भारत संत-महात्मा और सिद्धों का देश है। देश में संत ही है जो मानव जीवन में निराशा के दंश को निकाल फैकते है। संत ही की कृपा है जो हर अशुभ को शुभ और हर अमंगल को मंगल कर सकती है। हमारे जीवन में भी इन संतों का सर्वोपरि स्थान रहा है जो जीवन को एक आशा के सूत्र में पिरोये हुये है। संतों की इसी श्रृंखला में एक नाम सिद्धात्मा संत पतईवाले बाबा का नाम भी जुड़ा हुआ हैं। किसी स्थान से किसी संत की पहचान बने यह सुनने में अटपटा सा लगता है किन्तु हम सब स्वीकार कर लेते है। पुण्य सलिला मॉ नर्मदा संगम के तट बांद्राभान पर उत्तर की ओर सीहोर जिले की बुधनी तहसील के इस पुण्य क्षेत्र में पिछले 10-12 साल पूर्व पतई वाले बाबा ने पतई को परित्याग कर अपना तपस्थल बना रखा है। रायसेन जिले की बरेली तहसील के अंतर्गत ग्राम पतई आता है जो नर्मदा तट पर है। इस स्थान पर नर्मदा परिक्रमा पर निकले रामस्वरूप जी महाराज की कठोर साधना एवं पुण्यप्रताप की तेजेस्मिना का आभास कर ग्राम पतई के लोगों ने उनसे ठहरने का आग्रह किया तब उन्होंने नर्मदा परिक्रमा पूरी कर लौटने का आश्वासन दिया और सन 1970 में उन्होंने पतई को अपनी साधना स्थली बना लिया और साधना में कन्या को मॉ नर्मदा का स्वरूप मानकर वृहद स्तर पर कन्या भोज की परम्परा चालू कर वे रिकार्ड कन्या भोज आयोजन कर अब तक इस परम्परा के अनुगामी के रूप में स्थान अर्जित कर चुके है।
पतईवाले बाबा रामस्वरूप जी महाराज की उम्र 100 साल से अधिक बतलाई जाती है। उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में अपना घर-परिवार त्यागकर सन्यासग्रहण किया और तब से वे पीड़ित मानवता एवं समाज की सेवा के साथ अपनी साधना में रत रहते है। उनके जीवन के अनेक प्रसंग उनके भक्तों से सुनने को मिले जिसमें पतई में उनके द्वारा वर्ष में दो बार कन्याभोज कराये जाने के समय एक बार नर्मदा का जलस्तर बढ़ा हुआ था और दूसरे गॉव की कन्यायें भोजन के लिय पार कराने को नावों की व्यवस्था की गयी। सभी ने पतईवाले बाबा को परेशानी बतलाई कि कन्यायें ज्यादा है और उन्हें नाव से लाने में दिन भर निकल जायेगा, वे भूखी अपनी पारी का इंतजार करेंगी। कहते है तब पतईवाले बाबा ने नर्मदा से प्रार्थना की कि थोड़ा नीचे चली जाओ, ताकि कन्यायें बिना नाव के पैदल आ सके। उनकी प्रार्थना सुन ली गयी और कन्यायें घुटने से नीचे पानी में पैदल नर्मदा को पार करके आयी और कन्याभोज कर लौट गयी। भण्डारा समाप्ति के बाद शाम को नर्मदा पुनः अपने पूर्ववत बेग से प्रभावित होने लगी। यह चमत्कारित बात पूरे क्षेत्र में लोगों को पता चली और पतईवाले बाबा के सिद्धात्मा होने पर उनसे आर्शीवाद लेने ओर उनका सान्ग्धि पाने भीड़ उमड़ने लगी, बाबा द्वारा कन्याभोज के पश्चात हजारों लोगों को भण्डारा प्रसाद बॉटा जाता है, इसकी व्यवस्था कौन कहॉ से करता है यह कोई जान नहीं पाया। बाबा ने अपने पतई धाम को छोड़कर पिछले 10-12 साल से वान्द्राभान रामनगर के पास अपना आश्रम बना रखा है जहॉ आज भी सदाव्रत चलता है और सभी भक्त अपने हाथों से भोजनप्रसादी पाते है।
बाबा के एक भक्त मुन्नाभैईया पगड़ीवाले से चर्चा में उन्होनें बताया कि पतईवाले बाबा के जीवन में कुछ नियम थे जिसमें वे किसी शहर के अन्दर नहीं आते थे, दूसरा वे किसी भी पशु-जानवर की सवारी नहीं करते थे। लेकिन वे अपने भक्तों-मित्रों व कन्याओं की जिद पर ये नियम तोड़ दिया करते थे। यही कारण था कि सन् 1981 में पतईवाले बाबा नर्मदा परिक्रमा कर बंशीवाले बाबा के कहने पर शहर में प्रवेश कर रामजीबाबा समाधि स्थल पर ठहरे। तब नगर में उनकी एक शोभायात्रा निकलनी थी जिस हेतु बग्गिया बुलवाई गयी जिसमें कन्याओं को बैठना था लेकिन कन्याओं ने जिद कि वे बाबा नही बैठेगे तो वे भी नहीं बैठेंगी, कन्याओं की जिद के आगे उन्होंने अपना नियम तोड़कर बग्गी पर बैठे और वह शोभायात्रा समूचे नगर के प्रमुख मार्गो से होकर निकली जिसमें सभी ने पतईवाले बाबा के दर्शन किये।
वान्द्राभान में साधनारत रहत बाबा ने दो वर्ष पूर्व 536 जोड़े का सामूहिक विवाह क दहेज का सामान अपनी ओर से इन कन्याओं को दिया जिसमें सभी को गृहस्थी का सामान, दूल्हा-दुल्हन को वस्त्र, गहने आदि शामिल थे जिसे लेकर भी बाबा की ख्याति आसपास मैं फैल गयी। पतईवाले बाबा नर्मदाजयंती के अवसर पर रासलीला का आयोजन कराते है तथा उक्त अवसर पर सागर का कोई भजनमण्डल भी आता है जो पतई में भी बाबा के समय आता था अब बाबा के स्थान बदलने के बाद बान्द्राभान पर आता है। यह तपोभूमि र्रूद्रब्रम्हचारी तपस्विनी जोगेश्वरी माताजी केे यहॉ तपस्या करने से वर्ष 1997 में तब प्रकट हुई जब उनके जीवनकाल में उनकी शिष्या साध्वी उमा भारती जी उनके आश्रम में आकर साधनारत रहकर उनका आर्शीवाद प्राप्त करती। उमा भारती जी अपनी गुरू माता जोगेश्वरी बाईराम से आर्शीवाद पाकर ही 8 दिसंबर 2003 को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। मुख्यमंत्री बनते ही उमा भारती ने उनकी गुरू माता के आश्रम तक लाने-ले जाने की सेवा निश्चल सेवा करने वाले वार्ड नं;23 के पार्षद विजयपाल के जीवन के कंटकों का सफाया कर उन्हें पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष पद देकर ऋण से मुक्त हुई। पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष पद पाने के पश्चात विजयपाल इस आश्रम में प्रतिवर्ष विशाल आयोजन कर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार कर सके परिणामस्वरूप वे इसी आश्रम की सेवा करते 4 बार सोहागपुर से विधायक बनने का रास्ता प्रशस्त कर सके।
पतई वाले बाबा रामस्वरूप महाराज की एक चमत्कारी संत के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके है और वे तीनों कालों की बातों को जानते एवं समझते है किन्तु कभी-कभार ही गंभीर परिस्थितियों में उसका रहस्योदघाटन करते हैं। वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के अवसर पर मतदान की रिपोर्टिग के अवसर पर बांद्राभान आश्रम में मेरा भी निकलना हुआ तब पतई वाले बाबा के दर्शनों का लाभ प्राप्त हुआ जो उस समय सुन्दरकाण्ड का 108 बार पाठ कर रहे थे और मौन में थे। उनके विषय में उनके भक्त बाबूलाल जी जायसवाल जिन्होंने नये जयस्तंभ के पास होशंगाबाद में अपने घर के ऊपर काली मंदिर की स्थापना लक्ष्मीबाबा के नाम से की है का कहना है कि अगर कोई भी व्यक्ति कहीं भी पतई वाले महाराज की चर्चा करते है तो यह बात पतई वाले बाबा जान लेते है, आश्रम पर पहुंचने पर इस बात की पुष्टि वे अनेक बार कर चुके है। पतई वाले बाबा रामस्वरूप जी महाराज जैसे संतों का डेरा नर्मदा के तटों पर नर्मदा उदगम से सागर तक दोनों ओर देखा जा सकता है जो अपने तपोबल से जगत का कल्याण करने साधनारत है, जिनमे पतईवाले संत रामस्वरूप महाराज भी नर्मदा जी के परम भक्तों में एक है, जो भक्तों के दिलों में बसे हुए है।
आत्माराम यादव पीव