राजनीति आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ रचे गए कांग्रेसी षड्यंत्रों से उपजते सवाल August 4, 2025 / August 4, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय मालेगांव बम विस्फोट कांड (2008) के बारे में हाल ही में जो महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं, वो किसी भी सजग भारतीय का दिल दहलाने वाले हैं। साथ ही भारत के एक प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस के सार्वजनिक चरित्र के बारे में जो खुलासे हुए हैं, वह उस पर एक गम्भीर लांछन के रूप […] Read more » Questions arising from the conspiracies hatched by Congress against RSS chief Mohan Bhagwat मोहन भागवत के खिलाफ रचे गए कांग्रेसी षड्यंत्र
राजनीति क्या छात्र-छात्राओं की खुदकुशी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता से शिथिल प्रशासनिक मिशनरी में कोई नई हलचल पैदा होगी? July 29, 2025 / July 29, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय देश के शिक्षण संस्थानों में छात्र-छात्राओं (स्टूडेंट्स) की आत्महत्या और उनमें बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य (मेंटल हेल्थ) की समस्याओं पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने शुक्रवार को जो चिंता जताई है, वह अकारण नहीं है बल्कि इसके पीछे उन हजारों परिवारों और लाखों लोगों की बेदना छिपी हुई है जो ऐसे मामलों में […] Read more » Will the Supreme Court's concern over student suicides stir up a new wave in the lax administrative mission? छात्र-छात्राओं की खुदकुशी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता
राजनीति मांसाहारी खाने पर जारी ‘सेक्युलर सियासी खेल’ के साइड इफेक्ट्स July 24, 2025 / July 24, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय सनातनी हिंदुओं के पवित्र श्रावण यानी सावन के महीने में या आश्विन माह में पड़ने वाले शारदीय नवरात्र के दिनों में पिछले कुछ वर्षों से नॉन-वेज फूड को लेकर जो विवाद सामने आ रहे हैं, वह इस बार भी प्रकट हुए और पक्ष-विपक्ष की क्षुद्र राजनीति के बीच अपनी नीतिगत महत्ता खो बैठे। वहीं, तथाकथित एनडीए शासित राज्य की बिहार विधानसभा के सेंट्रल हॉल में गत सोमवार को खाने में जिस तरह से नॉन-वेज भी परोसा गया, उसे लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तलवारें खिंच गई हैं। इसी तरह, यूपी में कांवड़ यात्रा मार्ग स्थित ढाबों और भोजनालयों पर दुकान मालिकों की पहचान स्पष्ट करने का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में उठा। स्पष्ट है कि यहां भी मूल में भोजन ही है। इसलिए पुनः यह सवाल अप्रासंगिक है कि कोई क्या खाता है, क्या नहीं, यह पूरी तरह व्यक्तिगत मामला है और इस पर ऐसे विवाद से बचा जा सकता था। लेकिन ऐसे सो कॉल्ड सेक्यूलर्स और वेस्टर्न लॉ एडवोकेट्स को पता होना चाहिए कि सदियों से भारतीय समाज एक संवेदनशील व सुसंस्कृत समाज रहा है, जहां स्पष्ट मान्यता है कि खान-पान से व्यक्ति के मन का सीधा सम्बन्ध होता है। कहा भी गया है कि जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन। इसलिए राजा या शासक का कर्तव्य है कि वह आमलोगों को शुद्ध और सुरुचिपूर्ण भोजन ग्रहण करने योग्य कानून बनाए और उसकी सतत निगरानी रखे। चूंकि भारतीय समाज में शाकाहारी खानपान को प्रधानता दी गई है ताकि निरोगी जीवन का आनंद लिया जा सके। इसलिए ऐसे लोगों को अभक्ष्य पदार्थों यानी अंडे, मांस-मछली का दुर्गंध नहीं मिले, इसकी भी निगरानी रखना प्रशासन का काम है। वहीं, खान-पान के व्यवसाय से जुड़ी कम्पनियां शाकाहारी लोगों को मांसाहारी उत्पाद डिलीवर न कर दें, मिलावटी शाकाहारी समान न डिलीवरी कर दें, यह देखना भी प्रशासन का ही धर्म है। यदि वह धर्मनिरपेक्षता की आड़ में अपने नैतिक दायित्वों से मुंह मोडता है तो उसे भारत पर शासन करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। इसलिए देश की भाजपा नीत एनडीए सरकार, या विभिन्न राज्यों की भाजपा सरकारें या एनडीए सरकारें इस बात की कोशिश कर रही हैं कि खास पर्व-त्यौहारों पर निरामिष लोगों के अनुकूल माहौल बनाए रखा जाए। आमतौर पर यह माना जाता है कि इस्लामिक शासनकाल में और ब्रिटिश शासनकाल में सनातन भूमि पर गुरुकुल, ब्रह्मचर्य व शाकाहार को हतोत्साहित किया गया और मांसाहार तथा मद्यपान को प्रोत्साहित किया गया। जिससे कई सामाजिक कुरूतियों जैसे कोठा संस्कृति वाली वैश्यावृत्ति और अनैतिक अपराध को बढ़ावा मिला। ऐसा इसलिए कि दूषित अन्न खाने व दूषित पेय-पदार्थ पीने से मानवीय मनोवृत्ति विकृत हुई। इसलिए कहा जा सकता है कि उदार और सहनशील भारतीय समाज का जो नैतिक पतन हुआ है, कभी-कभी स्थिति पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों के काबू से बाहर हो जाती है, उसका सीधा सम्बन्ध असामाजिक तत्वों के खानपान से भी है। इसलिए इस अहम मुद्दे के सभी पहलुओं पर निष्पक्षता पूर्वक विचार होना चाहिए। इस मामले में आधुनिक प्रशासन का ट्रैक रिकार्ड बेहद ही खराब रहा है, अन्यथा जानलेवा मिलावट खोरी इतनी ज्यादा नहीं पाई जाती। मीडिया रिपोर्ट्स भी इसी बात की चुगली करती आई हैं। जहां तक व्यक्तिगत चुनाव की बात है तो यह अपने घर पर ही लागू हो सकते हैं, सार्वजनिक जगहों पर बिल्कुल नही। इस बात में कोई दो राय नहीं कि खाने-पीने की पसंद किसी व्यक्ति की पहचान और उसकी संस्कृति का हिस्सा होती है। इसलिए भारत में जैसी विविधता पूर्ण संस्कृति रहती आई है, वैसे ही यहां के खाने में भी विविधता सर्वस्वीकार्य है। इसलिए किसी को क्या खाना चाहिए, इसकी पुलिसिंग होनी चाहिए या नहीं, विवाद का विषय है। कहना न होगा कि जैसे कानून किसी को भी जहर खाने की इजाजत नहीं देता है, वैसे ही मीठे जहर के रूप में प्रचलित बाजारू चीजों की भी जांच-पड़ताल की जानी चाहिए और यदि वे जनस्वास्थ्य की दृष्टि से प्रतिकूल हों तो उनपे निर्विवाद रूप से रोक भी लगनी चाहिए। यही बात मांसाहार पर भी लागू होनी चाहिए, क्योंकि इससे मानवीय शरीर में विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोगाणुओं को भी बढ़ावा मिलता है। बर्ड फ्लू इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। कुछ लोग बताते हैं कि लोगों के खानपान की पुलिसिया निगरानी या ऐसी कोई भी कोशिश संविधान के उस अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगी, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। इसलिए भोजन और पहनावा भी इसी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। लेकिन यह सिर्फ घर के चहारदीवारी के भीतर होनी चाहिए, वो भी तभी तक जब तक कि पड़ोसी को आपत्ति नहीं हो। ऐसा इसलिए कि आधुनिक फ्लैट संस्कृति में एक घर के रसोई की सुगंध या दुर्गंध पड़ोसियों के बेडरूम तक पहुंच जाती हैं। इसलिए भोजन निजी पसंद की चीज है, लेकिन बगलगीर की भावनाओं का सम्मान करना भी मांसाहारियों की नैतिक जिम्मेदारी है, क्योंकि कुछ शाकाहारी लोग तो दुर्गंध मात्र से उल्टी कर बैठते हैं। इससे उनका जीवन भी खतरे में आ जाता है। इसलिए यह राजनीतिक विवाद का विषय नहीं, बल्कि सियासी सूझबूझ का परिचायक समझा जा सकता है। भारतीय राजनीति की एक सबसे बड़ी कमी यह महसूस की जाती है कि हमारी कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया को जनहितैषी बनाने में यह विगत सात-आठ दशकों में भी शत-प्रतिशत क्या, पचास प्रतिशत भी सफल नहीं हुई है। लोकतंत्र और पाश्चात्य लोकतांत्रिक मूल्यों, जिस खुद पश्चिमी देश अपनी सुविधा के अनुसार चलते हैं, भारत में आँखमूद कर लागू कर दिए जाते हैं। इसलिए व्यापक जनहित का सवाल व्यवहारिक रूप से काफी पीछे छूट जाता है। हालांकि इसके बाद भी सावन में पिछले कुछ वर्षों से नॉन-वेज फूड को लेकर विवाद खड़े होते रहे हैं। देखा जाए तो ज्यादातर के मूल में राजनीति होती है। बिहार में दो साल पहले भी सावन पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बेटी के घर जाकर मटन पकाना एक सियासी मुद्दा बन गया था। कुछ दिनों पहले, जब प्रशांत किशोर की पार्टी में बिरयानी बंटी, तब भी हंगामा हुआ और सफाई देनी पड़ी कि यह तो वेज थी ! यही वजह है कि खानपान को लेकर नीतिगत संतुलन की जरूरत सबको है। इसलिए आस्था को भोजन के साथ मिलाने पर जो समस्या खड़ी होती है, वैसी ही समस्या इसकी अनदेखी के पश्चात भी खड़ी होती बताई जाती है। चूंकि दोनों ही निजी मामले हैं और दोनों में ही किसी को दखल देने का हक नहीं है। हां, यह जरूर है कि जब बात किसी खास आयोजन या धार्मिक अवसर पर किसी समुदाय की भावनाओं से जुड़ी हो, तो वहां सभी पक्षों के संवैधानिक अधिकारों के बीच संतुलन की जरूरत पड़ती है। ऐसा ही होता भी आया है। वहीं, भोजन किसी व्यक्ति की गरिमा का सवाल भी है। असल में, भोजन केवल भूख से नहीं, व्यक्ति की गरिमा से भी जुड़ा होता है। यह सम्मान के साथ कमाने और खाने का हक इस देश के सभी नागरिकों को देता है। किसी भी वजह से इन हकों को छीनने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। फिर यह भी देखना चाहिए कि खाने का इस्तेमाल राजनीति की बिसात पर न हो। साथ ही, इस राजनीति से लोगों की रोजी-रोटी पर आंच भी नहीं आनी चाहिए। आखिर हमें यह मानना पड़ेगा कि भजन की तरह भोजन भी स्वरूचि का विषय है लेकिन जिस तरह से भजन का नाता आतंकवाद और विघटन कारी तत्वों से जुड़ गया है, कुछ वैसी ही आशंका भोजन को लेकर भी जन्म ले रही हैं। इसलिए विधायी, प्रशासनिक, न्यायिक और मीडिया के स्वविवेक से जब इस जटिल मुद्दे का समाधान भारतीय सभ्यता-संस्कृति के अनुरूप निकाला जाएगा तो मुझे उम्मीद है कि शाकाहारी लोगों की जनभावना आहत नहीं होंगी। कमलेश पांडेय Read more » मांसाहारी खाने पर जारी 'सेक्युलर सियासी खेल'
राजनीति हिन्दू परिवारों के धर्म परिवर्तन कराने के ठेकेदार जमालुद्दीन उर्फ छांगुर को पहचानने में आखिर 8 वर्षों तक कैसे चुकी यूपी सरकार? July 15, 2025 / July 15, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय हिंदू परिवारों का धर्म परिवर्तन, लव जिहाद और देश विरोधी गतिविधियों के आरोप में एटीएस के शिकंजे में आए जमालुद्दीन उर्फ छांगुर के मंसूबे कहीं ज्यादा घातक थे, ऐसा उसकी अलग-अलग गतिविधियों से पता चलता है। इसलिए सवाल है कि उत्तरप्रदेश में पिछले 8 सालों से योगी सरकार होने के बावजूद जिस तरह से हिंदू परिवारों का धर्म परिवर्तन कराया गया, यह प्रशासन और खुफिया इकाई के मुंह पर किसी तमाचे से कम नहीं है। सच कहूं तो यह उनकी विफलता का द्योतक है। इसलिए आशंका तो यह है कि इस पूरे खेल में योगी सरकार के ही कुछ मंत्री और उनके भरोसेमंद अधिकारी भी शामिल रहे होंगे, अन्यथा इस बात के खुलासे में इतना विलंब नहीं होता। दबी जुबान में लोगों के इशारे हैं कि यदि केंद्रीय गृह मंत्रालय इस एंगल से भी जांच करवाए तो योगी प्रशासन के दूरगामी हित के लिए बेहतर रहेगा। यहां के सियासी हल्के में जो लोग बार-बार मुख्यमंत्री बदलने की मांग कर रहे थे, संभव है कि उनके तार भी ऐसे गिरोह से जुड़े हों। ऐसा इसलिए कि अमेरिका-चीन के इशारे पर और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के सहयोग से भारत के इस्लामीकरण की जो देशव्यापी साजिश कुछ भारतीय राजनीति दलों के परोक्ष समर्थन से जारी है, उसका बहुत छोटा सा इलाकाई प्यादा जमालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा है जो कि धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार हुआ है। इसलिए अब आवश्यकता इस बात की है कि पूरे देश में इस प्रकरण की गम्भीर जांच हो और कुछ बड़ी मछलियों के साथ साथ उन छोटी मछलियों को भी पकड़ा जाए, जो हिंदुओं के धर्मांतरण के खेल में शामिल हैं। यही नहीं, वहां के राज्य प्रशासन के कुछ अधिकारियों की चुप्पी को भी टटोला जाए ताकि बड़े-बड़े खुलासे हो सकें। खासकर महानगरों व बड़े नगरों पर भी इसी दृष्टि से नजर दौड़ाई जाए। विशेष तौर पर एक धर्मांतरण जांच प्रकोष्ठ बने, जो सतत निगाह रखे। ऐसा इसलिए कि जमालुद्दीन उर्फ छांगुर को लेकर जो नए नए खुलासे हो रहे हैं, उसमें गम्भीर खुलासा यह हुआ है कि छांगुर ने जमीनों में भी खूब पैसा लगाया था। तभी तो हर खरीद व बिक्री पर मुनाफे की रकम छांगुर तक पहुंचती थी जो धर्म परिवर्तन कराने में खर्च होता था। स्पष्ट है कि उत्तरप्रदेश के बलरामपुर जनपद में अवैध धर्मांतरण को आगे बढ़ाने के लिए छांगुर ने कई दांव-प्रतिदाँव चले थे। वह इतना शातिर है कि लोकल अधिकारियों को मैनेज करके व लोगों को अनुचित लाभ देकर खुद की टीम से जोड़ने के लिए प्रॉपर्टी का कार्य भी करा रहा था। बताया गया है कि उसके इस काम को महबूब और नवीन रोहरा देखते थे जिससे अच्छी आमदनी होती थी और पूरा का पूरा मुनाफा धर्म परिवर्तन कराने में खर्च होता था। वहीं यह भी पता चला है कि पहले लोगों को प्रभावित करने के लिए छांगुर उन्हें रुपये बांटता था और फिर इस्लाम धर्म कबूल करने का दबाव बनाता-बनवाता था। उदाहरणतया, उत्तरौला में ही छांगुर ने छह स्थानों पर बेशकीमती जमीन खरीदी है। इसके अलावा, शहर में दो कॉम्प्लेक्स भी बनवाए हैं। इसके साथ ही साथ प्लॉटिंग भी कर रहा था। इस बारे में छांगुर के राजदार रहे एक व्यक्ति ने एक मीडिया से बातचीत करते हुए बताया है कि छांगुर धर्म परिवर्तन कराने के लिए कई तरह से रुपये बांटता था। वह सुनियोजित योजना के तहत हिंदू श्रमिकों और गरीब परिवारों को पहले नियमित खर्च के लिए रुपये देता था। ततपश्चात वह ऐसे लोगों को अपने घर में साफ-सफाई या जानवरों की देखरेख का काम सौंपता था। फिर छांगुर उन्हें वेतन के साथ ही 100-200 रुपये रोज देता था। इसके बाद प्रभाव में लेकर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कहता और बेहतर जिंदगी का ख्वाब दिखाता था। वहीं, छांगुर के यहां सफाई करने वाले संचित ने एटीएस को बताया है कि उसे छांगुर ने धर्म परिवर्तन करने पर पांच लाख रुपये देने का लालच दिया था और इनकार करने पर दुष्कर्म के मामले में फंसा दिया। खबर है कि एटीएस ने भी संचित के बयान का जिक्र अपनी जांच में किया है। इन बातों से साफ है कि हिंदू परिवारों का धर्म परिवर्तन, लव जिहाद और देश विरोधी गतिविधियों के आरोप में एटीएस के शिकंजे में आए जमालुद्दीन उर्फ छांगुर के मंसूबे कहीं ज्यादा घातक थे। खबर है कि अवैध धर्मांतरण के लिए उसने नेपाल से सटे संवेदनशील सात जिलों में सक्रिय कुछ ईसाई मिशनरियों से भी उसने सांठगांठ कर ली थी। वह उनके पास्टर और पादरी को पैसे देकर कमजोर वर्गों का ब्योरा लेता था और फिर चिह्नित परिवारों को आर्थिक रूप से मदद देकर उन्हें अपने प्रभाव में लेकर धर्म परिवर्तन कराता था। खबर है कि धर्मांतरण में होने वाले खर्च का पूरा हिसाब नसरीन रखती थी जबकि नवीन से जलालुद्दीन बना नीतू का पति पुलिस और स्थानीय प्रशासन को मैनेज करता था। वहीं, सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, नेपाल से सटे देवीपाटन मंडल में मिशनरियों ने हर वर्ग के अनुसार प्रचारक नियुक्त किया है जिससे परिवारों को समझाने और धर्मातरण के लिए राजी करने में आसानी होती है। इसकी एक पूरी चेन है, जिसमें प्रचार, पास्टर और पादरी अहम कड़ियां हैं। इनके पास चुनिंदा क्षेत्रों के दलित, वंचित, गंभीर रूप से बीमार व आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों का पूरा ब्योरा होता है, जिसे छांगुर समय-समय पर पैसे और प्रभाव का उपयोग कर धर्मांतरण के लिए हासिल करता था। खबर है कि हिन्दू परिवारों को प्रभावित करने के लिए छांगुर नीतू उर्फ नसरीन और नवीन उर्फ जलालुद्दीन का उदाहरण देता था। वह बताता था कि दोनों पहले सिंधी थे लेकिन इस्लाम स्वीकार करने के बाद उनकी जिंदगी बदल गई। आज इनके पास पैसे हैं, आलीशान कोठी है, महंगी गाड़ी है। लिहाजा इस्लाम स्वीकारते ही तुम्हारी भी जिंदगी बदल जाएगी। वहीं, भारत-नेपाल बॉर्डर पर काम कर चुके पूर्व आईबी अधिकारी संतोष सिंह बताते हैं कि छांगुर पीर मिशन आबाद की एक कड़ी है जिसके तहत हिंदू परिवारों के धर्म परिवर्तन के बदले उसे विदेश से फंडिंग भी होती थी। इसकी रिपोर्ट भी बनी और गृह मंत्रालय को भेजी भी गई। यह बात अलग है कि देर से ही सही लेकिन अब कार्रवाई पुख्ता हो रही है। बताते चलें कि मिशन आबाद भारत-नेपाल के बीच तराई व मधेश क्षेत्र में समुदाय विशेष की आबादी बढ़ाने की कोशिश है। इसके तहत शिक्षण संस्थानों की आड़ में असम व पश्चिम बंगाल तक के लोगों को बसाने का प्रयास भी इसी का हिस्सा है। यही वजह है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में इस तरह की गतिविधियों की व्यापक जांच राष्ट्रहित में हो और यदि कोई राजनीतिक हस्तक्षेप करता है तो उसके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाए अन्यथा भारत का इस्लामीकरण कोई मुश्किल कार्य नहीं है जैसा कि अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र चल रहा है। इसी तरह से ईसाई मिशनरियों व बौद्ध संगठनों की भी जांच हो जो विदेशियों के इशारे पर भारतीय राजनीति को प्रभावित करने के उद्यम करते हैं। कमलेश पांडेय Read more » How did the UP government take 8 years to identify Jamaluddin alias Changur हिन्दू परिवारों के धर्म परिवर्तन कराने के ठेकेदार जमालुद्दीन उर्फ छांगुर
लेख केंद्रीय ट्रेड यूनियंस व उनके सहयोगी संगठनों द्वारा आहूत ‘भारत बंद’ के मायने July 11, 2025 / July 11, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय देश भर की 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगी संगठनों ने भाजपा नीत राजग के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की कथित ‘मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक’ नीतियों के खिलाफ 9 जुलाई दिन बुद्धवार को जो देशव्यापी हड़ताल बुलाई थी और स्पष्ट रूप से भारत बंद का जो ऐलान किया था, वह एक हद तक विफल भी रहा। इसलिए […] Read more » Meaning of 'Bharat Bandh' called by central trade unions and their allied organizations केंद्रीय ट्रेड यूनियंस
राजनीति एससीओ में आतंकवाद पर चले पारस्परिक दांवपेंच के मायने July 2, 2025 / July 2, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय जब इजरायल जैसा छोटा-सा यहूदी देश अपने शौर्य, पराक्रम और कूटनीति जनित तकनीकी विकास के बल पर ईरान जैसे कट्टर शिया इस्लामिक देश का मुकाबला कर सकता है तो भारत जैसा विशाल हिन्दू राष्ट्र अपने शौर्य, पराक्रम और कूटनीति जनित तकनीकी विकास के बल पर पाकिस्तान / पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) जैसे कट्टर सुन्नी […] Read more » The meaning of the mutual negotiations on terrorism in SCO एससीओ में आतंकवाद
राजनीति संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘समाजवादी’ व ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द पर जारी सियासत के मायने June 30, 2025 / June 30, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना में बाद में शामिल किए गए दो शब्दों ‘संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘समाजवादी’ व ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द पर जारी सियासत के मायने’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ को ‘संविधान हत्या दिवस’ के दिन ही हटवाने की जो वकालत की है, उसके राष्ट्रीय, सामाजिक और […] Read more » 'समाजवादी' व 'धर्मनिरपेक्षता'
राजनीति कनाडा-भारत के बीच सुधरते रिश्ते के वैश्विक मायने June 24, 2025 / June 24, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय कनाडा-भारत के बीच सुधरते रिश्ते दोनों देशों के लिए परस्पर लाभदायी हो सकते हैं, क्योंकि दोनों देश अमेरिका जैसे अंतरराष्ट्रीय महाशक्ति के निशाने पर हैं। एक ओर जहां कनाडा को अमेरिका अपने राज्य में मिलाना चाहता है, वहीं दूसरी ओर भारत को अमेरिका विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नीचा दिखाना चाहता है ताकि उसकी […] Read more » Global implications of improving Canada-India relations कनाडा-भारत के बीच सुधरते रिश्ते कनाडा-भारत के बीच सुधरते रिश्ते के वैश्विक मायने
राजनीति ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले के वैश्विक मायने June 24, 2025 / June 24, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय आखिरकार दुनिया का थानेदार समझे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने मित्र यहूदी देश इजरायल की शांति के लिए चुनौती बन चुके कट्टरपंथी इस्लामिक राष्ट्र ईरान के तीन प्रमुख परमाणु स्थलों पर हवाई हमले करके जहां विगत 10 दिनों से चल रहे इजरायल-ईरान युद्ध को एक नया मोड़ दे दिया, […] Read more » Global implications of US attack on Iran's nuclear sites ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले
राजनीति मोदी शासन: एक रुद्र बनाम रौद्र रूप के सियासी मायने June 12, 2025 / June 12, 2025 | Leave a Comment कमलेश पांडेय सदैव लोककल्याणकारी देवाधिदेव महादेव के दरबार में एक रुद्र का मतलब ग्यारह होता है। सनातन धर्म में यह बेहद कल्याणकारी अंक समझा जाता है। इस नजरिए से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजनीतिक क्लोन भारतीय जनता पार्टी के देशव्यापी शासन के छठवीं पारी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निरंतरता के 11 वर्ष पूरे होने पर देशवासियों यानी हर हिंदुस्तानी को गर्व तो होना ही चाहिए क्योंकि इसी वर्ष पाकिस्तान द्वारा प्रोत्साहित और चीन-अमेरिका द्वारा उकसाए हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद दी गई जवाबी प्रतिक्रिया में भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमारी संयुक्त सेनाओं ने जो अपना रौद्र रूप दिखलाया है, वह काबिले तारीफ है। इसने दुनियावी महाशक्तियों को अपनी हद में रहने अन्यथा दुष्परिणाम झेलने का दो टूक संदेश दिया है। कहना न होगा कि भारतीयों की यह महानतम उपलब्धि अनायास नहीं है बल्कि मोदी सरकार की ग्यारह वर्षीय सैन्य साधना का चमत्कार है। यह आरएसएस के शताब्दी वर्ष को और भाजपा को 45 वर्ष पूरे करने की सलामी है जिसे जनसंघ को विघटित किये जाने के पश्चात एक नया रूप दिया गया था। वैसे तो जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी-दीन दयाल उपाध्याय, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी-पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-गृहमंत्री अमित शाह सरीखे सैकड़ों-लाखों संघ पुरुषों के त्याग बलिदान के बाद यह शुभ दिन देखने को मिल रहा है, इसलिए युगपुरुष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष बधाई के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने जिस शिद्दत से यह महानतम उपलब्धि हासिल की है और विभिन्न उपलब्धियों की जो विश्वयव्यापी श्रृंखला बनाई है, वह अनुकरणीय है। इसके लिए मोहन भागवत जैसे विभिन्न संघ प्रमुखों व उनके लाखों स्वयंसेवकों व भाजपा कार्यकर्ताओं के त्याग व बलिदान को भी नहीं भुलाया जा सकता । कहना न होगा कि ‘विदेशी एजेंट्स’ के तौर पर कार्य करने वाले कतिपय भारतीय राजनेताओं ने जिस भाजपा को सियासी अछूत और साम्प्रदायिक पार्टी करार देने में कोई कोताही नहीं बरती, आज उसी की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां व सूबाई रणनीति इन राजनेताओं के राजनीतिक अस्तित्व को ही समाप्त करती जा रही हैं। अमेरिका और चीन जैसे अंतरराष्ट्रीय दोगले देशों के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेलते हुए भारत अब दुनिया की बड़ी आर्थिक व सैन्य शक्ति बन गया है। आर्थिक रूप से शक्तिशाली देशों की सूची में भारत जहां वर्ष 2014 में 10वें स्थान पर था, वह अब 2025 में 4थे स्थान पर पहुंच चुका है। हमारी अर्थव्यवस्था अब उछलकर विश्व के चौथे स्थान पर जा पहुंची है। कहने का तात्पर्य यह कि जिस ब्रिटेन ने दुनियाभर पर राज्य किया, वह तो कब का भारत से पिछड़ गया, वहीं अब धनकुबेर जापान को भी भारत ने पछाड़ दिया है और अपनी हठधर्मिता से दुनिया को दो विश्व युद्ध की सौगात देने वाले और तीसरे संभावित विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले जर्मनी को आर्थिक चकमा देकर भारत कब दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन जायेगा और फिर अमेरिका-चीन से आर्थिक होड़ शुरू कर देगा, इसमें ज्यादा अवधि नहीं बची है! क्या यह देशवासियों के खुश होने का वक्त नहीं है? आंकड़े बताते हैं कि 1947 में आजादी मिलने के बाद साल 2014 तक यानी लगभग 70 वर्षों में देश महज 2 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी ही बन पाया था। ऐसा इसलिए कि हमारी सरकारें विदेशियों के मुंह पोछते रहने की आत्मघाती नीतियों पर चल रही थीं। वहीं, राष्ट्र्वादी सरकार की 4थी से 6 ठी पारी के बीच यानी 11 साल बाद भारतीय अर्थव्यवस्था 4.2 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन चुकी है। अब भारत का तात्कालिक लक्ष्य तीसरे स्थान पर चल रहे जर्मनी को पछाड़कर 2028 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनना है। मतलब साफ है कि एक विकासशील देश से विकसित देश बनने को आतुर भारत का अगला शिकार जर्मनी होगा। तब भारत की अर्थव्यवस्था से आगे सिर्फ चीन और अमेरिका रह जाएंगे जो हमसे पिछले कई दशकों से मजबूत प्रतिद्वंद्विता करते आए हैं। ऐसे में हम विगत 11 सालों में मोदी सरकार या एनडीए सरकार पास हुई या फेल, इस विवाद को हम विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के लिए छोड़ते हैं जबकि बाकी काम जनता जानती है और उसके पास जवाब देने के लिए अनेक अवसर हैं। जो असंभव को संभव बनाने का कार्य मोदी सरकार ने किया है, वह हम सबके सामने है। चाहे राम मंदिर निर्माण हो, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति हो और तीन तलाक़ नामक कुप्रथा की समाप्ति, आदि…. ऐसे बड़े काम हैं जो पिछली सरकारें कभी नहीं कर पातीं। उसे छोड़िए, हुआ न हुआ, इसको सरकार और विपक्ष पर छोड़ते हैं। लेकिन अब हमारी निगाहें 22 साल बाद यानी 2047 के विकसित भारत की ओर लगी हैं। वर्तमान अमृत काल खंड सबको आकर्षित कर रहा है। माना कि वह साल हम लोग और हमारी वर्तमान पीढ़ी नहीं देख पाएगी या जो सौभाग्यशाली होंगे, वो देख पाएंगे पर भारत को विकसित राष्ट्र बनते हमारे बच्चे देखेंगे और हम उनकी आंखों से देखेंगे। कहना न होगा कि विगत 11 सालों में भारत की गतिशील अर्थव्यवस्था का रास्ता खुद ही नहीं खुला बल्कि टीम मोदी प्रशासन की अथक तैयारियों के साथ खोला गया है। यदि एपल, स्टारलिंक और टेस्ला जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियां अमेरिका की बजाय भारत में अपना उद्योग लगाना चाहती हैं तो कोई तो बात हुई होगी इन 11 वर्षों में जबकि कुछ लोगों ने दंगों-फसादों में ही झुलसते रहने का ही ठेका ले लिया है? आप गौर कीजिए कि आखिर अब ऐसा कौन-सा मोर्चा बचा हुआ है जिस पर भारत मजबूत न हुआ हो? क्योंकि कोई भी देश मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश तभी बनता है जब वह हर मोर्चे पर मजबूत हुआ हो। यही वजह है कि ऑपरेशन सिंदूर में दुनिया ने भारत की मजबूती देखी। भारत के हमलों की मार पाकिस्तान के उस परमाणु भंडार तक पहुंच गई जिसमें अमेरिका और चीन भी अपने अपने परमाणु हथियार रखे हुए हैं। भारत द्वारा 9 आतंकी ठिकाने और 11 एयरबेस उड़ाने की आग जब परमाणु भंडार की तरफ बढ़ी, तो अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पसीने भी छूटने लगे। फिर भारत ने आत्मशक्ति से अर्जित आत्मसंयम की मिसाल भी दुनिया के सामने खड़ी कर दी। आप जरा गौर कीजिए, बीते कुछ महीनों-सालों में पाकिस्तान में पनवाड़ी से लेकर मोची तक और सिपाही से लेकर सेनाध्यक्ष मुनीर तक सभी परमाणु हमले की धमकी बार-बार दिया करते थे लेकिन भारत के ब्रह्मोस की रेंज में जब सरगोधा के बाद किराना हिल्स भी आ गई, तब अमेरिका तक किस तरह घबरा गया। चीन किस तरह से अमेरिका की चिरौरी करने लगा। वही आक्रमण था जब पाकिस्तानी सेना ने गिड़गिड़ाते हुए सीजफायर की गुहार भारतीय सेना से लगाई। अच्छा हुआ, वसुधैव कुटुंबकम का पथप्रदर्शक भारत मान गया लेकिन यदि न मानता तो आज पाकिस्तान का वजूद ही मिट गया होता। उसके बाद चीन अपनी कुटिल चालें चल रहा है। अमेरिका का नेतृत्व पागल की तरह भारत से व्यवहार कर रहा है लेकिन देखते रहिए, भारत की यह सैन्य शक्ति तथा बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था ही इस महान देश को विकसित राष्ट्र और वैश्विक महाशक्ति बनने के रास्ते पर ले जाएगी। हमारे देश को जरा और आगे बढ़ने तो दीजिए? हमारे महान भारत को, हमारे कुशल भारतीयों को! उनका रौद्र रूप और शिव तांडव जब दुनिया देखेगी, तो अचंभित रह जायेगी क्योंकि विश्व को सत्य व अहिंसा का नया पाठ पढ़ाने के लिए हमलोग दुनियावी तांडव जरूर दिखाएंगे, आज नहीं तो निश्चय कल। इसलिए चेत जाए हिंसक-प्रतिहिंसक दुनिया! कमलेश पांडेय Read more » Modi rule: Political meaning of one Rudra versus Rudra form मोदी शासन
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