यह स्मरण कराने के लिए कि सांस्कृतिक विविधता राष्ट्रीय एकता को कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत कर सकती है। दाऊदी बोहरा कोई अपवाद नहीं हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि वैकल्पिक सकारात्मकता संभव हैं जो विश्वास, परिश्रम और शांत जैसे गरिमामय और उच्च मूल्य वाले व्यवहार पर आधारित हों। गौतम चौधरी Read more » an example of modernity and religiosity Indian pluralistic culture and the Dawoodi Bohra community दाऊदी बोहरा समुदाय
राजनीति भारत में इस्लामोफोबिया के प्रचार में लगा पश्चिमी जमात, हकीकत के उलट है वास्तविकता June 12, 2025 / June 12, 2025 | Leave a Comment गौतम चौधरी अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों और अधिवक्ताओं के समूहों की ओर से लगाए जा रहे आरोपों की बढ़ती बाढ़ ने भारत को वैश्विक स्तर पर कड़ी जांच के दायरे में ला दिया है। दरअसल, दावा किया जा रहा है कि भारत में इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है हालांकि, इनमें से कई दावों की बारीकी से […] Read more » भारत में इस्लामोफोबिया
राजनीति पसमांदा मुसलमानों के लिए भी बेहतर अवसर उपलब्ध करवाएगी जातिगत जनगणना May 25, 2025 / May 26, 2025 | Leave a Comment पिछड़े और दलित हिन्दुओं के लिए ही नहीं, पसमांदा मुसलमानों के लिए भी बेहतर अवसर उपलब्ध करवाएगी जातिगत जनगणना गौतम चौधरी आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत विवरण शामिल करने का केन्द्र सरकार का निर्णय, सामाजिक डेटा संग्रहण के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। दरअसल, वर्ष 1931 के बाद यह […] Read more » Caste census will provide better opportunities for Pasmanda Muslims too पसमांदा मुसलमानों की ताकत
राजनीति सड़कों पर नमाज पढ़ना सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक May 6, 2025 / May 6, 2025 | Leave a Comment गौतम चौधरी अभी हाल ही में सड़क पर नमाज पढ़ने को लेकर प्रशासन ने दिशा निर्देश जारी किया है। दरअसल, मेरठ पुलिस ने चेतावनी दी है कि सड़क पर नमाज पढ़ने वालों का पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस कैंसिल किया जा सकता है। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि लोग मस्जिद या फिर ईदगाह में नमाज पढ़ें। […] Read more » Offering namaz on the streets is dangerous for social harmony
लेख ‘काफिर’ शब्द की गलत व्याख्या व उपयोग किसी भी समाज की एकता के लिए खतरनाक April 16, 2025 / April 16, 2025 | Leave a Comment गौतम चौधरी शब्दों में रिश्तों को प्रभावित करने बेहतर क्षमता होती है। यही नहीं, शब्दों में लोगों की धारणा को बदलने और लोगों को एक साथ लाने या उन्हें अलग करने की भी अपार क्षमता होती है। आज हम एक ऐसे शब्द पर चर्चा करने वाले हैं जिसकी न केवल गलत तरीके से व्याख्या की जाती […] Read more » काफिर
राजनीति बेहद खतरनाक है इस्लामिक धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या March 25, 2025 / March 25, 2025 | Leave a Comment ऑनलाइन शिक्षाओं पर नजर रखें उलेमा गौतम चौधरी हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ सूचनाएँ पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ गति से फैलती है। डिजिटल क्रांति ने धार्मिक ज्ञान तक अपनी पहुँच बना ली है और उसे लोकतांत्रिक बना दिया है। इससे इस क्षेत्र में अवसर की संभावनाएं तो बेहतर हुई है लेकिन […] Read more » इस्लामिक धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या ऑनलाइन शिक्षाओं पर नजर रखें उलेमा
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म प्रयागराज महाकुंभ को साम्प्रदायिक नहीं समावेशी सांस्कृतिक दृष्टि से देखिए February 13, 2025 / February 13, 2025 | Leave a Comment गौतम चौधरी विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम, महाकुंभ मेला, आध्यात्मिकता, आस्था और सांस्कृतिक विरासत का शानदार उत्सव है। यह आयोजन, जो पवित्र गंगा यमुना और पौराणिक सरस्वती के मिलन स्थल, प्रयागराज के संगम पर प्रत्येक बारह वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और संगठनात्मक कौशल के प्रति […] Read more » Look at Prayagraj Mahakumbh from an inclusive cultural perspective प्रयागराज महाकुंभ
चिंतन धर्म-अध्यात्म अब संभव नहीं खिलाफत, इस्लाम की छवि को नष्ट कर रही है पवित्र ग्रंथों की गलत व्याख्या January 21, 2025 / January 21, 2025 | Leave a Comment गौतम चौधरी यह घटना इसी साल की है। नए साल के अवसर पर कुछ लोग जश्न मना रहे थे कि अचानक एक ट्रक ने उस जश्न के माहौल को मातम में बदल दिया। ट्रक उस समय तक जश्न मना रहे लोगों को रौंदता रहा जब तक पुलिस ने ट्रक चालक की हत्या नहीं कर दी। […] Read more » Caliphate is no longer possible misinterpretation of holy scriptures is destroying the image of Islam
महत्वपूर्ण लेख लेख समाज शरजील की जज बहन के बहाने भारत के समावेशी राष्ट्रवाद पर चर्चा January 6, 2025 / January 6, 2025 | Leave a Comment गौतम चौधरी अभी हाल ही की बात है। देशद्रोह के आरोप में विगत कई वर्षों से जेल में बंद, शरजील इमाम की बहन फरहा निशात, बिहार लोक सेवा आयोग की 32वीं बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा पास कर जज बन गई हैं। यह खबर थोड़ी बहुत सुर्खियां तो बटोरी लेकिन इस पर चर्चा बहुत कम हुई। […] Read more » Discussion on India's inclusive nationalism in the name of Sharjeel's judge sister शरजील इमाम की बहन फरहा निशात
राजनीति विश्ववार्ता बेहद खतरनाक है सीरिया की असद सरकार की पराजय को इस्लामिक स्टेट की जीत से जोड़ कर प्रचारित करना December 30, 2024 / December 30, 2024 | Leave a Comment गौतम चौधरी अभी हाल ही में सीरिया के बशर अल असद सरकार को अपदस्थ कर एक नयी राजनीतिक व्यवस्था खड़ी की गयी है। सीरिया की इस हालिया घटनाक्रम को कट्टरपंथी सोंच वाले इस्लामिक स्टेट की जीत से जोड़ कर प्रचारित कर रहे हैं। यह प्रचाार भ्रामक है और चिंताजनक भी है। सबसे चिंताजनक बात यह […] Read more » सीरिया की असद सरकार की पराजय