आर्थिकी राजनीति भारत सहित विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक बढ़ा रहे है अपने स्वर्ण भंडार June 15, 2024 / June 15, 2024 | Leave a Comment हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी बैंकों में रखे भारत के 100 टन सोने को ब्रिटेन से वापिस भारत में ले आया गया है। यह सोना भारत ने ब्रिटेन के बैंक में रिजर्व के तौर पर रखा था और इस पर भारत प्रतिवर्ष कुछ फीस भी ब्रिटेन के बैंक को अदा करता रहा है। समस्त देशों के केंद्रीय बैंक अपने यहां सोने के भंडार रखते हैं ताकि इस भंडार के विरुद्ध उस देश में मुद्रा जारी की जा सके (भारत में 308 टन सोने के विरुद्ध रुपए के रूप में मुद्रा जारी की गई है, यह सोने के भंडार भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा हैं) और यदि उस देश की अर्थव्यवस्था में कभी परेशानी खड़ी हो एवं उस देश की मुद्रा का तेजी से अवमूल्यन होने लगे तो इस प्रकार की परेशानियों से बचने के लिए उस देश को अपने स्वर्ण भंडार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचना पड़ सकता है। इस कारण से विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अपने पास स्वर्ण के भंडार रखते हैं। पूरे विश्व में उपलब्ध स्वर्ण भंडार का 17 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के पास जमा है। भारतीय रिजर्व बैंक के पास भी 822 टन के स्वर्ण भंडार हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इसका 50 प्रतिशत से अधिक भाग, अर्थात लगभग 413.8 टन, भारत के बाहर अन्य केंद्रीय बैंकों विशेष रूप से बैंक आफ इंग्लैंड एवं बैंक आफ इंटर्नैशनल सेटल्मेंट के पास रखा गया है। उक्त वर्णित 308 टन के अतिरिक्त 100.3 टन स्वर्ण भंडार भी भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा है। वर्ष 1947 में भारत के राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ही भारत ने अपने स्वर्ण के भंडार बैंक आफ इंग्लैड में रखे हुए हैं। इसके बाद 1990 के दशक में भी भारत ने अपनी आर्थिक परेशानियों के बीच अपने स्वर्ण भंडार को बैक आफ इंग्लैंड में गिरवी रखकर अमेरिकी डॉलर उधार लिए थे। विभिन्न देशों द्वारा लंदन में स्वर्ण भंडार इसलिए रखे जाते हैं क्योंकि लंदन पूरे विश्व का सबसे बड़ा स्वर्ण बाजार है और यहां स्वर्ण को सुरक्षित रखा जा सकता है। यहां के बैकों द्वारा विभिन्न देशों को स्वर्ण भंडार के विरुद्ध अमेरिकी डॉलर एवं ब्रिटिश पाउंड में आसानी से ऋण प्रदान किया जाता है बल्कि यहां पर स्वर्ण भंडार को आसानी से बेचा भी जा सकता है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण के कई खरीदार यहां आसानी से उपलब्ध रहते हैं। कुल मिलाकर इंग्लैंड स्वर्ण का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ा बाजार हैं। लंदन के बाद न्यूयॉर्क को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण का एक बड़ा बाजार माना जाता है। भारत को इस स्वर्ण भंडार को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिवर्ष फी के रूप में कुछ राशि बैंक आफ इंग्लैंड को अदा करनी होती थी अतः अब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 100 टन स्वर्ण भंडार को भारत लाने के बाद इस फी की राशि को अदा करने से भी भारत बच जाएगा। दूसरे अपने यहां स्वर्ण भंडार रखने से भारत के पास सदैव तरलता बनी रहेगी। जब चाहे भारत इस स्वर्ण भंडार का इस्तेमाल स्थानीय अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने हित के लिए कर सकता है। वर्ष 2009 में भारत ने 200 टन का स्वर्ण भंडार अंतरराष्ट्रीय बाजार में 670 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि अदा कर खरीदा था। 15 वर्ष वर्ष बाद पुनः भारत ने अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करने का निश्चय किया है। स्वर्ण भंडार सहित आज भारत के विदेशी मुद्रा भंडार 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गए हैं और यह भारत के लगभग एक वर्ष के आयात के बराबर की राशि है। अतः अब भारत को अपने स्वर्ण भंडार बेचने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी इसलिए भी भारत ने ब्रिटेन में स्टोर किए गए अपने स्वर्ण भंडार को भारत में वापिस लाने का निर्णय किया है। विश्व में आज विभिन्न देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के उद्देश्य से अपने पास स्वर्ण के भंडार भी बढ़ाते जा रहे हैं। आज पूरे विश्व में अमेरिका के पास सबसे अधिक 8133 मेट्रिक टन स्वर्ण के भंडार है, इस संदर्भ में जर्मनी, 3352 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ दूसरे स्थान पर एवं इटली 2451 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ तीसरे स्थान पर है। फ्रान्स (2437 मेट्रिक टन), रूस (2329 मेट्रिक टन), चीन (2245 मेट्रिक टन), स्विजरलैंड (1040 मेट्रिक टन) एवं जापान (846 मेट्रिक टन) के बाद भारत, 812 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ विश्व में 9वें स्थान पर है। भारत ने हाल ही के समय में अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करना प्रारम्भ किया है एवं यूनाइटेड अरब अमीरात से 200 मेट्रिक टन स्वर्ण भारतीय रुपए में खरीदा था। हाल ही के समय में चीन का केंद्रीय बैंक भारी मात्रा में अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वर्ण की खरीद कर रहा है। कुछ अन्य देशों के केंद्रीय बैंक भी अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करने में लगे हैं। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वर्ण के दामों में बहुत अधिक वृद्धि देखने में आई है और यह 2400 अमेरिकी डॉलर प्रति आउंस तक पहुंच गई है। कई देश संभवत: अपने विदेशी मुद्रा के भंडार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में स्वर्ण भंडार को अधिक महत्व दे रहे हैं, क्योंकि अमेरिकी डॉलर पर अधिक निर्भरता से कई देशों को आर्थिक नुक्सान झेलना पड़ रहा है। यदि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूत हो रहा हो तो उस देश की मुद्रा का अवमूल्यन होने लगता है। इससे उस देश में वस्तुओं का आयात महंगा होने लगता है और उस देश में मुद्रा स्फीति के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। इन विपरीत परिस्थितियों में घिरे देश के लिए स्वर्ण भंडार बचाव का काम करते हैं। इसलिए आज लगभग प्रत्येक देश के केंद्रीय बैंक अपने स्वर्ण भंडार को बढ़ाने के बारे में विचार करते हुए नजर आ रहे हैं। प्रहलाद सबनानी Read more » Central banks of various countries including India are increasing their gold reserves.
आर्थिकी राजनीति अधिक ऋण के बोझ तले वैश्विक अर्थव्यवस्था कहीं चरमरा तो नहीं जाएगी June 14, 2024 / June 14, 2024 | Leave a Comment विश्व के समस्त नागरिकों एवं विभिन्न संस्थानों पर लगभग 320 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण है। कुल ऋण की उक्त राशि में विभिन्न देशों की सरकारों के ऋण एवं नागरिकों के व्यक्तिगत ऋण भी शामिल है। कई देशों को मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण पाने में बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही, विकास करने का दबाव विभिन्न देशों की सरकारों पर है अतः सरकारों के साथ साथ व्यक्ति भी बहुत अधिक मात्रा में ऋण ले रहे हैं। परंतु, कितना ऋण प्रत्येक व्यक्ति अथवा सरकार पर होना चाहिए, इस विषय पर भी अब गम्भीरता से विचार किए जाने की आवश्यकता है। आज विश्व की कुल जनसंख्या 810 करोड़ है और विश्व पर कुल ऋण की राशि 320 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है इस प्रकार औसत रूप से विश्व के प्रत्येक नागरिक पर 39,000 अमेरिकी डॉलर का ऋण बक़ाया है। 320 लाख करोड़ रुपए के ऋण की राशि में विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा लिया गया ऋण, व्यापार एवं उद्योग द्वारा लिया गया ऋण एवं व्यक्तियों द्वारा लिया गया ऋण शामिल है। पूरे विश्व में परिवारों/व्यक्तियों द्वारा 59 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है। व्यापार एवं उद्योग द्वारा 164 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है। साथ ही, सरकारों द्वारा 97 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ऋण लिया गया है, ऋण की इस राशि में एक तिहाई हिस्सा विकासशील देशों की सरकारों द्वारा लिया गया ऋण भी शामिल है। सरकारों द्वारा लिए गए ऋण की राशि पर प्रतिवर्ष 84,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ब्याज का भुगतान किया जाता है। विश्व में प्रत्येक 3 देशों में से 1 देश द्वारा कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च की गई राशि से अधिक राशि ऋण पर ब्याज के रूप में खर्च की जाती है। आकार में छोटी अर्थव्यवस्थाओं के लिए अधिक ऋण लेना सदैव ही बहुत जोखिमभरा निर्णय रहता आया है। पूरे विश्व में सकल घरेलू उत्पाद का आकार 109 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है जबकि ऋणराशि का आकार 320 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। इस प्रकार, एक तरह से आय की तुलना में खर्च की जा रही राशि बहुत अधिक है। इसे संतुलित किया जाना अब अति आवश्यक हो गया है अन्यथा कुछ ही समय में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। पूरे विश्व में लिए गए भारी भरकम राशि के ऋण के चलते अमीर वर्ग अधिक अमीर होता चला जा रहा है एवं गरीब वर्ग और अधिक गरीब होता चला जा रहा है, क्योंकि अमीर वर्ग ऋण का उपयोग अपने लाभ का लिए कर पा रहा है एवं इस ऋण राशि से अपनी सम्पत्ति में वृद्धि करने में सफल हो रहा है। जबकि, गरीब वर्ग इस ऋण की राशि का उपयोग अपनी देनंदिनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु करता है और ऋण के जाल में फंसता चला जाता है। इसके साथ ही, हालांकि विश्व में दो विश्व युद्ध हो चुके हैं, वर्तमान में भी रूस यूक्रेन युद्ध एवं इजराईल हमास युद्ध चल ही रहा है। परंतु, फिर भी इस सबका असर अमीर वर्ग पर नहीं के बराबर हो रहा है। हां, गरीब वर्ग जरूर और अधिक गरीब होता जा रहा हैं क्योंकि विश्व के कई देशों में, ब्याज दरों में लगातार की जा रही बढ़ौतरी के बाद भी, मुद्रा स्फीति नियंत्रण में नहीं आ पा रही है। मुद्रा स्फीति का सबसे अधिक बुरा प्रभाव गरीब वर्ग पर ही पड़ता है। अमीर वर्ग (जिनकी सम्पत्ति 2 करोड़ 28 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक है), इनकी संख्या वर्ष 2023 में 5.1 प्रतिशत से बढ़ गई है और इनकी कुल सम्पत्ति 86.8 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गई है और यह भी 5 प्रतिशत की दर से बढ़ गई है। वर्ष 2020 के बाद से विश्व के 5 सबसे अधिक अमीर व्यक्तियों की संपत्ति दुगुनी हो गई है। साथ ही, वर्ष 2020 के बाद से विश्व के बिलिनायर की सम्पत्ति 3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़ गई है। इन कारणों के चलते अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। जिस रफ्तार से विश्व में गरीबी कम हो रही है, इससे ध्यान में आता है कि इस धरा से गरीबी को हटाने में अभी 229 वर्ष का समय लगेगा। जैसे जैसे विश्व में विकास की दर तेज हो रही है अमीर व्यक्ति अधिक अमीर होते जा रहे हैं एवं गरीब व्यक्ति अधिक गरीब होते जा रहे हैं। आज से पहिले विश्व में कभी भी इतने अधिक अमीर नागरिक नहीं रहे हैं। वैश्विक स्तर पर उक्त वर्णित ऋण सम्बंधी भयावह आंकड़ों के बीच अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत की स्थिति नियंत्रण में नजर आती है। वैसे भी, ऋण का उपयोग यदि उत्पादक कार्यों के लिए किया जाता है एवं इससे यदि धन अर्जित किया जाता है तो बैकों से ऋण लेना कोई बुरी बात नहीं है। बल्कि, इससे तो व्यापार को विस्तार देने में आसानी होती है और पूंजी की कमी महसूस नहीं होती है। साथ ही, भारतीय नागरिक तो वैसे भी सनातन संस्कृति के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए अपने ऋण की किश्तों का भुगतान समय पर करते नजर आते हैं इससे भारतीय बैकों की अनुत्पादक आस्तियों में कमी दृष्टिगोचर हो रही है। भारत के बैकों की ऋण राशि में हो रही अतुलनीय वृद्धि के बावजूद, भारत में ऋण:सकल घरेलू उत्पाद अनुपात अन्य विकसित देशों की तुलना में अभी भी बहुत कम है। हालांकि यह वर्ष 2020 में 88.53 प्रतिशत तक पहुंच गया था, क्योंकि पूरे विश्व में ही कोरोना महामारी के चलते आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी। परंतु, इसके बाद के वर्षों में भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है और यह वर्ष 2021 में 83.75 प्रतिशत एवं वर्ष 2022 में 81.02 प्रतिशत के स्तर पर नीचे आ गया है। साथ ही, भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के वर्ष 2028 में 80.5 प्रतिशत के निचले स्तर पर आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। यदि अन्य देशों के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात की तुलना भारत के ऋण सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के साथ की जाय तो इसमें भारत की स्थिति बहुत सुदृढ़ दिखाई दे रही है। पूरे विश्व में सबसे अधिक ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात जापान में है और यह 255 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया है। इसी प्रकार यह अनुपात सिंगापुर में 168 प्रतिशत है, इटली में 144 प्रतिशत, अमेरिका में 123 प्रतिशत, फ्रान्स में 110 प्रतिशत, कनाडा में 106 प्रतिशत, ब्रिटेन में 104 प्रतिशत एवं चीन में भी भारी भरकम 250 प्रतिशत के स्तर के आसपास बताया जा रहा है। अर्थात, विश्व के लगभग समस्त विकसित देशों में ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 100 प्रतिशत के ऊपर ही है। भारत में इस अनुपात का 81 प्रतिशत के आसपास रहना संतोष का विषय माना जा सकता है। हाल ही के समय में भारत में विनिर्माण इकाईयों की उत्पादन क्षमता का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ा है, वित्तीय वर्ष 2022-23 के चौथी तिमाही में विनिर्माण इकाईयों द्वारा अपनी उत्पादन क्षमता का 76.3 प्रतिशत उपयोग किया जा रहा था, जिसके कारण उद्योग जगत को ऋण की अधिक आवश्यकता महसूस हो रही है। बढ़े हुए ऋण की आवश्यकता की पूर्ति भारतीय बैंकें आसानी से करने में सफल रही हैं। यह तथ्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि विकसित देशों में भी प्रायः यह देखा गया है कि बैंकों द्वारा प्रदत्त ऋण में वृद्धि के साथ उस देश के सकल घरेलू उत्पाद में भी तेज गति से वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। भारत में भी अब यह तथ्य परिलक्षित होता दिखाई दे रहा है। भारत में आर्थिक गतिविधियों में आ रही तेजी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में भी ऋण की मांग लगातार बढ़ रही है। फिर भी, भारत में कोरपोरेट को प्रदत ऋण का सकल घरेलू उत्पाद से प्रतिशत वर्ष 2015 के 65 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2023 में 50 प्रतिशत हो गया है। इसका आशय यह है कि इस दौरान कोरपोरेट ने अपने ऋण का भुगतान किया है एवं उन्होंने सम्भवत: अपनी लाभप्रदता में वृद्धि दर्ज करते हुए अपने लाभ का पूंजी के रूप में पुनर्निवेश किया है। दूसरे, भारत में विभिन्न बैंकों द्वारा प्रदत्त लम्बी अवधि के ऋण सामान्यतः आस्तियां उत्पन्न करने में सफल रहे हैं, जैसे गृह निर्माण हेतु ऋण अथवा वाहन हेतु ऋण, आदि। इस प्रकार के ऋणों के भविष्य में डूबने की सम्भावना बहुत कम रहती है। बैकों द्वारा खुदरा क्षेत्र में प्रदत्त ऋणों में से 10 प्रतिशत से भी कम ऋण ही प्रतिभूति रहित दिए गए हैं जैसे सरकारी कर्मचारियों को पर्सनल (व्यक्तिगत) ऋण, आदि। पर्सनल ऋण प्रतिभूति रहित जरूर दिए गए हैं परंतु चूंकि यह सरकारी कर्मचारियों सहित नौकरी पेशा नागरिकों को दिए गए हैं, जिनकी मासिक किश्तें समय पर अदा की जाती हैं, अतः इनके भी डूबने की सम्भावना बहुत ही कम रहती है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि भारत में अब बैकों द्वारा ऋण सम्बंधी व्यवसाय बहुत सुरक्षित तरीके से किया जा रहा है। इसी कारण से हाल ही के समय में यह पाया गया है कि भारतीय बैंकों की अनुत्पादक आस्तियों की वृद्धि पर अंकुश लगा है। यह भी संतोष का विषय है कि हाल ही के समय में भारतीय बैकों से प्रथम बार ऋण लेने वाले नागरिकों की संख्या में भी वृद्धि दर्ज की गई है। इसका आशय यह है कि भारतीय नागरिक जो अक्सर बैकों से ऋण लेने से बचते रहे हैं वे अब बैकों से ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं क्योंकि इस बीच बैंकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋण सम्बंधी शर्तों को आसान बनाया गया है। कुल मिलाकर भारत के संदर्भ में यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि भारतीय नागरिकों में सनातन संस्कृति के संस्कार होने के कारण बैकों से ऋण के रूप में उधार ली गई राशि का समय पर भुगतान किया जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया की तरह माना जाता है, जिसके कारण भारतीय बैंकों के अनुत्पादक आस्तियों की राशि अन्य देशों की बैंकों की तुलना में कम हो रही है। अतः वैश्विक स्तर पर गम्भीर होती ऋण सम्बंधी समस्या का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधे सीधे पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। Read more » The global economy will not collapse under the burden of excess debt.
आर्थिकी लेख आर्थिक विकास के दृष्टि से वित्तीय वर्ष 2023-24 भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ June 10, 2024 / June 10, 2024 | Leave a Comment हाल ही में वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में हुए विकास से सम्बंधित आंकड़े जारी किये गए है। इसके अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत की आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत की रही थी। भारतीय रिजर्व बैंक एवं वैश्विक स्तर पर कार्यरत विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान लगाते हुए कहा था कि यह 7 प्रतिशत के आसपास रहेगी। परंतु, वित्तीय 2023-24 के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर इन अनुमानों से कहीं अधिक रही है। वित्तीय वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में भी भारत की आर्थिक विकास दर 7.8 प्रतिशत रही है जो पिछले वित्तीय वर्ष की चौथी तिमाही में 6.1 प्रतिशत रही थी। पूरे विश्व में प्रथम 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक विकास दर भारत की आर्थिक विकास दर के कहीं आसपास भी नहीं रही है। अमेरिका की आर्थिक विकास दर 2.3 प्रतिशत, चीन की आर्थिक विकास दर 5.2 प्रतिशत, जर्मनी की आर्थिक विकास दर तो ऋणात्मक 0.3 प्रतिशत रही है। जापान की आर्थिक विकास दर 1.92 प्रतिशत, ब्रिटेन की 0.1 प्रतिशत, फ्रान्स की 0.9 प्रतिशत, ब्राजील की 2.91 प्रतिशत, इटली की 0.9 प्रतिशत एवं कनाडा की 1 प्रतिशत रही है, वहीं भारत की आर्थिक विकास दर 8.2 प्रतिशत रही है। 8 प्रतिशत से अधिक की विकास दर को देखते हुए अब तो ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2027 तक जर्मनी एवं जापान की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ते हुए भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था निश्चित ही बन जाएगा। विनिर्माण, खनन, भवन निर्माण एवं सेवा क्षेत्र, यह चार क्षेत्र ऐसे हैं जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद को तेजी से आगे बढ़ाने में अपना विशेष योगदान देते हुए नजर आ रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों के चलते ही सम्भव हो पा रहा है। वास्तविक सकल मान अभिवृद्धि के आधार पर, वित्तीय वर्ष 2023-24 की चतुर्थ तिमाही में विनिर्माण के क्षेत्र में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 की इसी अवधि में केवल 0.9 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की जा सकी थी। इसी प्रकार, खनन के क्षेत्र में भी इस वर्ष की चतुर्थ तिमाही में वृद्धि दर 4.3 प्रतिशत की रही है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 2.9 प्रतिशत की रही थी। भवन निर्माण के क्षेत्र में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 7.4 प्रतिशत की रही थी। नागरिक प्रशासन, सुरक्षा एवं अन्य सेवाओं के क्षेत्र में वृद्धि दर 4.7 प्रतिशत से बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई है। ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि दर पिछले वर्ष की चौथी तिमाही में 7.3 प्रतिशत से बढ़कर इस वर्ष चौथी तिमाही में 7.7 प्रतिशत पर पहुंच गई है। परंतु, कृषि, सेवा एवं वित्तीय क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में वृद्धि दर पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में कुछ कम रही है। वैश्विक स्तर पर अन्य देशों के सकल घरेलू उत्पाद में लगातार कम हो रही वृद्धि दर के बावजूद भारत के सकल घरेलू उत्पाद में तेज गति से वृद्धि दर का होना यह दर्शाता है कि अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं में आ रही परेशानियों का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर नहीं के बराबर हो रहा है एवं भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी आंतरिक शक्ति के बल पर तेज गति से आर्थिक वृद्धि करने में सफल हो रही है। परंतु, भारत में कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जिन पर, आर्थिक विकास की गति को और अधिक तेज करने के उद्देश्य से विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसे, हाल ही के समय में भारत में निजी खपत नहीं बढ़ पा रही है और यह 4 प्रतिशत की दर पर ही टिकी हुई है। साथ ही, निजी क्षेत्र में पूंजी निवेश भी नहीं बढ़ पा रहा है। भारत में निजी खपत कुल सकल घरेलू उत्पाद का 60 प्रतिशत है। यदि सकल घरेलू उत्पाद के इतने बड़े हिस्से में वृद्धि नहीं होगी अथवा कम वृद्धि दर होगी तो देश में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर भी विपरीत रूप से प्रभावित होगी। भारत में निजी खपत इसलिए भी नहीं बढ़ पा रही है क्योंकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में घरेलू देयताएं सकल घरेलू उत्पाद के 5.7 प्रतिशत के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गईं हैं एवं बचत की दर भी सकल घरेलू उत्पाद के 5.2 प्रतिशत पर अपने निचले स्तर पर आ गई है, जो 10 वर्ष पूर्व 7 प्रतिशत से अधिक थी। वहीं दूसरी ओर, दिसम्बर 2023 के प्रथम सप्ताह में भारत ने फ्रान्स एवं ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए शेयर बाजार के पूंजीकरण के मामले में पूरे विश्व में पांचवा स्थान हासिल कर लिया था। भारत से आगे केवल अमेरिका, चीन, जापान एवं हांगकांग थे। परंतु, केवल दो माह से भी कम समय में भारत ने शेयर बाजार के पूंजीकरण के मामले में हांगकांग को पीछे छोड़ते हुए विश्व में चौथा स्थान प्राप्त कर लिया है। भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण 4.35 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी अधिक का हो गया है। अब ऐसा आभास होने लगा है कि भारत अर्थ के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत में नैशनल स्टॉक एक्स्चेंज पर लिस्टेड समस्त कम्पनियों के कुल बाजार पूंजीकरण का स्तर 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर जुलाई 2017 में पहुंचा था और लगभग 4 वर्ष पश्चात अर्थात मई 2021 में 3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया था तथा केवल लगभग 2.5 वर्ष पश्चात अर्थात दिसम्बर 2023 में यह 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर गया था और अब यह 4.35 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर से भी आगे निकल गया है। इस प्रकार भारत शेयर बाजार पूंजीकरण के मामले में आज पूरे विश्व में चौथे स्थान पर आ गया है। प्रथम स्थान पर अमेरिकी शेयर बाजार है, जिसका पूंजीकरण 50.86 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। द्वितीय स्थान पर चीन का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 8.44 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। वर्ष 2023 में चीन के शेयर बाजार ने अपने निवेशकों को ऋणात्मक प्रतिफल दिए हैं। तीसरे स्थान पर जापान का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 6.36 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। चौथे स्थान पर भारत का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 4.35 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। पांचवे स्थान पर हांगकांग का शेयर बाजार है जिसका पूंजीकरण 4.29 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। जिस तेज गति से भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण आगे बढ़ रहा है, अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि कुछ समय पश्चात ही भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण जापान शेयर बाजार के पूंजीकरण को पीछे छोड़ते हुए पूरे विश्व में तीसरे स्थान पर आ जाएगा। उक्त सफलताओं के साथ ही, भारत ने अपने आर्थिक विकास की दर को तेज रखते हुए अपने राजकोषीय घाटे पर भी नियंत्रण स्थापित कर लिया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत का राजकोषीय घाटा 17 लाख 74 हजार करोड़ रुपए का रहा था जो वित्तीय वर्ष 2023-24 में घटकर 16 लाख 54 हजार करोड़ रुपए का रह गया है। यह राजकोषीय घाटा वित्तीय वर्ष 2022-23 में 5.8 प्रतिशत था जो वित्तीय वर्ष 2023-24 में घटकर 5.6 प्रतिशत रह गया है। भारत के राजकोषीय घाटे को वित्तीय वर्ष 2024-25 में 5.1 प्रतिशत एवं वित्तीय वर्ष 2025-26 में 4.5 प्रतिशत तक नीचे लाने के प्रयास केंद्र सरकार द्वारा सफलता पूर्वक किए जा रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रान्स, जर्मनी जैसे विकसित देश भी अपने राजकोषीय घाटे को कम नहीं कर पा रहे हैं परंतु भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान यह बहुत बड़ी सफलता हासिल की है। सरकार का खर्च उसकी आय से अधिक होने पर इसे राजकोषीय घाटा कहा जाता है। केंद्र सरकार ने खर्च पर नियंत्रण किया है एवं अपनी आय के साधनों में अधिक वृद्धि की है। यह लम्बे समय में देश के आर्थिक स्वास्थ्य की दृष्टि से एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर सामने आया है। प्रहलाद सबनानी Read more » The financial year 2023-24 proved to be important for India in terms of economic growth.
आर्थिकी लेख क्या भारत कभी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन पाएगा June 10, 2024 / June 10, 2024 | Leave a Comment प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं इतिहासकार श्री एंग्स मेडिसिन के अनुसार वर्ष 1820 तक भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, 1820 आते आते चीन भारत से आगे निकल गया था। 1820 से 1870 के बीच चीन एवं भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पूरे विश्व में सबसे आगे थे। वर्ष 1870 से 1900 के बीच ब्रिटेन विश्व की सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया परंतु ब्रिटेन पर यह ताज अधिक समय तक नहीं टिक सका क्योंकि इसके तुरंत बाद अमेरिका विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया था। इसके बाद तो आर्थिक प्रगति के मामले में अमेरिका एवं यूरोपीयन देश लगातार आगे बढ़ते रहे, विकसित अर्थव्यवस्थाएं बने और एशिया के देशों (विशेष रूप से भारत एवं चीन) का वर्चस्व वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगभग समाप्त सा हो गया था। परंतु, अब एक बार पुनः समय चक्र बदल रहा है एवं अमेरिका एवं यूरोपीयन देशों की अर्थव्यस्थाएं आर्थिक विकास के मामले में ढलान पर दिखाई दे रही हैं एवं एशिया के देश, विशेष रूप से भारत एवं चीन, पुनः तेज गति से आर्थिक प्रगति करते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपना दबदबा कायम करते नजर आ रहे हैं। आज अमेरिकी अर्थव्यस्था का आकार लगभग 25 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है और चीन की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 18 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2035 से 2040 के बीच चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं अमेरिका दूसरे नम्बर पर आ जाएगा और भारत तीसरे नम्बर पर आ जाएगा। परंतु, इसके बाद क्या भारत अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए दूसरे नम्बर पर आ पाएगा। इस तरह की चर्चाएं आजकल आर्थिक जगत में होने लगी हैं। आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व में 11वां स्थान था जो आज 3.70 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के आकार के साथ विश्व में 5वें स्थान पर आ गई है। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2026 में भारतीय अर्थव्यवस्था जर्मनी अर्थव्यवस्था से आगे निकलकर विश्व में चौथे स्थान पर आ जाएगी। इसी प्रकार वर्ष 2027 में जापानी अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में तीसरे स्थान पर आ जाएगी। गोल्ड्मन सच्स के अनुसार, अगले चार वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाएगा। इसी प्रकार, ब्लूम्बर्ग के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था आगामी वर्षों में लगातार 6 प्रतिशत से अधिक की विकास दर हासिल करता रहेगा, और अमेरिका एवं चीन की आर्थिक विकास दर से आगे बना रहेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास दर के तेज गति से आगे रहने के पीछे जो कारण बताए जा रहे हैं उनमें शामिल हैं – भारतीय जनसंख्या में वृद्धि होते रहना (अमेरिका एवं चीन में जनसंख्या वृद्धि दर लगातार कम हो रही है), इससे भारतीय घरेलू बाजार मजबूत बना रहेगा एवं उत्पादों की मांग भी भारत में तेज गति से आगे बढ़ती रहेगी। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत की आबादी बढ़ कर 170 करोड़ नागरिकों की हो जाएगी, इससे भारत अपने आप में विश्व का सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा। वर्ष 2024 में भारत में उपभोक्ता विश्वास सूचकांक 98.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। दूसरे, भारत में आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए भी केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा अत्यधिक मात्रा में पूंजी निवेश किया जा रहा है। भारत में आधारभूत ढांचे को विकसित श्रेणी में लाने के लिए केवल रोड ही नहीं बल्कि रेल्वे, एयरपोर्ट, ऊर्जा एवं जल व्यवस्था को विकसित करने के लिए भी भरपूर पूंजी निवेश किया जा रहा है। भारत में आज भी श्रमिक लागत तुलनात्मक रूप से बहुत कम है, इससे कई विदेशी कम्पनियां अब चीन के स्थान पर भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयों को स्थापित कर रही हैं इससे भारत के औद्योगिक विकास को गति मिल रही है। भारत ने भी कई उद्योग क्षेत्रों के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना लागू की है जिसका लाभ विश्व की कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां उठा रही हैं एवं अपनी औद्योगिक इकाईयां भारत में स्थापित कर रही हैं। तीसरे भारत में आज 140 करोड़ की जनसंख्या में से 100 करोड़ से अधिक नागरिक युवा एवं कार्य कर सकने वाले नागरिकों की श्रेणी में शामिल हैं। इतनी बड़ी मात्रा में श्रमिकों की उपलब्धि किसी भी अन्य देश में नहीं है। अन्य विकसित देशों, चीन सहित, में कार्य कर सकने वाले नागरिकों की संख्या लगातार कम हो रही है क्योंकि इन देशों में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। किसी भी देश में युवा जनसंख्या का अधिक होने से न केवल श्रमिक के रूप में इनकी उपलब्धि आसान बनी रहती है बल्कि इनके माध्यम से देश में उत्पादों की मांग में भी वृद्धि दर्ज होती है तथा युवा जनसंख्या की उत्पादकता भी अधिक होती है जिससे उत्पादन लागत कम हो सकती है। साथ ही, युवाओं द्वारा नवाचार भी अधिक मात्रा में किया जा सकता है। यह सब कारण हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरे विश्व में एक चमकता सितारा बनाने में सहायक हो रहे हैं। हाल ही के समय में वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र का परिदृश्य तेजी से बदला भी है। अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकसित देशों का दबदबा बना रहता आया है। परंतु, अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2024 में भारत सहित एशियाई देशों के वैश्विक अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत का योगदान होने की प्रबल सम्भावना बन रही है। एशियाई देशों में चीन एवं भारत मुख्य भूमिकाएं निभाते नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल में वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 32 प्रतिशत से भी अधिक रहता आया है। वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी उस समय वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 3 प्रतिशत तक नीचे पहुंच गया था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पहिले अरब से आए आक्राताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने बहुत नुक्सान पहुंचाया था एवं भारत को जमकर लूटा था। वर्ष 1947 के बाद के लगभग 70 वर्षों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के योगदान में कुछ बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था। परंतु, पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में लगातार मजबूत होते लोकतंत्र के चलते एवं आर्थिक क्षेत्र में लिए गए कई पारदर्शी निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं। आज भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में अपने योगदान को लगभग 18 प्रतिशत के आसपास एवं एशिया के अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशियाई देशों के योगदान को 60 प्रतिशत तक ले जाने में सफल होता दिखाई दे रहा है। भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के बाद विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। साथ ही, भारत आज पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तो भारत की आर्थिक विकास दर 8.2 प्रतिशत की रही है और यह वित्तीय वर्ष 2023-24 की समस्त तिमाहियों में लगातार तेज गति से बढ़ती रही है। पहली तीन तिमाहियों में भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रही है, अक्टोबर-दिसम्बर 2023 को समाप्त तिमाही में तो आर्थिक विकास दर 8.4 प्रतिशत की रही है। इस विकास दर के साथ भारत के वर्ष 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है। केवल 10 वर्ष पूर्व ही भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और वर्ष 2013 में मोर्गन स्टैनली द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व के उन 5 बड़े देशों (दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, टर्की एवं भारत) में शामिल था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं नाजुक हालत में मानी जाती थीं। अब आगे आने वाले कालचक्र में वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र में परिस्थितियां लगातार भारत के पक्ष में होती दिखाई दे रही हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान लगातार बढ़ते जाने की प्रबल संभावनाएं बनती नजर आ रही हैं। प्रहलाद सबनानी Read more » Will India ever become the world's second largest economy
लेख सैंकड़ों मंदिरों का पुनर्धार कराने वाली महारानी थी अहिल्याबाई होलकर May 17, 2024 / May 17, 2024 | Leave a Comment अरब देशों से भारत आए आक्रांता शुरू में तो केवल भारत में लूट खसोट करने के उद्देश्य से ही आए थे, क्योंकि उन्होंने सुन रखा था कि भारत सोने की चिड़िया है एवं यहां के नागरिकों के पास स्वर्ण के अपार भंडार मौजूद हैं। परंतु, यहां आकर छोटे छोटे राज्यों में आपसी तालमेल एवं संगठन का अभाव […] Read more » Ahilyabai Holkar was the queen who renovated hundreds of temples. अहिल्याबाई होलकर
राजनीति भारत सहित एशियाई देश वर्ष 2024 में विश्व की अर्थव्यवस्था में देंगे 60 प्रतिशत का योगदान May 16, 2024 / May 16, 2024 | Leave a Comment वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकसित देशों का दबदबा बना रहता आया है। परंतु, अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2024 में भारत सहित एशियाई देशों के वैश्विक अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत का योगदान होने की प्रबल सम्भावना है। एशियाई देशों में चीन एवं भारत मुख्य भूमिकाएं निभाते नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल में वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 32 प्रतिशत से भी अधिक रहता आया है। वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी उस समय वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 3 प्रतिशत तक नीचे पहुंच गया था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पहिले अरब से आए आक्राताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने बहुत नुक्सान पहुंचाया था एवं भारत को जमकर लूटा था। वर्ष 1947 के बाद के लगभग 70 वर्षों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के योगदान में कुछ बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था। परंतु, पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में लगातार मजबूत होते लोकतंत्र के चलते एवं आर्थिक क्षेत्र में लिए गए कई पारदर्शी निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं। आज भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में अपने योगदान को लगभग 18 प्रतिशत के आसपास एवं एशिया के अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशियाई देशों के योगदान को 60 प्रतिशत तक ले जाने में सफल होता दिखाई दे रहा है। भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के बाद विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। साथ ही, भारत आज पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तो भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रहने की प्रबल सम्भावना बन रही है क्योंकि वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तीन तिमाहियों में भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रही है, अक्टोबर-दिसम्बर 2023 को समाप्त तिमाही में तो आर्थिक विकास दर 8.4 प्रतिशत की रही है। इस विकास दर के साथ भारत के वर्ष 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है। केवल 10 वर्ष पूर्व ही भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और वर्ष 2013 में मोर्गन स्टैनली द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व के उन 5 बड़े देशों (दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, टर्की एवं भारत) में शामिल था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं नाजुक हालत में मानी जाती थीं। आज भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार तेज वृद्धि आंकी जा रही है, जिससे भारत के वित्तीय संसाधनों पर दबाव कम हो रहा है और भारत पूंजीगत खर्चों के साथ ही गरीब वर्ग के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के लिए वित्त की व्यवस्था आसानी से कर पा रहा है। केंद्र सरकार के बजट में न केवल वित्तीय घाटा कम हो रहा है बल्कि आने वाले समय में केंद्र सरकार को अपने सामान्य खर्च चलाने के लिए ऋण लेने की आवश्यकता भी कम पड़ने लगेगी। दूसरे, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की कीमत लगातार स्थिर बनी हुई है, जिससे विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास भी बढ़ रहा है और भारत में विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ता जा रहा है। तीसरे, भारत में मुद्रा स्फीति पर भी तुलनात्मक रूप से नियंत्रण पाने में सफलता मिली है। अन्य देश अभी भी मुद्रा स्फीति की समस्या से जूझ रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र में उक्त कारकों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक बने रहने की प्रबल सम्भावनाएं बनी रहेंगी। इसके ठीक विपरीत, जापान एवं जर्मनी की आर्थिक विकास दर या तो मंदी के दौर से गुजर रहीं हैं अथवा विकास दर बहुत कम अर्थात एक-दो प्रतिशत से भी कम बनी हुई है। भारत के स्टील उद्योग, सिमेंट उद्योग एवं ऑटोमोबाइल निर्माण के क्षेत्र ने 10 प्रतिशत से अधिक की विकास दर हासिल कर ली है। डिजिटल आधारभूत ढांचे के निर्माण के क्षेत्र में तो भारत विश्व गुरु बन गया है और इससे आज भारत में 13400 करोड़ से अधिक के डिजिटल व्यवहार हो रहे हैं जो पूरे विश्व के डिजिटल व्यवहारों का 46 प्रतिशत है। जन-धन योजना के अंतर्गत खोले गए 50 करोड़ से अधिक बैंक खातों में आज 2.32 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि जमा हो चुकी है, जो देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान दे रही है। वर्ष 2013-14 से वर्ष 2022-23 के दौरान मुद्रा स्फीति की औसत दर 5 प्रतिशत की रही है जो वर्ष 2003-04 से वर्ष 2013-14 के दौरान औसत 8.2 प्रतिशत की रही थी। मुद्रा स्फीति कम रहने का सीधा लाभ देश के गरीब वर्ग को मिलता है। साथ ही, अब तो आर्थिक विकास के साथ ही भारत में रोजगार के भी पर्याप्त अवसर निर्मित होने लगे हैं। स्कोच नामक संस्थान द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में बताया गया है कि भारत में वर्ष 2014 से वर्ष 2024 के दौरान 51.4 करोड़ व्यक्ति वर्ष के नए रोजगार निर्मित हुए हैं। इसमें केंद्र सरकार द्वारा किये गए सीधे प्रयासों के चलते 19.79 करोड़ व्यक्ति वर्ष के रोजगार के अवसर भी शामिल हैं। शेष 31.61 करोड़ व्यक्ति वर्ष रोजगार के अवसर अपने व्यवसाय प्रारम्भ करने के उद्देश्य से बैंकों से लिए गए ऋण के चलते निर्मित हुए हैं। स्कोच नामक संस्थान द्वारा उक्त प्रतिवेदन 80 संस्थानों पर की गई रिसर्च (केस स्टडी) के आधार पर जारी किया गया है। सूक्ष्म एवं लघु स्तर के ऋण लेने वाले व्यक्तियों ने रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित किए हैं। इस प्रतिवेदन के अनुसार औसतन प्रत्येक सूक्ष्म संस्थान 6.6 रोजगार के नए अवसर निर्मित करता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक के बाद अब मूडीज ने भी भारत में आर्थिक विकास के संदर्भ में बताया है कि आने वाले कुछ वर्षों तक भारत की आर्थिक विकास दर विश्व में सबसे अधिक बने रहने की प्रबल सम्भावना बनी रहेगी। इस प्रकार, एक के बाद एक विभिन्न वैश्विक आर्थिक संस्थान भारत में आर्थिक विकास दर के मामले में अपने अनुमानों को लगातार सुधारते/बढ़ाते जा रहे हैं। इस प्रकार, आगे आने वाले समय में भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान भी लगातार बढ़ता जाएगा और सम्भव है कि कालचक्र में ऐसा परिवर्तन हो कि भारत एक बार पुनः वैश्विक स्तर पर अपने आर्थिक योगदान को 32 प्रतिशत के स्तर तक वापिस ले जाने में सफल हो। प्रहलाद सबनानी Read more » Asian countries including India will contribute 60 percent to the world economy in the year 2024.
राजनीति शिवाजी महाराज के शासनकाल की आर्थिक नीतियां May 15, 2024 / May 15, 2024 | Leave a Comment इतिहास के किसी भी खंडकाल में भारतीय सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हुए किए गए समस्त प्रकार के कार्यों में सफलता निश्चित मिलती आई है। ध्यान में आता है कि भारतीय आर्थिक दर्शन भी सनातन संस्कृति के अनुरूप ही रहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज भी हमारे वेदों एवं पुराणों में वर्णित नियमों के अनुसार ही […] Read more » Economic policies of Shivaji Maharaj's reign
राजनीति पंच परिवर्तन बनेगा समाज परिवर्तन का सशक्त माध्यम May 13, 2024 / May 13, 2024 | Leave a Comment राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए पिछले लगभग 99 वर्षों से निरंतर कार्य कर रहा है। भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन को गति देने एवं समाज में अनुशासन व देशभक्ति के भाव को बढ़ाने के उद्देश्य से माननीय सर संघचालक श्री मोहन भागवत ने समाज में पंच परिवर्तन का आह्वान किया है ताकि अनुशासन एवं देशभक्ति से ओतप्रोत युवा वर्ग अनुशासित होकर अपने देश को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य करे। इस पंच परिवर्तन में पांच आयाम शामिल किए गए हैं – (1) स्व का बोध अर्थात स्वदेशी, (2) नागरिक कर्तव्य, (3) पर्यावरण, (4) सामाजिक समरसता एवं (5) कुटुम्ब प्रबोधन। इस पंच परिवर्तन कार्यक्रम को सुचारू रूप से लागू कर समाज में बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। स्व के बोध से नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होंगे। नागरिक कर्तव्य बोध अर्थात कानून की पालना से राष्ट्र समृद्ध व उन्नत होगा। सामाजिक समरसता व सद्भाव से ऊंच-नीच जाति भेद समाप्त होंगे। पर्यावरण से सृष्टि का संरक्षण होगा तथा कुटुम्ब प्रबोधन से परिवार बचेंगे और बच्चों में संस्कार बढ़ेंगे। समाज में बढ़ते एकल परिवार के चलन को रोक कर भारत की प्राचीन परिवार परंपरा को बढ़ावा देने की आज महती आवश्यकता है। भारत में हाल ही के समय में देश की संस्कृति की रक्षा करना, एक सबसे महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभरा है। सम्भावना से युक्त व्यक्ति हार में भी जीत देखता है तथा सदा संघर्षरत रहता है। अतः पंच परिवर्तन उभरते भारत की चुनौतियों का समाधान करने में समर्थ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले जी कहते हैं कि बौद्धिक आख्यान को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से बदलना और सामाजिक परिवर्तन के लिए सज्जन शक्ति को संगठित करना संघ के मुख्य कार्यों में शामिल है। इस प्रकार पंच परिवर्तन आज समग्र समाज की आवश्यकता है। पंच परिवर्तन में समाज में समरसता (बंधुत्व के साथ समानता), पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली, पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए पारिवारिक जागृति, जीवन के सभी पहलुओं में भारतीय मूल्यों पर आधारित ‘स्व’ (स्वत्व) की भावना पैदा करने का आग्रह जैसे आयाम शामिल हैं। नागरिक कर्तव्यों के पालन हेतु सामाजिक जागृति; ये सभी मुद्दे बड़े पैमाने पर समाज से संबंधित हैं। दूसरे, इन विषयों को व्यक्तियों, परिवारों और संघ की शाखाओं के आसपास के क्षेत्रों को संबोधित करने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। इसे व्यापक समाज तक ले जाने की आवश्यकता है। यह केवल चिंतन और अकादमिक बहस का विषय नहीं है, बल्कि कार्रवाई और व्यवहार का विषय है। व्यवहार में पंच परिवर्तन को समाज में किस प्रकार लागू करना है इस हेतु हम समस्त भारतीय नागरिकों को मिलकर प्रयास करने होंगे, क्योंकि पंच परिवर्तन केवल चिंतन, मनन अथवा बहस का विषय नहीं है बल्कि इस हमें अपने व्यवहार में उतरने की आवश्यकता है। उक्त पांचों आचरणात्मक बातों का समाज में होना सभी चाहते हैं, अतः छोटी-छोटी बातों से प्रारंभ कर उनके अभ्यास के द्वारा इस आचरण को अपने स्वभाव में लाने का सतत प्रयास अवश्य करना होगा। जैसे, समाज के आचरण में, उच्चारण में संपूर्ण समाज और देश के प्रति अपनत्व की भावना प्रकट हो, प्रत्येक […] Read more » पंच परिवर्तन बनेगा समाज परिवर्तन का सशक्त माध्यम
आर्थिकी राजनीति भारत में गरीबी उन्मूलन पर पूर्व में गम्भीरता से ध्यान ही नहीं दिया गया May 9, 2024 / May 9, 2024 | Leave a Comment भारत में हाल ही के वर्षों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या में आई भारी कमी के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक एवं विकसित देशों के कई वित्तीय एवं आर्थिक संस्थानों ने भारत की आर्थिक नीतियों की मुक्त कंठ से सराहना की है। यह सब दरअसल भारत में तेज गति से हुए वित्तीय समावेशन के चलते सम्भव हुआ है। याद करें वर्ष 1947, जब देश ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी, उस समय देश की अधिकतम आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर थी। जबकि, भारत का इतिहास वैभवशाली रहा है एवं भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। परंतु, पहिले अरब से आक्रांताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने भारत को जमकर लूटा तथा देश के नागरिकों को गरीबी की ओर धकेल दिया। भारत में राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत से ‘गरीबी हटाओ’ के नारे तो बहुत लगे परंतु, गरीबी नहीं हटी। ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ राजनैतिक दलों ने कई बार सता हासिल की किंतु देश से गरीबी हटाने के गम्भीर प्रयास शायद कभी नहीं हुए और गरीब वर्ग को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा। भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को वर्ष 2014 में लागू किया गया जिसके माध्यम से आम नागरिकों के बैंकों में बचत खाते खोले गए, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित की गई, धन के प्रेषण की सुविधा, बीमा तथा पेंशन सुविधा भी उपलब्ध कराई गई। इस योजना के अंतर्गत जमाराशि पर ब्याज मिलता है, हालांकि बचत खाते में कोई न्यूनतम राशि रखना आवश्यक नहीं है। एक लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा भी मिलता है। साथ ही, इस योजना के माध्यम से दो लाख रुपए का जीवन बीमा उस लाभार्थी को उसकी मृत्यु पर सामान्य शर्तों पर मिलता है। भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को सफलता पूर्वक लागू करने के बाद प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना (Direct Benefit Transfer Scheme) को भी लागू किया गया जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गरीब वर्ग के हितार्थ चलाई जा रही विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि को सीधे ही हितग्राहियों के बचत खातों में जमा कर दिया जाता है। इससे विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को 100 प्रतिशत लाभ की राशि सीधे ही उनके हाथों में पहुंच जाती है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत, वर्ष 2013 के बाद से 31 मार्च 2022 तक, 24.8 लाख करोड़ रुपए की राशि सीधे ही लाभार्थियों के बचत खातों में जमा की जा चुकी है, इसमें अकेले वित्तीय वर्ष 2021-22 में ही 6.3 लाख करोड़ रुपए की राशि लाभार्थियों के बचत खातों में हस्तांतरित की गई थी। वर्ष 2014 के पूर्व तक जब इन लाभार्थियों के बचत खाते विभिन्न बैंकों में नहीं खुले थे तब तक कांग्रेस एवं अन्य सरकारों के शासनकाल के दौरान विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि सामान्यतः नकद राशि के रूप में इन लाभार्थियों को उपलब्ध कराई जाती थी। आपको शायद ध्यान होगा कि एक बार देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी ने कहा था कि केंद्र सरकार से विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि के एक रुपए में से केवल 16 पैसे ही लाभार्थियों तक पहुंच पाते हैं। शेष 84 पैसे इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र की जेब में पहुंच जाते है। अब आप स्वयं आंकलन करें कि यदि बैंक में 50 करोड़ लाभार्थियों के बचत खाते नहीं खुले होते और यदि उक्त वर्णित केवल 8 वर्षों के दौरान उपलब्ध कराई गई 25 लाख करोड़ रुपए से अधिक की सहायता राशि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न लाभार्थियों को नकद राशि के रूप में उपलब्ध कराई जाती तो इन लाभार्थियों के पास केवल 4 लाख करोड़ रुपए की राशि ही पहुंच पाती एवं शेष 21 लाख करोड़ रुपए की राशि इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र के पास ही रह जाती। अब आप आगे एक और कल्पना कर लीजिये कि पिछले 70 वर्षों के दौरान कितनी भारी भरकम राशि इन गरीब हितग्राहियों तक नहीं पहुंच पाई होगी। इस राशि का आकार शायद आपकी कल्पना से भी परे है। सहायता की यह राशि यदि गरीबों तक पहुंच गई होती तो शायद हो सकता है कि देश से अभी तक गरीबी भी दूर हो चुकी होती। अब जब प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत सहायता की राशि हितग्राहियों के खातों में सीधे ही पहुंच रही है तो देश से गरीबी भी तेजी से कम होती दिखाई दे रही है, जिसकी तारीफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुक्त कंठ से हो रही है। पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय बैंकों के माध्यम से इस दृष्टि से बहुत ठोस कार्य किया गया है। न केवल 50 करोड़ से अधिक बचत खाते विभिन्न भारतीय बैंकों में खोले गए हैं बल्कि आज इन बचत खातों में 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी जमा हो गई है और बचत की यह भारी भरकम राशि बैंकों द्वारा देश के आर्थिक विकास में उपयोग की जा रही है। इस प्रकार, भारत का गरीब वर्ग भी इन बैंक खातों के माध्यम से देश के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देता हुआ दिखाई दे रहा है। उक्त 50 करोड़ से अधिक बचत खातों में 50 प्रतिशत खाते महिलाओं द्वारा खोले गए हैं, अर्थात अब भारतीय महिलाएं, ग्रामीण महिलाओं सहित, भी आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं। भारी मात्रा में खोले गए इन बचत खातों के माध्यम से गरीब वर्ग के नागरिकों का बैकिंग सम्बंधी इतिहास भी धीरे धीरे विकसित हो रहा है, जिससे इस वर्ग के नागरिकों को बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने में आसानी होने लगी है। केंद्र सरकार द्वारा बैकों के माध्यम से लागू की जा रही विभिन्न प्रकार की ऋण योजनाओं का लाभ भी अब गरीब वर्ग को मिलने लगा है। कोरोना महामारी के तुरंत बाद जब देश में स्थितियां सामान्य बनने की ओर अग्रसर हो रहीं थीं तब केंद्र सरकार ने खोमचा वाले, रेहड़ी वाले एवं ठेलों पर अपना सामान बेचकर छोटे छोटे व्यवसाईयों द्वारा अपना व्यापार पुनः प्रारम्भ करने के उद्देश्य से एक विशेष ऋण योजना प्रारम्भ की थी। इस योजना के अंतर्गत उक्त वर्णित छोटे छोटे व्यवसाईयों को बैंक द्वारा आसानी से ऋण प्रदान किया गया था क्योंकि इस वर्ग के नागरिकों के पूर्व में ही बैकों में बचत खाते खुले हुए थे। बैकों द्वारा यह ऋण बगैर किसी व्यक्तिगत गारंटी के प्रदान किया गया था। और, हजारों की संख्या में छोटे छोटे व्यवसाईयों ने निर्धारित समय सीमा में इस ऋण को अदा कर, पुनः बढ़ी हुई राशि के ऋण बैकों से लिए थे और अपने व्यवसाय को तेजी से आगे बढ़ाया था। बैकों में खोले गए बचत खातों से गरीब वर्ग को इस प्रकार के लाभ भी हुए हैं। भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना ने देश के हर गरीब नागरिक को वित्तीय मुख्य धारा से जोड़ा है। समाज के अंतिम छोर पर बैठे गरीबतम व्यक्तियों को भी इस योजना का लाभ मिला है। आजादी के लगभग 70 वर्षों के बाद भी भारत के 50 प्रतिशत नागरिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ अर्थात बैकों से नहीं जुड़े थे। प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत खाताधारकों को प्रदान की जाने वाली अन्य सुविधाओं का लाभ भी भारी मात्रा में नागरिकों ने उठाया है। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना से 15.99 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं, इनमें 49 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का जीवन बीमा केवल 436 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना से 33.78 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं, इनमें 48 प्रतिशत महिला लाभार्थी हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा केवल 20 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है। अटल पेंशन योजना से 5.20 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं। मुद्रा योजना के अंतर्गत 40.83 करोड़ नागरिकों को ऋण प्रदान किया गया है प्रधानमंत्री जनधन योजना अपने प्रारम्भिक समय से ही वित्तीय समावेशन के लिए एक क्रांतिकारी कदम मानी जा रही है। इस योजना के अंतर्गत खोले गए बचत खातों में से लगभग 67 प्रतिशत बचत खाते ग्रामीण एवं अर्धशहरी केंद्रों पर खोले गए हैं, जिसे मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है। भारत में बैंकिंग व्यवस्था को आसान बनाने के उद्देश्य से डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाने का कार्य भी सफलतापूर्वक किया गया है। इस योजना के अंतर्गत खोले गए बचत खाताधारकों को रूपे डेबिट कार्ड प्रदान किया गया है। यह रूपे कार्ड उपयोगकर्ता द्वारा समस्त एटीएम, पोस टर्मिनल एवं ई-कामर्स वेबसाइट पर लेनदेन करने की दृष्टि से उपयोग किया जा सकता है। वर्ष 2016 में 15.78 करोड़ बचत खाताधारकों को रूपे कार्ड प्रदान किया गया था एवं अप्रेल 2023 तक यह संख्या बचकर 33.5 करोड़ तक पहुंच गई है। प्रहलाद सबनानी Read more » Poverty alleviation in India was not given serious attention in the past.
आर्थिकी राजनीति अमेरिकी बैंक क्यों हो रहे दिवालिया? May 7, 2024 / May 7, 2024 | Leave a Comment अमेरिका में वर्ष 2023 में 3 बैंक (सिलिकन वैली बैंक, सिगनेचर बैंक, फर्स्ट रिपब्लिक बैंक) डूब गए थे एवं वर्ष 2024 में भी एक बैंक (रिपब्लिक फर्स्ट बैंक) डूब गया है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अमेरिकी केंद्रीय बैंक, यूएस फेडरल रिजर्व, द्वारा ब्याज दरों में की गई वृद्धि के चलते बैंकों के असफल होने की यह परेशानी बहुत बढ़ गई है। सिलिकन वैली बैंक ने कई तकनीकी स्टार्ट अप एवं उद्यमी […] Read more » Why are American banks going bankrupt? अमेरिकी बैंक क्यों हो रहे दिवालिया
आर्थिकी राजनीति आर्थिक क्षेत्र में नित नए विश्व रिकार्ड बनाता भारत May 3, 2024 / May 3, 2024 | Leave a Comment दिनांक 1 मई 2024 को अप्रेल 2024 माह में वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण से सम्बंधित जानकारी जारी की गई है। हम सभी के लिए यह हर्ष का विषय है कि माह अप्रेल 2024 के दौरान वस्तु एवं सेवा कर का संग्रहण पिछले सारे रिकार्ड तोड़ते हुए 2.10 लाख करोड़ रुपए के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है, जो निश्चित ही, भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शा रहा है। वित्तीय वर्ष 2022 में वस्तु एवं सेवा कर का औसत कुल मासिक संग्रहण 1.20 लाख करोड़ रुपए रहा था, जो वित्तीय वर्ष 2023 में बढ़कर 1.50 लाख करोड़ रुपए हो गया एवं वित्तीय वर्ष 2024 में 1.70 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गया। अब तो अप्रेल 2024 में 2.10 लाख करोड़ रुपए के स्तर से भी आगे निकल गया है। इससे यह आभास हो रहा है कि देश के नागरिकों में आर्थिक नियमों के अनुपालन के प्रति रुचि बढ़ी है, देश में अर्थव्यवस्था का तेजी से औपचारीकरण हो रहा है एवं भारत में आर्थिक विकास की दर तेज गति से आगे बढ़ रही है। कुल मिलाकर अब यह कहा जा सकता है कि भारत आगे आने वाले 2/3 वर्षों में 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। भारत में वर्ष 2014 के पूर्व एक ऐसा समय था जब केंद्रीय नेतृत्व में नीतिगत फैसले लेने में भारी हिचकिचाहट रहती थी और भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की हिचकोले खाने वाली 5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल थी। परंतु, केवल 10 वर्ष पश्चात केंद्र में मजबूत नेतृत्व एवं मजबूत लोकतंत्र के चलते आज वर्ष 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रही है। आज भारत आर्थिक क्षेत्र में वैश्विक मंच पर नित नए रिकार्ड बना रहा है। वैश्विक स्तर पर विदेशी प्रेषण के मामले में आज भारत प्रेषण प्राप्तकर्ता के रूप में प्रथम स्थान पर पहुंच गया है। भारत में आज सबसे बड़ा सिंक्रोनाईजड बिजली ग्रिड है। बैकिंग क्षेत्र में वास्तविक समय लेनदेन की सबसे बड़ी संख्या आज भारत में ही सम्पन्न हो रही है। भारत आज विश्व में दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश है एवं भारत आज पूरे विश्व में मोबाइल फोन का निर्माण करने वाला दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन गया है। भारत में आज विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेट्वर्क है। मात्रा की दृष्टि से भारत में आज विश्व का तीसरा सबसे बड़ा फार्मासीयूटिकल उद्योग है। भारत में आज पूरे विश्व में तीसरा सबसे बड़ा मेट्रो नेट्वर्क है। भारत ने स्टार्टअप को विकसित करने के उद्देश्य से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र खड़ा कर लिया है। भारत का स्टॉक बाजार, पूंजीकरण के मामले में, विश्व में चौथे स्थान पर आ गया है। भारत में आज विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेट्वर्क है। विश्व में पैटेंट हेतु आवेदन किए जाने वाले देशों में भारत आज छठे स्थान पर आ गया है। आर्थिक क्षेत्र में भारत को यह सभी उपलब्धियां पिछले 10 वर्षों के दौरान प्राप्त हुई हैं। पिछले केवल 10 वर्षों के दौरान शेयर बाजार में निवेशकों को अपार सफलता हासिल हुई है और सेन्सेक्स ने 200 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि दर्ज की है, इसी प्रकार निफ्टी भी इसी अवधि में 206 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि दर्ज करने में सफल रहा है। यह स्थानीय एवं विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपना विश्वास जता रहा है। भारत में शेयर बाजार में व्यवहार करने के उद्देश्य से खोले जाने वाले डीमेट खातों की संख्या वर्ष 2014 में 2.2 करोड़ थी जो वर्ष 2024 में बढ़कर 15.13 करोड़ हो गई है अर्थात इन 10 वर्षों में 7 गुणा से अधिक की वृद्धि दर अर्जित की गई है। देश का प्रत्येक उद्यमी/उपक्रमी/व्यवसायी बहुत उत्साह में है कि देश में व्यापार करने हेतु वातावरण में बहुत सुधार हुआ है एवं ईज आफ डूइंग बिजनेस में काफी सुधार हुआ है। आज भारत ही नहीं बल्कि भारतीय कम्पनियों द्वारा विदेश में भी पूंजी उगाहना बहुत आसान हो गया है। अतः एक प्रकार से उद्यमियों के लिए पूंजी की समस्या तो नहीं के बराबर रह गई है। भारतीय नागरिकों में आज स्व का भाव जगाने में भी कामयाबी मिली है, जिसके चलते स्वदेश में निर्मित वस्तुओं का उपयोग बढ़ रहा है एवं अन्य देशों से विभिन्न उत्पादों के आयात कम हो रहे हैं। इसके चलते भारत के विदेशी व्यापार घाटे में सुधार दृष्टिगोचर है। आज भारत से विभिन्न उत्पादों के निर्यात में मामूली वृद्धि दर्ज हो रही है तो कई उत्पादों के आयात में कमी दिखाई देने लगी है। इसे भारतीय नागरिकों के आत्म निर्भर भारत की ओर बढ़ते कदम के रूप में देखा जा सकता है। फरवरी 2024 माह में भारत का व्यापारिक निर्यात 11.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 4140 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया, जो पिछले 20 महीनों में उच्चतम स्तर पर है। इसके अतिरिक्त, सेवा निर्यात 3210 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है। फरवरी 2024 माह में माल एवं सेवाओं को मिलाकर कुल निर्यात 7355 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जो फरवर 2023 की तुलना में 14.2 प्रतिशत अधिक है। इसी कारण से, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी आज 64,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। आज भारतीय नागरिकों ने सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हुए भारत को विकसित एवं मजबूत बनाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा लिए हैं। आज भारत में प्रत्येक नागरिक का औसत जीवन वर्ष 2022 के 62.7 वर्ष से बढ़कर 67.7 वर्ष हो गया है। यह भारत में लगातार हो रही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के चलते ही सम्भव हो सका है। संयुक्त राष्ट्र के एक प्रतिवेदन के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय में पिछले 12 महीनों के दौरान 6.3 प्रतिशत की वृद्ध दर्ज हुई है। इसी प्रकार, एक सर्वे के अनुसार, आज भारत में 36 प्रतिशत कम्पनियां आगामी 3 माह में नई भर्तियां करने पर गम्भीरता से विचार कर रही हैं, इससे भारत में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होते दिखाई दे रहे हैं। गरीब वर्ग को भी केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ पहुंचाये जाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। जल जीवन मिशन ने पूरे भारत में 75 प्रतिशत से अधिक घरों में नल के पानी का कनेक्शन प्रदान करके एक बढ़ा मील का पत्थर हासिल कर लिया है। लगभग 4 वर्षों के भीतर मिशन ने 2019 में ग्रामीण नल कनेक्शन कवरेज को 3.23 करोड़ घरों से बढ़ाकर 14.50 करोड़ से अधिक घरों तक पहुंचा दिया गया है। इसी प्रकार, पीएम आवास योजना के अंतर्गत, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में 4 करोड़ से अधिक पक्के मकान बनाए गए हैं एवं सौभाग्य योजना के अंतर्गत देश भर में 2.8 करोड़ घरों का विद्युतीकरण कर लिया गया है। विश्व भर के सबसे बड़े सरकारी वित्तपोषित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना – के अंतर्गत 55 करोड़ लाभार्थियों को माध्यमिक एवं तृतीयक देखभाल एवं अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति परिवार 5 लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है। साथ ही, पीएम गरीब कल्याण योजना के माध्यम से मुफ्त अनाज के मासिक वितरण से 80 करोड़ से अधिक परिवारों को लाभ प्राप्त हो रहा है। पीएम उज्जवल योजना के अंतर्गत 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान किये गए हैं। इन महिलाओं के जीवन में इससे क्रांतिकारी परिवर्तन आया है क्योंकि ये महिलाएं इसके पूर्व लकड़ी जलाकर अपने घरों में भोजन सामग्री का निर्माण कर पाती थीं और अपनी आंखों को खराब होते हुए देखती थीं। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत भी 12 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण कर महिलाओं की सुरक्षा एवं गरिमा को कायम रखा जा सका है। जन धन खाता योजना के अंतर्गत 52 करोड़ से अधिक खाते खोलकर नागरिकों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में लाया गया है। इससे गरीब वर्ग के नागरिकों के लिए वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है। पूरे भारत में 11,000 से अधिक जनऔषधि केंद्र स्थापित किए गए हैं, जो 50-90 प्रतिशत रियायती दरों पर आवश्यक दवाएं प्रदान कर रहे हैं। अंत में यह कहा जा सकता है कि भारत आर्थिक क्षेत्र में आज पूरे विश्व में एक चमकते सितारे के रूप में दिखाई दे रहा है एवं अपनी विकास दर को 10 प्रतिशत के ऊपर ले जाने के भरसक प्रयास कर रहा है। इससे निश्चित ही भारत शीघ्र ही पहिले विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं इसके बाद वर्ष 2027 तक भारत एक विकसित राष्ट्र भी बन जाएगा। प्रहलाद सबनानी Read more » India creates new world records every day in the economic field
आर्थिकी लेख भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती उत्पादों की मांग April 30, 2024 / April 30, 2024 | Leave a Comment भारत में आज भी लगभग 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है एवं अपने जीवन यापन के लिए मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र पर ही आश्रित रहती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार किये जा रहे विकास कार्यों के चलते इन क्षेत्रों में विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत व्यय की जाने वाली राशि में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। इससे, ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के नए अवसर निर्मित होने लगे हैं एवं ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कुछ कम हुआ है। विशेष रूप से कोरोना महामारी के खंडकाल में शहरों से ग्रामीण इलाकों की ओर शिफ्ट हुए नागरिकों में से अधिकतर नागरिक अब ग्रामीण क्षेत्रों में ही बस गए हैं एवं अपने विशेष कौशल का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिकों को प्रदान कर रहे हैं। हाल ही में जारी किए गए कुछ सर्वे प्रतिवेदनों के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग की एक नई कहानी लिखी जा रही है क्योंकि अब विभिन्न उत्पादों की मांग ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से बढ़ती दिखाई दे रही है। उपभोक्ता वस्तुओं एवं ऑटो निर्माता कम्पनियों द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में हाल ही के समय में उपभोग की जाने वाली विभिन्न वस्तुओं एवं दोपहिया एवं चार पहिया वाहनों (ट्रैक्टर सहित) की मांग में तेजी दिखाई दे रही है, जो कि वर्ष 2023 में लगातार कम बनी रही थी। यह संभवत: रबी फसल के सफल होने के चलते भी सम्भव हो रहा है। उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने भी हाल ही में सम्पन्न अपनी द्विमासिक मोनेटरी पॉलिसी की बैठक में रेपो दर में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं की है, ताकि बाजार, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के बाजार में, उत्पादों की मांग विपरीत रूप से प्रभावित नहीं हो, ताकि इससे अंततः वित्तीय वर्ष 2024-25 में देश के आर्थिक विकास की दर भी अच्छी बनी रहे। भारत में पिछले कुछ समय से ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न उत्पादों की मांग, शहरी क्षेत्रों में उपलब्ध मांग की तुलना में कम ही बनी रही है। परंतु, वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही के बाद से इसमें कुछ परिवर्तन दिखाई दिया है एवं अब ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग में तेजी दिखाई देने लगी है। यह तथ्य विकास के कुछ अन्य सूचकांकों से भी उभरकर सामने आ रहा है। जनवरी-फरवरी 2024 माह में दोपहिया वाहनों की बिक्री में, पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान की बिक्री की तुलना में, 30.3 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान दोपहिया वाहनों की बिक्री में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि दर रही है, जो हाल ही के कुछ वर्षों में अधिकतम वृद्धि दर मानी जा रही है। दोपहिया वाहनों की बिक्री ग्रामीण इलाकों (लगभग 10 प्रतिशत) में शहरी इलाकों (लगभग 7 प्रतिशत) की तुलना में अधिक रही है। महात्मा गांधी नरेगा योजना के अंतर्गत प्रदान किए जाने वाले रोजगार के अवसरों की मांग में भी फरवरी-मार्च 2024 माह के दौरान 9.8 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में निवासरत नागरिकों को रोजगार के अवसर अन्य क्षेत्रों में उपलब्ध हो रहे हैं। इसी प्रकार, ट्रैक्टर की बिक्री में भी जनवरी-फरवरी 2024 माह के दौरान 16.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में कुल 892,313 ट्रैक्टर की बिक्री हुई है जो पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 की तुलना में 7.5 प्रतिशत अधिक है। भारत के मौसम विभाग द्वारा जारी की गई भविष्यवाणी के अनुसार, वर्ष 2024 के मानसून मौसम के दौरान भारत में मानसून की बारिश के सामान्य से अधिक रहने की प्रबल सम्भावना है। इससे भारत के किसानों में हर्ष व्याप्त है क्योंकि मानसून के अच्छे होने से खरीफ की फसल के भी बहुत अच्छे रहने की सम्भावना बढ़ गई है। मौसम विभाग के सोचना है कि इस वर्ष अल नीनो के स्थान पर ला नीना का प्रभाव दिखाई देगा। अल नीनों के प्रभाव में देश में बारिश कम होती है एवं ला नीना के प्रभाव में देश में बारिश अधिक होती है। साथ ही, भारतीय किसान अब तिलहन, दलहन एवं बागवानी की फसलों की ओर भी आकर्षित होने लगे हैं। दालों, वनस्पति, फलों एवं सब्जियों के अधिक उत्पादन से किसानों की आय में वृद्धि दृष्टिगोचर है। केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न खाद्य उत्पादों की बिक्री के लिए ई-पोर्टल के बनाए जाने के बाद से तो भारतीय किसान अपनी फसलों को वैश्विक स्तर पर सीधे ही बेच रहे हैं और अपने मुनाफे में वृद्धि दर्ज कर रहे हैं। भारतीय खाद्य पदार्थों की मांग अब वैश्विक स्तर पर भी होने लगी है एवं खाद्य पदार्थों के निर्यात में भी नित नए रिकार्ड बनाए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग सामान्यतः अच्छे मानसून के पश्चात अच्छी फसल एवं विभिन्न सरकारों, केंद्र एवं राज्य सरकारों, द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों पर किए जा रहे खर्चो में बढ़ौतरी के चलते ही सम्भव होती है। केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में लागू की गई विकास की विभिन्न योजनाओं पर व्यय में लगातार वर्ष दर वर्ष वृद्धि की जा रही है एवं इसके लिए केंद्रीय बजट में भी बढ़े हुए व्यय का प्रावधान प्रति वर्ष किया जा रहा है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं एवं इन इलाकों में विभिन्न उत्पादों की मांग भी बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। नीलसन द्वारा किए गए एक सर्वे के यह बताया गया है कि जनवरी एवं फरवरी 2024 माह में भारत में विभिन्न उत्पादों की शहरी क्षेत्रों में मांग 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में मांग 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। विशेष रूप से फरवरी 2024 के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग में वृद्धि लगातार बढ़ती दिखाई दे रही है। रबी की फसल के भी अच्छे रहने की सम्भावना बलवती हुई है जिसके कारण किसानों की मनोदशा भी सकारात्मक बन रही है और यह वित्तीय वर्ष 2024-25 में देश की आर्थिक वृद्धि दर को बलवती करने के मुख्य भूमिका निभाने जा रही है। आज देश की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है यदि ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत नागरिकों की मनोवृत्ति सकारात्मक हो रही है तो निश्चित ही वित्तीय वर्ष 2024-25, आर्थिक विकास की दृष्टि से अतुलनीय परिणाम देने वाला वर्ष साबित होने जा रहा है। प्रहलाद सबनानी Read more »