राजनीति

बिहार के बुरे दिन!

-फखरे आलाम-
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जैसे ही भारत के अच्छे दिन शुरू हुये। इससे पहले ही बिहार के बुरे दिन शुरू हो गए थे। वैसे मेरे जानकारी के अनुसार में बीस बाइस वर्षों में कभी अच्छे दिन आये ही नहीं थे। लालू, राबड़ी राज्य और भी नितिश माझी सरकार में नि दिन बिहार पिछड़ता ही गया और बुरे से भी बुरे दौर से बिहार गुजरात रहा। अब तो राजनीति अस्थिरता ने बिहार को अपने चपेट में ले लिया है जो हाल पड़ोसी राज्य झारखण्ड का था, वही बिमारी बिहार को पकड़ने लगा है। पहले लालू रावड़ी का कुशासन और पिफर नितीश के सपनों का बिहार जो विशेष दर्जा के लिए संघर्ष के साथ ही इतिहास का पन्ना बन गया। नितीश के नेतृत्व में बिहार के लोगों ने बहुत सपने देखे जिसके टूटने की पीड़ा लालू राबड़ी के शासन से अध्कि हुआ। भाजपा से गठबंध्न तोड़ते ही नितीश कुमार की हकीकत और असलियत सामने आने लगी और 2014 के आम चुनाव के परिणाम ने नितीश कुमार को कुर्सी छोड़ने पर मजबूर कर दिया अथवा वह नरेन्द्र मोदी से डर कर कुर्सी छोड़ गये।

बड़ा ही अजीब व गरीब राजनीति समीकरण रहा बिहार में केन्द्र में घोर विरोधी कांग्रेस के साथ नितीश कुमार सरकार चलाते रहे और लोकसभा चुनाव में मात खाते ही एक दूसरे के घोर राजनीति विरोधी राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड एक मंच पर आकर सत्ता सुख भोगने लगे। बिहार की राजनीति में एक अनोखी घटना लोकसभा चुनाव में सैकुलर फोर्स का सफाया और भाजना गठबंध्न और विशेष रूप से लोक जनशक्ति का बेहतरीन प्रदर्शन रहा। अब माझी के नेतृतव में बिहार का क्या होगा? वैसे 2014 के लोक सभ परिणाम ने बिहार के राजनीति दशा को बदलकर रख दिया है। ऐसे में वर्तमान सरकार कितने दिनों की होगी और राजनीति स्थिरत कहा तक जायेगा। मगर इतना तो तय है बिहार दशा और दिशा प्रदेश में होने वाले आगामी विधन सभा चुनाव के बाद ही बेहतर हो जायेगी अथवा अगर केन्द्र ने राष्ट्रपति शासन लागू किया अथवा तोड़ जोड़ और टूट-फूट कर सरकार बनती है तो बिहार का भविष्य और अधिक अंधकार की ओर ही जायेगा।

बिहार हमारा ही नहीं देश का लाज है जिसने अनेको अवसरों और विशेष कर प्राचीन भारत का गौरव हुआ करता थ। आज बिहार के लोगों और राजनेताओं ने बिहार को मजाक का पात्रा बना दिया है। विदेश नहीं भारत के किसी भी प्रदेशों ओर शहरों में जाये बिहार से रोजगार और पलायन की दास्तान दिखाई देगा। मैं उस प्रदेश का अप्रवासी नागरिक हूं जो अपने प्रदेश को इतिहास के उस गौरवमय अतीत में देखना चाहता है। दिन प्रतिदिन प्रदेश में राजनीति अस्थिरता, नक्सलवाद के ताण्डव और जातिगत राजनीति से परेशान होता रहता है। प्रदेश से पलायन करते प्रतिभाओं का दुख प्रदेश में वसूली, रंगदारी, असुरक्षा, भय का वातावरण, दिनदहाड़े लूटपाट मन को बेचैन कर देता है।

अपने प्रदेश की खुशबू, लिट्टी चोखा, मच्छी, केला, लीची और सिन्दुरिया, गुलाब खास आम का मजा सपनों में सिमट सा गया है। प्रदेश से होता दिन प्रति दिन का पलायन और घाटे की कृषि ने, पटसन उद्योग, केला उद्योग, लगभग सभी को प्रभावित किया है। प्रदेश से जितनी बड़ी संख्या बिहार वासियों की पेट पालने के लिये पलायन करने की है। उससे भी अध्कि बिहार के बच्चे शिक्षा प्राप्ति के लिये बिहार से बाहर का रुख करते हैं। प्रदेश में न तो धनवान सुखी है न निर्धन, शिक्षा का स्तर इतना गिरा दिया गया है कि व्याख्या यहां संभव नहीं है। कभी नालंदा, विक्रमशिला और छोटा आॅक्सपफोर्ड कहलाने वाला पटना विश्वविद्यालय दम तोड़ने के कगार पर है। चिकित्सा में बिहार वालों के कमाई का बड़ा भाग खर्च हो जाता है। कारण बिहार में पीने योग्य पानी की कमी है प्रदेश के लोगों लोहायुक्त और कठोर पानी पीते हैं। बिहार जातिगत राजनीति में बुरी तरह से उलझा है जिस में हाल के दिनों में शासक वर्ग ने और अधिक दरार पैदा कर दिया है। प्रदेश में न तो सरकारी नौकारी है और न ही प्राइवेट स्तर पर रोजगार पैदा किये गये हैं। प्रदेश से केन्द्र में बड़े बड़े नेतृतव आये मगर सब के सब अपना और अपनी पार्टी का भला करके निकल गये, प्रदेश पिछड़ता गया। केन्द्र का कोई भी प्रोजेक्ट बिहार में नहीं। केन्द्र का पक्षपात वाला रवैया और प्रदेश के नेताओं की अनदेखी ने बिहार को दिन प्रतिदिन पीछे करता चला गया।