कविता साहित्य कौन मिलेगा खाक में,और कौन आबाद। March 27, 2019 / March 27, 2019 | Leave a Comment कौन मिलेगा खाक में,और कौन आबाद। होगा इसका फैसला,थोड़े दिन के बाद।। किससे जनता खुश हुई,किससे है नाशाद। होगा इसका फैसला,थोड़े दिन के बाद॥ चमचों की चाँदी हुई,मिलती झूठी दाद। वोटर जाएगा ठगा,थोड़े दिन के बाद।। मुर्दे उखड़ेंगे गड़े,और जिन्न आजाद। होंगी बहस मसान पर,थोड़े दिन के बाद।। गीदड़ बनते शेर जब,शेर छोड़ते मांद। आने […] Read more » कौन मिलेगा खाक में
कविता जनता के नाम August 15, 2010 / December 22, 2011 | 4 Comments on जनता के नाम -पीयूष पंत मना लो तुम आज़ादी, फ़हरा लो तिरंगा कौन जाने कल, अब क्या होगा, जिस तरह हमारी अभिव्यक्ति पर पहरा लगाया जा रहा है, देश की गरिमा और अस्मिता को विश्व बैंक के हाथों नीलाम किया जा रहा है, ‘विकास’ के नाम पर ग़रीबों, मज़दूरों और किसानों का आशियाना उजाड़ा जा रहा है, और […] Read more » Independence Day स्वतंत्रता दिवस
राजनीति हमारा प्रतिरोध, देशद्रोह, तुम्हारी हिंसा, विकास July 29, 2010 / December 23, 2011 | Leave a Comment -पीयूष पंत लगता है ‘राजकीय हिंसा हिंसा न भवति’ की घुट्टी पिलाने पर आमादा केंद्र की यूपीए और छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकारें विकास से जुड़े असली सवालों का समाधान हिंसा के बूते निकालने में ही विश्वास रखती हैं। ऐसा न होता तो सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश की मध्यस्थता में सरकार से बातचीत का प्रस्ताव […] Read more » Maoist नक्सलवाद माओवाद
विविधा देश की सुरक्षा का सवाल June 12, 2010 / December 23, 2011 | Leave a Comment – पीयूष पंत अमूमन किसी भी देश के लिए उसकी सुरक्षा सर्वोपरि होती है। देश सुरक्षित रहेगा तो देशवासी भी सुरक्षित रहेंगे, उनकी पहचान सुरक्षित रहेगी और उनकी रोजी-रोटी सुरक्षित रहेगी। लेकिन देश की संप्रभुता को अगर आर्थिक साम्राज्यवाद के हाथों गिरवी रख दिया जाए, अगर देश की सुरक्षा के नाम पर अभिव्यक्ति की आज़ादी […] Read more » National Security राष्ट्रीय सुरक्षा
राजनीति सुनो जनता कुछ कहती है! May 5, 2010 / December 23, 2011 | Leave a Comment – पीयूष पंत दंतेवाड़ा, लालगढ़, सिंगूर या फिर नियामगिरी- ये हैं कुछ ऐसे नाम जहां जनता अपनी आजीविका के प्रकृति प्रदत्त संसाधनों को देशी-विदेशी कंपनियों की गिद्ध-दृष्टि से बचाए रखने के लिए आर-पार की लउ़ाई लउ़ रही है। एक तरफ आंदोलनरत स्थानीय जनता है, तो दूसरी तरफ है उन्हें उनकी ही ज़मीन, उनके ही जंगलों […] Read more » Maoist नक्सलवाद माओवाद
राजनीति माओवादी अधिनायकों का विदा होना May 4, 2010 / December 23, 2011 | 1 Comment on माओवादी अधिनायकों का विदा होना – पीयूष पंत मुझे अच्छी तरह याद है साठ के दशक के अंतिम चरण में बंगाल के नक्सलबाड़ी से उठी क्रांति के बिगुल की गूंज 80 के दशक तक सुनाई देती रही। ग़रीब व शोषित किसानों के इस क्रांतिकारी आंदोलन ने अचानक चारू मजूमदार, कानू सान्याल, जंगल संथाल और नागभूषण पटनायक जैसे चमत्कारी जन नेताओं […] Read more » Maoist नक्सलवाद माओवाद
आर्थिकी देशी विदेशी कंपनियों के इशारों पर सरकार ! February 1, 2010 / December 25, 2011 सरकारी फैसलों को अपने हित में प्रभावित करने के लिए कॉरपोरेटी दबाव बनाने की बात कोई नई नहीं है। पूरी दुनिया में लंबे समय से चलता आ रहा है। इसके लिए कंपनियों और उद्योगपतियों द्वारा संपर्क साधने उपहार देने जैसे तरीके अपनाए जाते रहे हैं। लेकिन आज स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि अब […] Read more » Country आर्थिक