प्रो. महेश चंद गुप्ता

प्रो. महेश चंद गुप्ता

लेखक के कुल पोस्ट: 10

लेखक प्रख्यात शिक्षा विद्, चिंतक और वक्ता हैं। वह 44 सालों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं।

लेखक - प्रो. महेश चंद गुप्ता - के पोस्ट :

आर्थिकी राजनीति

जीएसटी 2.0 : आत्मनिर्भर भारत की तरफ एक और कदम

/ | Leave a Comment

प्रो. महेश चंद गुप्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर किए वादे को पूरा करते हुए दिवाली से पहले  सरकार ने जनता को जीएसटी सुधार के रूप में ऐसा तोहफा दिया है, जो न सिर्फ आम जन के  जीवन को सरल बनाएगा बल्कि 2047 तक विकसित भारत के सपने को और मजबूती से धरातल पर उतारेगा। जीएसटी 2.0 केवल टैक्स सुधार नहीं बल्कि भारत की अगली आर्थिक यात्रा का  मानचित्र है। जहां देशवासी खुश हैं, वहीं इस सुधार में गहरा अंतरराष्ट्रीय संदेश भी निहित है। यह सुधार अमेरिका द्वारा लगाए 50 प्रतिशत टैरिफ का उत्तर भारत ने अपनी आर्थिक मजबूती और आत्म निर्भरता के रूप में दिया है।  जीएसटी सुधार से किसान, महिला, युवा, मिडिल क्लास, छोटे व्यापारी और उपभोक्ता सभी  लाभान्वित होंगे। यह कदम केवल टैक्स प्रणाली को सरल बनाने का प्रयास मात्र नहीं है बल्कि  भारत को एक तेज, सशक्त और आत्म निर्भर अर्थव्यवस्था में बदलने की दिशा में एक निर्णायक मोड़ है। यह सुधार जितना घरेलू स्तर पर आम लोगों को राहत देगा, उतना ही अंतरराष्ट्रीय स्तर  पर भारत की सशक्त छवि को भी मजबूत करेगा।  बदलावों की जरूरत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रेखांकित किया है। मोदी ने कहा है कि अगर भारत को वैश्विक परिदृश्य में उचित स्थान दिलाना है तो समय-समय पर बदलाव बेहद जरूरी हैं। यह सुधार देश को सपोर्ट और ग्रोथ की डबल डोज देंगे। गरीब, मध्यम वर्ग, महिलाओं, छात्रों, किसानों और नौजवानों को इसका सीधा फायदा होगा। प्रधानमंत्री ने यह भी दोहराया है कि यह सुधार सिर्फ टैक्स में बदलाव नहीं है, बल्कि आत्म निर्भर भारत के लिए अगली पीढ़ी का सुधार है।                                                           सरकार ने आनन-फानन में यह फैसला नहीं किया है बल्कि उसने इस सुधार में सामाजिक संतुलन का विशेष ध्यान रखा है। तम्बाकू उत्पादों, सिगरेट, शराब, महंगी कारों, विमान आदि पर 40 प्रतिशत टैक्स लगाया गया है पर इसका सीधा असर अमीर वर्ग पर पड़ेगा जबकि गरीब और मध्यम वर्ग को सस्ती आवश्यक  वस्तुएं मिलेंगी। जीएसटी 2.0 का सबसे बड़ा असर यह होगा कि उपभोक्ताओं को सस्ता सामान मिलेगा और घरेलू खपत में इजाफा होगा। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि जब खपत बढ़ेगी तो उत्पादन और व्यापार का दायरा भी बढ़ेगा। कंपनियां अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करने की स्थिति में होंगी जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इस प्रकार जीएसटी सुधार और प्रधानमंत्री  विकसित भारत रोजगार योजना मिलकर अर्थव्यवस्था को गति देंगे। उपभोक्ता को सस्ता  सामान मिलेगा और युवा पीढ़ी को रोजगार के अवसर मिलेंगे। यह संतुलन अल्पकालिक राहत  और दीर्घकालिक विकास दोनों को साथ लेकर चलेगा। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)  स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर सुधार था। इसने 17 केंद्रीय और राज्य करों को हटा कर  ‘एक राष्ट्र एक कर’ लागू कर देश में सामान्य राष्ट्रीय बाजार का निर्माण किया। आठ वर्षों में जीएसटी लगातार विकसित हुआ है और अब डिजिटलीकरण तथा दर युक्तिकरण के जरिये यह  भारतीय कर व्यवस्था की रीढ़ बन चुका है। अर्थव्यवस्था के तेजी से बदलते स्वरूप को देखते हुए  टैक्स प्रणाली को सरल और व्यवहारिक बनाना आवश्यक हो गया था। सरकार ने इसी जरूरत को समझते हुए जीएसटी 2.0 के रूप में एक ऐसा सुधार सामने रखा है जो व्यापक दृष्टिकोण से सोचा-समझा और जन हितैषी है।  जीएसटी 2.0 में सबसे बड़ा परिवर्तन टैक्स स्लैब की संख्या घटाना है। पहले चार प्रमुख दरें थीं यानी 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत। अब इन्हें घटाकर सिर्फ दो कर दिया गया है। जरूरी सामानों पर 5  प्रतिशत और सामान्य वस्तुओं पर 18 प्रतिशत टैक्स लगेगा। इससे उपभोक्ताओं को सीधी राहत मिलेगी। किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विशेष ध्यान में रखते हुए ट्रैक्टर, खेती के औजार, हस्तशिल्प और मार्बल पर टैक्स 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इसका  असर दूरगामी होगा क्योंकि कृषि की लागत कम होगी जिससे ग्रामीण बाजारों में रौनक बढ़ेगी।   सरकार ने कुछ वस्तुओं को टैक्स के दायरे से बाहर ही रखा है। इसका उद्देश्य है कि आम आदमी की जिंदगी से जुड़ी बुनियादी जरूरत वाली चीजें और सस्ती हों और उनका बोझ आम आदमी की जेब पर न बढ़े।  जीएसटी 2.0 का सबसे बड़ा फायदा उपभोक्ताओं को होगा। जब जरूरी सामान सस्ते होंगे तो आम परिवारों की मासिक बचत बढ़ेगी। किसान को कम लागत में उपकरण मिलेंगे तो  उत्पादन बढ़ेगा। छोटे व्यापारी और दुकानदारों को टैक्स की जटिलता से मुक्ति मिलेगी जिससे  उनका कारोबार सहज होगा। जीवन एवं स्वास्थ्य बीमा को टैक्स फ्री करना बड़ा कदम है। कैंसर  सहित 33 जीवन रक्षक दवाइयों पर टैक्स घटाना भी सराहनीय है। महिलाओं को घरेलू जरूरतों की चीजें कम कीमत पर उपलब्ध होंगी। युवाओं के लिए रोजगार के  नए अवसर पैदा होंगे, क्योंकि बढ़ती खपत उद्योगों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगी। इस तरह यह सुधार केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि हर वर्ग के जीवन में सकारात्मक  बदलाव लाएगा। यह सुधार उस समय आया है जब अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत तक का टैरिफ लगा रखा है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इन टैरिफों को अपने राष्ट्रीय हित में सही ठहराया है परंतु भारत ने इसका जवाब किसी राजनीतिक बयानबाजी से नहीं बल्कि ठोस आर्थिक सुधार से दिया है। जीएसटी 2.0 इस बात का प्रतीक है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने की राह पर है। यह कदम वैश्विक समुदाय के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि भारत चुनौतियों से घबराने वाला नहीं बल्कि उन्हें अवसर में बदलने वाला देश है। अमेरिकी टैरिफ से होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई घरेलू खपत को मजबूत बनाकर की जा सकती है। यही रणनीति भारत को आर्थिक रूप से और सुदृढ़ बनाएगी।  भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का सपना देख रहा है। उस दिशा में जीएसटी 2.0 एक अहम कड़ी है। यह सुधार केवल टैक्स दरों का नहीं बल्कि सोच का बदलाव है। यह ऐसी सोच है जो आम आदमी को केंद्र में रखती है और साथ ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए भारत को  तैयार भी करती है। दुनिया की तेजी से बदलती आर्थिक परिस्थितियों में भारत को अपनी नीति  और दृष्टि दोनों को अपडेट रखना होगा। जीएसटी 2.0 इस दिशा में एक ठोस शुरुआत है जिसका  परिणाम आने वाले सालों में भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाए रखने में अहम  भूमिका निभाएगा। जीएसटी सुधारों से सरकार ने साफ कर दिया है कि अब लक्ष्य केवल नीति बनाना नहीं  बल्कि उसे जमीन पर उतारकर परिणाम दिखाना है। यह सुधार किसानों से लेकर शहरी उपभोक्ताओं तक, छोटे दुकानदार से लेकर बड़े उद्योगों तक, हर किसी के लिए मायने रखता है। यह  केवल टैक्स सुधार नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता का नया अध्याय है। हालांकि इन सुधारों से सरकार को 47,700 करोड़ रुपये का सालाना राजस्व नुकसान होगा मगर  बाजारों में बूम आने की संभावना से इसकी भरपाई के प्रति हर कोई आश्वस्त है। माना जा रहा है कि टैक्स दरें संतुलित होने से जहां टैक्स ज्यादा आएगा, वहीं टैक्स चोरी रुकेगी। एसबीआई रिसर्च का अनुमान है कि टैक्स कटौती की वजह से खरीदारी बढ़ेगी और इकॉनमी में 1.98 लाख करोड़ रुपये तक की खपत का इजाफा होगा। देश के प्रमुख उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह सुधार भारत की आर्थिक रफ्तार को और तेज करेगा। इससे भारत की जीडीपी वृद्धि दर 8  प्रतिशत से ऊपर जा सकती है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मांग को बढ़ाने और घरेलू उत्पादन को मजबूत करने के लिए एकदम सही पॉलिसी है। भारत अब दिखाएगा कि डेड इकॉनमी कैसी  दिखती है। ट्रंप ने भारत को डेड इकॉनमी बताया था।  सरकार का भी यही दावा है कि सरल टैक्स  प्रणाली से लोग ज्यादा टैक्स देंगे जिससे राजस्व बढ़ेगा। जब राजस्व बढ़ेगा तो सरकार के पास  विकास परियोजनाओं पर खर्च करने के लिए अधिक संसाधन होंगे। स्वदेशी की मांग बढऩे का भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मोदी ने भी स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया है हालांकि, यह मान लेना जल्दबाजी होगी कि जीएसटी सुधारों की घोषणा मात्र से ही सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी।  असली चुनौती इसके प्रभावी क्रियान्वयन की है। राज्य सरकारों की सहमति, प्रशासनिक तंत्र की  दक्षता और टैक्स चोरी रोकने पर नियंत्रण से ही पता चलेगा कि यह सुधार कितना सफल होता है। अपेक्षित नतीजे आने में कम से कम छह महीने तो लगेंगे ही।

Read more »

राजनीति

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बढ़ता अमेरिकी आतंक और भारत

/ | Leave a Comment

प्रो. महेश चंद गुप्ता दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के कारण अमेरिका लंबे समय से वैश्विक आर्थिक नीतियों पर दबदबा बनाए हुए है। यह  दबदबा अब खुलेआम दादागिरी का रूप ले चुका है, खासकर जब  अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मनमाने टैरिफ लगाकर देशों को आर्थिक रूप से झुकाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत पर 25 फीसदी टैरिफ  लगाने के बाद अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ की घोषणा ने इस दादागिरी को और स्पष्ट कर दिया है, यानी कुल मिलाकर 50 फीसदी का टैरिफ — यह न सिर्फ व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार संतुलन पर भी असर डालेगा। ट्रंप को भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर आपत्ति है जबकि विडंबनायह है कि चीन भी यही कर रहा है और अमेरिका स्वयं रूस से यूरेनियम और खाद खरीद रहा है, यानी सिद्धांत और व्यवहार में अमेरिकी नीति दोहरे मानदंडों से भरी है। सवाल यह है कि भारत क्यों अपने हितों को ताक पर रखकर अमेरिकी दबाव में काम करे? कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत पर टैरिफ बढ़ोतरी के एलान के बाद पहली बार एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रतिक्रिया ने भारत के अडिग रुख को और मजबूती से सामने रखा है। उससे भारत का अडिग रवैया परिलक्षित हो रहा है। मोदी ने साफ कह दिया है कि हमारे लिए, हमारे किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है, चाहे उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े। भारत किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा। यह वक्तव्य बताता है कि भारत अब वैश्विक दबावों के आगे नतमस्तक नहीं होगा।   यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (यूएसटीआर) के आंकड़ों के अनुसार भारत-अमेरिका के बीच वार्षिक व्यापार 11 लाख करोड़ रुपये का है। भारत अमेरिका को 7.35 लाख करोड़ रुपये का निर्यात करता है जिसमें दवाइयाँ, दूरसंचार उपकरण, जेम्स-एंड- ज्वेलरी, पेट्रोलियम, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग उत्पाद और वस्त्र शामिल हैं। वहीं, अमेरिका से भारत 3.46 लाख करोड़ रुपये का आयात करता है जिसमें कच्चा तेल, कोयला, हीरे, विमान व अंतरिक्ष यानों के पुर्जे  शामिल हैं। लेकिन यहां चिंता की बात यह है कि चीन, वियतनाम, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे देशों पर अमेरिका ने इतना भारी शुल्क नहीं लगाया है, जिससे उनके उत्पाद भारतीय उत्पादों की तुलना में अमेरिकी बाजार में सस्ते पड़ेंगे। फिर भी, मोदी सरकार का रवैया दृढ़ है। साठ के दशक में हम गेहूं, दूध के लिए भी अमरीका पर निर्भर थे लेकिन लगता है ट्रंप ने उन दिनों लिखी गई कोई किताब ताजा मानकर पढ़ ली है। उन्हें आज भी पुराना भारत दिख रहा है जिसे वह झुकाने की सोच रहे हैं। उन्हें यह समझ में आ जाना चाहिए कि अब भारत पहले वाला भारत नहीं रहा है। वह आत्मनिर्भर एवं विश्व में तेजी से बढ़ती हुई अर्थ व्यवस्था है। भारत का पूरे विश्व में दबदबा बढ़ रहा है। उद्योग जगत भी इस दबाव को एक अवसर के रूप में देख रहा है। उद्योगपति हर्ष गोयनका का कहना है कि अमेरिका निर्यात पर टैरिफ लगा सकता है लेकिन हमारी संप्रभुता पर नहीं। आनंद महिंद्रा ने तो यह भी कहा कि जैसे 1991 के विदेशी मुद्रा संकट ने उदारीकरण की राह खोली थी, वैसे ही यह टैरिफ संकट भी हमें आत्मनिर्भरता की दिशा में गति दे सकता है। ललित मोदी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए ट्रंप को 2023 की उस रिपोर्ट की याद दिलाई है जो अमेरिका की कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने ही जारी की थी। गौरतलब है कि गोल्डमैन सैक्स ने इस रिपोर्ट में कहा […]

Read more »

कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म

सनातन संस्कृति में छिपा है पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान

/ | Leave a Comment

प्रो. महेश चंद गुप्ता भारतीय सनातन संस्कृति और पर्यावरण के बीच युगों पुराना नाता है। एक सनातन संस्कृति ही है, जिसमें प्रकृति को केवल अस्तित्व का आधार ही नहीं बल्कि पूजनीय माना गया है। आधुनिक विज्ञान में जिस पर्यावरणीय संतुलन की वकालत की जाती है, उस संतुलन को सनानत परंपराओं में सदियों से साधा जा रहा है। सनातन संस्कृति में प्रत्येक प्राकृतिक तत्व को दिव्य माना गया है। हमारे लिए सूर्य, जल, वायु और वनस्पति सबको देवतुल्य हैं। जरूरत के समय पेड़ों को काटने से पहले उनकी अनुमति मांगने और तुलसी पत्र तोड़ते समय विनम्र भाव से क्षमा मांगने की विनम्रता केवल हमारी संस्कृति में ही है। हम सूर्यास्त के बाद फूल-पत्तियां इसलिए नहीं तोड़ते क्योंकि तब तब वे विश्राम की अवस्था में होते हैं। न केवल भारत में बल्कि विदेशों मेंं बसा हिंदू समुदाय भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह कर रहा है। इस बात को अब  विदेशों में भी स्वीकार कर इससे प्रेरणा ली जाने लगी है।  ब्रिटेन के इंस्टीट्यूट फॉर द इम्पैक्ट ऑफ फेथ इन लाइफ (आईआईएफएल) की ओर से हाल में किए गए एक अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है। अध्ययन की रिपोर्ट में उल्लेख है कि पर्यावरण सुरक्षा के मुद्दे पर ब्रिटेन में हिंदू समुदाय बाकी समुदायों की तुलना में सबसे ज्यादा सक्रिय है। अधिकांश हिंदू पर्यावरण के लिए कुछ न कुछ कर रहे हैं। कण-कण में भगवान के होने का विश्वास उनका प्रेरणास्रोत है। 64 फीसदी हिंदू ‘रीवाइल्डिंग’ यानी इको सिस्टम को नई जिंदगी देने में शामिल हैं। 78 फीसदी हिंदू अपनी आदतों मेंं इसलिए बदलाव लाते हैं ताकि पर्यावरण को नुकसान कम हो। 44 प्रतिशत हिंदू  पर्यावरणीय संगठनों से जुड़े हैं। अध्ययन में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समुदायों के पर्यावरण संबंधी नजरिये और गतिविधियों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट से पता चलता है कि ब्रिटेन के 82 फीसदी ईसाई धर्म को पर्यावरण सुरक्षा से जोड़ते हैं पर उनके सुरक्षा संबंधी काम सबसे कम हैं। 31 फीसदी ईसाई जलवायु परिवर्तन को ही नकारते हैं, जो किसी भी धार्मिक समूह में सबसे ज्यादा है। 92 प्रतिशत मुस्लिम व 82 प्रतिशत ईसाई मानते हैं कि उनका धर्म पर्यावरण की देखभा करने की जिम्मेदारी देता है लेकिन उनकी यह सोच व्यवहार में नहीं बदलती। अगर हिंदू पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय हैं तो इसका मुख्य कारण यह है कि हिंदू धर्म में ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना निहित है जो संपूर्ण सृष्टि को एक परिवार के रूप में देखने की शिक्षा देती है। यही भाव हममेें प्रकृति के प्रति एकात्मता का भाव विकसित करता है। आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की चुनौती से जूझ रही है, तब सनातन संस्कृति की यह सोच और व्यवहार मानवता के लिए एक प्रेरणा बन सकता है।  यह अध्ययन पर्यावरण संकट और जलवायु परिवर्तन के खतरों के दृष्टिगत बहुत महत्वपूर्ण है। इस अध्ययन से न सिर्फ सनातन संस्कृति और पर्यावरण के संबंधों का पता चलता है, वहीं यह बात भी साबित होती है कि दशकों पहले कामकाज के सिलसिले में विदेशों में बस गए हिंदू आज भी अपनी संस्कूति को आत्मसात किए हुए हैं। हिंदू सनातन धर्म में पर्यावरण केवल आध्यात्मिकता या पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है बल्कि यह संपूर्ण सृष्टि के प्रति एक गहरी जागरूकता और सम्मान की भावना से ओत-प्रोत है। हमारी संस्कृति में प्रकृति और जीव-जंतुओं को पूजनीय मानते हुए उनके संरक्षण पर जोर दिया गया है। इससे हिंदू धर्म में पर्यावरण संरक्षण केवल नैतिक दायित्व नहीं है बल्कि धार्मिक आस्था और दैनिक जीवन का अभिन्न अंग भी है। हमारे पुरखों को पर्यावरण से कितना प्रेम था, इसका पता उनके द्वारा स्थापित मान्यताओं से चलता है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि संपूर्ण सृष्टि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश पंचतत्वों से बनी है। इन पंचतत्वों को संतुलित रखना जीवन का मूल उद्देश्य है। इसी कारण पर्यावरण की शुद्धता और संतुलन बनाए रखना हिंदू दर्शन का प्रमुख भाग है। सनातन संस्कृति में पग-पग पर पर्यावरण संरक्षण के उपाय किए गए हैं। भूमि पूजन, गोवर्धन पूजा के बहाने पृथ्वी पूजन की परंपरा अनायास थोड़े बन गई है। नदियों को देवी मानकर पूजने के पीछे गंगा, यमुना, नर्मदा, कृष्णा आदि तमाम नदियों की पवित्रता को बनाए रखने की मंशा ही तो है। हवन और यज्ञ में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का उपयोग करने के पीछे पर्यावरण को शुद्ध करने की भावना निहित है। हमारे पुरखों ने योग और प्राणायाम के जरिए शुद्ध वायु का महत्व कितने वैज्ञानिक ढंग से समझाया है। पुरखों ने आकाश को अनंत ऊर्जा का स्रोत माना एवं ध्यान और साधना के माध्यम से इसका संतुलन बनाए रखने का संदेश दिया तो इसके पीछे भी तो प्रकृति के प्रति श्रद्धा भाव ही है। पेड़ों और वनस्पतियों को देवतुल्य मानकर उनकी पूजा के पीछे उनके संरक्षण की भावना ही तो है। हमारे पुरखों ने सदियों पहले जिस तुलसी को मां लक्ष्मी का स्वरूप मानकर हर घर में लगाने की परंपरा शुरू की, उसके औषधीय गुणों को आज वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं। हमारे यहां प्राचीन काल में ही ऋषि-मुनि आश्रमों में वन लगाने को प्राथमिकता दी गई और आज भी मंदिरों और आश्रमों में वृक्षारोपण को पवित्र कार्य के रूप में करके उसका अनुसरण किया जा रहा है। हमारे देश मेंं पर्यावरण संरक्षण हमारी शिक्षा पद्धति का प्राचीन काल से ही भाग रहा है। हमारे ऋषि-मुनि पर्यावरण शुद्ध रखने के लिए हवन-यज्ञ करते थे। इससे  वातावरण को साफ एवं समय पर वर्षा में मदद मिलती थी। आधुनिक काल में भी ऐसे उदाहरण हैं, जब हवन-यज्ञ के बाद वर्षा होते देखी गई है। मौजूदा समय में तो प्राचीन परंपराओं का अनुसरण करने की ज्यादा जरूरत हैं क्योंकि नदियों का जल कम एवं प्रदूषित हो रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और विश्व के कई तटीय शहरों के डूब जाने का अंदेशा है। प्राचीन गुरुकुलों में पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया जाता था तो मौजूदा दौर मेंं भी कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में पर्यावरण संरक्षण पर शोध एवं अध्ययन, अधिकाधिक पेड़ लगाने और पर्यावरण अनुकूलता के लिए स्वच्छ वातावरण को प्राथमिकता दी जा रही है। हमारी मान्यता है कि शुद्ध एवं साफ वातावरण मेंं लक्ष्मी का वास होता है और इससे समृद्धि आती है, हमारे इस विचार को विदेशों में अपनाया गया है। विभिन्न देशों में विश्वविद्यालयों के लंबे-चौड़े, खुले परिसर एवं वहां सघन हरियाली इसका प्रमाण है। सनातन संस्कृति मेंं जैव विविधता को बनाए रखने के लिए जहां गाय को माता का दर्जा दिया गया है, वहीं नाग पंचमी पर सांपों की पूजा कर उनके महत्व को भी स्वीकारा गया है। गंगा दशहरा और कार्तिक स्नान जैसे त्योहारों के माध्यम से जल शुद्धता बनाए रखने का संदेश दिया गया है। अद्र्धकुंभ, कुंभ और महाकुंभ मेंं नदियों की सफाई और उनकी महत्ता पर बल दिया गया है। अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू धर्म कर्म पर आधारित है। इसमें मान्यता है कि इस जीवन में हम जो करते हैं, उसका असर अगले जन्म पर पड़ता है। अच्छे कर्म से बुरे कर्म मिटते हैं और अगला जन्म बेहतर होता है। इसीलिए पर्यावरण के प्रति दायित्व बोध बना हुआ है। हमारे युवा इसमेंं सबसे अग्रणी हैं 18-24 वर्ष के 46 फीसदी धार्मिक युवा ईश्वर को पर्यावरणविद् के रूप में देखते हैं। आज समूची दुनिया जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पारिस्थितिक असंतुलन की समस्याओं से जूझ रही है। इन समस्याओं का समाधान भारतीय सनातन संस्कृति में खोजा जा सकता है। हमारी महान परंपराएं समूची दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बन सकती हैं। हिंदू धर्म में पुराने कपड़ों और सामान का पुन: उपयोग करने की परंपरा रीसाइक्लिंग और अपशिष्ट प्रबंधन का प्राचीन रूप नहीं तो क्या है। हमारे यहां शाकाहार को बढ़ावा इसलिए दिया गया क्योंकि हमारे पूर्वज जानते थे कि शाकाहार को बढ़ावा देने से कार्बन उत्सर्जन कम होता है और पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है। हमारी संस्कृति मेंछठ पूजा में जल और सूर्य का महत्व, संक्रांति में तिल और गुड़ तथा होली में प्राकृतिक रंग जैव विविधता को संरक्षण के परिचायक हैं।  हिंदू सनातन धर्म और पर्यावरण संरक्षण की भावना परस्पर गहराई से जुड़े हुए हैं। यह जुड़ाव केवल धार्मिक नियमों का पालन करने तक सीमित नहीं है बल्कि एक संपूर्ण जीवन शैली है जो प्रकृति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन, सम्मान और संरक्षण को प्राथमिकता देती है। अगर आज पूरी दुनिया इन सिद्धांतों को अपना ले तो न सिर्फ पर्यावरण संकट को कम किया जा सकता है बल्कि जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से भी निपटा जा सकता है। प्रकृति की रक्षा करना केवल हमारा धर्म नहीं बल्कि हमारा नैतिक उत्तरदायित्व भी है। प्रो. महेश चंद गुप्ता

Read more »

राजनीति

मुस्लिम देशों में मंदिर: सनातन संस्कृति का अनंत प्रवाह

/ | Leave a Comment

प्रो. महेश चंद गुप्ता इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में भगवान मुरुगन को समर्पित मंदिर को महाकुंभिषेकम के साथ खोल दिया गया है। इस आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑनलाइन शामिल हुए। इस मौके पर मोदी ने कहा कि ‘वह मुरुगन टेंपल के महाकुंभिषेकम जैसे पुण्य आयोजन का हिस्सा बनकर सौभाग्यशाली महसूस कर रहे हैं।’ जकार्ता के इस मुरुगन मंदिर को श्री सनातन धर्म आलयम के नाम से भी जाना जाता है। भगवान मुरुगन को समर्पित यह इंडोनेशिया का पहला मंदिर है। ये मंदिर 2020 में बनना शुरू हुआ था।  2 फरवरी को भव्य समारोह में इंडोनेशिया सरकार द्वारा दिए गए 4000 वर्ग मीटर भूखंड पर बने इस मंदिर को खोला गया है। इससे पहले सऊदी अरब के आबूधाबी और दुबई में भी भव्य मंदिर बने हैं। ये मंदिर इस बात के प्रतीक हैं कि सनातन संस्कृति को मुस्लिम देशों में भी सम्मान दिया जा रहा है। दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम मुल्क इंडोनेशिया में सनातन संस्कृति के प्रतीक मंदिर के निर्माण पर पाकिस्तान के मुल्ला जहर उगल रहे हैं लेकिन इससे विश्व में सनातन संस्कृति की दिव्यता प्रदर्शित हुई है।दुनिया में जिस प्रकार सनातन का मान-सम्मान बढ़ रहा है, वह हमारी इस प्राचीन संस्कृति की आधुनिक युग में सार्थकता को सिद्ध कर रहा है। सनातन ही सत्य है और सत्य ही सनातन। यह वह अनादि प्रकाश है, जो अनंत तक आलोकित रहेगा। न इसकी कोई शुरुआत थी, न कोई अंत होगा। सनातन  सृष्टि की आत्मा है, परम तत्व की अनुभूति है। सनातन का अर्थ है शाश्वत, जो सदा रहता है। जो पहले था, जो अब है और जो हमेशा रहेगा। सनातन केवल एक धर्म नहीं, यह चेतना की वह धारा है जो जीवन को सार्थकता, प्रेम, सेवा, सहिष्णुता और शांति का सन्देश देती है। यह वह दिव्य धरोहर है, जिसने समस्त मानवता को मोक्ष, ज्ञान, मानव कल्याण और आध्यात्मिक उत्थान की दिशा दिखाई है।यह संस्कृति केवल परंपराओं की वाहक नहीं बल्कि ज्ञान, विज्ञान, दर्शन और आध्यात्मिकता का अथाह भंडार भी है। सनातन की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसकी कोई शुरुआत नहीं और कोई अंत नहीं। यह परम सत्य है, और सत्य ही परमात्मा है। सनातन व्यवस्था केवल धार्मिकता तक सीमित नहीं है बल्कि यह संपूर्ण जीवन दर्शन का आधार है। यही कारण है कि सनातन सर्वव्याप्त, सर्वमय और सर्वज्ञ है।सनातन संस्कृति में जीवन, आनंद और उत्सव का अद्भुत समावेश है। इसके रीति-रिवाज, उत्सव, पर्व और त्योहार राष्ट्रीय एवं मानवीय एकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देते हैं। यह संस्कृति केवल ग्रंथों तक सीमित नहीं है। यह तो धडक़नों में बसती है, जीवन के कण-कण में प्रवाहित होती है। भारत को देव भूमि का दर्जा हासिल है तो यह सनातन संस्कृति की बदौलत ही है।  सनातन संस्कृति ही समूचे संसार को अहिंसा, प्रत्येक जीव के प्रति दया एवं सहानुभूति का मार्ग दिखाती है। केवल सनातन संस्कृति ही ऐसी है, जिसमें प्रकृति के संरक्षण पर जोर दिया गया है। सनातन में धर्म का अर्थ केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है बल्कि यह जीवन की समग्रता का मार्गदर्शन करता है। हमारे त्योहार, पर्व, रीति-रिवाज और अनुष्ठान इसी सनातन प्रवाह के प्रतीक हैं। दीपों की जगमगाहट में दिवाली का उल्लास, रंगों की छटा में होली का अनुराग, मकर संक्रांति मेंं नवसृजन का संदेश, सूर्य की आराधना में छठ की भव्यता और आस्था का महासंगम महाकुंभ, ये सभी सनातन संस्कृति के जीवंत प्रमाण हैं। विवाह संस्कारों में सात जन्मों का बंधन, परिधान में शालीनता और खान-पान में शुद्धता-सात्विकता है। इन सबसे ही तो जीवन में मधुरता, प्रेम और समरसता का सृजन होता है।सनातन विशेषताओं से भरा है। हमारी संस्कृति सतरंगी है, जिसमें अनेक परंपराएं और मूल्य जुड़े हुए हैं। इसमें कला, संगीत, साहित्य और दर्शन का अपूर्व संगम है। भारत केवल भू-भाग नहीं, यह तप, त्याग और समर्पण की भूमि है। यह एक भाव है, एक चेतना है, एक आध्यात्मिक शक्ति है।   सनातन संस्कृति संसार को अहिंसा, दया और सहानुभूति का मार्ग दिखाती है। प्रकृति संरक्षण की भावना सनातन संस्कृति का मूल आधार है। इसमें नदियां केवल जल धाराएं नहीं, बल्कि  मां हैं। पर्वत केवल ऊंचे शिखर नहीं, बल्कि आराध्य हैं और वृक्ष केवल लकड़ी व पत्तों के ढांचे नहीं बल्कि जीवन के आधार हैं। यह वही धरती है, जहां श्रीकृष्ण ने अवतरित होकर गीता का उपदेश दिया। यह वही भूमि है जहां श्रीराम ने मर्यादा का संदेश दिया।  इसी धरा पर आदि शंकराचार्य ने अद्वैत का बोध कराया। इसी धरती पर सम्राट अशोक ने अहिंसा को अपनाया और यहीं पर छत्रपति शिवाजी व महाराणा प्रताप ने राष्ट्र गौरव की अलख जगाई।सनातन संस्कृति को आत्मसात किए भारत की धरती अर्पण, तर्पण और समर्पण की धरा है। जैसे एक गुलदस्ते में विविध पुष्प एक साथ गुंथे होते हैं, वैसे ही सनातन संस्कृति में वेद, उपनिषद, पुराण, धार्मिक परंपराएं और नैतिक मूल्य आपस में गुंथे हुए हैं। यहां धर्म एक विस्तृत जीवन शैली है। यह जीवन को केवल जन्म से मृत्यु तक की यात्रा नहीं मानता, बल्कि कर्म और फल की अविरल धारा से जोड़ता है। जैसे कर्म होंगे, वैसा ही फल मिलेगा, यह विचार केवल सनातन में ही देखने को मिलता है।सनातन संस्कृति से ओत-प्रोत वेद, पुराण, उपनिषद केवल ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाले प्रकाश स्तंभ हैं। इस संस्कृति ने भारत को एक सूत्र में बांधा और विश्व को भारतीय दर्शन से जोड़ा है। सनातन केवल इतिहास नहीं, यह भविष्य की दिशा भी है। यह केवल ग्रंथों की भाषा नहीं, यह आत्मा की वाणी है। हमारे ग्रंथ केवल ज्ञान के स्रोत नहीं, वे जीवन के पथ प्रदर्शक हैं। यह वही संस्कृति है, जिसने विश्व को योग, ध्यान, आयुर्वेद और जीवन विज्ञान की अद्भुत धरोहर दी है। इस संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि समय का कोई आघात इसे डिगा नहीं सकता है। पिछले तीन-चार दशकों में बीच में एक समय था, जब सनातन संस्कृति से दूरियां बढऩे की बात कही जाने लगी थी लेकिन बीता एक दशक इस मामले में बदलाव का साक्षी बना है। जब से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से भारत की सनातन संस्कृति का यशोगान हो रहा है। इससे समूचे विश्व में भारतीय सनातन संस्कृति जानने, समझने और आत्मसात करने की ललक पैदा हुई है। इस दौरान सनातन संस्कृति को पुन: जीवंत करने का कार्य हुआ है। मोदी सरकार में भारत की संस्कृति और परंपराओं के प्रचार-प्रसार के लिए व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे विश्व भर में सनातन संस्कृति को जानने और अपनाने की ललक बढ़ी है। हमारे युवा सनातन संस्कृति को आत्सात कर रहे हैं, जिससे उनका चरित्र निर्माण हो रहा है। हमारे युवाओं को अहसास हुआ है कि सनातन संस्कृति केवल एक परंपरा नहीं, यह जीवन जीने की कला है। यह हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने कर्तव्यों का पालन करें, समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखें और मानवता की सेवा करें। यह दर्शन, विज्ञान, साहित्य और कला से परिपूर्ण एक अनमोल धरोहर है। यदि कोई जीवन को गहराई से समझना और जीना चाहता है, तो उसे सनातन संस्कृति के सागर में गोता लगाना होगा। यह वह संस्कृति है जिसने न केवल भारत को, बल्कि पूरे संसार को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण दिया है। सनातन संस्कृति केवल अतीत की धरोहर नहीं, यह वर्तमान का आधार और भविष्य का मार्गदर्शन भी है। हमारा अतीत इस पर टिका था, हमारा वर्तमान इसका दर्पण है और हमारा भविष्य भी इसी की नींव पर खड़ा होगा। यही सनातन है, यही सत्य है और यही सनातन संस्कृति का अनंत प्रवाह है। (लेखक प्रख्यात शिक्षा विद्, चिंतक और वक्ता हैं। वह 44 सालों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं।) प्रो. महेश चंद गुप्ता

Read more »