ऑनलाइन जुए के खेल पर पाबंदी

संदर्भः- ऑनलाइन खेल संवर्धन और विनियमन में विधेयक हुआ पारित

प्रमोद भार्गव

            अखाड़ा बने संसद में हो-हल्ले के बीच भी कई जनहितैशी विधेयक पारित कराने में सरकार सफल रही है। इन्हीं में से एक ‘ऑनलाइन खेल संवर्धन एवं विनियमन विधेयक-2025‘ को संसद के साथ राश्ट्रपति द्रोपदी मुर्म से भी मंजूरी मिल गई। यह एक अत्यंत जरूरी कानून है। क्योंकि कर्नाटक में 31 दिन के भीतर 32 लोग इन खेलों के चक्कर में आकर आत्महत्या कर चुके हैं। इस तथ्य को उजागार करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अष्विनी वैश्णव ने कहा है कि ‘ऑनलाइन गेम्स में अंतर करना जरूरी है। ई-स्पोर्ट्स और सोषल गेम्स को अब हम बढ़ावा देंगे, परंतु ऑनलाइन मनी गेम्स यानी पैसे से खेले जाने वाले खेलों को पूरी तरह बंद करेंगे। इन खेलों से मध्यम श्रेणी के अनेक परिवार बर्बाद हो रहे हैं।‘ जितने सख्त लहजे में वैष्णव ने यह बात कही है, उसी सख्ती से इस कानून को मैदान में अमल भी करवाने की जरूरत है। 

            इस विधेयक में मनी गेमिंग के विज्ञापनों पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। विज्ञापन देकर खेल खिलाने वाले खिलाड़ियों के साथ विज्ञापन को प्रस्तुत करने वाली हस्तियां और उत्प्रेरक भी अपराध के दायरे में आएंगे। इनके लिए अब कारावास और जुर्माना दोनों ही सजा झेलनी पड़ सकती हैं,  क्योंकि यह जुआ व्यक्ति अधिक पैसा पाने की लालसा में खेलता है। अतएव टीवी, मोबाइल एप, सोषल मीडिया और वेबसाइट पर ऐसे खेलों का विज्ञापन करने पर दो साल तक की कैद और पचास लाख रुपए तक का अर्थदंड दिया जा सकता है। इन खेलों से संबंधित धन के लेन-देन को बढ़ावा देने पर तीन साल की कैद या एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, यदि कोई एक व्यक्ति बार-बार इस खेल में लगा रहता है तो तीन से पांच साल तक की सजा और दो करोड़ रुपए तक का अर्थदंड भुगतना पड़ सकता है।

            अब सरकार राश्ट्रीय प्राधिकरण के अंतर्गत ऑनलाइन खेले जाने वाले खेलों की वर्गीकरण करेगी। क्योंकि जुआ-सट्टा से जुड़े खेलों को भी प्रतिउत्पन्न मति अर्थात बुद्धिमत्ता आधारित खेल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस खेल में जीतने वाले व्यक्ति को भाग्यषाली होने के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसलिए बुद्धि को बढ़ावा देने वाले खेल और पैसा लगाकर खेले जाने वाले खेलों को परिभाशित करके विभाजित किया जाएगा। खिलाड़ी को मालूम होना चाहिए कि मनोरंजन, बुद्धि विकास और षैक्षित खेलों में दांव या पैसे की बाजी नहीं लगाई जाती है। प्राधिकरण षैक्षिक और मनोरंजन खेलों के सर्मथन में रहेगा। धन आधारित इस ऑनलादन खेल के 45 करोड़ लोग लति हो चुके हैं। ये लति 20 हजार करोड़ रुपए प्रति वर्श गंवा कर अपने परिवार को आर्थिक बद्हाली में झोंक देते हैं। साफ है, समाज के लिए यह समस्या जटिल स्वरूप ग्रहण कर चुकी है। अकेले जुपी एप पर इसके 15 करोड़ उपयोगकर्ता है। 1800 गेमिंग स्टार्टअप इंटरनेट पर चल रहे हैं। ऑनलाइन गेम का वैष्विक बाजार 3240 करोड़ का है। भारत सरकार ने इन खेलों से पांच साल के भीतर कर के रूप में 2600 करोड़ रुपए कमाए हैं। 2023 में ऑनलाइन गेमिंग पर 28 प्रतिषत जीएसटी लगा दिया गया था। लेकिन अब देष के नागरिकों को इस समस्या से मुक्ति के लिए सरकार इन खेलों पर प्रतिबंध के लिए कानून ले आई है।

            इंटरनेट के कारण दुनिया आदमी की मुट्ठी में आ गई है। इसके जितने लाभ हैं, उसी अनुपात में नुकसान भी देखने में आ रहे हैं। इस जंजाल में बड़े-बुजुर्ग और महिलाओं समेत बच्चे भी उलझते जा रहे हैं।  कोरोना काल में घरों में ही रहने की बाध्यता के चलते ज्यादातर उपभोक्ताओं की मुट्ठी में स्मार्ट फोन आ गया और उसके लिए दुनिया का आकाष छू लेना आसान हो गया है। इस आसान उपलब्धि ने मर्यादा में रहने वाली भारतीय सामाजिक संरचना पर देखते-देखते बड़ा आघात कर दिया है। एक तरफ तो लोग ऑनलाइन जुए में अपनी पसीने से कमाई धन-संपदा गंवा रहे है, वहीं ठगी के षिकार होकर डिजीटल अरेस्ट के तहत तमाम लोग अपनी समूची चल-अचल संपत्ति ठगों को भेंट कर चुके हैं। इसीलिए लंबे समय से इस तरह की जलसाजियों पर प्रतिबंध की मांग उठ रही थी। अब जाकर सरकार चेती है।  

            ऑनलाइन शिक्षा के बहाने ये विद्यार्थियों की मुट्ठी में भी स्मार्ट फोन आ गए हैं। इन फोनों में मनोरंजन एवं शैक्षिक खेलों के साथ अश्लील फिल्मों की उपलब्धि भी आसान थी। अतएव जो खेल भारत की समृद्ध संस्कृति, शारीरिक स्वास्थ्य और जीवन के विकास की अभिप्रेरणा थे, वे देखते-देखते भ्रम, ठगी, लालच और पोर्न का जादुई करिश्मा बनकर मन-मस्तिष्क पर छा गए। यहां तक की ‘ब्लू व्हेल‘ खेल में तो आत्महत्या का आत्मघाती रास्ता तक सुझाया जाने लगा। बच्चे लालच की इस मृग-मरीचिका के दृष्टिभ्रम में ऐसे फंसे कि धन तो गया ही, कईयों के प्राण भी चले गए। सोशल मीडिया की यह आदत जिंदगी में सतत सक्रियता का ऐसा अभिन्न हिस्सा बन गई है कि इससे छुटकारा पाना मुश्किल हो गया खेल-खेल में कुछ कर गुजरने की यह मनस्थिति भारत समेत दुनिया अनेक बच्चों की जान ले चुकी है। ऑनलाइन खेलों में पब्जी, रोबोलॉक्स, फायर-फैरी, फ्री-फायर भी प्रमुख खेल हैं। ये सभी खेल चुनौती और कर्त्तव्य के फरेब से जुड़े हैं। इन खेलों में दूध और पानी पीने की सरल चुनौतियों से लेकर कई घंटे मोबाइल पर बने रहने, मित्रों से पैसे उधार लेने, छत से कूदने, घुटनों के बल चलने, नमक खाने और बर्फ में रहने तक की चुनौतियां षामिल हैं। 

            ऑनलाइन षिक्षा के बढ़ते चलन के चलते विद्यार्थियों की मुट्ठी में एनरॉयड मोबाइल जरूरी हो गया है। मनोविज्ञज्ञनी और समाजषास्त्री इसके बढ़ते चलन पर निरंतर चिंता प्रकट कर रहे हैं। पालक बच्चों में खेल देखने की बढ़ती लत और उनके स्वभाव में आते परिवर्तन से चिंतित व परेषान हैं। पालक बच्चों को मनोचिकित्सकों को तो दिखा ही रहे हैं, चाइल्ड लाइन में भी षिकायत कर रहे हैं। दरअसल बच्चों का मोबाइल या टेबलैट की स्क्रीन पर बढ़ता समय आंखों में दृश्टिदोश पैदा कर रहा है।  साथ ही अनेक षारीरिक और मानसिक बीमारियों की गिरफ्त में भी बच्चे आ रहे हैं। पोर्न फिल्में भी देखते बच्चे पाए गए हैं।

ऑनलाइन खेल आंतरिक श्रेणी में आते हैं, जो भौतिक रूप से मोबाइल पर एक ही किशोर खेलता है, लेकिन इनके समूह बनाकर इन्हें बहुगुणित कर लिया जाता है। वैसे तो ये खेल सकारात्मक भी होते हैं, लेकिन ब्लू व्हेल, पब्जी जैसे खेल उत्सुकता और जुनून का ऐसा मायाजाल रचते हैं कि मासूम बालक के दिमाग की परत पर नकारात्मकता की पृष्ठभूमि रच देते हैं। मनोचिकित्सकों और स्नायु वैज्ञानिकों का कहना है कि ये खेल बच्चों के मस्तिष्क पर बहुआयामी प्रभाव डालते हैं। ये प्रभाव अत्यंत सूक्ष्म किंतु तीव्र होते हैं, इसलिए ज्यादातर मामलों में अस्पश्ट होते हैं। दरअसल व्यक्ति की आंतरिक षक्ति से आत्म्बल दृढ़ होता है और जीवन क्रियाषील रहता है। किंतु जब बच्चे निरंतर एक ही खेल खेलते है तो दोहराव की इस प्रक्रिया से मस्तिश्क कोष्किएं परस्पर घर्शण के दौर से गुजरती हैं, नतीजतन दिमागी द्वंद्व बढ़ता है और बालक मनोरोगों की गिरफ्त में आ जाता है। ये खेल हिंसक और अश्लील होते है,, तो बच्चों के आचरण में आक्रामकता और गुस्सा देखने में आने लगता है। दरअसल इस तरह के खेल देखने से मस्तिष्क में तनाव उत्पन्न करने वाले डोपाइन जैसे हार्मोनों का स्राव होने लगता है। इस द्वंद्व से भ्रम और संशय की मनस्थिति निर्मित होने लगती है और बच्चों का आत्मविश्वास छीजने के साथ विवेक अस्थिर होने लगता है, जो आत्मघाती कदम उठाने को विवश कर देता है। हालांकि डोपाइन ऐसे हारमोन भी सृजित करता है, जो आनंद की अनुभूति के साथ सफलता की अभिप्रेरणा देते हैं। किंतु यह रचनात्मक साहित्य पढ़ने से संभव होता है। बहरहाल इस ठगी पर लगाम भारत सरकार ही लगा सकती थी, जो उसने देर आए, दुरुस्त आए की तर्ज पर लगा भी दी।

प्रमोद भार्गव

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