पर्यावरण लेख जल की बूंद-बूंद पर संकट: नीतियों के बावजूद क्यों प्यासी है भारत की धरती? June 30, 2025 / June 30, 2025 | Leave a Comment भारत दुनिया की 18% आबादी और मात्र 4% ताजे जल संसाधनों के साथ गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। भूजल का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण, असंतुलित खेती, और जलवायु परिवर्तन इसके प्रमुख कारण हैं। सरकारी योजनाओं और नीतियों के बावजूद कार्यान्वयन और जनभागीदारी की कमी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं। जल संरक्षण […] Read more » जल की बूंद-बूंद पर संकट
कविता रिक्त संपादकीय June 27, 2025 / June 27, 2025 | Leave a Comment डॉ. सत्यवान सौरभ स्याही की धार थम गई,शब्दों ने आत्महत्या कर ली,अख़बार का कोना ख़ाली है,जैसे लोकतंत्र ने मौन धर ली। न सेंसर की मुहर लगी,न टैंक चले, न हुक्मनामा,फिर भी हर कलम काँप रही है —शायद डर का रंग बदला है अबकी दफ़ा। जो लिखता है, वो बिकता है,जो चुप है, वही अब ज़िंदा […] Read more » रिक्त संपादकीय
आलोचना क्या पुरस्कार अब प्रकाशन-राजनीति का मोहरा बन गए हैं? June 23, 2025 / June 23, 2025 | Leave a Comment डॉ. सत्यवान सौरभ “साहित्य समाज का दर्पण होता है।” यह वाक्य हमने न जाने कितनी बार पढ़ा और सुना है। परंतु आज साहित्य के दर्पण पर परतें चढ़ चुकी हैं—राजनीतिक, प्रकाशकीय और प्रतिष्ठान-प्रेरित परतें। प्रश्न यह नहीं है कि कौन किससे छप रहा है। प्रश्न यह है कि क्या हिंदी साहित्य का पुरस्कार अब केवल […] Read more » Have awards now become pawns of publishing politics? पुरस्कार अब प्रकाशन-राजनीति का मोहरा
राजनीति ‘तृतीय परमाणु युग’: बदलती दुनिया और डगमगाते वैश्विक मानदंड June 21, 2025 / June 23, 2025 | Leave a Comment रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन की आक्रामकता और उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों के बीच दुनिया एक नए परमाणु युग में प्रवेश कर चुकी है। पुरानी संधियाँ निष्क्रिय हो रही हैं, और तकनीकी प्रगति जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता व हाइपरसोनिक मिसाइलें परमाणु जोखिम को बढ़ा रही हैं। इस युग में न केवल शक्ति-संतुलन अस्थिर है, बल्कि वैश्विक संस्थाओं […] Read more » The ‘Third Nuclear Age’: A changing world and faltering global norms Third Nuclear Age तृतीय परमाणु युग
कविता योग साधना June 21, 2025 / June 22, 2025 | Leave a Comment योग भगाए रोग सब, करता हमें निरोग।तन-मन में हो ताजगी, सुखद बने संयोग।। योग साधना जो करे, भागे उसके भूत।आलस रहते दूर सब, तन रहता मजबूत।। खुश रहते हर पल सदा, जीवन में वो लोग।आत्म और परमात्म का, सदा कराते योग।। योग करें तो रोग सब, भागे कोसों दूर।जीवन सुखदाई बने, चमके खुशियां नूर।। योगासन […] Read more » योग साधना
लेख समाज रिश्तों के लाश पर खड़ा आधुनिक प्रेम June 10, 2025 / June 10, 2025 | Leave a Comment इंदौर के राजा और सोनम के मेघालय हनीमून पर हुई हत्या की घटना न केवल व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि सामाजिक, नैतिक और मानसिक स्तर पर गहरी चिंता पैदा करती है। यह अपराध आधुनिक प्रेम और विवाह संबंधों में फैलते अविश्वास और स्वार्थ की भयावह तस्वीर पेश करता है। साथ ही, मेघालय जैसे पर्यटन स्थलों की […] Read more » राजा और सोनम
मनोरंजन मोबाइल की लत और विड्रॉल सिंड्रोम: बच्चों को दे रही तनाव की सौगात June 9, 2025 / June 9, 2025 | Leave a Comment मोबाइल की बढ़ती लत ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। विड्रॉल सिंड्रोम के तहत बच्चे मोबाइल से दूर होने पर गुस्सा, चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, और सामाजिक दूरी जैसे लक्षण दिखाते हैं। यह समस्या अब चिकित्सा स्तर पर सामने आने लगी है। इसका समाधान है — डिजिटल अनुशासन, आउटडोर […] Read more » Mobile addiction and withdrawal syndrome मोबाइल की लत और विड्रॉल सिंड्रोम
कविता मैंl वह बड़ा बेटा हूँ June 8, 2025 / June 9, 2025 | Leave a Comment ✍️ डॉ. सत्यवान सौरभ मैं वह बड़ा बेटा हूँ,जिसने हँसकर जीवन की आग पिया है।जिसने चुपचाप लुटा अपना यौवन,और घर का भाग्य सिया है। जो माँ की छाया बना रहा,पिता की लाठी बन कर चला,भाई की पढ़ाई में खो गया,बहन की शादी में गल गया। सपनों का शव ढोता रहा,अपनों का ऋण ढोता रहा।न मोल […] Read more » I am the elder son मैंl वह बड़ा बेटा हूँ
राजनीति कुदरत के सबक को कब पढ़ेगा इंसान? June 6, 2025 / June 6, 2025 | Leave a Comment पाँच साल पहले कोविड-19 लॉकडाउन ने जहां दुनिया की अर्थव्यवस्था को झकझोरा, वहीं पर्यावरण को राहत दी। वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैसों और औद्योगिक उत्सर्जन में गिरावट ने साबित किया कि प्रकृति को सुधारना संभव है। नदियाँ स्वच्छ हुईं, आसमान नीला दिखा, और हवा शुद्ध हुई। यह लेख महामारी के माध्यम से प्रकृति की चेतावनी और […] Read more » When will man learn the lesson of nature कुदरत के सबक
कविता जब आँसू अपने हो जाते हैं June 4, 2025 / June 4, 2025 | Leave a Comment डॉ सत्यवान सौरभ जीवन के इस सफ़र में,हर मोड़ पर कोई न कोई साथ छोड़ देता है,कभी उम्मीद, कभी लोग —तो कभी ख़ुद अपनी ही परछाईं पीछे रह जाती है। हर हार सिर्फ हार नहीं होती,वो एक आईना होती है —जिसमें हम देखते हैं अपना असली चेहरा,बिना मुखौटे, बिना तालियों के शोर के। जब आँखें […] Read more » When tears become your own जब आँसू अपने हो जाते हैं
कविता सांस की कीमत पूछी गई June 3, 2025 / June 3, 2025 | Leave a Comment साँस-साँस को मोहताज किया,जीवन को नीलाम किया।मासूम थी, बस एक साल की,फिर भी व्यवस्था ने इनकार किया। “वेंटिलेटर चाहिए?” — पूछा गया,“सिफ़ारिश है?” — तौल कर कहा।दोपहर से लेकर रात तलक,बच्ची की साँसों ने दस्तक दी हर पल। कभी सिस्टम की फाइल में अटकी,कभी डॉक्टरों के मुँह के फेर में भटकी।कंधे पर बैठी थी ममता […] Read more »
कविता दर्द से लड़ते चलो June 3, 2025 / June 3, 2025 | Leave a Comment (आत्महत्या जैसे विचारों से जूझते मन के लिए) ज़िंदगी जब करे सवाल,और उत्तर न मिले हर हाल,तब भी तुम थक कर बैठो नहीं,आँखों में आँसू हो, पर बहो नहीं। देखा है मैंने अस्पतालों में,साँसों को बचाने की जंग में,कोई ज़मीन बेचता है,कोई गहने गिरवी रखता है।जीवन को जीने की कीमत,हर दिन वहाँ कोई चुकाता है। […] Read more » दर्द से लड़ते चलो