कुछ बात है यार की हस्ती में …

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-मनीष मंजुल-poetry

इस छप्पन इंच के सीने में, कोई ऐसी लाट दहकती है,
कुछ बात है यार की हस्ती में, यूं जनता जान छिड़कती है!
कभी गौरी ने कभी गोरों ने,
फिर लूटा घर के चोरों ने
छोड़ों बुज़दिल गद्दारों को,
ले आओ राणों, सरदारों को
मुझे सम्हाल धरती के लाल,
ये भारत मां सिसकती है,
कुछ बात है यार की हस्ती में ,
यूं जनता जान छिड़कती है!

जो घर के चोर से मिलें गले
दुश्मन के मन की बात कहें
उन कसमों वादों नारों की
क्यों माने हम मक्कारों की
तेरा झाड़ू जिसके हाथ में है
वोह नागिन फिर किसी घात में है
बड़े घात सहे, इस बार नहीं
इस बार ये बात खटकती है
कुछ बात है यार की हस्ती में ,
यूं जनता जान छिड़कती है!

खबरी तेरे ख़बरें तेरी
कर जितनी भी हेरा फेरी
पश्चिम ले आ, पाकी ले आ
कोई और जो हो बाकी ले आ
जिन सब ने चांद पे थूका है
उन सब की हालत पूछ के आ
जब सिंह गजे सियार डरें
मुह सूखे गाल पिचकती है
इस छप्पन इंच के सीने में, कोई ऐसी लाट दहकती है,
कुछ बात है यार की हस्ती में , यूं जनता जान छिड़कती है!!

1 COMMENT

  1. इस छप्पन इंच के सीने में, कोई ऐसी लाट दहकती है,
    कुछ बात है यार की हस्ती में , यूं जनता जान छिड़कती है!!

    वाह वाह बहुत खूब……………बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति

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