कविता मैं कोई किताब नहीं May 6, 2013 / May 6, 2013 | 1 Comment on मैं कोई किताब नहीं मंजुल भटनागर मैं कोई किताब नहीं , एक कविता भी नहीं , एक शब्द भी नहीं , मेरा कोई अक्स नहीं , कोई रूप नहीं , सिर्फ भाव् है , विचारों का एक पुलिंदा है ——- विचार और भाव जब फैलते हैं दिगंत में प्रकृति के हर बोसे में , मेरा अक्स फैल जाता है […] Read more » मैं कोई किताब नहीं
कविता मजदूर May 4, 2013 / May 4, 2013 | 1 Comment on मजदूर मंजुल भटनागर मजदूर कहाँ ढूंढ़ता हैं छत अपने लिए वो तो बनाता है मकान धूप में तप्त हो कर उसकी शिराओ में बहता है हिन्दुस्तान —- मजदूर न होता तो क्या कभी बनता मुमताज़ के लिए ताज महल सी शान और चीन की दिवार आश्चर्य, कहाती सीना तान —— मजदूर ने खडे किये गुम्बद मह्ल […] Read more » poem by manjul bhatnagar