राजनीति एक योग्य संगठनकर्ता और कुशल प्रशासक समझे जाते हैं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस December 5, 2024 / December 5, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को केंद्र और प्रदेश भाजपा में एक योग्य संगठनकर्ता और कुशल प्रशासक के रूप में जाना जाता है। ऐसा इसलिए कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अपने 5 वर्ष के कार्यकाल के दौरान कई बेहद महत्वपूर्ण निर्णय लिए और विकास परियोजनाओं को गति प्रदान करते हुए […] Read more » देवेंद्र फडणवीस
राजनीति हाइब्रिड पॉलिटिकल पार्टी ‘आप” यदि कांग्रेस से गठबंधन करेगी तो सियासी तौर पर समाप्त हो जाएगी? December 4, 2024 / December 4, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय देश की राजधानी दिल्ली में फरवरी 2025 में विधानसभा चुनाव होंगे और यहां पर सत्तारूढ़ ‘आम आदमी पार्टी’ एक बार फिर पूरे दम-खम से अकेले यह चुनाव लड़ेगी जबकि वह कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडिया गठबंधन की भागीदार पार्टी रही है। बताया जाता है कि हाइब्रिड पॉलिटिकल पार्टी ‘आप’ को डर है कि […] Read more » 'AAP' forms an alliance with Congress Will the hybrid political party 'AAP' be politically wiped out if it forms an alliance with Congress?
राजनीति विधि-कानून पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कट ऑफ डेट पर उठते हुए सवालों का जवाब आखिर कौन देगा? December 3, 2024 / December 3, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय क्या आपको पता है कि प्रथम मुस्लिम आक्रांता मुहम्मद बिन कासिम ने 712 ई में भारत के सिंध प्रांत पर आक्रमण किया और काफी उत्पात मचाया। उसके बाद उसके अनुयायी यानी मुस्लिम आक्रमणकारी अपनी सुविधा के अनुसार भारत पर आक्रमण करते हुए आए, यहां के समृद्ध मंदिरों व बाजारों सहित प्रमुख जगहों पर […] Read more » Places of Worship (Special Provisions) Act पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम
राजनीति यक्ष प्रश्न: जीत और गठबंधन की मृगमरीचिका में आखिर कब तक भटकेगी कांग्रेस? December 2, 2024 / December 2, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय कांग्रेस एक पुरानी राजनीतिक पार्टी है जिसका देशव्यापी जनाधार है लेकिन वह ‘जीत’ और ‘गठबंधन’ की मृगमरीचिका में आखिर कबतक भटकेगी, यह एक यक्ष प्रश्न है? आखिर कमजोर ‘सियासी बैशाखियों’ के सहारे उसकी जीत कितना मुकम्मल कहलाएगी और स्थायी बन पाएगी, यह उससे भी ज्यादा विचारणीय पहलू है। वैसे भी जब कांग्रेस विभिन्न महत्वपूर्ण राज्यों में क्षेत्रीय दलों की वैशाखी ढूंढ़ती है या फिर मुद्दों के बियाबान में भटकती और फिर स्टैंड बदलती नजर आती है तो मुझे इसके रणनीतिकारों पर तरस आती है। ऐसा इसलिए कि मैंने भू-जमींदारी देखी है, जहां पर लोग अपनी जमीनें ठेके या बंटाईदारी पर देकर अनाज और पैसे दोनों लेते हैं। ठीक उसी तरह से आज कांग्रेस के रसूखदार और धन्नासेठ नेता पार्टी संगठन में पद और चुनावी टिकट देने के वास्ते ‘वोट’ और ‘पैसा’ दोनों लेते/लिवाते हैं, यह जानते हुए भी कि सामने वाला न तो उनका जनाधार बढ़ा पाएगा और न ही चुनाव जीत/जीतवा पाएगा। ऐसा वो सिर्फ इसलिए करते हैं कि सामने वाला अमीर है, वफादार है, पिछलग्गू भर है या फिर निहित समीकरण वश किसी ने उसकी सिफारिश की है। बेशक कुछ अपवाद भी हो सकते हैं, लेकिन वही जिनके नेहरू-गांधी परिवार से ठीक ठाक सम्बन्ध हैं। अब बात पते की करते हैं। जैसे एक शातिर बंटाईदार अपने भूस्वामी की भूमि पर भी कब्जा कर लेता है और इसमें जब वह असफल होता है तो जमीन मालिक से कम कीमत में उसकी रजिस्ट्री करवाना चाहता है। अनुभवहीन भूस्वामियों को ऐसा करते हुए भी देखा सुना है। ठीक इसी प्रकार लालू प्रसाद और स्व. मुलायम सिंह यादव जैसे नवसियासी बटाईदारों ने कांग्रेस के साथ किया और आज क्षेत्रीय सियासी जमींदार बन बैठे हैं। ऐसा इसलिए सम्भव हो सका, क्योंकि निहित स्वार्थवश पीवी नरसिम्हाराव यही चाहते थे! उनके तिकड़म को सोनिया गांधी नहीं समझ सकीं । वहीं, आज जब राहुल-प्रियंका गांधी की कांग्रेस की रीति नीति देखता हूँ तो इनकी राजनीतिक जमींदारी के हश्र को महसूस भी करता हूँ। कांग्रेस माने या न माने लेकिन समाजवादी, वामपंथी और राष्ट्रवादी सियासी जमींदारों ने उसकी राजनीतिक जमींदारी को क्षत-विक्षत करने में अहम भूमिका निभाई है और हैरत की बात यह है कि वह समझ नहीं पाई और नादान बनी रही जबकि इसके खिलाफ ठोस और जमीनी रणनीति बनानी चाहिए जैसे कि उसके बाद जन्मी भाजपा ने किया है। माना कि सत्ता प्राप्ति के लोभ में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन यानी यूपीए/महागठबंधन की सोच तो सही है, लेकिन इनके इशारे पर कांग्रेस संगठन को हांकना कतई सही नहीं है। कांग्रेस इससे इंकार कर सकती है, लेकिन वह आज इसी की पूरी सियासी कीमत अदा कर रही है। आज वह सत्ता में नहीं है, फिर भी उन्हीं लोगों से सहारा ढूंढ रही है जो उसके सियासी पतन के लिए कसूरवार हैं। चूंकि मैंने एआईसीसी/बीजेपी/तीसरे मोर्चे को कवर किया है, इसलिए दावे के साथ कह सकता हूँ कि कांग्रेस के अंग्रेजी भाषी दलाल नेताओं ने उसके जमीनी नेताओं को भाजपा या क्षेत्रीय दलों में जाने के लिए अभिशप्त कर दिया। चूंकि कांग्रेस के जमीनी नेताओं के पास रणनीति और जनाधार दोनों है, इसलिए वो अपने व्यक्तिवादी मिशन में सफल रहे लेकिन कांग्रेस दिन ब दिन डूबती चली गई। राजनीतिक परिस्थिति वश कभी दो डग आगे तो चार कदम पीछे चलने को अभिशप्त हो गई। इस बात में कोई दो राय नहीं कि किसी भी स्थापित दल को चलाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय लायजनरों की जरूरत पड़ती है लेकिन इनके निहित स्वार्थों के ऊपर यदि ब्लॉक, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जनाधार रखने वाले नेताओं की उपेक्षा की जाएगी तो फिर वोट कहाँ से आएगा, यह सोचने की फुर्सत सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के पास नहीं होगी। अतीत पर नजर डालें तो एक जमाना था जब गांव-गांव में कांग्रेस के मजबूत शुभचिंतक थे, लेकिन पार्टी की अव्यवहारिक रीति-नीति के चलते वह इससे दूर होते चले गए। दो टूक कहें तो भाजपा में या क्षेत्रीय दलों में शिफ्ट हो गए। ऐसे में आज कांग्रेस के पास सिर्फ उन ‘धनपशुओं’ की टोली बची है जिनको दूसरी राजनीतिक पार्टियां कभी तवज्जो नहीं देतीं। इनका काम कांग्रेस की सत्ता और संगठन के बड़े नेताओं के शाही खर्चों का इंतजाम करना भर है और इसलिए इनके समर्थक ब्लॉक, जिला, राज्य व राष्ट्रीय संगठनों पर हावी हैं। चूंकि इनका कोई जनाधार नहीं है और ये जनाधार वाले कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं देते, इसलिए कांग्रेस खत्म होती चली गई। वहीं, जब से क्षेत्रीय कांग्रेस के नेता अस्तित्व रक्षा के लिए बिहार में राजद प्रमुख लालू प्रसाद व तेजस्वी यादव तथा उत्तरप्रदेश में सपा प्रमुख स्व. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव जैसे मजबूत नेताओं के इशारे पर काम करने लगे, तब से पार्टी संगठन की स्थिति और अधिक दयनीय हो गई। आलम यह है कि कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टी, जिसे देश की आजादी का श्रेय प्राप्त है, जब जनजीवन व राष्ट्रीय हितों से इतर प्रमुख जातीय, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय समीकरणों पर खेलने लगी, तो उसकी जोड़-तोड़ से सत्ता तो बदलती रही, परंतु जनाधार छीजता चला गया क्योंकि उसके प्रति निष्ठावान रहे प्रतिभाशाली पेशेवर, कारोबारी, प्रशासक और समाजसेवी आदि उससे दूर होते चले गए। चूंकि पहले क्षेत्रीय दलों और उसके बाद भाजपा ने उन्हें तवज्जो दी, इसलिए वो सब इनके साथ जुड़ गए, जिससे इन्हें अप्रत्याशित मजबूती मिली और कांग्रेस को कमजोरी मुबारक हुई। अब जब कांग्रेस की ट्रू कॉपी भाजपा बनती जा रही है तो भी कांग्रेस के थिंक टैंक को असली मुद्दे समझ में नहीं आ रहे हैं। शायद उसकी इसी मनोवृत्ति पर चोट करते हुए पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि कांग्रेस को पुराने ढर्रे की राजनीति बंद करनी होगी और नए ढर्रे बनाने होंगे अन्यथा सियासी सफलता मुश्किल है। लिहाजा कांग्रेस की इसी कमजोरी को मजबूती में बदलने का आह्वान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने किया है। हाल ही में हरियाणा और महाराष्ट्र में पार्टी और गठबंधन की हुई करारी हार के बाद हुई पहली कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दो टूक कहा कि अब पार्टी में जवाबदेही तय करने का वक्त आ गया है क्योंकि इन दोनों ही राज्यों में महज चंद महीने पहले पार्टी का प्रदर्शन काफी संतोषजनक रहा था लेकिन अब जो नई दुर्गति सामने आई है, वह हमें नए सिरे से सोचने पर मजबूर करती है। बता दें कि 29 नवंबर 2024 शुक्रवार को हुई कांग्रेस के सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई की इस समीक्षा बैठक में खरगे के अलावा तमाम सीनियर नेता, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस की नवनिर्वाचित सांसद प्रियंका गांधी भी मौजूद थी हालांकि बैठक खत्म होने से पहले ही राहुल और प्रियंका निकल गए। इसी मीटिंग में मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी के नेताओं के सामने जहां एक ओर इस निराशाजनक प्रदर्शन के लिए तमाम वजहों को गिनाया, वही उन्होंने ईवीएम का मुद्दा भी उठाया। खरगे का दो टूक कहना है कि पार्टी में अनुशासन की कमी और पुराने ढरें की राजनीति के जरिए जीत नहीं मिल सकती क्योंकि कांग्रेस के भीतर आपसी गुटबाजी एक स्थायी भाव बन चुकी है। उन्होंने इस ओर इशारा करते हुए कहा कि आपसी एकता की कमी और एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी हमें काफी नुकसान पहुंचाती है। जब तक हम एक हो कर चुनाव नहीं लड़ेंगे, आपस में एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी बंद नहीं करेंगे, तब तक अपने विरोधियों को राजनीतिक शिकस्त नहीं दे पाएंगे। इसलिए हमें हर हाल में एकजुट रहना होगा। वहीं, उन्होंने पार्टी में अनुशासन पर जोर देते हुए संकेत दिया कि पार्टी के लोग अपने स्तर पर अनुशासन में बंधें। वैसे तो पार्टी के पास अनुशासन का हथियार है, लेकिन हम नहीं चाहते कि अपने साथियों को किसी बंधन में डाले। वहीं, खरगे ने कांग्रेस की एक और बड़ी कमी की ओर इशारा करते हुए कहा कि पार्टी अपने पक्ष के माहौल को नहीं भुना पाती। उनका कहना था कि चुनावों में माहौल हमारे पक्ष में था लेकिन केवल माहौल पक्ष में होना भर ही जीत की गारंटी नहीं होती। इसलिए अब पार्टी में जवाबदेही तय करने का वक्त आ गया है। क्योंकि पार्टी में अनुशासन की कमी है। पार्टी के भीतर आपसी गुटबाजी एक स्थायी भाव बन चुकी है। सच कहूं तो लोकसभा चुनाव के बाद दो राज्यों में पार्टी की हुई करारी हार के बाद शुक्रवार को सीडब्ल्यूसी मीटिंग में खरगे द्वारा पार्टी की हार की वजहों का जिक्र कोई पहला मौका नहीं था, जब पार्टी ने अपनी कमियों की ओर इंगित किया हो। यह कड़वी सच्चाई है कि कांग्रेस समस्या जानती है, उसका निदान और उपचार भी जानती है, लेकिन इसके लिए जो इच्छा शक्ति की जरूरत होती है, वह पार्टी नेतृत्व में नजर नहीं आती। यही वजह है कि 2014 के आम चुनाव के बाद असेबली चुनावों में पार्टी की हो रही लगातार हार के बाद 2016 में कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव दिग्विजय सिंह ने पार्टी में मेजर सर्जरी की जरूरत बताई थी लेकिन हुआ कुछ नहीं। उल्टे जी-23 में से ज्यादातर को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसलिए अब यह देखना दिलचस्प होगा कि खरगे द्वारा पार्टी की कमियों की ओर किया गया यह इशारा क्या वाकई पार्टी और नेताओं के भीतर कोई बदलाव लाएगा? क्या पार्टी अनुशासन की ब्लेड से मेजर सर्जरी कर पाएगी या फिर यह भी बस एक महज खानापूर्ति बन कर रह जाएगा? क्योंकि खरगे का यह सुझाव सही है कि हमें माहौल को नतीजों में बदलना सीखना होगा। उन्होंने जीत के लिए भरपूर मेहनत के साथ-साथ समयबद्ध तरीके से रणनीति बनाने और संगठन की मजबूती पर जो जोर दिया है, वह भी पते की बात है। उनका सुदीर्घ अनुभव इसमें झलकता है।उन्होंने सटीक आईना दिखाया है कि सिर्फ माहौल पक्ष में होना भर ही जीत की गारंटी नहीं होती। क्योंकि भाजपा इसे अपने पक्ष में करना जानती है। हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक उसने यही किया है। खरगे का कहना भी सही है कि हमें अपने संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत करना होगा। हमें मतदाता सूची बनाने से लेकर वोट की गिनती तक रात-दिन सजग, सचेत और सावधान रहना होगा। हमारी तैयारी शुरू से लेकर मतगणना तक ऐसी होनी चाहिए कि हमारे कार्यकर्ता और सिस्टम मुस्तैदी से काम करें। वहीं उन्होंने राज्यों को भी अपना संगठन मजबूत करने पर जोर देते हुए कहा कि राष्ट्रीय मुद्दों और राष्ट्रीय नेताओं के सहारे राज्यों का चुनाव आप कब तक लड़ेंगे? उन्होंने प्रदेश संगठनों से कहा कि हाल के चुनावी नतीजों का संकेत यह भी है कि हमें राज्यों में अपनी चुनाव की तैयारी कम से कम एक साल पहले शुरू कर देनी चाहिए। उन्होंने यह कहते हुए राजनीतिक दूरदर्शिता दिखाई है कि हमारी टीम समय से पहले मैदान में मौजूद रहनी चाहिए। जो कि अपने प्रतिद्वंद्वी की तैयारियों पर नजर रखने में सक्षम हो। वाकई ऐसा संभव हुआ तो यह कांग्रेस के लिए पुनर्जन्म जैसा होगा। लेकिन सुलगता सवाल फिर वही कि क्या पार्टी के नेताओं के अंदर अब कोई बदलाव आएगा? क्या उनके घिसे-पिटे सियासी एजेंडे और तुष्टिकरण की नीति में आमूलचूल बदलाव आएगा? क्या उनकी क्षुद्र जातीय नीतियां बदलेंगी और राष्ट्रनिर्माण के वास्ते को कोई अग्रगामी और निर्णायक कदम उठा पाएंगे! इंतजार करना श्रेयस्कर रहेगा। Read more » Question: How long will Congress remain lost in the mirage of victory and alliance? जीत और गठबंधन की मृगमरीचिका
राजनीति शिवसेना यूबीटी यदि सूझबूझ दिखाए तो पुनः पलट सकती है सियासी बाजी! December 2, 2024 / December 2, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय/ वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक कभी महाराष्ट्र की सियासी धड़कन समझी जाने वाली ‘शिवसेना’ भाजपा से अपनी गहरी दोस्ती के लिए जानी मानी जाती थी लेकिन मुख्यमंत्री पद के सवाल ने दोनों के बीच जो खटास पैदा की, वो निरन्तर जारी है। इस अवसरवादी प्रवृत्ति ने क्षेत्रीय हिंदूवादी राजनीति को गहरा आघात पहुंचाया है। […] Read more » मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शिवसेना यूबीटी
राजनीति संविधान सबसे पवित्र ग्रंथ नहीं, महज एक कानूनी ग्रंथ है जो भेदभाव से परे नहीं है! November 28, 2024 / November 28, 2024 | Leave a Comment @ कमलेश पाण्डेय भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान दिवस पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि संविधान सबसे पवित्र ग्रंथ है, क्योंकि हमने संविधान के जरिए सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के कई बड़े लक्ष्यों को हासिल किया है। संविधान निर्माताओं की प्रगतिशील और समावेशी सोच की छाप […] Read more » Constitution संविधान संविधान सिर्फ एक कानूनी का ग्रंथ
राजनीति महाराष्ट्र-झारखंड में सियासी सूझबूझ मस्त, अहंकार पस्त November 25, 2024 / November 25, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के साथ-साथ लोकसभा की दो सीटों और विभिन्न दर्जनाधिक राज्यों की 48 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम चौंकाने वाले हैं। ये चुनाव परिणाम इस बात का स्पष्ट इशारा कर रहे हैं कि मतदाताओं ने जहां सियासी सूझबूझ को ग्रेस देते हुए मस्त कर दिया है, वहीं […] Read more » महाराष्ट्र-झारखंड में सियासी सूझबूझ मस्त
राजनीति अमेरिका-अडानी घूसखोरी विवाद: रिश्वत बम नहीं, महज शिष्टाचार की फुलझड़ी समझिए November 22, 2024 / November 22, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय जिस तरह से दुनिया के थानेदार अमेरिका में अदाणी ग्रुप के चेयरमैन उद्योगपति गौतम अदाणी समेत 8 लोगों पर अरबों रुपए की धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं, उसके दृष्टिगत यह सवाल मौजूं है कि जब रिश्वत का आरोप भारत में लगाया गया है तो फिर अमेरिका में जांच कैसे शुरू हो गई? उससे […] Read more » us-adani-bribery-controversy अमेरिका-अडानी घूसखोरी विवाद
राजनीति विश्ववार्ता यदि रूस ने एटमी जंग छेड़ दिया तो अमेरिका व उसके मित्र देशों की तबाही तय है? November 21, 2024 / November 21, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय भारत के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था कि “छीनता हो सत्व कोई, और तू त्याग-तप के काम ले, यह पाप है। पुण्य है विच्छिन्न कर देना उसे, बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ हो।” शायद अपने मित्र देश के त्रिकालदर्शी कवित्व सोच पर ततपरतापूर्वक अमल करते हुए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर […] Read more »
राजनीति सरना धर्म कोड से सुलगती सियासत कहीं स्वाहा न कर दे हिन्दू सोच को, ऐसी क्षुद्र सियासत से सचेत हो जाइए November 12, 2024 / November 12, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय आखिर हिंदुओं की मुख्यधारा से पहले सिख, फिर बौद्ध और जैन को तोड़ने के बाद अब जिस तरह से सरना की आड़ में आदिवासियों को तोड़ने की सियासी साजिश परवान चढ़ाई जा रही है, उससे एक बार फिर कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की हिन्दू विरोधी मंशा उजागर हो जाती है लेकिन उनके […] Read more » सरना धर्म कोड
राजनीति आखिर ‘असभ्य’ लोग ‘हमें’ कैसे पढ़ाएंगे सभ्यता-संस्कृति का वैधानिक पाठ, पूछते हैं लोग November 11, 2024 / November 11, 2024 | Leave a Comment @ कमलेश पांडेय जम्मू-कश्मीर विधानसभा में धारा 370 की वापसी के नाम पर जो कुछ धक्का-मुक्की हुई, वह निंदनीय है। चाहे संसद हो या विधानमंडल या फिर अन्य निर्वाचित निकाय, ऐसे अशोभनीय आचरण को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता! इसका न केवल सार्वजनिक प्रदर्शन बंद होना चाहिए, बल्कि इस विषय पर सभी सदनों में व्यापक […] Read more » धारा 370 की वापसी के नाम पर धक्का-मुक्की
राजनीति विश्ववार्ता अमेरिकी राष्ट्रपति उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के ‘हिंदू कार्ड’ के अंतर्राष्ट्रीय मायने November 5, 2024 / November 5, 2024 | Leave a Comment कमलेश पांडेय पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति व रिपब्लिकन पार्टी के पुनः उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प का यह कहना कि हम अमेरिका को फिर से मज़बूत बनाएंगे और ताकत के ज़रिए शांति वापस लाएंगे, एक ऐसी लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता है जिसकी अपेक्षा हरेक जनतांत्रिक राष्ट्राध्यक्ष से की जाती है लेकिन जब अशान्ति की जड़ में वोट बैंक हो और […] Read more » International significance of US presidential candidate Donald Trump's 'Hindu card' डोनाल्ड ट्रंप के 'हिंदू कार्ड' के अंतर्राष्ट्रीय मायने