कविता
स्त्री
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स्त्री होना, एक सहज सा अनुभव है क्यों, क्या क्या वो सब है कुछ नहीं नारी के रूप को सुन, गुन मैं संतुष्ट नहीं था बहन, बेटी, पत्नी, प्रेमिका इनका स्वरुप भी कितना विस्तृत हो सकता, जितना ब्रह्मांड, का होता है जब जाना, नारी उस वट वृक्ष को जन्म देती है जिसकी पूजा संसार करता […]
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