कविता सिंदूर तो सिर्फ झांकी है, मेहंदी और हल्दी बाकी है May 8, 2025 / May 8, 2025 | Leave a Comment ** सिर्फ सिंदूर से क्या होगा,आग अभी सीने में बाकी है।खून में जो लावा बहता है,उसमें हल्दी की तासीर बाकी है। फिर से हवाओं को रुख देना है,इंकलाब की आंधी बाकी है।धधकते शोलों में रंग भरना है,अभी मेहंदी की सरगर्मी बाकी है। रास्तों पर बिछी हैं दीवारें,पर हमारे इरादों की ऊँचाई बाकी है।सिर्फ झांकी दिखी […] Read more » mehndi and turmeric are still left of operation sindoor operation sindoor Sindoor is just a glimpse सिंदूर तो सिर्फ झांकी है
राजनीति ऑपरेशन सिंदूर: आतंकवाद के खिलाफ भारत की निर्णायक कार्रवाई May 8, 2025 / May 11, 2025 | Leave a Comment भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादियों के 9 ठिकानों को नष्ट किया, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे प्रमुख आतंकवादी संगठनों के हेडक्वार्टर भी शामिल थे। भारतीय सेना ने 100 किलोमीटर तक पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादी अड्डों पर सटीक एयरस्ट्राइक की। साथ ही, भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने पाकिस्तान […] Read more » Operation Sindoor: India's decisive action against terrorism ऑपरेशन सिंदूर
राजनीति पहलगाम में आतंकी हमला: राष्ट्र के साथ खड़े होने का समय April 30, 2025 / April 30, 2025 | Leave a Comment प्रश्न पूछने के अवसर भी आएँगे, अभी राष्ट्र के साथ खड़े होने का समय है। राष्ट्र सर्वोपरि। हाल की पहलगाम घटना में एक हिंदू पर्यटक को आतंकवादियों ने धार्मिक पहचान के आधार पर निशाना बनाया। यह घटना केवल एक हत्या नहीं, बल्कि भारत की आत्मा पर हमला है। आतंकवादियों का उद्देश्य कश्मीर को अस्थिर करना […] Read more » पहलगाम में आतंकी हमला
लेख घाटी के आँसू April 30, 2025 / April 30, 2025 | Leave a Comment घाटी जहाँ फूल खिलते थे, अब वहाँ सिसकती शाम,वेदना की राख पर टिकी, इंसानियत की थाम।कहाँ गया वह शांति-सूर्य, जो पूरब से उठता था?आज वहाँ बस मौन है, जहाँ कल गीत बहता था। पहलगाम की घाटियाँ, रोईं बहाये नीर।धर्म पे वार जो हुआ, मानवता अधीर।संगिनी का चीखना, गूँजा व्याकुल शोर।छिन गया पल एक में, उसका […] Read more » घाटी के आँसू
कविता अक्षय तृतीया 🌼 April 29, 2025 / April 29, 2025 | Leave a Comment वैशाख की उजली बेला आई,धूप सुनहरी देहरी पर छाई।अक्षय तृतीया का मधुर निमंत्रण,पुण्य-सुधा में डूबा आचमन। न मिटने वाला पुण्य का सूरज,हर मन में भर दे स्वर्णिम किरण।सच की थाली, धर्म का दीपक,दान की बूंदें, जीवन समर्पण। परशुराम की वीरगाथा बोले,गंगा की लहरें चरणों में डोले।युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला,सत्य का दीप फिर से खिला। […] Read more » अक्षय तृतीया
कहानी मेहमान April 28, 2025 / April 28, 2025 | Leave a Comment पाँच की मैगी साठ में खरीदी,सौदा भी कोई सौदा था?खच्चर की पीठ पे दो हज़ार फेंके,इंसानियत भी कोई इरादा था? बीस के पराठे पर दो सौ हँस कर,पचास टिप फोटो वाले को,हाउस बोट के पानी में बहा दिएहज़ारों अपने भूखे प्याले को। नकली केसर की खुशबू मेंअपनी सच्चाई गँवा बैठे,सिन्थेटिक शाल के झूठे रेशों मेंअपने […] Read more » मेहमान
लेख पशु सेवा, जनसेवा से कम नहीं April 26, 2025 / April 26, 2025 | Leave a Comment “विश्व पशु चिकित्सा दिवस पर एक विमर्श” विश्व पशु चिकित्सा दिवस हर साल अप्रैल के अंतिम शनिवार को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य पशु चिकित्सकों की भूमिका को सम्मान देना और पशु स्वास्थ्य, मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के आपसी संबंधों पर ध्यान केंद्रित करना है। यह लेख बताता है कि कैसे पशु चिकित्सक सिर्फ जानवरों […] Read more » पशु सेवा पशु सेवा जनसेवा से कम नहीं विश्व पशु चिकित्सा दिवस
व्यंग्य नेताओं की मोहब्बत और जनता की नादानी April 25, 2025 / April 25, 2025 | Leave a Comment राजनीति की रंगमंचीय दुश्मनी और जनता की असली बेवकूफी कभी किरण चौधरी और शशि थरूर मंचों पर एक-दूसरे के खिलाफ़ खड़े होते हैं, कभी हिंदू-मुस्लिम के नाम पर पार्टियों की नीतियाँ बँटती हैं, और इसी बीच पिसती है आम जनता। क्या हमने कभी सोचा कि ये नेता तो एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं, कार्यक्रमों में […] Read more » The love of leaders and the ignorance of the public
कविता पहलगाम के आँसू April 23, 2025 / April 23, 2025 | Leave a Comment वो बर्फ से ढकी चट्टानों की गोद में,जहाँ हवा भी गुनगुनाती थी,जहाँ नदियाँ लोरी सुनाती थीं,आज बारूद की गंध बसी है। वो हँसी जो बाइसारन की घाटियों में गूँजी,आज चीखों में तब्दील हो गई।टट्टू की टापों के संग जो चला था सपना,खून में सना हुआ अब पथरीले रास्ते पर गिरा है। एक लेफ्टिनेंट — विनय,जिसने […] Read more » पहलगाम के आँसू"
लेख प्राइवेट सिस्टम का खेल: आम आदमी की जेब पर हमला April 11, 2025 / April 11, 2025 | Leave a Comment भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकार आज निजी संस्थानों के लिए मुनाफे का जरिया बन चुके हैं। प्राइवेट स्कूल सुविधाओं की आड़ में अभिभावकों से मनमाने शुल्क वसूलते हैं—ड्रेस, किताबें, यूनिफॉर्म, कोचिंग—सब कुछ महँगा और अनिवार्य बना दिया गया है। वहीं, प्राइवेट हॉस्पिटल डर और भ्रम का माहौल बनाकर मरीजों से मोटी रकम […] Read more » The game of the private system: Attack on the common man's pocket प्राइवेट सिस्टम का खेल
कविता फूले का भारत April 11, 2025 / April 11, 2025 | Leave a Comment शूद्र अछूत कहे जिन्हें, जीवन भर लाचार।फूले ने दी सीख तो, खोला ज्ञान-द्वार॥ यज्ञ-जपों की आड़ में, होता रहा प्रपंच।फूले ने जब कहा ‘नहीं’ , टूटा झूठा मंच॥ शिक्षा जिसकी साधारणी, खोले सौरभ द्वार।भेदभाव के जाल से, होता तभी उद्धार॥ सावित्री को साथ ले, रच दी नयी मिसाल।नारी पढ़े, बढ़े तभी, बदले सारे ख्याल॥ पैसे […] Read more » फूले का भारत
समाज साक्षात्कार सार्थक पहल मीडिया, स्त्री और सनसनी: क्या हम न्याय कर पा रहे हैं? April 9, 2025 / April 9, 2025 | Leave a Comment “धोखे की खबरें बिकती हैं, लेकिन विश्वास की कहानियाँ दबा दी जाती हैं — क्या हम संतुलन भूल गए हैं?” मीडिया में स्त्रियों की छवि और उससे जुड़ी सनसनीखेज रिपोर्टिंग ने आज गंभीर सवाल पैदा कर दिये है। कुछ घटनाओं में स्त्रियों द्वारा किए गए अपराधों को मीडिया बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता है, जिससे पूरे स्त्री वर्ग […] Read more » media women and sensationalism women and sensationalism: Are we doing justice? मीडिया स्त्री और सनसनी स्त्री और सनसनी: क्या हम न्याय कर पा रहे हैं