पुस्तक समीक्षा आत्ममंथन से व्यंग्यमंथन तक May 27, 2017 | Leave a Comment समीक्षक : एम. एम. चन्द्रा वरिष्ठ व्यंग्यकार हरीश नवल की पुस्तक “कुछ व्यंग्य की कुछ व्यंग्यकारों की ” जब मेरे हाथों में उन्होंने सौंपी, तो कुछ समय के लिए तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ. बस दो पल का आत्मीय मिलन सदियों पुराना बन गया. यह पुस्तक आत्म मंथन से व्यंग्य मंथन तक का सफ़र […] Read more » आत्ममंथन से व्यंग्यमंथन तक कुछ व्यंग्य की कुछ व्यंग्यकारों की
व्यंग्य साहित्य सोशल मीडिया इंश्योरेंस : लिखने की आजादी October 22, 2016 | Leave a Comment सोशल मीडिया पर बोलने से पहले न सोचने की जरूरत है न पढ़ने की. जब किसी के लिखे को पढ़ने की जरूरत ही नहीं तो सोचने की जरूरत किसे है. आज किसके पास इतना टाइम रखा है जो पहले सो बार सोचे. जितना समय सोचने में लगायेगे, उतने समय में तो सोशल मीडिया पर लिख देंगे. आज टाइम की कीमत, लिखने की कीमत है, सोचने की नहीं. सोचने का काम दूसरे लोग करे. समझदार व्यक्ति वही होता है जो लिख दे, रही बात लेने- देने की तो वह सोशल मीडिया इंश्योरेंस कंपनी कर ही देंगी. Read more » लिखने की आजादी सोशल मीडिया इंश्योरेंस
व्यंग्य साहित्य विश्व शांतिदूत कबूतर की रिहाई September 21, 2016 | Leave a Comment एम एम चन्द्रा कबूतर-1 हर साल होने शांति दिवस को लेकर शांति दूत कबूतरों की समस्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है कोई भी हमारी सुनने वाला नहीं है. सबके सब कबूतरबाजी में लगे है और पतंगबाजी में यकीन करने लगे .जब यह दुनिया शांतिदूत कबूतरों की नहीं हो सकती तो हमें शांतिदूत होने […] Read more » कबूतर की रिहाई विश्व शांतिदूत
व्यंग्य साहित्य पूंजी-राजनीति एकता जिंदाबाद September 17, 2016 | Leave a Comment एम. एम. चन्द्रा पूरी दुनिया के बड़े व्यापारी, पूंजीपति और वित्तीय संस्थान जी -5, जी 8, जी-20 और शक्तिशाली देशों की मीटिंग चल रही थी. विकासशील देश बाहर धरना दे रहे थे. हमें भी इन संस्थाओं में शामिल किया जाये. इन संस्थाओं ने मिलजुलकर यह तय किया कि जब तक बाहर खड़े देशों को यह […] Read more » एकता पूंजी पूंजी-राजनीति एकता राजनीति
व्यंग्य हिंदी दिवस या हिन्दी विमर्श September 15, 2016 | Leave a Comment एम् एम्. चन्द्रा हिंदी दिवस पर बहस चल रही थी. एक वर्तमान समय के विख्यात लेखक और दूसरे हिंदी के अविख्यात लेखक. हम हिंदी दिवस क्यों मानते है? कोई दिवस या तो किसी के मरने पर मनाया जाता है या किसी उत्सव पर, तो ये हिंदी दिवस किस उपलक्ष में मनाया जा रहा है. अविख्यात […] Read more » हिंदी दिवस हिन्दी विमर्श
विविधा इतिहास का महासागर : हरदयाल म्युनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी September 6, 2016 | Leave a Comment “इतिहास हमारी आंखें खोलता है, मानवीय गतिविधियां कई तरह से कई स्तरों पर चलती रहती है इतिहास उनके अनेक अर्थ खोलता है और उनमें रुझान और प्रवृत्तियां ढूंढ़ता हैं. वह तमाम घटनाओं को तरकीब से इकट्ठा करता है,उन्हें आपस में जोड़ता है और उनकी व्याख्या करता है.” इस वर्ष हरदयाल म्युनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी के 150 […] Read more » Featured इतिहास का महासागर हरदयाल म्युनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी
व्यंग्य साहित्य इतने लोग हड़ताल नहीं इन्कलाब करते है September 5, 2016 | Leave a Comment एम. एम.चन्द्रा भाई! गाड़ी की सर्विस करानी है सर! अभी तो 9 भी नहीं बजे और पुलिस को देखकर आपको क्या लगता है? क्या आज कोई काम हो पायेगा ? सर यदि आप अपनी गाड़ी को बचाना चाहते हो तो आज यहाँ से गाड़ी ले जाओ और किसी ओर दिन सर्विस करा लेना. भाई! ये पुलिस वाले हड़ताल […] Read more » इन्कलाब
शख्सियत समाज परसाई का मूल्यांकन क्यों नहीं? August 22, 2016 | 3 Comments on परसाई का मूल्यांकन क्यों नहीं? एम् एम् चन्द्रा ‘जब बदलाव करना सम्भव था मैं आया नहीं: जब यह जरूरी था कि मैं, एक मामूली सा शख़्स, मदद करूँ, तो मैं हाशिये पर रहा।’ भारतीय इतिहास में हरिशंकर परसाई ही एक मात्र ऐसे लेखक रहे है, जो अपने रचना काल और उसके बाद आज भी व्यंग्य के सिरमौर बने हुए है. […] Read more » Harishankar Parsai हरिशंकर परसाई
विविधा शख्सियत हरिशंकर परसाई : उत्पीड़ित शोषित अवाम की आवाज August 11, 2016 | Leave a Comment एम.एम. चन्द्रा हिंदी साहित्य में गंभीर और प्रतिबद्ध व्यंग्य लेखन कबीर, भारतेन्दु, बालमुकुन्द गुप्त की एक लम्बी परम्परा रही है. परसाई के समय में गंभीर साहित्यिक व्यंग्य रचना नहीं हो रही थी, साहित्य की इस धारा को साहित्यिक समाज में शूद्र यानि पिछड़ी व हल्की रचना समझा जाने लगा था . परसाई ने अपने समकालीन […] Read more » Featured हरिशंकर परसाई
व्यंग्य साहित्य बिना जूते ओलम्पिक पदक July 30, 2016 / July 30, 2016 | 1 Comment on बिना जूते ओलम्पिक पदक एक फिल्मी गाना शादी-विवाह में आज तक चलाया जाता है “जूते दे दो पैसे ले लो” लगता था यह जूते वाला खेल बस घर तक ही सीमित है, लेकिन जब एक फिल्म आयी “भाग मिल्खा भाग” तो यह जूता घर से बहार निकल कर खेल के मैदान तक पहुँच गया. उसे देख कर लगता था […] Read more » बिना जूते ओलम्पिक पदक