कमलेश पांडेय

कमलेश पांडेय

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वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

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राजनीति

क्या सुप्रीम कोर्ट के नहले पर राष्ट्रपति के दहले से निकल पाएगा कोई सर्वमान्य हल

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कमलेश पांडेय भारत में विधायिका-कार्यपालिका बनाम न्यायपालिका का टकराव अब कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा विधेयक पर फैसला लेने की समयसीमा तय किए जाने पर पहले तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई गई, वहीं अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कतिपय महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं, जिनका जवाब सर्वोच्च न्यायालय को देना चाहिए। बता दें कि समयसीमा तय किए जाने पर राष्ट्रपति ने सवाल उठाते हुए दो टूक शब्दों में कहा है कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है! इसलिए सुलगता हुआ सवाल है कि जब कोई प्रावधान ही नहीं है तब इतना बड़ा न्यायिक अतिरेक कैसे सामने आया जिससे भारत की कार्यपालिका और विधायिका में भूचाल आ गया। बता दें कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गत 8 अप्रैल 2025 को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दर्जनाधिक नीतिगत सवाल उठाए हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में आदेश दिया था कि राज्यपालों और राष्ट्रपति को एक तय समय में उनके समक्ष पेश विधेयकों पर फैसला लेना होगा। याद दिला दें कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर काफी हंगामा हुआ था, जो अब भी विभागीय शीत युद्ध के रूप में जारी है। इसी का परिणाम है कि अब राष्ट्रपति ने इस पर आपत्ति जताई है और साफ साफ कहा है कि जब देश के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, तो फिर सुप्रीम कोर्ट किस आधार पर यह फैसला दे सकता है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समयसीमा तय करने जैसे विषयों पर स्पष्टीकरण मांगा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में दिए अपने फैसले में स्पष्ट कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। अगर तय समयसीमा में फैसला नहीं लिया जाता तो राष्ट्रपति को राज्य को इसकी वाजिब वजह बतानी होगी। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानसभा के पास वापस भेज सकते हैं। वहीं यदि विधानसभा उस विधेयक को फिर से पारित करती है तो राष्ट्रपति को उस पर अंतिम फैसला लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अगर राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सलाह के खिलाफ जाकर फैसला लिया है तो सुप्रीम कोर्ट के पास उस विधेयक को कानूनी रूप से जांचने का अधिकार होगा। यही वजह है कि राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे 14 सवाल पूछे हैं, जो इस प्रकार हैं- पहला, राज्यपाल के समक्ष अगर कोई विधेयक पेश किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनके पास क्या विकल्प हैं? दूसरा, क्या राज्यपाल इन विकल्पों पर विचार करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?  तीसरा, क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है? चतुर्थ, क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह से रोक सकता है? पांचवां, क्या अदालतें राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों की समयसीमा तय कर सकती हैं, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा तय नहीं की गई है? छठा,  क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लिए गए फैसले की समीक्षा हो सकती है? सातवाँ, क्या अदालतें अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा फैसला लेने की समयसीमा तय कर सकती हैं?  आठवां, अगर राज्यपाल ने विधेयक को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया है तो क्या अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी चाहिए? नवम, क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा क्रमशः अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए फैसलों पर अदालतें लागू होने से पहले सुनवाई कर सकती हैं। दशम, क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों में बदलाव कर सकता है? ग्यारह, क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बिना राज्य सरकार कानून लागू कर सकती है?  बारह, क्या सुप्रीम कोर्ट की कोई पीठ अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजने पर फैसला कर सकती है? तेरह, क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश/आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों मेल न खाता हो? चौदह, क्या अनुच्छेद 131 के तहत संविधान इसकी इजाजत देता है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है? दरअसल, ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब देने में सुप्रीम कोर्ट को काफी माथापच्ची करनी होगी क्योंकि ये सवाल उसी नौकरशाही द्वारा तैयार किये गए होंगे, जिसका परोक्ष शिकंजा खुद कोर्ट भी महसूस करता आया है और इससे निकलने के लिए कई बार अपनी छटपटाहट भी नहीं छिपा पाता है। इसलिए सुप्रीम जवाब का इंतजार अब नागरिकों और सरकार दोनों को है, ताकि एक और ‘लीगल पोस्टमार्टम’ किया जा  सके। इसलिए लोगों के जेहन में यह बात उठ रही है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के नहले पर राष्ट्रपति के दहले से निकल पाएगा कोई सर्वमान्य हल? कमलेश पांडेय

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कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म

‘महाशिवरात्रि’ के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्यों को ऐसे समझिए, जनकल्याणक है 

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 कमलेश पांडेय शिव पूजा का तातपर्य हमेशा लोककल्याणकारी-जनकल्याणकारी कार्यों से है। इसलिए ‘महाशिवरात्रि’ के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्यों को अवश्य समझना चाहिए। यथासम्भव दूसरों को बतलाना चाहिए। शिवकथा का उद्देश्य यही है जो जन कल्याणक और लोकमंगलकारी है। शिवरात्रि अर्थात् भगवान शिवजी की रात्रि। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी तिथि की रात्रि को भगवान शिवजी का विवाह पार्वती जी से हुआ था।  लिहाजा, यह भगवान शिवजी की आराधना की रात्रि है जो फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदस) को मनायी जाती है। क्या आपको पता है कि जब अन्य देवताओं का पूजन-यजन दिन में होता है तो फिर शिवजी का पूजन रात्रि में ही क्यों, अक्सर यह विचार आपके मन में उत्पन्न हो सकता है। इसलिए आपको बता दें कि भगवान शिव तमोगुण प्रधान संहार के देवता हैं। अत: तमोमयी रात्रि से उनका ज्यादा स्नेह है।  चूंकि रात्रि संहारकाल का प्रतिनिधित्व करती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में रात्रिकालीन प्रकाश का स्रोत चन्द्रमा भी पूर्ण रूप से क्षीण होता है। लिहाजा जीवों के अन्दर भी तामसी प्रवृत्तियाँ कृष्ण पक्ष की रात में बढ़ जाती हैं। यही वजह है कि जैसे पानी आने से पहले पुल बाँधा जाता है, उसी प्रकार चन्द्र क्षय तीज आने से पहले उन तामसी प्रवृत्तियों के शमन (निवारण) हेतु भगवान आशुतोष (शिव) की आराधना का विधान शास्त्रकारों ने बनाया। यही रहस्य है जो लोककल्याणक है। मंगलकारी है। दरअसल, संहार के पश्चात् नई सृष्टि अनिवार्य है अर्थात् संहार के बाद पुन: सृष्टि होती है। इसलिए आप देखते हैं कि फाल्गुन मास में सभी पेड़-पौधों (लगभग सभी) के पत्ते झड़ जाते हैं उसके बाद ही नई पत्तियाँ निकलती हैं। इसे सृष्टि का नया स्वरूप जानो। समझो। महाशिवरात्रि इसके निखरने की पावन बेला है। सवाल है कि महाशिवरात्रि पर लोग उपवास और रात्रि जागरण क्यों करते हैं? इसकी धार्मिक विधि क्या है? से स्पष्ट करें? क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है? यहां पर आपकी जिज्ञासा शांति के लिए बता दें कि जिस प्रकार शराब, भाँग, गाँजा, अफीम आदि पदार्थों में मादकता (नशा) होती है उसी प्रकार अन्न में भी मादकता होती है। शायद कुछ लोग इस बात को न जानते हों किन्तु यह सत्य है कि अन्न में मादकता होती है। आप भोजन करने के बाद शरीर में शिथिलता और आलस्य महसूस करते होंगे जबकि सिर्फ फलाहार या मात्र दूध का सेवन करने से आलस्य नहीं महसूस होता है। लिहाजा, अन्न की मादकता कम करने के लिए ही पूर्वकाल के मनीषियों ने उपवास/व्रत को प्राथमिकता दी। क्योंकि उपवास करने से शरीर की मादकता कम होती है जिससे शुद्धता आती है और मन धार्मिक कार्यों में लगता है।  वहीं, रात्रि जागरण का अर्थ निद्रा और आलस्य को त्यागने से है। प्राचीनकाल के ऋषि-महर्षियों ने अपनी कठिन तपस्याओं के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला कि निद्राकाल को ‘काल’ का स्वरूप जानो, क्योंकि इन्सान की आयु श्वाँसों पर निर्धारित है। प्रत्येक इन्सान को परमात्मा की ओर से एक निश्चित श्वाँसें ही मिली हैं और जागृत (जागते हुए) अवस्था से ज्यादा श्वाँसें सुप्तावस्था (सोये हुए) में नष्ट होती हैं। अतएव जितनी श्वाँसें आप बचायेंगे, आपकी आयु उसी हिसाब में बढ़ती चली जायेगी। मसलन, आपने प्रमाण भी देखा होगा कि कुछ ऋषि-मुनि एक सौ पचास वर्षों तक या उससे ज्यादा जीवित रहे। क्या आपने कभी जानने का प्रयास किया कि ऐसा क्यों? आखिर हम और आप क्यों नहीं जीवित रह सकते? इसका एक मात्र कारण है योगासन! इस प्रकार उनकी आयु बढ़ती चली जाती थी। आप भी योगासन करके लम्बी आयु प्राप्त कर सकते हैं। आजकल वैज्ञानिक और डॉक्टर भी योगासन को महत्व देते हैं। कभी-कभी उपवास भी करने को कहते हैं। जिससे शरीर की पाचन प्रक्रिया सही बनी रहे।  वहीं, एक सवाल यह भी है कि शिवलिंग की पूजा क्यों करते हैं? क्या इसमें कोई वैज्ञानिक रहस्य भी छिपा हुआ है? तो यह जान लीजिए कि शिव और शिवलिंग की पूजा किसी-न-किसी रूप में सम्पूर्ण विश्व में अनादि काल से होती चली आ रही है। इस समाज के कुछ आलोचक ऐसे हैं जो ‘लिंग’ शब्द का अर्थ अश्लीलता से जोड़कर सभ्य और धार्मिक विचार वाले व्यक्तियों को दिग्भ्रमित करने का प्रयास करते हैं। यह मूर्खतापूर्ण प्रयास है क्योंकि शिवलिंग का स्वरूप आकार विशेष से रहित है अर्थात् निराकार ब्रह्म के उपासक जिस प्रकार हाथ-पैर, शरीर रहित, रूप-रंग रहित ब्रह्म की उपासना करते हैं। ऐसा ही शिवलिंग का स्वरूप है।  आपको पता होना चाहिए कि जब संसार में कुछ नहीं था, सर्वत्र शून्य (०) या अण्डे के आकार का, जिसे वेदों पुराणों की भाषा में ‘अण्ड’ कहा जाता है, वैसा ही स्वरूप शिवलिंग का है जिससे सिद्ध होता है कि शिव और शिवलिंग अनादि काल से हैं। जिस प्रकार से यह ० (शून्य) किसी अंक के दाहिनी ओर होने पर उस अंक के महत्व को दस गुणा बढ़ा देता है, उसी प्रकार से शिव भी दाहिने होकर अर्थात् अनुकूल होकर मनुष्य को सुख-समृद्धि और मान-सम्मान प्रदान करते हैं। इसलिए जनकल्याणक, लोककल्याण कारी बने रहिए। चूंकि ग्यारह रुद्रों में भगवान शिव की गणना होती है और एकादश (ग्यारह) संख्यात्मक होने के कारण भी यह पर्व हिन्दी (वर्ष) के ग्यारहवें महीने में ही सम्पन्न होता है। इसलिए श्रद्धा एवं उत्साह पूर्वक शिवरात्रि मनाइए। कमलेश पांडेय

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