कविता

भक्त भ्रष्ट हो जाते हैं नौकरी के मिलते

—विनय कुमार विनायक
अवैध कमाते हैं जो, अहंकार में इतराते,
अवैध अवैध होता वो समझ नहीं पाते!

ईश्वर भक्ति है दिखावा उन कर्मियों का,
जो बिन नजराने जनसेवा में टांग अड़ाते!

काम के बदले मेहनताना मिले,वो अच्छा,
एक काम के दो दाम हराम ही कहलाते!

अवैध कमानेवालों में वैध समझौता होता,
हिसाब किताब ठीक होता भातृवत रहते!

उतना प्रेम शायद ही सगे भाइयों में होता,
जितना रिश्वतखोर विजातीय जन में होते!

रिश्वतखोरी की समस्या आम हो गयी है,
भक्त भ्रष्ट हो जाते हैं नौकरी के मिलते!

ये कैसी विडम्बना है कि बचपन में शारदे,
यौवन में मां को बिसारदे उल्लू को पूजते!

पता नहीं मैकाले का भूत कब छोड़ेगा हमें,
धर्म, विज्ञान से एकसाथ क्यों नहीं जुड़ते?

शायद वर्तमान शिक्षा हीं दूषित, अधूरी है,
धर्म सहित आर्थिक शिक्षा बहुत जरूरी है!