आर्थिकी

बेजबरुआ समिति की सिफारिशों पर केंद्र की पहल सराहनीय

samitiडॉ. मयंक चतुर्वेदी

देश में केंद्र या राज्यों में सरकारें बदलती हैं तो प्रशासन और आम जनता की उसे देखने की दृष्टि भी बदल ही जाती है। किसी भी नई सरकार में जनप्रतिनिधि का व्यवहार इसे जितना प्रभावित करता है, उससे कहीं अधि‍क लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में उस जनप्रतिनिधि की राजनैतिक पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र किसी भी नई सरकार की नीतियों को प्रभावित करता है। इसका ताजा उदाहरण है देश के चहुंमुखी विकास का वायदा कर केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लिए जा रहे सरकार के इस दिशा में लगातार के निर्णय। यूं तो केंद्र सरकार सीमा सुरक्षा, विदेश नीति, आंतरिक सुरक्षा, महंगाई पर लगाम, देश का औद्योगिक विकास सहित तमाम मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रीत करने में सफल हुई है। फिर भी राज्यों के आंतरिक और वाह्य मुद्दों के साथ देश के सुदूर सीमावर्ती राज्यों की अपनी समस्याएं हैं। खासकर पूर्वोत्तर राज्यों की दिक्कतें और संपूर्ण देश में इन राज्यों के निवासियों की सहज स्वीकार्यता। जिन्हें लेकर यह राज्य लगातार अपने अस्तित्व के लिए देश में एक लम्बे समय से संघर्ष कर रहे हैं। भारत भले ही अनेक राज्यों में विभक्त कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि यहां इन राज्यों के बीच अपनी-अपनी अस्मिता की लड़ाई मौजूद है। कहीं भाषावाद है, कहीं नस्लवाद तो कहीं विकास बनाम पिछड़ेपन की लड़ाई का अपना राग।

जब फरवरी 2014 में दिल्ली में अरुणाचल प्रदेश के युवक निदो तानिया की हत्या पूर्वोत्तर के लोगों के साथ कथित भेदभाव के चलते कर दी गई थी तब देशभर में सभी ओर से यह मुद्दा प्रमुखता से उठा था कि भारत के अन्य प्रदेशों में पूर्वोत्तर के लोग महफूज क्यों नहीं हैं? सभी तरफ भारी आलोचना झेल रही तात्कालिक केंद्र सरकार ने एम.पी. बेजबरुआ की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी जिसने कि‍ अपनी 82 पेज की रिपोर्ट में देश के विभिन्न हिस्सों में पूर्वोत्तर के छात्रों के साथ होने वाले भेदभाव और उन पर होने वाले हमलों की स्थिति सरकार के समक्ष पेश की। साथ में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में पूर्वोत्तर के लोगों प्रति देश के अन्य राज्यों के लोगों की सोच को बदलने, एक खुशनुमा समरसता का माहौल बनाने और अन्य सुधारों के लिए विभिन्न उपायों की सिफारिश भी प्रस्तुत की थी।दूसरे अर्थों में वस्तुत: सरकार ने इस समिति पर देश के विभिन्न भागों में रह रहे पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों की परेशानियों और चिंताओं पर विचार करने और सरकार द्वारा लिए जाने वाले कानूनी उपायों समेत तमाम सुधारात्मक कदमों पर अपने सुझाव देने की जिम्मेदारी सौंपी थी।

आज अच्छी बात यह है कि केंद्र सरकार ने इस समिति की अनुशंसाओं को पूर्वोत्तर के विकास और देश में समसरता को ध्यान में रखते हुए लागू करने का मन बनाया है। केंद्र में भाजपा सरकार की इस पहल के लिए उसकी जितनी तारीफ की जाए वह उतनी ही कम कहलाएगी। वास्तव में ऐसा कहने के पीछे आशय यह है कि देश में स्वतंत्रता के बाद सन् 47 से 2014 तक बीते 67 सालों में न जाने कितने मामलों पर समितियों का गठन होता आया है।केंद्र और राज्य सरकारें किसी बड़ी घटना के घटने के बाद उपजे तनाव ग्रस्त माहौल को शांत करने के लिए समितियों का गठन करती हैं किंतु इन तमाम गठित की गई समितियों में से उंगली पर ही ऐसी समितियों को गिना जा सकता है जो अपने उद्देश्य को पूरा करने में कामयाब रही हैं। इसीलिए आज हम बेजबरूआ समिति को लेकर अपनी खुशी जाहिर करते हुए कह सकते हैं कि वह अपने मकसद में सफल रही है, इसके लिए सरकार, उच्चतम न्यायालय और स्वयं यह समिति बधाई की पात्र हो गई है।

न्यायालय को यहां इसलिए बधाई दी जा रही है क्योंकि वह सरकार की पूर्वोत्तर मामले में लिए जाने वाले निर्णयों को लेकर अपनी निगरानी कर रहा था और समिति के सदस्य सरकार के पीछे पड़े थे कि हमने जो सुझाव दिए हैं उन्हें सरकार कब तक व्यवहार में लाने की मंशा जाहिर कर रही है और सरकार को इसीलिए कि अन्य रिपोर्टों की तरह उसने इसे मंत्रालयों में धूल खाने के लिए नहीं छोड़ा। यह सभी के संयुक्त प्रयास ही हैं जो गृह मंत्रालय समिति द्वारा सुझाए गए उपायों के तहत एक कानूनी कदम के रूप में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में संशोधन करने जा रहा है और दो नई धाराएं 153सी और 509ए उसमें शामिल करने की तैयारी कर चुका है। यह भी अच्छी पहल है कि कानूनी सहायता के रूप में दिल्ली राज्य विधि सेवा प्राधिकरण ने पांच महिला वकीलों के साथ सात वकीलों का एक पैनल गठित किया है, जो जरूरतमंद पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को कानूनी मदद उपलब्ध कराएगा। दिल्ली सरकार भी ‘दिल्ली पीडि़त मुआवजा स्कीम’ 2011 के तहत पूर्वोत्तर के लोगों को मुआवजा और वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। परेशानी में फंसे लोगों की मदद के लिए पूर्वोत्तर राज्यों के दिल्ली स्थित राज्य भवन भी सक्रिय भूमिका निभाने पर सहमत हो गए हैं।

दिल्ली पुलिस और विभिन्न राज्यों के पुलिसबलों द्वारा उठाए जाने वाले विशेष पुलिस उपाय और अतिरिक्त उपाय के संदर्भ में समिति के सभी सुझावों को सरकार तत्काल प्रभाव से लागू कर रही है। दिल्ली पुलिस पूर्वोत्तर राज्यों से 20 पुलिसकर्मी (10 महिला, 10 पुरूष) नियुक्त करने जा रही है इसे लेकर जो घोषणा गृहमंत्री राजनाथ सिंह के द्वारा की गई, इससे साफ हो गया है कि केंद्र में भाजपा सरकार वास्तव में देश में एक सकारात्मक और विकासवादी माहौल बनाना चाहती है जिससे कि‍ संपूर्ण देश का समग्र विकास किया जा सके। पूर्वोत्तर राज्यों और दिल्ली समेत अन्य महानगरों के बीच पुलिस आदान-प्रदान कार्यक्रम को मंजूरी को भी हम इसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम मान सकते हैं। सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए नई दिल्ली में पूर्वोत्तर विशेष इकाई सक्रिय करने के साथ अन्य राज्यों को भी ऐसा करने की सलाह दी गई है। पूर्वोत्तर के लोगों से जुड़े मामलों को निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों में ले जाने का निर्णयभी एक सार्थक पहल हैताकि फैसले जल्द हो सकें।

केंद्र सरकार ने इसके आगे भी पूर्वोत्तर के लोगों के लिए एक विशेष हेल्पलाइन नम्बर 1093 को 100 नम्बर के साथ जोड़ दिया है तथा अन्य राज्यों को भी विशेष हेल्पलाइन शुरू करने की सलाह दी गई है। इसके अलावा दिल्ली पुलिस समेत विभिन्न महानगरीय पुलिस को अपने बल में पूर्वोत्तर के लोगों को नियुक्त करने और उन्हें संवेदनशील इलाकों में अच्छे पद पर नियुक्त करने की सलाह दी गई है। क्षेत्रीय स्तर पर वरिष्ठ अधिकारी के रूप में उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की सिफारिश भी की गई है। स्वभाविक है यदि केंद्र के इस सुझाव को राज्य सरकारें मानेंगी तो देश में सभी जगह समान रूप में पूर्वोत्तर के लोगों के प्रति सम्मान का भाव बढ़ेगा ही साथ में उन्हें लेकर जो तमाम नकारात्मक गतिविधि‍यां चलती हैं, उन पर पूरी तरह अंकुश लग जाएगा।

बेजबरुआ समिति की सिफारिशों में कुछ सुझाव मानव संसाधन मंत्रालय से संबंधित हैं, जिनमें से कई उपाय तो पहले से किये जा रहे हैं। पर फिर भी जो लोगों को पूर्वोत्तर के बारे में शिक्षित करने के लिए विश्वविद्यालयों को पूर्वोत्तर का इतिहास और देश के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी को स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव की सलाह दी गई है। वहीं प्रारंभिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा के संदर्भ में एनसीईआरटी को भी इस तरह के कदम उठाने के लिए कहा गया है।

केंद्र सरकार अभी यहां जो शि‍क्षा क्षेत्र में विद्यार्थियों के लिए एक विशेष छात्रवृत्ति स्कीम ‘ईशान उदय’ चला ही रही है। जिसके अंतर्गत कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में स्नातक स्तर की पढ़ाई कर रहे 10,000 छात्रवृत्तियां प्रदान की जाएंगी। इसमें छात्रवृत्ति की राशि साढ़े तीन हजार रूपये से लेकर पांच हजार रूपये प्रति माह है।इसके अलावा ‘ईशान विकास’ स्कीम में पूर्वोत्तर राज्यों के स्कूलों और कॉलेजों से चयनित छात्रों को इंटर्नशिप, एक्सपोजर के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) और अन्य प्रौद्योगिकी संस्थानों में भेजा जा ही रहा है। वाकई यह प्रयास केंद्र के बहुउद्देशीय श्रेष्ठ प्रयास हैं।

केंद्र सहकार ने अभी बेजबरुआ समिति की अनुशंसाओं के आधार पर पूर्वोत्तर क्षेत्र और देश के शेष भागों के लोगों के बीच दूरी को पाटने के लिए संस्कृति, पर्यटन, सूचना और प्रसारण मंत्रालयों ने कई कार्यक्रमों को लागू करने की योजना भी बना ली है। यथा-लोगों को पूर्वोत्तर राज्यों की उच्च सांस्कृतिक विरासत के बारे में शिक्षित करने और राष्ट्रीय स्तर पर इसके व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए एक कार्य योजना।संस्कृति, फिल्म, खाद्य सामग्री, खेल आदि को प्रदर्शित करने के लिए नई दिल्ली में हर वर्ष पूर्वोत्तर फिल्म समारोह और पूर्वोत्तर उत्सव मनाना।

अच्छी बात यह है कि सरकार के प्रयास यहीं नहीं रुके उसने अपने खेल मंत्रालय के जरिए पूर्वोत्तर के लिए विशेष कदम उठाए हैं -राज्य सरकारों की मदद से पूर्वोत्तर क्षेत्र में प्रतिभावान खिलाडियों को चिहिन्त करना, पूर्वोत्तर राज्यों में विभि‍न्न खेल प्रतिस्पर्धा का आयोजित, मणिपुर में राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए 100 करोड़ रूपये का प्रावधान।वहीं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, जो क्षेत्र के विकास के लिए नोडल एजेंसी है, ने भी पिछले दिनों यहां के विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं जैसे कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली के चार कॉलेजों में छात्रावासों के निर्माण के प्रस्तावों पर विचार, दिल्ली में पूर्वोत्तर क्षेत्र के पेशेवरों, विद्यार्थियों और सेवारत लोगों द्वारा आवास तथा उच्च किराये की समस्या को निपटाने के लिए प्रभावी उपाय, पूर्वोत्तर क्षेत्र के जो लोग कम वेतन और वेतन का भुगतान न होने की समस्या से जूझ रहे हैं। उनके लिए दिल्ली सरकार को इस समस्या का समाधान ढूंढने की सलाह वगैरह-वगैरह।

इस प्रकार जो तस्वीर केंद्र सरकार की इस वक्त पूर्वोत्तर को लेकर उभर रही है, वह यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार पूरी तरह इस क्षेत्र के संपूर्ण विकास के लिए प्रतिबद्ध है। निश्चित ही सरकार के इन प्रयासों को देखकर कहा जा सकता है कि इस प्रकार की अन्य राज्यों की भी समस्यायें हैं उन्हें भी केंद्र सरकार धीरे-धीरे पूर्वोत्तर की तरह समाप्त करने की दिशा में सार्थक पहल करेगी और अपने प्रयासों से भविष्य में एक शक्ति सम्पन्न भारत का देश के आम नागरिक का सपना साकर कर दिखाने में अवश्य ही सफल हो जायेगी। वैसे भी उम्मीद पर आकाश टिका है, फिर क्यों ना हम अपनी सरकार से उम्मीदें करने में कोताही बरतें। पुनश्च बेजबरुआ समिति की सिफारिशों पर सरकार की पहल के लिए उसको साभार है।