क्या इस बार अयोध्या मसले का हल होगा?

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-पंकज चतुर्वेदी

इस समय सारे देश की निगाहें उत्तर-प्रदेश पर टिकी है, संभवता २४ सितम्बर को देश सबसे संवेदनशील राम जन्म-भूमि विवाद का कोई ठोस, सशक्त और सार्थक न्यायिक निर्णय देश के सामने आये। इस सब को लेकर देश भर में जिज्ञासा का वातावरण है ,वही सरकारें को भी अपनी पूरी दम-ख़म लगनी पड़ रही है कि कहीं कोई अप्रिय स्तिथि बने तो शासन-प्रशासन सजग रहे। देश के अनेक राज्यों में विशेष रूप से हिंदी भाषी क्षेत्रों में पुलिस के लोगो की छुट्टीयां भी रद्द कर दी गयी है। आम जनता ने भी २४ सितम्बर के आस-पास सामाजिक और सार्वजनिक आयोजन स्थगित कर दिए है।

यद्यपि यह मामला आज से लगभग एक सौ पच्चीस वर्ष पूर्व अंग्रेजों के शासन काल में ही अदालत पहुच गया था। उस समय हिंदुओं की प्रमुख धार्मिक संस्था निर्मोही अखाड़े ने मस्जिद से सटे राम चबूतरे पर मंदिर निर्माण का हक माँगा था, लेकिन तब की न्याय–व्यवस्था इस मांग से सहमत नहीं हुई क्यों की तत्कालीन सरकार को ऐसा अंदेशा था कि इस से कहीं खून-खराबा और सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा ना मिल जाये। शायद उस समय कुछ परिणाम आ जाता तो अब तक इस मुद्दे को लेकर हमेशा बना रहने वाला सांप्रदायिक तनाव समाप्त हो गया होता। हालाँकि उस न्यायालय ने ये माना था कि यह स्थान हिंदुओ के लिए पवित्र और धार्मिक आस्था का केंद्र है।

इस सदियों पुराने विवाद से भारत की अब तक की सभी सरकारों से अपना दमन बचाया है, जिनमे मंदिर मुद्दे की दम पार सत्ता पाने वाले दक्षिणपंथी दल भी शामिल है ,लेकिन इस मुद्दे को इतना लंबित रखने से इसे इतनी आग मिल चुकी है कि यदि कुछ भी अप्रिय हो तो उसकी चिंगारियां पूरे देश के सामाजिक ताने-बाने को झुलसने के लिए पर्याप्त है।

वर्तमान विवाद का केंद्र १९४९ की वो घटना है जब मूर्तियों को कथित तौर पर उस जगह रख दिया गया ,जहाँ मुस्लिम पक्ष मस्जिद होने का दावा करता है। प्राथमिक द्वन्द इस बात को लेकर है कि इन मूर्तियों को राम चबूतरे पर रखा जाये या फिर जहाँ स्थापित है,वहाँ ही पूजा –अर्चना हो। दिसम्बर १९४९ में स्थानीय पुलिस ने अपनी और से मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने को लेकर एक मुकदमा भी दर्ज कराया है। इसी मुक़दमे के आधार पर २९दिसंबर१९४९से मस्जिद कुर्क कर ताला लगा दिया गया है एवं इन मूर्तियों की पूजा का जिम्मा स्थानीय नगर-पालिका को दिया गया था।

इसे पूर्व यह तर्क भी सामने आया कि १९३४ में स्थानीय स्तर पर हुए दंगे-फसाद के बाद से इस स्थान पर नमाज़ नहीं पढ़ी गयी है लेकिन मंदिर और मूर्तियों की पूजा अर्चना सतत जारी है। मुस्लिम पक्ष का तर्क है की सन१५२८ में इस मस्जिद का निर्माण सम्राट बाबर ने किया था और तब से १९४९ तक बराबर स्थल का उपयोग मस्जिद के रूप में होता रहा है,इसलिए इसे मस्जिद माना जाये।

आज ६ दशक के लंबे अंतराल ने अब इस मुद्दे की दिशा पूर्णत परिवर्तित कर दी है। १९८४ तक तो यह मामला अयोध्या से लेकर लखनऊ के बीच ही घूमता रहा था। इस के बाद राम जन्मभूमि यज्ञ समिति ने विश्व हिंदू परिषद और संघ के समर्थन से इस विवाद को उत्तर प्रदेश से निकलकर पूरे देश में फैला दिया। इसी की दम पर देश में दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी ने अपना आधार एवं सरकारें हासिल करीं है। लेकिन सरकार में रहने के बाद भी वो इसका वो हल नहीं ढूंढ पाए और आज इस मुद्दे की फंस देश में हर आम और खास को चुभ रही है।

२४ तारीख को उच्च–न्यायालय को मुख्य रूप से ये निर्णय करना है की क्या विवादित स्थल भगवान श्रीराम की जन्म भूमि है, और क्या विवादित मस्जिद किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर निर्मित की गयी है?

इस मामले को लेकर किये गये अब तक के समस्त सरकारी ,धार्मिक और सामाजिक प्रयास हमेशा ही विफल हुए है। हर बात-चीत सदा ही बिना नतीजे के समाप्त हुई है और तो और देश के सुप्रीम कोर्ट तक ने १९८४ में इस मामले से यह कहते हुए किनारा कर लिया के वो ये निर्णय नहीं कर सकता की विवादित मस्जिद किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गयी है।

ऐसे नाजुक मसले का हल अब यू.पी.उच्च न्यायालय के हाथ में है, जिसे सबूतों, दस्तावेज़ और पुरातात्विक रिपोर्टों के आधार पर अपना फैसला देना है। ऐसी जानकारी है कि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट विवादित मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर और मूर्तियों के अवशेष मिलने की पुष्टि कर रही है, वही मुस्लिम पक्ष इस रिपोर्ट से असहमति जताते हुए इसे सबूत के तौर पर शामिल किये जाने व मानने से इंकार कर रहा है।

निर्मोही अखाड़ा,राम-जन्मभूमि न्यास, राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति, हिंदू महासभा और आर्य प्रादेशिक सभा हिंदू पक्ष और सुन्नी वक्फ बोर्ड, जमीयत–ऐ-उलेमा हिंद, शिया वक्फ़ बोर्ड, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी आदि संस्थाएं मुस्लिम पक्ष की और से कमान सम्हालें है।

१९९२ के बाद सरकार केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में ७० एकड़ भूमि अधिग्रहित की थी और सन१९९४ में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस अधिग्रहण को उचित माना था और दोनों पक्ष भी इस से सहमत है, अब झगड़ा सिर्फ विवादित लगभग ७०० वर्ग फीट के लिया है जिस पर मंदिर और मस्जिद होने के दावे है।

दुख यह है की देश में आज भी रोटी, शिक्षा, स्वस्थ और रोजगार जैसी बड़ी चुनौतियों हमारे सामने है फिर भी हम सब आज भी इस बात को लेकर हैरान है,कि वहाँ मंदिर होगा या मस्जिद।

हमारे राज-नेताओं ने इस मुद्दे पर खूब राजनीतिक–व्यापार किया और लाभ भी कमाया लेकिन हम आम जनता की झोली आज भी खाली है और ये भी निश्चित है की यदि कोई दंगा–फसाद हुआ तो आम जनता ही पिसेगी फिर वो तिलक वाला हो या टोपी वाला। समय है कि हम सब को अब इस मुद्दे को धार्मिक चश्मे से नहीं देखना होगा नहीं तो हम फिर उन धर्म के ठेकदारों के हथियार बन जायेंगे जो अपने राजनीतिक लाभ के लिए हमें सूली पर चढा देते है।

1 COMMENT

  1. बहुत -बहुत धन्यवाद की विवाद की जड़ में जाकर भी आपने सच्चाई का दामन नहीं छोड़ा ..आज बुद्धिजीवियों ,पत्रकारों तथा साहितिय्कारों की यह एतिहासिक जिम्मेदारी है की देश की जग हंसाई ने होने पाए .तमाम हिदू भाई बहिनों से निवेदन है की अफवाहों या बहकावे में न आयें .किसी भी पार्टी को यह हक नहीं की कोर्ट की अवज्ञा करे .इसी तरह तमाम मुस्लिम भाइयों से निवेदन है की धैर्य न खोएं अपने बिरादर दोस्तों को भी यही समझाईस दें की भारत ही दुनिया का सबसे महान लोकतंत्र है जहाँ पर सभी के धर्म -मजहब -आस्था और विश्वास महफूज हैं
    देश की बहुमत जनता का विश्वास लोकतंत्र ,सम्विधान और धर्मनिरपेक्षता पर है अतेव भट्कानेवाले सफल नहीं होंगे -हिन्दू को राम -राम -मुस्लिम को सलाम
    एक धर्मनिरपेक्ष -अहिंसावादी =मजदूर की पुकार .

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