बाबा रामदेव और अन्ना के अनशन

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

पिछले कुछ महिनों में भारत में पहली बार जनता भ्रष्टाचार के विरुद्ध आक्रोशित दिखी है| पहले जनता को अन्ना हजारे में अपना हितैषी नजर आया और जनता उनके साथ रोड पर उतर आयी, उसके कुछ समय बाद ही बाबा रामदेव ने भी अन्ना से भी बड़ा जनान्दोलन खड़ा करने के इरादे से देशभर में घूम-घूम कर आम जनता को अपने साथ आने के लिये आमन्त्रित किया| जिसके परिणामस्वरूप बाबा रामदेव के साथ भीड़ तो एकजुट हुई, लेकिन आम जनता नहीं आयी|

यदि इसके कारणों की पड़ताल करें तो पहले हमें यह जानना होगा कि जहॉं अन्ना के साथ देशभर के आम लोग बिना बुलाये आये थे, वहीं बाबा के बुलावे पर भी देश के निष्पक्ष और देशभक्त लोगों ने उनके साथ सड़क पर उतरना जरूरी क्यों नहीं समझा? इसके अलावा यह भी समझने वाली महत्वपूर्ण बात है कि अन्ना का आन्दोलन खतम होते-होते अन्ना-मण्डली का छुपा चेहरा भी लोगों के सामने आ गया और बचा खुचा जन लोकपाल समिति की बैठकों के दौरान पता चल गया| अन्ना की ओर से नियुक्त सदस्यों पर और स्वयं अन्ना पर अनेक संगीन आरोप सामने आ गये, जिनकी सच्चाई तो भविष्य के गर्भ में छिपी है, लेकिन इन सबके चलते अन्ना की निष्कलंक छवि धूमिल अवश्य दिखने लगी|

अन्ना अनशन के बाद देश की आम जनता अपने आपको ठगा हुआ और आहत अनुभव कर रही थी, ऐसे समय में बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार एवं कालेधन को लेकर देश की राजधानी स्थित रामलीला मैदान में अनशन शुरू किया तो केन्द्र सरकार के मन्त्रियों ने उनकी अगवानी की और मन्त्रियों के समूह से चर्चा करके आमराय पर पहुँचकर समझौता कर लेने के बाद भी बाबा ने अपना अनशन नहीं तोड़ा| इसके विपरीत बाबा के मंच पर साम्प्रदायिक ताकतों और देश के अमन चैन को बार-बार नुकसान पहुँचाने वाले लोग लगातार दिखने लगे, जिससे जनता को इस बात में कोई भ्रम नहीं रहा कि बाबा का अनशन भ्रष्टाचार या कालेधन के खिलाफ नहीं, बल्कि एक विचारधारा और दल विशेष द्वारा प्रायोजित था, जिसकी अनशन खतम होते-होते प्रमाणिक रूप से पुष्टि भी हो गयी|

बाबा के आन्दोलन से देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आम लोगों की मुहिम को बहुत बड़ा घक्का लगा है| बाबा योगी से समाज सेवक और अन्त में राजनेता बनते-बनते कहीं के भी नहीं रहे| उनकी शाख बुरी तरह से गिर चुकी है| इस प्रकार के लोगों के कारण जहॉं भ्रष्ट और तानाशाही प्रवृत्तियॉं ताकतवर होती हैं, वहीं दूसरी ओर आम लोगों की संगठित और एकजुट ताकत को घहरे घाव लगते हैं| आम लोग जो अन्ना की मण्डली की करतूतों के कारण पहले से ही खुद को लुटा-पिटा और ठगा हुआ अनुभव कर रहे थे, वहीं बाबा के ड्रामा ब्राण्ड अनशन के कारण स्वयं बाबा के अनुयायी भी अपने आपको मायूस और हताशा से घिरा हुआ पा रहे हैं|

बाबा ने हजारों लोगों को शस्त्र शिक्षा देने का ऐलान करके समाज के बहुत बड़े निष्प्क्ष तबके को एक झटके में ही नाराज और अपने आप से दूर कर दिया और देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तालिबानी छबि में बदलने का तोगड़िया-ब्राण्ड अपराध अंजाम देने का इरादा जगजाहिर करके अपने गुप्त ऐजेण्डे को सरेआम कर दिया| रही सही कसर भारतीय जनता पार्टी की डॉंस-मण्डली ने सत्याग्रह के नाम पर पूरी कर दी|

इन सब बातों से केन्द्र सरकार को भ्रष्टाचार के समक्ष झुकाने और कठोर कानून बनवाने की देशव्यापी मुहिम को बहुत बड़ा झटका लगा है| आम लोग तो प्रशासन, सरकार और राजनेताओं के भ्रष्टाचार, मनमानी और अत्याचारों से निजात पाने के लिये अन्ना और बाबा का साथ देना चाहते हैं, लेकिन इनके इरादे समाजहित से राजनैतिक हितों में तब्दील होने लगें, विशेषकर यदि बाबा खुलकर साम्प्रदायिक ताकतों के हाथों की कठपुतली बनकर देश को तालिबानी लोगों की फौज से संचालित करने का इरादा जताते हैं तो इसे भारत जैसे परिपक्व धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र में किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता|कुल मिलाकर अन्ना और बाबा रामदेव के आन्दोलनों और अनशनों के बाद आम व्यथित और उत्पीड़ित जनता को सोचना होगा कि उन्हें इंसाफ चाहिये तो न तो विदेशों के अनुदान के सहारे आन्दोलन चलाने वालों से न्याय की उम्मीद की जा सकती है और न हीं भ्रष्ट लोगों से अपार धन जमा करके भ्रष्टारियों के विरुद्ध आन्दोलन चलाने की हुंकार भरने वाले बाबा रामदेव से कोई आशा की जा सकती है|

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

22 COMMENTS

  1. @आर. सिंह जी आप स्वामी रामदेव के बारे में काल्पनिक विचारों के आधार पर उनका भविष्य तय कर रहे है, कृपया उनके पिछले २० सालों में किये गए कार्यों पर नज़र डालें और उनकी तथ्यात्मक आलोचना करें

  2. श्रीमान आर सिंह साहब, आप क्या समझते है, आज बाबा के साथ १० करोड़ लोग है तो वो सब १० करोड़ लोग बेवकूफ है,केवल आप और मीना जेसे लोग ही समझदार है. आप आरोप किस बुनियाद से लगा रहे है कोई प्रमाण है आपके पास, बाबा जो बोलते है उनके पास प्रमाण रहता है तभी बोलते है, अच्छा बताइए बाबा ने आज तक कोई गलत काम किया? किसी को कोई गलत बात बोली?

    अगर बाबा गलत होते तो जब बाबा की होटल में सरकार के ३ हिजड़ो से मीटिंग हुई थी तब बाबा ५० -१०० करोड़ रूपये लेकर अलग हट जाते और अनसन ख़त्म करके आराम से घर में सोते.

    वेसे इस विषय पर अब बहस नहीं करना चाहिए क्योंकि ये तो भविष्य बताएगा की बाबा चोर है, सत्ता लोभी है, व्यापारी है,राजनीतिज्ञ है या देशभक्त है.
    और आप सोचते है की में अंधभक्त हूँ तो हाँ में हूँ. और अँधा बनाने पड़ेगा. इस तरह नेट पर बहस करने से कुछ नहीं होगा, कुछ काम करना पड़ेगा तभी जा कर ये जो सरकार की दादागिरी चल रही है वो ख़त्म हो पायेगी.
    तो मेरा आपसे अनुरोध है की अब कम से कम कांग्रेस पार्टी को वोट मत देना.

    सभी लोग स्वार्थी नहीं होते है,बाबा स्वार्थी नहीं है, बाबा क्यों कालेधन और भर्ष्टाचार का मुद्दा उठाते, बाबा का तो दवाइयों का अच्छा व्यापार चल रहा है, बाबा इन लोगो के कारन अपना व्यापार ख़राब नहीं करते अगर स्वार्थी होते,आप स्वयम सोचिये.

  3. उत्तम परमार जी ,आपने लिखा है,
    “अगर हमें नाली साफ़ करना है तो हाथ तो गंदे करना पड़ेंगे. कोयले की दलाली में हाथ काले होते है.”
    पहले नाली साफ़ करने वाली बात,तो इसके बारे में मैं इतना ही कहूँगा की नाली साफ़ करने के लिए भी हाथ अगर साफ़ है तो थोड़ा कम समय लगेगा,अगर हाथ पहले से ही गंदा है तो पता भी नहीं चलेगा की आपके हाथोँ में लगी गन्दगी नाली की है की आपकी अपनी.
    दूसरा मुहावरा तो मेरे विचार से यहाँ के लिए उपयुक्त ही नहीं है.,क्योंकि जहां तक मैं समझता हूँ इसका अर्थ यह है की आप अगर गंदे काम करने जाइयेगा तो आप गंदे होंगे ही.यहाँ गन्दापन नीचता के लिए व्यवहृत हुआ है.

  4. आर सिंग सरजी, आपके विचार अच्छे लगे, सरजी आप जे. पि. नारायण की बात कर रहे है.अगर कोई विद्यार्थी परीक्षा में फ़ैल हो जाये तो किसी दुसरे व्यक्ति को परीक्षा नहीं देना चाहिए. की वो फ़ैल हो गए,बाबा जो काम कर रहे है उसमे बहुत गंदगी है, अगर हमें नाली साफ़ करना है तो हाथ तो गंदे करना पड़ेंगे. कोयले की दलाली में हाथ काले होते है.

  5. पुरूषोत्तम जी, हम टिप्‍पणियों को लेकर कोई भेदभाव नहीं करते। गाली-गालौज न हो तो हम उसे तत्‍काल प्रकाशित करते हैं।

  6. संपादक जी मैं ये टिप्पणी तीसरी बार भेज रहा हूँ|

    आदरणीय श्री निखिल सिंह जी,

    सबसे पहले तो मेरे आलेख पर टिप्पणी करने के लिए आपका आभार और धन्यवाद| आपकी टिप्पणी में आपने मुझ पर संगीन आरोप लगाया है और साथ ही उलाहना भी दिया है कि-

    ‘‘मीना जी अपने मरे हुए ज़मीर को जगाइए ..’’

    आदरणीय श्री निखिल सिंह जी,

    १-सर्वपथम तो मेरा सरनैम ‘मीना’ नहीं, ‘मीणा’ है| बेशक अंग्रेजी में दोनों शब्दों को एक समान लिखा जाता हो, लेकिन दोनों के उच्चारण और अर्थ में भी उतने ही भिन्नता है, जितनी कि भारत और इण्डिया के भाव में है| मैं अपने आपको भारतीय कहने पर गर्व का अनुभव करता हूँ, लेकिन इण्डियन कहलाने में शर्म और घिन आती है| क्योंकि इण्डिया का चेहरा घिनौना, क्रूर, शोषक और आतताई हो है|

    राजस्थान में ‘मीना’ आदिवासी पुलिस महानिदेशक के पदस्थ होते हुए एक ‘मीणा’ आदिवासी को एक मनुवादी ठेकेदार ने लगातार एक वर्ष तक बन्धुआ मजदूरी करवाई और जब मजदूरी के एवज में पारिश्रमिक मांगा गया तो उस मनुवादी ठेकेदार ने सरेआम तलवार से ‘मीणा आदिवासी’ मजदूर के पैरों की अंगुलियों को और उसके हाथों के पंजों को बेरहमी से काट डाला गया| जिसके चलते वह जीवनभर के लिये अपाहिज हो गया है| इसके उपरान्त भी ‘मीना आदिवासी’ महानिदेश के नियन्त्रणाधीन कार्यरत राजस्थान की पुलिस और कॉंग्रेस की आदिवासी समर्थक सरकार ने ‘मीणा आदिवासी’ मजदूर की लम्बे समय तक (जब तक कि मीडिया में मामला नहीं उछल गया) रिपोर्ट तक नहीं लिखी| सबसे बड़ा आश्‍चर्य तो यह कि राजस्थान के दो अग्रणी हिन्दी दैनिक समाचार-पत्रों (जिन्हें मनुवादी ही प्रकाशित करते हैं) ने भी इस खबर को बाजिब महत्व देना जरूरी नहीं समझा| यही नहीं आदिवासी उत्थान के नाम पर अनेकों प्रकल्पों का बढचढकर नाम गिनाने वाले आरएसएस के लोग भी ‘मीणा आदिवासी’ के बजाय ‘मनुवादी अपराधी’ के साथ ही खड़े रहे और आज भी संघी एवं भाजपायी उसी के बचाव में लगे हुए हैं|

    अत: प्रवक्ता पर आपसे और अन्य सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि कृपया भारत तथा इण्डिया एवं ‘मीना’ तथा ‘मीणा’ के इस अन्तर को समझें और सही सम्बोधन दें तो आपका आभारी रहूँगा|

    २-प्रवक्ता पर प्रदर्शित मेरे लेख और मेरे द्वारा समय समय पर की गयी टिप्पणियॉं ‘किसी मृत जमीर के व्यक्ति के उदगार नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से दबाये गए करोड़ों भारतीय लोगों की कड़वी और सच्ची आवाज़ हैं|’ जिनके कारण देश की ९८ फीसदी आबादी का हजारों वर्षों से शोषण करने वाली विचारधारा के जन्मदाता, इस विचारधारा के पोषक और विचारधारा के मायाजाल में अभी भी सम्मोहित सम्पूर्ण तथाकथित हिन्दुओं का ठेकेदार वर्ग बुरी तरह से घबराया हुआ है| मेरे विरुद्ध आंदोलित, आक्रामक और हिंसक हो रहा है| मुझे देख लेने और अनेकों बार मुझे जान से मारने की धमकियॉं तक देता रहा है| मुझे कांग्रेस का दलाल, कॉंग्रेस का चाटुकार और विदेशी ताकतों का एजेंट तक कह रहा है| केवल इतना ही नहीं, बल्कि प्रवक्ता सम्पादक मण्डल एवं प्रबन्धकों को भी बार-बार उकसाता रहा है कि प्रवक्ता भी उनकी हॉं में हॉं मिलाकर मेरी आवाज़ को दबा दे और तर्क दिया जा रहा है कि मेरे विचार देश में वैमनस्यता फैलाते हैं! क्या किसी मरे हुए जमीर के व्यक्ति के लिए इतने सारे हमले करने की जरूरत पड़ती है?

    ३. आदरणीय श्री निखिल सिंह जी, जो लोग देश के संविधान को नहीं मानते हों, जो देश की सम्पूर्ण स्त्री जाति को दोयम दर्जे का नागरिक मानते हों, जिन्हें दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुस्लिम केवल इस कारण से सच्चे भारतीय नजर नहीं आते, क्योंकि वे कट्टरहिन्दुत्व के मनमाने सिद्धान्तों और मनुवाद के समर्थक नहीं हैं| ऐसे लोगों को ‘‘एक मात्र आदिवासी डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश’’ के विचारों से इतनी भयंकर पीड़ा हो रही है| जिसे पढकर लगता है, मानो मेरे विचारों से उनका अस्तित्व ही हिल गया है| ऐसे में यदि एक दो दर्जन आदिवासी प्रवक्ता पर अपने विचार रखने लगे तो कल्पना की जा सकती है कि क्या होगा?

    ४. आदरणीय बन्धु श्री निखिल सिंह जी, यदि आपको मेरी कोई बात गलत लगती है तो उसका प्रमाण और तर्क के आधार पर संसदीय भाषा में विरोध करो तो बात समझ में आती है| व्यक्तिगत आक्षेप करना और असंसदीय भाषा का प्रयोग करना टिप्पणीकार की संकीर्ण और रुग्ण मानसिकता को सबके सामने स्वत: प्रमाणित करता है| ऐसे लोगों से मुझे व्यक्तिगत रूप से तो कोई पीड़ा नहीं होती, लेकिन एक हिन्दू होने के नाते जरूर तकलीफ होती है, क्योंकि गैर-हिन्दू ऐसे लोगों की टिप्पणियों को पढकर चटकारे लेते रहते हैं|

    ५. आदरणीय श्री निखिल सिंह जी, आपने एक सवाल उठाया है कि

    ‘‘मीना जी ने बाबा रामदेव पर तो कई आरोप प्रत्यारोप लगा दिए पर मैं उनसे यह जानना चाहता हूँ की कांग्रेस ने रामलीला मैदान मैं सोते हुए बूढ़े बच्चे और महिलाओ पर लाठिय बरसा कर जो कुकृत्य किया है उस पर लेखक की और से कभी कोई टिपण्णी नहीं आई कृपया मुझे इस बात का उत्तर दे की सरकार ने जिस तरह से अपनी ताकत का प्रदर्शन कमजोर बूढ़े बच्चो और महिलाओ पर दिखाया वैसा आतंकवादियों पर क्यों नहीं दिखाते . आतंकवादियों को मेहमान नवाजी और सोती हुई बेचारी जनता को लाठिया !!!’’

    आपके उपरोक्त सवाल को मैं टुकड़ों में बांटने के अपने अधिकार का उपयोग कर रहा हूँ| आशा है मेरे इस अधिकार पर आप मुझे समर्थन देंगे|

    (१) ‘‘मीना जी ने बाबा रामदेव पर तो कई आरोप प्रत्यारोप लगा दिए पर मैं उनसे यह जानना चाहता हूँ की कांग्रेस ने रामलीला मैदान मैं सोते हुए बूढ़े बच्चे और महिलाओ पर लाठिय बरसा कर जो कुकृत्य किया है उस पर लेखक की और से कभी कोई टिपण्णी नहीं आई’’

    टिप्पणी : आपकी बात बिलकुल सही है कि मेरी ओर से इस बारे में आज तक एक भी टिप्पणी नहीं आई| इस पर टिप्पणी करने से पूर्व मैं आपके माध्यम से प्रवक्ता पर विभिन्न आलेखों पर टिप्पणी करने वाले आपके साथी, बाबा रामदेव के साथी और हिन्दुत्व के कथित स्वयंभू तथा हिन्दू आतंकवादियों के समर्थकों को बतलाना चाहता हूँ कि यह हर नागरिक का मौलिक अधिकार है कि वो किसी विषय पर चाहे तो बोले और चाहे तो नहीं बोले| कोई भी ताकत किसी को भी उसकी इच्छा के खिलाफ बोलने को बाध्य नहीं कर सकती है| इस बारे में प्रवक्ता पर ही एक बार सवाल उठाया गया था कि श्री सुरेश चिपलूणकर जी कुछ अन्य विषयों पर क्यों नहीं लिखते हैं? इस पर श्री चिपलूणकर जी का उत्तर तो मेरे पढने में नहीं आया, लेकिन प्रवक्ता पर उनकी विचारधारा के समर्थक एवं प्रवक्ता पर मेरे खिलाफ कटु टिप्पणी करने वालों ने जवाब दिया कि किसी को क्या हक है कि वो श्री चिपलूणकर जी को कहे कि उन्हें क्या लिखना चाहिये और क्या नहीं? आदरणीय श्री निखिल सिंह जी, आप जैसों की भाषा में तो मेरा यही जवाब है! लेकिन प्रवक्ता पर सब पाठक आप जैसे ही नहीं हैं, जो केवल कुतर्क करने और दूसरों का अपमान करने में ही विश्‍वास करते हों| इसके अलावा मेरा स्पष्ट तौर पर मानना है कि हर सवाल उत्तर मांगता है| यदि सवालों के उत्तर नहीं देकर हम हमेशा चुप रहेंगे तो हमारे आलोचक इसके भिन्न अर्थ लगाने का अपराध करने में तनिक भी नहीं हिचकेंगे, जैसा कि प्रवक्ता पर एक प्रायोजित टिप्पणी अभियान चलाया जाकर प्रमाणित किया जा चुका है| अत: इस बारे में आप मेरे विचार विस्तार से जानिये :-

    (क) देश के एक नागरिक के रूप में, मैं हर प्रकार की हिंसा का विरोध करता हूँ और स्त्रियों, छोटे बच्चों, वृद्धों, नि:शक्तजनों, कमजोरों, नि:सहायों तथा निर्दोषों पर हिंसा तो बहुत बड़ी बात है, यदि कोई अशोभनीय व्यवहार भी करता है तो भी वह आलोचनीय और निन्दनीय है| लेकिन बाबा रामदेव के साथ जो व्यवहार हुआ उसके लिये कौन जिम्मेदार था? कॉंग्रेस, यूपीए या केन्द्र सरकार और किन कारणों से ऐसा आक्रमण किया इस बारे में मेरे पास कोई पुख्ता प्रमाण या जानकारी नहीं हैं| इसलिये मैं कोई भी टिप्पणी अन्तिम रूप से करने से पहले मीडिया के आधार पर प्राप्त जानकारी के अनुसार यह सवाल अवश्य उठाना चाहता हूँ कि बाबा रामदेव को यदि किसी निर्धारित संख्या में लोगों को योग शिविर के लिये जरिये कार्यक्रम आयोजित करने की स्वीकृति दी गयी थी तो और यदि यह बात सही है, तो उन्होंने वहॉं पर राजनैतिक कार्यक्रम तथा अनशन क्यों शुरू कर दिया? इस सवाल को शायद सुप्रीम कोर्ट ने भी बाबा से पूछा है| जब तक इस बारे में सच्चाई सामने नहीं आती तब तक अन्तिम तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता| फिर भी वहॉं पर बहकाकर और सही बात नहीं बताकर लाये गये लोगों के साथ जो कुछ हुआ वह पहली नजर में न मात्र निन्दनीय है, बल्कि ऐसा व्यवहार केन्द्रीय सरकार का अमानवीय और अलोकतान्त्रिक चेहरा प्रकट करता है, बशर्ते कि इसके पीछे कोई आधारभूत कारण नहीं हो! लेकिन साथ ही यह भी कहा जाना बेहद जरूरी है कि बाबा रामदेव जैसे मनुवादी लोगों का आँख बन्द करके समर्थन करने वालों के साथ सरकार को शक्ति से निपटना ही चाहिये| क्योंकि वे देश में अराजकता पैदा करना चाहते हैं| अब तो सारा देश जान चुका है कि बाबा का मकसद भ्रष्ट व्यवस्था बदलना कदापि नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के बहाने भाजपा और संघ के साथ मिलकर वर्तमान निर्वाचित सरकार को बेदखल करना और येनकेन प्रकारेण फिर से इस देश में मनुवादी व्यवस्था को लागू करना है जो असंवैधानिक और आपराधिक कृत्य है| ऐसे कृत्य में भागीदारी करने वालों को अपने कृत्य कीमत चुकाने के लिये हमेशा तैयार रहना चाहिये|

    (ख) दूसरी बात यह है कि देश की ९८ प्रतिशत आबादी के हकों के विरुद्ध अभियान चलाने वालों तथा ऐसे गैर कानूनी कृत्य में भागीदारी करने वाले लोगों के प्रति मुझे कोई सहानुभूति नहीं है| बेशक ऐसे लोगों में वृद्ध, महिला और छोटे बच्चे ही क्यों न हों| इसलिये ऐसे लोगों के विरुद्ध होने वाले किसी भी गैर-कानूनी कृत्य का विरोध करने का अर्थ है, ऐसे लोगों की असंवैधानिक, आपराधिक और सरारतपूर्ण प्रवृत्तियों को समर्थन देकर, उन्हें देश में सहानुभूति का पात्र बनाना| केवल यही कारण रहा कि मैंने आज तक इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की|

    (२) आदरणीय श्री निखिल सिंह जी, आपके सवाल का दूसरा हिस्सा इस प्रकार है-

    ‘‘कृपया मुझे इस बात का उत्तर दे की सरकार ने जिस तरह से अपनी ताकत का प्रदर्शन कमजोर बूढ़े बच्चो और महिलाओ पर दिखाया वैसा आतंकवादियों पर क्यों नहीं दिखाते . आतंकवादियों को मेहमान नवाजी और सोती हुई बेचारी जनता को लाठिया !!!’’

    आपके उपरोक्त सवाल का एक सीधा और सपाट जवाब तो यह है कि मैं न तो सरकार में शामिल कोई मन्त्री हूँ और हीं सरकार में शामिल किसी भी दल का सदस्य! ऐसे में मुझसे ऐसा सवाल क्योंकर पूछा जा रहा है? इस बात को आपको स्पष्ट करना चाहिये था? लेकिन सवाल उठाने वाले में इतनी सुचिता होती तो देश में ऐसी समस्याएँ क्यों पैदा हों? देश में आतंकवाद क्यों पैदा हो रहा है? इस पर कभी पूर्ण निष्पक्षता के विचार करें तो आपको सभी सवालों के जवाब मिल जायेंगे, लेकिन निष्पक्ष और संवेदनशील हृदय किसी भी बाजार में नहीं मिलता है! उपरोक्त सवाल का उत्तर आप सीधे सरकार से पूछें| आतंकवादियों से निपटने के बारे में मेरे विचार क्या हैं, उन्हें आप प्रवक्ता पर पढ चुके होंगे! जो आप जैसी एकांगी विचारधारा का चश्मा लगाकर देखने वाले लोगों के गले नहीं उतरे| यदि नहीं पढे हैं तो लिंक दे रहा हूँ| कृपया पढने का कष्ट करें|

    https://www.pravakta.com/story/22444

    लेकिन मेरे ये विचार भी आपको पचेंगे नहीं, क्योंकि आपको गैर-हिन्दू आतंकी तो आतंकी नजर आते हैं, जबकि हिन्दू आतंकी तो बेचारे नजर आते हैं|

    हिन्दू आतंकियों के कृत्य तो गैर-हिन्दू आतंकियों के कृत्यों की प्रतिक्रिया में किये गये न्यायसंगत और पवित्र धार्मिक कार्य नजर आते हैं| ये शब्द प्रवक्ता पर श्री मुधसूदन झवेरी जी के हैं, जिन्हें मैं प्रारम्भ से आदर और सम्मान की दृष्टि से देखता रहा और उन्हें निष्पक्ष टिप्पणीकार मानता रहा, लेकिन ऐसी टिप्पणी पढकर मुझे अहसास हुआ है, मैं उनसे वैचारिक धोखा खाता आया हूँ| उनकी इस टिप्पणी से प्रमाणित हो गया कि आरएसएस और कट्टर हिन्दूवादी ताकतें फिर से इस देश पर रामराज्य के बहाने मनुवादी व्यवस्था लागू करने के लिये किस कदर लोगों के दिमांग पर कब्जा किये हुए हैं| उन्हें गैर-हिन्दू आतंकी तो आतंकी नजर आते हैं, लेकिन प्रज्ञासिंह, असीमानन्द और उनके साथी तो प्रक्रियावादी मासूम देशभक्त और हिन्दुधर्मरक्षक नजर आते हैं| जिसे वे किसी न किसी बहाने न्याय संगत ठहराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं|

    मेरा ऐसे लोगों से सीधा सवाल है कि संसार की कोई भी क्रिया पहली क्रिया नहीं होती है| एक गैर-हिन्दू आतंकी के कृत्य को उसकी पहली क्रिया मानकर, प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दू आतंकियों द्वारा हमला करके निर्दोष लोगों की जान लेना कतई न्यायसंगत नहीं है| हकीकत में गैर-हिन्दू आतंकी की वह कथित ‘क्रिया’ भी किसी अन्य की पूर्ववर्ती ‘क्रिया’ की ‘प्रतिक्रिया’ ही होती है|

    इस प्रकार की प्रवृत्ति आदिम युग में तो ठीक मानी जा सकती थी, लेकिन सभ्य समाज में ऐसी बातों का कोई औचित्य नहीं है| इसलिए यहॉं पर एक सवाल प्रवक्ता के मार्फ़त और आतंकवादी पैदा करने वाले विचारों के जन्मदाताओं और समर्थकों से पूछा जाना प्रासंगिक है, कि जिन भूदेवों ने सम्पूर्ण स्त्री जाति, सम्पूर्ण दलित, सम्पूर्ण आदिवासियों और सम्पूर्ण पिछड़ों को हजारों साल तक अमानवीय, बल्कि पशुवत जीवन जीने को विवश किया है, क्या आपकी ‘‘जैसे को तैसा’’ नीति के अनुसार उनके साथ भी अब और आगे आने वाले हजारों सालों तक वैसा ही व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए?

  7. परमार जी,आपने मेरे द्वारा उठाये गये अनेक प्रश्नों को अनदेखा किया है,पर कोई बात नहीं.आपने लिखा है की बाबा को सत्ता का लोभ नहीं है.ठीक है ,मैं आपकी बात मान लेता हूँ.पर भारत स्वाभिमान का जो विस्तृत संविधान मैंने अवलोकन किया है, उससे तो लगता है की बाबा रामदेव शासन में अग्रणी भूमिका निभाना चाहते हैं. और अगर ऐसा है भी तो कोई गलत नहीं है.जय प्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रान्ति का आवाहन किया था ,पर कालान्तर में वह असफल साबित हुआ.हो सकता है की जेपी अगर खुद सत्ता सम्भालते तो परिणाम कुछ और होता. आप कामना कीजिए की आपके बाबा रामदेव अपने अभियान में सफल हों,पर अगर कोई आपके बाबा रामदेव के सम्बन्ध में अलग विचार रखता है तो उसकी भर्त्सना करने से तो काम चलेगा नहीं.आपलोग और बाबा रामदेव अपने कार्य कलापों द्वारा ही लोगों का विश्वास जीत सकते हैं और आलोचकों का मुंह बंद कर सकते हैं,अन्य कोई रास्ता नहीं.,क्योंकि आलोचना करने वाले खुद क्या है,इसका कुछ महत्व तो है,पर उससे ज्यादा महत्त्व इसका है की आलोच्य यानि जिसकी आलोचना की जा रही है वह वास्तव में अपने कार्य कलापों द्वारा हर तरह की कसौटी पर खरा उतरे. मेरे निजी विचार में ,बाबा रामदेव अभी तक वैसा नहीं कर सके हैं. ऐसा विचार रखने वाला भी शायद मैं अकेला नहीं हूँ.

  8. परमार जी ,आपने मेरे द्वारा उठाये गये अनेक प्रश्नों को अनदेखा किया है ,पर कोई बात नहीं.आपने लिखा है की बाबा को सत्ता का लोभ नहीं है.ठीक ही मैं आपकी बात मान लेता हूँ,पर भारत स्वाभिमान का जो विस्तृत संविधान मैंने अवलोकन किया है ,उससे तो लगता है बाबा रामदेव शासन में अपनी अग्रणी भूमिका निभाना चाहते हैं और अगर ऐसा है भी तो कोई गलत नहीं ही.जय प्रकाश नारायाण ने सम्पूर्ण क्रान्ति का आवाहन किया था,पर वह कालान्तर में असफल साबित हुआ,हो सकता है की जेपी अगर खुद सत्ता संभालते तो परिणाम कुछ और होता.आप कामना कीजिए की आप के बाबा अपने अभियान में सफल हों ,पर अगर कोई आपके बाबा रामदेव के सम्बन्ध में अलग विचार रखता है तो उसकी भर्त्सना करने से तो काम चलेगा नहीं.आपलोग और बाबा रामदेव अपने कार्य कलापों द्वारा ही लोगों का विश्वास जीत सकते हैं और आलोचकों का मुँह बंद कर सकते हैं ,अन्य कोई रास्ता नहीं,क्योंकि आलोचना करने वाले खुद क्या हैं इसका कुछ तो महत्त्व है,पर उससे ज्यादा महत्व है की आलोच्य यानी जिसकी आलोचना की जा रही है वह वास्तव में अपने कार्य कलापों द्वारा हर तरह की कसौटी पर खरा उतरे.मेरे निजी विचार से अभी तक बाबा रामदेव वैसा नहीं कर सके हैं.ऐसा विचार रखने वाला भी शायद मैं अकेला नहीं हूँ.

  9. श्रीमान आर सिंह जी, आप मेरे पिता सामान है, में आपसे बहुत छोटा हूँ,शायद मुझे में ज्ञान की कमी है, में अंधभक्त नहीं हूँ,आपको बाबाजी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं नहीं है, में बाबाजी को तिन साल से सुन रहा हूँ, आप मुझे कोई एक प्रमाण दीजिये की बाबा सत्ता के लोभी है. आपको कंहा से लगता है ऐसा की बाबा राजनीती कर रहे है. बाबा तो वही कर रहे है जो सुभाष चन्द्र बोस,भगत सिंह गाँधी जी ने किया था.

  10. मान गये भाई परमार जी .आप जैसे अंध भक्तों के बल पर ही तो बाबाओं का धंधा चल रहा है. आपके तथाकथित बाबा के विरुद्ध मुंह खोलने का भी जो साहस कर रहा है,वह आपकी दृष्टि में देश द्रोही हो गया. क्या कमाल का दिमाग पाया है आपने भी?एक बार आसाम के बरुआ जी ने इंदिरा को इंडिया कहा था.आज न इंदिरा हैं न बरुआ,पर इंडिया तो आज भी है.आपके बाबा रामदेव आपकी दृष्टि में चाहे जो हो पर उन्हें इतना बड़ा मत बना दीजिये की वे राष्ट्र के पर्यायवाची हो जाएँ.इसका मतलब ये हैं की हमारे जैसे लोग जो बाबा रामदेव को एक योग गुरु से ज्यादा महत्त्व नहीं देते ,वे सब देश द्रोही हैं.रह गयी बाबारामदेव के शासनाधिकार की अभिलाषा तो यह तो इसी से जाहिर हो जाता है की भारत स्वाभिमान गैर राजनीतिक पार्टी के रूप में काम नहीं करना चाहता. सत्ता हथियाने का प्रयत्न बाबा की महत्वकांक्षाओं को जग जाहिर कर देता है. हालांकि मैं इसे गलत नहीं मानता.शासक बन कर भी अगर कोई राष्ट्र की भलाई के लिए काम करे तो यह तो बहुत ही अच्छा है,पर लोग शासक बन कर राष्ट्र की भलाई करे तब न.इस टिप्पणी के बाद मुझे भी गाली मत दीजिएगा,क्योंकि वह गाली मैं लूंगा नहीं ,और तब वह लौट कर आपही के पास चली जायेगी और तब पता नहीं आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?ऐसे मुझे यह सब लिखने के लिए किसीने पैसा नहीं दिया है.

  11. मीना जी मेने पहले भी आपको कहा था आप जेसे कुछ लोगो के कारन देश लुट रहा है,जब भारत गुलाम था तो भारत को अंग्रेजो ने गुलाम नहीं बनाया था, बल्कि आप जेसे कुछ धोकेबाज और बेईमान लोगो ने देश के साथ गद्दारी की थी. आपकी मति मारी गई है, आपके नाम और फोटो से तो आप मुझे हिन्दुस्तानी लग रहे हो, और बाते कांग्रेसी और देशद्रोही जेसी कर रहे है. बाबा रामदेव और अन्ना की तुलना नहीं हो सकती. आपका कहना है की बाबा किसी पार्टी का आदमी है और खुद सत्ता पाने के लिए कर रहा है,आपके पास इस बात का कोई प्रमाण है, हो तो बताइए, क्या सोचकर इस बात को आप कह रहे है की बाबा पार्टी का एजेंट है. बाबाजी जो बोलते है उनके पास उसके प्रूफ रहता है, बिना प्रूफ के बाबा कोई बात नहीं कहते,खेर आप कुछ भी लिखो देश की जनता सब जानती है, और अब कोई कुछ भी कहे देश की जनता को कोई गुमराह नहीं कर सकता, आज ही खबर आई है की बाल क्रिशन की डिग्री फर्जी है, पासपोर्ट फर्जी है, इससे जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता, जनता सब जानती है की ये सरकार ही फर्जी है, ये आरोप गलत है, ये सरकार की चाल है, मिडिया में इस खबर को पेसे दे कर लाया गया है, आप बाबा की बात कर रहे है बाबा के बारे में आपको कोई जानकारी नहीं है, आपने कभी बाबा को बोलते हुए नहीं सुना है. बाबा को क्या करना बाबा ये लड़ाई क्यों कर रहा है, न बाबा के बच्चे है, ना बाबा बीमार है की इलाज करवाना है, ना बाबा के पास पेसे की कमी है ना प्रसिद्धि की कमी है,ना बाबा को कोई पद चाहिए, फिर बाबा क्यों इस जंजाल पड़ा है, साहब जी बाबा का जनम ही इसलिए हुआ है की वो इस देश में फिर से भगवान् का साम्राज्य लेकर आये, मीना जी आप बाबाजी का विरोध कर रहे हो, लेकिन आज में कह रहा हूँ की बाबा अगर ५० साल तक जिन्दा रहे तो (अगर हत्या ना हुई ) इस देश में से सारे पापियों का नाश हो जायेगा, सारा कालाधन देश में आएगा और भारत फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा और पूरे विश्व पर राज करेगा. आप आगे देखना की बाबा क्या करते है,,,,,

    में भी नहीं मरूँगा, मीना जी तुम भी नहीं मरोगे, देखना ये ये बाबा क्या करता है आगे का वक़्त बताएगा. जो बाबा कह रहा है वो कर के दिखायेगा. पहली बार कोई भ्रष्टाचार के खिलाप बोल रहा है, और तुम जेसे लोग जनता को गुमराह करने में लगे हो, कांग्रेसी लोग आपको पेसे दे रहे होंगे, लेकिन राष्ट्र धर्म भी कोई चीज होती है.

    नोट:- अगर कुछ लिखना ही चाहते हो तो देशहीत में लिखा करो, लिखने के लिए बहुत सारे विषय है, केवल बाबा रामदेव ही नहीं है. विषय की कमी पड़े तो में बता दूंगा.

  12. मीना जी ने बाबा रामदेव पर तो कई आरोप प्रत्यारोप लगा दिए पर मैं उनसे यह जानना चाहता हूँ की कांग्रेस ने रामलीला मैदान मैं सोते हुए बूढ़े बच्चे और महिलाओ पर लाठिय बरसा कर जो कुकृत्य किया है उस पर लेखक की और से कभी कोई टिपण्णी नहीं आई…कृपया मुझे इस बात का उत्तर दे की सरकार ने जिस तरह se अपनी ताकत का प्रदर्शन कमजोर बूढ़े बच्चो और महिलाओ पर दिखाया वैसा आतंकवादियों पर क्यों नहीं दिखाते ….आतंकवादियों को मेहमान नवाजी और सोती हुई बेचारी जनता को लाठिया !!! मीना जी अपने मरे हुए ज़मीर को जगाइए ..

  13. अजित भोसले जी और राज जी आपलोग खामहखाह बाल की खाल निकालने की कोशिशकर रहेहैं.मेरा तो केवल यही कहना था की किसी पर कीचड़ उछालने के पहले उसके विरुद्ध प्रमाण आवश्यक है.आपके किसके भक्त हैं या अंध भक्त इससे मुझे कोई मतलब नहीं.मैं फिर दुहराता हूँ की मैं अन्ना हजारे या आपके बाबा रामदेव के बारे में बहुत कम जानकारी रखता हूँ.पहले मैं अन्ना हजारे को महाराष्ट्र के एक गांधी वादी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जानता था,इससे ज्यादा कुछ नहीं .इसके मुकाबले आपके बाबा रामदेव के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी थी.एक तो योग गुरु के रूप में उनकी प्रसिद्धि थी,दूसरे वे रामलीला मैदान में अपनी लीला पहले भी दिखा चुके थे.अब रह गयी विद्वान और विद्वता की तो यह मेरा दावा कभी नहीं रहा की मैं कोई विद्वता रखता हूँ,पर चूंकि एक आम आदमी हूँ और विज्ञान और अभियन्त्रना से सम्बन्ध रहा है इसलिए दो और दो के जोड़ को चार कहने में विश्वास रखता हूँ.किसी की कारण या अकारण प्रसिद्धि मेरेलिए कोई महत्व नहीं रखती.आप अकाट्य प्रमाण दीजिये ,उस हालत में मुझे आपलोगों के कथन से कोई आपत्ति नहीं होगी.

  14. आदरणीय आर.सिंह.जी राज साहब को अंध भक्त कहने से आप विद्वान् कहलायेंगे ऐसी उम्मीद मत करिए, अगर वो अन्ना को सुपारी बाज अनशनर कह रहे हैं तो उन्होंने कहीं पढ़ा होगा और मै समझता हूँ की वो उसका ज़िक्र भी कर देंगे, दूसरी बात समर्थक को आप अंध-भक्त कहो या समर्थक उससे कोई फर्क नहीं पढता, क्रान्तियाँ समर्थको के बूते ही होती हैं, कांग्रेस ने जो अत्याचार रात में किया था उसका जवाब तो उसको आने वाले चुनावों में मिल जाएगा, यहाँ मध्य-प्रदेश में जबेरा चुनाव में तो ऐसा करारा तमाचा पडा है जिसकी गूँज अब उत्तर-प्रदेश के आगामी चुनावों तक सुनाई देगी, खेर मूल मुद्दे पर आया जाये व्यक्तिगत रूप से मै बाबा का समर्थक हूँ चाहे तो मुझे भी अंध भक्तों की लाइन में खडा कर दे, मेरा काफी समय उनके सानिध्य में गुजरा है, वे एक बेहद शुद्ध और सच्चे इंसान हैं, अन्ना के बारें में मै कोई टिप्पणी नही करना चाहता क्योंकि उनके बारे में कुछ नहीं जानता और उनमे मुझे किसी प्रकार की दिलचस्पी भी नहीं है हालांकि वो भी महाराष्ट्रियन हैं, लेकिन बाबा रामदेव के साथ मैं हमेशा रहूँगा चाहे कोई उन्हें रणछोड़दास कहे चाहे ठग कहे भगोड़ा कहे जो कहना हो कहे.

  15. राज जी, आपने बहुत ही गोल मटोल उतर दिया है.वैसा उत्तर किसी को भी संतुष्ट नही कर सकता.मैं अपना प्रश्न फिर दुहराता हूँ की जैसा आपने लिखा है की अन्ना जी सुपारी बाज अन्सनर हैं तो इसका कोई प्रमाण तो आपके पास होगा की अन्ना जीने पैसे लेकर ऐसे कार्यों के लियी अनसन किया जो सिद्धांत:: गलत था.बाबा रामदेव हों या अन्ना जी,मैं किसी काभी अंध समर्थक नहीं हूँ,पर मैं यह चाह्ता हूँ कीआपने जो लांछन लगायें हैं उसका प्रमाण तो आपको देना ही चाहिए नहीं तो मैं फिर कहू*गा की, आप भी बाबा रामदेव के ऐसे अंध भक्तों में हैं जो उनको सर्वोपरी मानते हैं और जो उनके समक्ष जो खड़ा होने का साहस करता है उसको जेन केंन प्रकारेण रास्ते से हटाने में अपनी काबलियत समझते हैं .

  16. सर जी आप अभी तक नहीं समजे मैंने खुद स्वामी रामदेव जी को पिचले २ सालों से काले धन और भ्रस्ताचार के बारे में बोलते और जनता को सम्भोधित करते हुए देखा है , मुझे अभी तक समाज नहीं आ रहा है की आप जैसे भुद्धिजिवी लोग अन्ना हजारे जैसे सुपरिबाज़ आन्दोलनकारियों को इतना क्यों चदा रहे हो २७ फ़ेब २०११ को जो रामलीला मैंदान पर स्वामी रामदेव को सुनने को लगभग पुरे दिल्ली मैं से लोग एकत्रित हुआ थे उसी मंच पर अन्ना हजारे था तब उसे कोण पेहेचंता था बताइए , आप को स्वामी रामदेव से सिकायत नहीं है पर उनके भगवे वस्त्र से है और अन्ना हजारे से द्नाही है क्योकि वो गाँधी टोपी पेहेनता है आप को सिकयत है की स्वामी रामदेव वन्दे मातरम का उद्घोस करते है अन्ना नहीं करता कृपया आप सोचिये क्या आप भी मीडिया के जैसे हो गए है खुद सोच नहीं सकते मीडिया ने तो २७ फ़ेब की बात को सिर्फ ५ मिनट ही दए थे और अन्ना के आन्दोलन को जो सिर्फ १५ लोगों के साथ सुरुवात हुई थी उसे मीडिया ने जोर शोर से प्रचार किया अन्ना के आन्दोलन को सिर्फ मीडिया की चमक है लोग तो सिर्फ उसे देखने को आते थे उसके साथ कोइ बैठा नहीं अन्ना सिर्फ कांग्रेस के गेंत की टूर पे कम कर रहा है स्वामी रामदेव की लोकप्रियता के सामने उसका कोइ वजूद नहीं है अगर मीडिया ने ७ दिन भी उसके बारे मैं नहीं बताया तो लोग उसे भूल जायेंगे , स्वामी रामदेव जन सामान्य के मन मैं बस चुके है उन्हें निकला नहीं जा सकता कृपया मेरी बात को समजने की चेष्टा कीजिये अन्ना सिर्फ एक सुपरिबाज़ अन्सनर है महारास्ट्र मैं उसको सिर्फ यही उसकी पहेचन है औसको सिर्फ स्वामी रामदेव की लोक्प्रुयता को कम करने के लिए उतरा गया है कुछ दिनों मैं आप को पता चल जायेंगा अन्ना का ढोंग

  17. आप से यही आशा थी की सच्चाई गर्त में दबाकर खुद का स्वार्थ भरा सत्य प्रवक्ता पर परोसोगे
    आरोप लगाना आप जैसे लोगो की मनोवर्ती है ……………जो सत्य के पक्ष में बोलता है उसको लांछित करने में आप जैसे लोग कोई कसर नहीं छोड़ते
    जब सरकार दिल्ली में लाल कालीन बिछाकर स्वागत करती है तब तक वो व्यक्ति निष्कलंक होता है और कुछ ही समय बाद उसे महादोषी करार दिया जाता है कहा की बुद्धिमता है गुनवताओ का मूल्याकन निजी स्वार्थ की तराजू में तोलकर क्यों करते हो

  18. राज जी,आपने अन्ना हजारे के बारे में ऎसी जानकारी दी है जिसे सुनकर थोड़ा आश्चर्य होना लाजिमी हैं,पर जब आप कह रहे हैं तो विरोध करने का कोई कारण भी नहीं दीखता,क्योंकि मेरे जैसे लोग अन्ना हजारे या रामदेव जी को अच्छी तरह से जानने का दावा नहीं कर सकते,पर मेरे जैसे लोग आप से इस इल्जाम की बाबत विस्तृत जानकारी की अपेक्षा अवश्य रखते हैं ,जिससे हमलोगों का मार्ग दर्शन हो सके.उम्मीद करता हूँ की आप निराश नहीं करेंगे और अति शीघ्र वह जानकारी उपलब्ध करायेंगे ,नहीं तो मुझे सोचने के लिए बाध्य होना पड़ेगा की आप भी बाबा रामदेव के ऐसे अंध भक्तों में हैं जो उनको सर्वोपरी मानते हैं और जो उनके समक्ष जो खड़ा होने का साहस करता है उसको किसी भी तरह रास्ते से हटाने में अपनी काबलियत समझते हैं .

  19. डॉ निरंकुस जी मैं स्वामी रामदेव जी को पिछले ३ वर्षो से भ्रस्स्ताचार के मुद्दे पर बोलते हुआ सुन चूका हूँ , पुरे देश भर मैं उन्होंने करोड़ों लोगोंको सम्भोदित किया है पता नहीं अन्ना हजारे कहा से आ टपके वैसे maharastra का रहने वाला हूँ इसीलिए अन्ना हजारे का नाम सुना है वो सुपरिबाज़ अनशनर है पैसे ले कर अनशन पर बैठते है यहाँ पे उनकी छवि अछी नहीं है , रही बात स्वामी रामदेव की उनके पास जनसमुदाय बहुत ज्यादा है उन्होंने सिर्फ कुछ ही घंटों मैं लाखों लोगो को एकत्रित किया है , सबसे पहेले फरवरी माह मैं रामलीला मैदान मैं उनको सूनने के लिए २.५ लाख से ज्यादा लोग आ गए थे लगभग दिल्ली बांध थी उस दिन उस मंच पर अन्ना हजारे भी थे किसीने उनपे ध्यान तक नहीं दिया उनके साथ सिर्फ पूर्वनियोजित मीडिया की चमक और और बेवकूफ मोमबत्ती brigade है जिसके पास विचारधाराओं की कमी है रही बात बाबा कटपुतली की तो आज की मौजूदा सरकार misionaries की कटपुतली है उसके बारे मैं आप का क्या ख्याल है , और आन्दोलन की बात वो सिर्फ स्वामी रामदेव से ही उम्मीद लगायी जा सकती है अन्ना हजारे कांग्रेस के अगेंट के रूप मैं कम कर रहे है जिसका makshad है स्वामी रामदेव के चलाये जा रहे मोहिम को haijak करना इसीलिए जनता बाबा रामदेव के साथ है अन्ना हजारे के साथ नहीं

  20. आदरणीय श्री सिंह साहेब इतना उच्च कोटि का गवेशनात्मक आलेख पढ़ने का अवसर उपलब्ध करने के लिए आभार| यदि समय मिला तो इस पर विस्तार से टिप्पणी लिखूंगा|
    मेरे प्रस्तुत आलेख पर टिप्पणी की इसके लिए आपका आभार!

  21. डाक्टर निरंकुश ,आप अगर निष्कलंक आदमी इंडिया बनाम भारत में ढूंढने निकले हैं तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी,क्योंकि एक तो आमतौर से यहाँ कोई निष्कलंक है नहीं , अगर संयोग बस कोई निष्कलंक है भी तो ऐसे ऐसे तरकीब उस पर आजमाए जायेंगे की अपनी निष्कलंकता सिद्ध करने में ही उसकी जिन्दगी निकल जायेगी,अन्य कार्य वह क्या कर सकेगा?इसको मैंने संक्षिप्त रूप में अपने लेख नाली के कीड़े में कहने का प्रयास किया है.मैं समझता हूँ की वह लेख हमारे चरित्र का दर्पण है.अगर समय मिले तो उसे एक बार पढिये

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