गजल गजल:उबाल ने कुछ बवाल ने तोड़ दिया August 8, 2012 / August 7, 2012 | Leave a Comment उबाल ने कुछ बवाल ने तोड़ दिया कुछ दिल के मलाल ने तोड़ दिया। जो कमाता था वो ही खाता था वो । एक दिन की हड़ताल ने तोड़ दिया। उमीदों ने पंख नए खरीद लिए थे पर बेतरतीब उछाल ने तोड़ दिया। सिखाई थी अदाकारीहालात ने तो क्या करें उसी कमाल […] Read more » gazal Satyendra Gupta गजल:उबाल ने कुछ बवाल ने तोड़ दिया
गजल गजल:मेरे बाद मुझको ये ज़माना ढूंढेगा August 7, 2012 | Leave a Comment मेरे बाद मुझको ये ज़माना ढूंढेगा हकीकत को एक अफ़साना ढूंढेगा। सिर्फ यादों में सिमट जायेगा सफ़र अश्क भी बहने का बहाना ढूंढेगा। खत्म हो जायेगी कहानी जब मेरी मेरा ही दर्द अपना ठिकाना ढूंढेगा। सुबहें, शामें, रातें कितनी हसीं थी सूनापन वो खिलखिलाना ढूंढेगा। मुहब्बत करने वाले तन्हा नहीं रहते […] Read more » gazal Satyendra Gupta
गजल गजल :गरीब का मुकद्दर August 6, 2012 / August 6, 2012 | Leave a Comment कभी गरीब प्याज ,गुड ,मिर्च से चने -बाजरे की रोटी खाता था । प्याज तो, कब का गायब हो गया था, उसकी थाली से ! गुड भी अब गायब हो गया है , उसकी थाली से ! बाकी रह गयी- मिर्च , क्या यह भी कभी गायब हो जायेगी , उसकी थाली से […] Read more » गजल :गरीब का मुकद्दर
गजल गज़ल:मौसम को तो, हमे अब मनाना पड़ेगा– सत्येंद्र गुप्ता July 18, 2012 / July 18, 2012 | Leave a Comment मौसम को तो, हमे अब मनाना पड़ेगा नाज़ नखरा सब उसका उठाना पड़ेगा। कहीं और ही बरस रहे हैं बादल हमारे लगता है उनको हमे , बुलाना पड़ेगा। आखिर कब तलक रहेंगे ,हम अकेले कभी तो साथ हमे भी निभाना पड़ेगा। मुहब्बत की कशिश भी क्या कशिश है दिल को भी अब बंजारा बनाना पड़ेगा। […] Read more »
गजल गज़ल:उनके इंतज़ार का…– सत्येंद्र गुप्ता July 18, 2012 | Leave a Comment उनके इंतज़ार का, हर पल ही मंहगा था हर ख़्वाब मैंने उस पल देखा सुनहरा था। दीवानगी-ए-शौक मेरा ,मुझसे न पूछ दोस्त दिल के बहाव का वह जाने कैसा जज़्बा था। मेरे महबूब मुझसे मिलकर ऐसे पेश आये जैसे उनकी रूह का मैं, खोया हिस्सा था। तश्नगी मेरे दिल की कभी खत्म नहीं हुई जाने […] Read more » gazal by satyendra gupta
गजल गज़ल:समदर्शिता– सत्येंद्र गुप्ता July 6, 2012 / July 5, 2012 | Leave a Comment कोई अर्श पे कोई फर्श पे, ये तुम्हारी दुनिया अजीब है कहते इसे कोई कर्मफल, कोई कह रहा है कि नसीब है यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है कहते कि जग का पिता है तू, सारे कर्म तेरे अधीन […] Read more » गज़ल:समदर्शिता गज़ल:समदर्शिता– सत्येंद्र गुप्ता
गजल गज़ल:बेबसी– सत्येंद्र गुप्ता July 6, 2012 / July 5, 2012 | Leave a Comment बात गीता की आकर सुनाते रहे आईना से वो खुद को बचाते रहे बनते रावण के पुतले हरएक साल में फिर जलाने को रावण बुलाते रहे मिल्कियत रौशनी की उन्हें अब मिली जा के घर घर जो दीपक बुझाते रहे मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया बन के अपना वही मुस्कुराते रहे […] Read more » gazal by satyendra gupta गज़ल:बेबसी गज़ल:बेबसी– सत्येंद्र गुप्ता
गजल गजल:जो दिल में रहते हैं July 5, 2012 / July 5, 2012 | Leave a Comment जो दिल में रहते हैं ,पास क्या वो दूर क्या चाँद के रु-ब-रु कोई ,लगता है हूर क्या। कितनी बार की हैं बातें, मैंने भी चाँद से छलका है मेरे चेहरे भी ,कभी नूर क्या। इस मुहाने पर हैं ,कभी उस मुहाने पर छाया रहता है दिल पर जाने सरूर क्या। बस एक हवा के […] Read more » गजल:जो दिल में रहते हैं गजल:जो दिल में रहते हैं-सतेन्द्र गुप्ता
गजल गज़ल: रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ –सतेन्द्रगुप्ता June 21, 2012 / June 20, 2012 | Leave a Comment रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ जुदा हो गई खुद-बुलंदी की राख़ जमा हो गई। लौटकर न आये वे लम्हे फिर कभी और ज़िन्दगी बड़ी ही तन्हा हो गई। ज़िस्म का शहर तो वही रहा मगर खुदमुख्तारी शहर की हवा हो गई। कैसे गुज़री शबे-फ़िराक़, ये न पूछ मेरे लिए तो मुहब्बत तुहफ़ा हो गई। इस क़दर बढ़ी […] Read more » gazal by satendra gupta गज़ल: रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ –सतेन्द्रगुप्ता
गजल गज़ल: तुम से मिलकर–सतेन्द्रगुप्ता June 20, 2012 / June 20, 2012 | Leave a Comment तुम से मिलकर, तुम को छूना अच्छा लगता है दिल पर यह एहसान करना, अच्छा लगता है। लबों की लाली से या नैनों की मस्ती से कभी चंद बूंदे मुहब्बत की चखना ,अच्छा लगता है। लाख छिप कर के रहे, लुभावने चेहरे , पर्दों में कातिल को कातिल ही कहना अच्छा लगता है। देखे हैं […] Read more » gazal by satendra gupta गज़ल: तुम से मिलकर –सतेन्द्रगुप्ता
गजल गज़ल:ज़िन्दगी बहता पानी है–सतेन्द्रगुप्ता June 20, 2012 / June 20, 2012 | Leave a Comment ज़िन्दगी बहता पानी है ,बहने दो उसे अपना रास्ता ,ख़ुद ही ढूँढने दो उसे। बिना लहरों के समन्दर फट जायेगा जी खोल कर के ही, मचलने दो उसे। नदी के अन्दर भी, एक नदी बहती है रफ़्ता रफ़्ता समंदर से मिलने दो उसे। घर किनारे टूट करवरना ढह जायेंगे उफ़न कर, कभी न बिखरने दो […] Read more » गज़ल:ज़िन्दगी बहता पानी है–सतेन्द्रगुप्ता
गजल गज़ल:रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता– सत्येंद्र गुप्ता May 13, 2012 / May 13, 2012 | 1 Comment on गज़ल:रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता– सत्येंद्र गुप्ता रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता तराजू से तौलकर भी तो प्यार नहीं होता। दिल की ज़ागीर को मैं कैसे लुटा दूं हर कोई चाहत का हक़दार नहीं होता। उजाड़ शब की तन्हाई का आलम न पूछिए मरने का तब भी तो इंतज़ार नहीं होता। चमकते थे दरो-दीवार कभी मेरे घर के भी अब […] Read more » gazal by satendra gupta गज़ल:रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता– सत्येंद्र गुप्ता