गज़ल:समदर्शिता– सत्येंद्र गुप्ता

कोई अर्श पे कोई फर्श पे, ये तुम्हारी दुनिया अजीब है

कहते इसे कोई कर्मफल, कोई कह रहा है कि नसीब है

 

यदि है नसीब तो इस कदर, तूने क्यों लिखा ऐ मेरे खुदा

समदर्शिता छूटी कहाँ, क्यों अमीर कोई गरीब है

 

कहते कि जग का पिता है तू, सारे कर्म तेरे अधीन हैं

नफरत की ये दीवारें क्यों, अपना भी लगता रकीब है

 

कण कण में बसते हो सुना, आधार हो हर ज्ञान का

कोई फिर भला कोई क्यों बुरा, तू ही जबकि सबके करीब है

 

जीने का हक़ सबको मिले, ख़ुद भी जीए जीने भी दे

काँटों से कोई न दुश्मनी, मिले सुमन सबको हबीब है

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