कविता ऊसर कटोरी, बंज़र थाली May 12, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- ऊसर कटोरी, बंज़र थाली, बदतर बोली, जैसे गाली। सोचो मत बस बोले जाओ, जैसे भी हो, सत्ता कुंजी पाओ! दिवास्वप्न देखो और दिखलाओ, सच्चाई को सौ सौ पर्दो में छुपाओ। पहले उनसे सुनो स्वप्न साकार के, मखमल लिपटे सुन्दर भाषण। फिर देखो समझौतों के हज़ारों, नए पुराने आधे अधूरे आसन! सुनो फिर मज़बूरी […] Read more » कविता गरीबी पर कविता जीवन पर कविता
कविता दमन की हवा से ही इक दिन… May 2, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- दमन की हवा से ही इक दिन, दहकेंगे श्रम के शोले! हक़ के अंगार से, दफनाये जायेंगे शोषण के गोले! अब भी सुन लो शोषकों, बर्के जिहिंद क्या बोले! इक कौंध में लपक लेने को, अंजाम खड़ा मुंह खोले! वे अपने दम पर लड़ते आये हैं, ताक़तवर से हर युग में! मगर ज़माना […] Read more » poem poem on hope आशा पर कविता कविता
कविता तुमने जो भी कहा, क्या खूब कहा… April 23, 2014 / April 23, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- तुमने जो भी कहा, क्या खूब कहा उसने जो भी कहा, क्या खूब कहा तुमको उसको मैं ही तो चुनने वाला था आखिर को इक मैं ही तो सुनने वाला था! तुम ठहरे सपनों के सौदागर वह ठहरा बातों का जादूगर सच झूठ के बीच इक बारीक़ सा जाला था आखिर को इक […] Read more » poem कविता क्या खूब कहा... तुमने जो भी कहा
कविता चुनाव राजनीति व्यंग्य भूख की रोटी, बोल के घी में लिपटाई है April 14, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- भूख की रोटी, बोल के घी में लिपटाई है खाली कटोरी पर, लिखी गई मलाई है बेवफा वादो की चटनी के साथ फिर सपनों वाली वही बासी मिठाई है सजाए हुए बैठे हैं सब एक सी थाली ऐ सियासत तेरी अदाएं निराली !! नकली आंसू और वादो की भरमार हैं कुछ अजब सा, […] Read more » poem on politics बोल के घी में लिपटाई है भूख की रोटी
कविता खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में April 12, 2014 | 1 Comment on खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में -जावेद उस्मानी- खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में पता चला ही नहीं क्या कह गये उबाल में क्या मालूम न था अंजाम बहकने का इस तरह फंस गये हैं सैय्याद अबके अपने ही जाल में किस हद तक और जायेंगे अभी कुछ पता नहीं अभी तो पूरब से निकले सूरज को डुबोते हैं […] Read more » poem on election खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में
कविता शोर बरपा है अजब April 9, 2014 | Leave a Comment सियासती मयख़ाने में कुछ रिंद नहीं पी रहे अबके उनके पैमाने से ठुकरा कर मुदब्बिर का हर जाम ए नज़राना उड़ जाना चाहे बंदी सियासी कैदखाने से गर दस्तूर पुराने टूट गये जाल से परिंदे छूट गये जीने में क़नाअत कर बैठे लालच से बग़ावत कर बैठे कैसे भी ये आग बुझा डालो इरादे पर […] Read more » शोर बरपा है अजब
कविता चुनाव राजनीति चुनावी मौसम April 5, 2014 | Leave a Comment आज कल तो जैसे हर सू है त्यौहार का मौसम वादों और उम्मीदों का इक खुशगवार सा मौसम रौशन तकरीरो की जवां अंगड़ाइयां सियासी तब्बसुम की ये अठ्ठखेलियां आबे गौहर सी सियासती शोखियां बाग़े उम्मीद की गुलनारी मस्तियां सियासी महक से सरोबार हर कोना न कही मातम न किसी बात का रोना लगता ही नहीं […] Read more » election season satiric poem on election चुनावी मौसम
कविता आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए March 30, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए कड़ी राहों से हँसते हुए गुज़रे हम सब के लिए कि हमारे लिए ज़रूरी थी आज़ादी हमारी ! आज़ादी के बाद शहीद हुए हमारे गांधी कि हम नव-आज़ाद लोगों को शायद ज़रूरत न थी उस रहबरी की अब कि वह रोकती मनचाही आज़ादी हमारी ! आज़ादी के […] Read more » Poem on Martyrs आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए
महत्वपूर्ण लेख जनजाति विकास का फंडा, कितना तेज कितना मंदा January 11, 2014 / January 11, 2014 | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- क्या उसकी भूख और प्यास अलग है मुझसे, दरबदर मारा फिरता है जो इक रोटी के लिए! समाज के भले नियमों की क्या ख़बर उसे, वह तो जो भी करता है बस अपनी रोज़ी के लिए! तो उसका जीवन उसका क्यों, क्यों मेरा जीवन मेरा है? दुःख तो आखि़र दुःख है साहिब न मेरा है न […] Read more » problems with tribal development कितना तेज कितना मंदा जनजाति विकास का फंडा
हिंद स्वराज ‘‘ वतन का हर ज़र्रा देवता है ‘‘। November 9, 2013 / November 9, 2013 | 5 Comments on ‘‘ वतन का हर ज़र्रा देवता है ‘‘। जावेद उस्मानी भारत का सौहाद्र दुनिया के लिए मिसाल है लेकिन गाहे बगाहे कुछ सरफिरे अपने निहित स्वार्थ के कारण व्यर्थ के विवादो को हवा देते रहते है इनमें दिशाविहीन और विचारहीन ,सियासतदां भी शामिल हैं। धर्म ,जाति और भाषा पर ऐसे तत्वो का हस्यापद आचरण व विषवमन समरसता और मानवता के विरुद्ध अपराध से […] Read more » वतन का हर ज़र्रा देवता है
आर्थिकी गरीबी का इलाज मुट्ठी भर दाना नही है। September 11, 2013 | Leave a Comment जावेद उस्मानी भूख और गरीबी राष्ट्रीय चिंता का विषय है। इस बीमारी से मुक्ति के लिए लंबे अर्से से प्रयास जारी है लेकिन जमीनी उपायों के अभाव में यह समस्या मंहगार्इ की तरह दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। भूख एक अति संवेदनशील मसला है जिसके मूल में गरीबी है। […] Read more » गरीबी का इलाज मुट्ठी भर दाना नही है।
आर्थिकी ऋण कृत्वा घृतं पीबेत । August 12, 2013 / August 12, 2013 | Leave a Comment जावेद उस्मानी ‘यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋण कृत्वा घृतं पीबेत । भस्मी भूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:”। ‘जब तक जियो सुख से जियो कर्ज लेकर घी पियो शरीर भस्म हो जाने के बाद वापस नही आता है।‘– चार्वाक कर्ज लेकर घी पीने की उकित मशहूर है। सदियो पुराना भोगवादी चार्वाक दर्शन आज आर्थिक नीतियो की […] Read more » ऋण कृत्वा घृतं पीबेत