कविता साहित्य कुत्तों को बिस्किट June 22, 2013 | 1 Comment on कुत्तों को बिस्किट खिलवाते कुत्तों को बिस्किट, लाखों भूखे सो जाते हैं | जनता के पैसे से नेता, जीवन भर मौज उड़ाते हैं | भारत में भूखे-नंगों को, दे नहीं पा रहे पानी तक , पाकिस्तानी जल प्लावन में, लाखों डालर दे आते हैं | घर अपना सिंगल कमरे का,सूनी आँखों का सपना है, मंत्री जी पच्चिस लाख […] Read more » कुत्तों को बिस्किट
कविता साहित्य हैरान कर देंगे June 21, 2013 | 2 Comments on हैरान कर देंगे कोई जीते कोई हारे, ये सब हैरान कर देंगे | मतों के दान के बदले, क़हर प्रतिदान कर देंगे | जो हारेंगे वे भरपाई, करेंगे लूट जनता को, जो जीतेंगे वसूली का , खुला मैदान कर देंगे | करेंगे क्षेत्र को विकसित,ये कहते हैं हमेशा सब, जहां मौका मिला,परिवार का उत्थान कर देंगे | कहा […] Read more » हैरान कर देंगे
कविता गिद्धों के भाल पर June 19, 2013 / June 19, 2013 | 1 Comment on गिद्धों के भाल पर डा.राज सक्सेना कुर्सी ही श्रेष्ट बन गई, कलि के कराल पर | कितने ही ताज सज गए,गिद्धों के भाल पर | सम्पूर्ण कोष चुक गया बाकी रहा न कुछ, नेता की आंख गढ गई, वोटर की खाल पर | इस गंदगी के खेल को, कहते हैं राज-नीति, आकंठ सन गए सभी , कीचड़ उछाल कर […] Read more »
गजल साहित्य अन्जान June 19, 2013 / June 19, 2013 | Leave a Comment एक डर अन्जान सा, हर शख़्स के मन में बसा है | चीख़ने पर भी, सज़ा-ए-मौत से बढ कर सज़ा है | चुप रहो, सुनते रहो, चुपचाप सब सहते रहो, देखना और बोलना, एक हुक्म से कुछ दिन मना है | हर ‘दुखद घटना’ पे दुख, होता है इस नेतृत्व को, भूल जाना दो दिनों […] Read more » अन्जान
जन-जागरण विवादित है ईसा मसीह की जन्मतिथि May 20, 2013 / May 20, 2013 | 1 Comment on विवादित है ईसा मसीह की जन्मतिथि डा.राज सक्सेना भगवान राम के अस्तित्व पर बेझिझक अंगुली उठा ने वालों से एक प्रश्न किया जा सकता है कि वे क्या प्रभुपुत्र ईसा मसीह की सही जन्मतिथि बता सकते हैं | अभी दो – हजार वर्ष से कुछ अधिक समय ही बीता है | विश्व का एक सबसे बड़ा समुदाय जो संसार में सबसे […] Read more » विवादित है ईसा मसीह की जन्मतिथि
प्रवक्ता न्यूज़ मैं जिंदा रह सकता हूं May 20, 2013 / May 20, 2013 | Leave a Comment तपतीधरती,तपताअम्बर,मैं तिल-तिल सह सकता हूं | इन दोनों के बीच में तप कर,मैं जिंदा रह सकता हूं | जिन से मेरे दिल के रिश्ते, देस गए तो भूल गए, गैरों को परदेस में कैसे, मैं अपना कह सकता हूं | खुशियां बांटीं गैरों को भी, रख कर दोनों हाथ खुले, मैं तो गम के साथ […] Read more » मैं जिंदा रह सकता हूं
समाज भारत में समलैंगिक(पुरूष) व्यभिचार May 18, 2013 / May 20, 2013 | Leave a Comment डा.राज सक्सेना समलैंगिक(पुरूष) व्यभिचार के सम्बन्ध में अनेक विद्वान लेखकों ने हर दिशा और हर दृष्टिकोण से खोंज की है | वे अपनी इस खोज को सुदूर अतीत में मैसोपोटामिया की संस्कृति तक ले जाने में सफल हुए हैं | इन खोज कर्त्ताओं में हैवलाक ऐलिस का नाम सर्वप्रमुख है | अधिकतर खोजकर्त्ता इसकी उत्पत्ति का […] Read more »