कविता कुछ बात है यार की हस्ती में … January 31, 2014 / January 31, 2014 | 1 Comment on कुछ बात है यार की हस्ती में … -मनीष मंजुल- इस छप्पन इंच के सीने में, कोई ऐसी लाट दहकती है, कुछ बात है यार की हस्ती में, यूं जनता जान छिड़कती है! कभी गौरी ने कभी गोरों ने, फिर लूटा घर के चोरों ने छोड़ों बुज़दिल गद्दारों को, ले आओ राणों, सरदारों को मुझे सम्हाल धरती के लाल, ये भारत मां सिसकती है, कुछ बात […] Read more » poem कुछ बात है यार की हस्ती में ...
चिंतन कुछ तथ्य…… April 14, 2013 / April 14, 2013 | Leave a Comment मनीष मंजुल कुछ फिल्मों में औरतों को वेश्यावृति करते हुए दिखाया जाता है, औरतों ने तो कभी इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई। किसी फिल्म में वैश्य वर्ग के लोगों को सूदखोर, लालची और बेईमान दिखाया जाता है, वैश्य और बनियाओं ने तो कभी इसका विरोध नहीं किया। पंडितों को पाखंडी और धूर्त दिखाया जाता है, […] Read more »