राजनीति शख्सियत

बीजेपी की सीएम प्रयोगशाला के सफल प्रोडक्ट साबित होते भजनलाल

-निरंजन परिहार

किसी जादूगर की झोली से, बेहद अप्रत्याशित और औचक तरीके से निकले जादू की तरह, दो साल पहले तीन मुख्यमंत्री निकले। राजस्थान में भजनलाल शर्मा, मध्य प्रदेश में मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय। तीनों को जब मुख्यमंत्री घोषित गया, तो पार्टी के ज्यादातर लोग तीनों को, संगठन के ईमानदार कार्यकर्ता से ज्यादा नहीं जानते थे, और तीनों प्रदेशों की जनता तो तीनों को भी बेहद कम ही नहीं जानती थी। न तीनों का कोई बड़ा जनाधार, न बड़े सियासी समीकरण,  और न ही कोई ऐसा कोई संकेत कि वे राज्य में सत्ता को सफलता से संभाल लेंगे। मगर अब, जब तीनों को सत्ता सम्हाले दो साल पूरे हो रहे हैं, तो यह हिसाब – किताब भी जरूरी है कि तीनों में से कौन कितना सफल बन सका और किसने खुद को आलाकमान की भावनाओं के अनुरूप मुख्यमंत्री के खुद को ढाला। तीनों में सबसे मजबूत प्रोफ़ाइल किसका है, और किसके बारे में क्या आम धारणा बनी है। यह जांचने के लिए अगर राजनीतिक स्थिरता, प्रशासनिक पकड़, नेतृत्व के साथ तालमेल, प्रादेशिक जटिलताओं को संभालने की क्षमता और भविष्य की संभावना के राजनीतिक नजरिये का आकलन करें, तो सबसे मजबूत प्रोफ़ाइल भजनलाल शर्मा का उभरता है। क्योंकि भौगोलिक और राजनीतिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण एवं जातिगत समीकरण में सबसे अप्रत्याशित राज्य में सबसे कमजोर समझे जाने वाले किसी नेता का लगातार दो वर्ष तक बिना किसी बड़े असंतोष के निर्विवाद सत्ता संभालना आसान नहीं होता।

पॉलिटिकल प्रोफ़ाइल मजबूत किया भजनलाल ने

राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में, भजनलाल शर्मा के खाते में तीन प्रमुख उपलब्धियां दर्ज हुईं, एक तो निर्विवाद सत्ता संचालन, दूसरा, प्रशासनिक कमान और तीसरा ताकतवर नेताओं के साथ व्यावहारिक संतुलन। राजस्थान की राजनीति में, जहां सियासी संघर्ष और धड़ेबाज़ी लगातार चलते रहते हैं, वहां मुख्यमंत्री के तौर पर भजनलाल शर्मा ने शांत प्रशासनिक ढांचा दिया। शर्मा के अब तक के कार्यकाल के संदेश यही है कि कम अनुभव वाले नेता भी बड़े राज्य चला सकते हैं, यदि उनमें संतुलन, सरलता और स्थिरता की क्षमता हो। इसी कारण माना जाता है कि मध्य प्रदेश में मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के मुकाबले भजनलाल शर्मा का पॉलिटिकल प्रोफ़ाइल सबसे अधिक मजबूत हुआ है। वे सबसे कमजोर माने जाते थे, लेकिन अब सबसे ज्यादा भरोसेमंद मुख्यमंत्री के रूप में उभरे हैं। मुख्यमंत्री शर्मा कम बोलने और ज्यादा काम करने वाली शैली में फिट होते दिखे हैं। न किसी बड़े नेता से टकराव, न किसी विवादित बयान से सुर्खियां बटोरने की कोशिश। उन्होंने खुद को लो-प्रोफाइल, मगर इफ़ेक्टिव मुख्यमंत्री साबित किया। भजनलाल शर्मा की सबसे बड़ी ताकत उनका केंद्रीय नेतृत्व के साथ सहज तालमेल है, जो बीजेपी नेतृत्व को सबसे अधिक पसंद आता है। इस कारण वे उस मॉडल में सबसे बेहतर फिट हुए हैं जिसमें आलाकमान राज्य की कमान अपने हाथ में रखकर, एक संतुलित और भरोसेमंद चेहरे को आगे करता है।

सीमित प्रभाव में सिमटे यादव और विष्णुदेव

भले ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को संगठन के मजबूत सिपाही के तौर पर जाना जाता है, लेकिन लेकिन प्रशासनिक वजन सीमित ही रहा है। यादव भी लंबे समय तक गुमनाम ही रहे मगर, युवा मोर्चा से लेकर संगठन में मेहनत करते हुए वे प्रदेश के शीर्ष पद तक पहुंचे। मुख्यमंत्री के तौर पर उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी शिवराज सिंह चौहान जैसे तपे – तपाए नेता के बाद सत्ता संभालने का दबाव। मोहन यादव व्यक्तिगत करिश्मा और व्यापक प्रशासनिक नियंत्रण के मामले में तुलनात्मक रूप से सीमित नजर आते हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री बने हुए दो वर्ष बीत जाने के बावजूद, राज्य अब भी व्यापक पैमाने पर बीजेपी के पारंपरिक ‘शिवराज स्ट्रक्चर’ पर ही चलता हुआ दिखता है। उधर, छत्तीसगढ़ देखें, तो मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के साथ आदिवासी चेहरा होने की मजबूती का लेबल तो चस्पा है, पर उनका भी राजनीतिक विस्तार अभी भी सीमित ही है। वे शांत, सरल और आदिवासी समाज में प्रभाव रखने वाले नेता रहे हैं। आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में उनकी छवि ईमानदार, सादगीपूर्ण और साफ-सुथरी है। मगर, साय अभी तक छत्तीसगढ़ की राजनीति में प्रखर या तेजतर्रार चेहरा नहीं बन पाए हैं। उनकी पहचान एक शांत और सीमित प्रभाव वाले नेता की ही ज्यादा बन सकी है, इसी कारण वहां कांग्रेस ताकत दिखाती रहती है।

भजनलाल की राष्ट्रीय राजनीति में पहचान

तुलनात्मक तरीके से देखें, तो विष्णुदेव साय और मोहन यादव के मुकाबले राजस्थान में भजनलाल शर्मा की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वे एक नए प्रकार के बीजेपी मुख्यमंत्री का मॉडल बनकर उभरे हैं। वे शांत, ईमानदार, महत्वाकांक्षा विहीन और पूर्णतः आलाकमान के प्रति समर्पित विश्वासपात्र के रूप में भी खरे उतरे हैं। उन्होंने अपने से वरिष्ठ, बड़े और प्रभावशाली नेताओं के बीच संतुलन बनाए रखा और चाहे वह प्रदेश संगठन हो, केंद्र हो या स्थानीय शक्ति समूह। इसीलिए शर्मा को मुख्यमंत्रियों के मामले में बीजेपी के प्रयोग का सफलतम उदाहरण माना जा सकता हैं। दो वर्ष पहले और आज के तुलनात्मक आकलन में, भजनलाल शर्मा मात्र एक अप्रत्याशित चेहरा नहीं रहे, बल्कि अब वे राजस्थान और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी एक स्थापित पहचान बना चुके हैं। शर्मा को मुख्यमंत्री बना कर बीजेपी ने यह उदाहरण सेट किया था कि पार्टी संगठन छोटे से कार्यकर्ता को भी शीर्ष पद तक पहुंचा सकता है, तो एक मुख्यमंत्री के तौर पर बीते दो वर्षों में भजनलाल शर्मा ने भी अपने राजनीतिक आचरण से यह साबित किया ही है कि सामान्य लोगों पर जब भरोसा किया जाता है, तो वे प्रभावशाली लोगों से भी ज्यादा बेहतर साबित हो सकते हैं।