लेख दोस्ती या मौत की सैर: युवाओं की असमय विदाई का बढ़ता सिलसिला June 2, 2025 / June 2, 2025 | Leave a Comment “जब यार ही यमराज बन जाएं, तो मां-बाप किस पर भरोसा करें?” – डॉ सत्यवान सौरभ हरियाणा में इन दिनों एक डरावना चलन पनपता दिख रहा है। हर हफ्ते कहीं न कहीं से यह खबर आती है कि कोई युवा दोस्तों के साथ घूमने गया और लौट कर अर्थी में आया। ये घटनाएं केवल अखबार […] Read more » Friendship or a walk of death: The increasing trend of untimely departure of youth
कविता सात सन्नाटे, एक संसार May 28, 2025 / May 28, 2025 | Leave a Comment एक घर था कभी, जहाँ हँसी भी गूंजती थी,आज वहीं शून्य की चीत्कार सुनाई देती है।सात देहें, सात कहानियाँ, सात मौन प्रश्न,और हम सब — अब भी चुप हैं… केवल देखते हैं। कहते हैं — “क्यों नहीं बताया?”पर क्या कभी हमने पूछा था — “कैसे हो?”कभी चाय पर बैठकर पूछा होतातो शायद ज़हर के प्याले […] Read more » Seven silences आत्महत्या
कविता रिश्तों की रणभूमि May 27, 2025 / May 27, 2025 | Leave a Comment लहू बहाया मैदानों में,जीत के ताज सिर पर सजाए,हर युद्ध से निकला विजेता,पर अपनों में खुद को हारता पाए। कंधों पर था भार दुनिया का,पर घर की बातों ने झुका दिया,जिसे बाहरी शोर न तोड़ सका,उसी को अपनों के मौन ने रुला दिया। सम्मान मिला दरबारों में,पर अपमान मिला दालानों में,जहां प्यार होना चाहिए था,मिला […] Read more » The Battlefield of Relationships रिश्तों की रणभूमि
कविता स्वार्थ की सिलवटें May 26, 2025 / May 26, 2025 | Leave a Comment चेहरों पर मुस्कानें हैं,पर दिलों में दूरी है।रिश्ते हैं बस नामों के,हर सूरत जरूरी है। हर एक ‘कैसे हो’ के पीछे,छुपा होता है सवाल,“तुमसे क्या हासिल होगा?”,नहीं दिखता कोई हाल। ईमान यहाँ बोली में है,नीलाम हर मज़बूरी है।जो बिक न सका आज तलक,कल उसकी मजबूरी है। धर्म, जात, सियासत सब,अब सौदों की भाषा हैं,बिकते हैं […] Read more » स्वार्थ की सिलवटें
कविता घर के भेदी May 22, 2025 / May 22, 2025 | Leave a Comment ये कौन लोग हैं जो मुल्क बेच आते हैं,चंद सिक्कों में ज़मीर सरेआम ले जाते हैं।न बम चले, न बारूद की ज़रूरत पड़ी,अब तो दुश्मन को बस एक चैट भा जाती है।जिसे पढ़ाया था कल देशभक्ति के पाठ,वो ही फाइलें अब व्हाट्सऐप पे दिखा जाती है।हमने ही अपने घर में दी थीं दीवारें,अब उन्हीं से […] Read more » home piercing घर के भेदी
कविता बिकती वफ़ादारी, लहूलुहान वतन May 20, 2025 / May 20, 2025 | Leave a Comment किसने बेची थी, ये हवाओं की खुशबू,किसने कांपती जड़ों में, जहर घोला था,किसने गिरवी रखी थी, मिट्टी की सुगंध,किसने अपने ही आंगन को, लहूलुहान बोला था। तब तलवारें चुप रहीं,घोड़ों ने रासें छोड़ दीं,दरवाजों ने रोशनी सेनज़रें मोड़ लीं। जब जयचंदों ने रिश्तों की ज़मीन बेच दी,मीर जाफरों ने गंगा की लहरें गिरवी रख दीं,तब […] Read more » बिकती वफ़ादारी लहूलुहान वतन
कविता देश की पीठ में खंजर May 18, 2025 / May 22, 2025 | Leave a Comment गद्दारों की बिसात बिछी, देश की मिट्टी रोती है,सीमा के प्रहरी चीख उठे, जब अंदर से चोट होती है।ननकाना की राहों में छुपा, विश्वास का बेईमान,पैसों की खातिर बेच दिया, अपना पावन हिंदुस्तान।मंदिर-मस्जिद की आड़ में, देशद्रोह का बीज पनपता,सोने की चिड़िया का कंठ घुटा, जब अंदर से लहू बहता। ज्योति ने छल की ज्वाला […] Read more » देश की पीठ में खंजर
राजनीति गद्दारी का जाल: देश की सुरक्षा पर मंडराता खतरा May 18, 2025 / May 22, 2025 | Leave a Comment भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद NIA ने देशभर में 25 ISI एजेंटों को गिरफ्तार किया है, जो देश की सुरक्षा पर मंडराते खतरे की गंभीरता को उजागर करता है। कैथल से देवेंद्र सिंह, हिसार से ज्योति मल्होत्रा, दिल्ली से जमशेद और कैराना से नोमान इलाही जैसे लोगों ने गद्दारी की सीमाएं लांघते […] Read more » गद्दारी का जाल
बच्चों का पन्ना सपनों के पर May 17, 2025 / May 17, 2025 | Leave a Comment चिड़िया सी उड़े, सपनों की डोर,आसमान छूने का हो हर ओर शोर।नन्हे पंखों में हो इतनी ताक़त,हर मुश्किल से लड़ने का हो हिम्मत। तारों की चमक, चाँद की चांदनी,बचपन की हँसी, प्यारी सी नादानी।धरती पे पाँव, आँखों में आसमान,छोटे कदमों से रचें नये आयाम। हाथों में कंचे, दिल में उमंग,मिट्टी की खुशबू, सपनों की तरंग।आगे […] Read more » सपनों के पर
राजनीति प्रशासन से पॉपुलैरिटी तक: आईएएस अधिकारियों का डिजिटल सफर May 15, 2025 / May 15, 2025 | Leave a Comment “आईएएस अधिकारी: सोशल मीडिया स्टार या सच्चे सेवक?” आईएएस अधिकारियों का सोशल मीडिया पर बढ़ता रुझान एक नई चुनौती बनता जा रहा है। वे इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ट्विटर पर नीतियों से जुड़ी जानकारियाँ और प्रेरणादायक कहानियाँ साझा कर रहे हैं, जो जागरूकता बढ़ा सकती हैं। लेकिन क्या यह डिजिटल स्टारडम उनकी वास्तविक प्रशासनिक जिम्मेदारियों से […] Read more » From administration to popularity The digital journey of IAS officers
कविता युद्ध से युद्धविराम तक May 11, 2025 / May 11, 2025 | Leave a Comment रक्त से लथपथ इतिहास,धधकते ग़ुस्से की ज्वाला,सरहदों पर टकराती हैं चीखें,जिन्हें सुनता कौन भला? वो शहादतें, वो बारूदी हवाएँ,टूटते काफिले, बिखरते सपने,दिल्ली से कराची तक,हर घर में गूँजती कराहें। मटमैली लहरों में घुला लाल,सिंधु का मौन, झेलम की पुकार,दूर कहीं बंकरों में सुलगते हैं रिश्ते,धरती माँ की बिंधी मांग की तरह। लेकिन फिर भी,आसमान में […] Read more » From war to ceasefire युद्ध से युद्धविराम तक
कविता दम है तो तो फिर कहना—”मोदी को बता देना।” May 9, 2025 / May 11, 2025 | Leave a Comment आता हमें हर शत्रु को जड़ से मिटा देना,दम है तो तो फिर कहना—”मोदी को बता देना।”कलमा पढ़कर बना मुल्क, बलमा बना मुनीर,घर में घुसकर हुआ हलाला, चाहते है कश्मीर। बाल न बांका कर सके, रच कितने दुष्चक्र,हिंद के रक्षक जब बने, हरी-सुदर्शनचक्र।शांति लगे जब दाव पर, हम भी करते युद्ध,कृष्ण बने अब सारथी, नहीं […] Read more » “Tell this to Modi.” If you have the courage then say मोदी को बता देना