कविता

मानव हो मानव बने रहो

हर जड़ चेतन का उद्गम प्रकृति,

हमने उसको भगवान कहा,

तुमने उसको इस्लाम कहा

या केश बांध ग्रंथ साब कहा,

या फिर प्रभु यशु महान कहा।

 

पशु पक्षी हों या भँवरे तितली,

वट विराट वृक्ष हो चांहे हो तृण,

या हों सुमन सौरभ और कलियाँ,

हाथी विशाल हो या सिंह प्रबल

या हों जल मे मछली की क्रीड़ायें,

 

ऊँचे पहाड़ हों या घाटी,नदियाँ

गहरे समुद्र मे टापू छोटे छोटे,

जल-थल हो या फिर अंतरिक्ष,

या फिर सौर मंडल अनेक,

ग्रह और उनके उपग्रह अनेक

 

हम प्रकृति को जो भी नाम दे,

राम रहीम अल्लाह कहें,

मानव हैं मानव बने रहें।

 

मानव प्रकृति की वह रचना,

जो सोच सके क्या भला बुरा,

फिर क्यों मानव ने मानव धर्म तजा,

कौन देगा इस प्रश्न का उत्तर

क्या कोई राम जन्मेगा

या फकीर कबीर कोई होगा,

या फिर हर मानव के भीतर ही

कोई अवतार जनम लेगा।