बड़ी चकल्लस है

रोज रोज का खाना खाना.
बड़ी चकल्लस है|
दादी दाल भात रख देती.करती फतवा जारी|
तुम्हें पड़ेगा पूरा खाना.नहीं चले मक्कारी|
दादी का यह पोता देखो कैसा परवश है|
बड़ी चकल्लस है|
“भूख नहीं रहती है फिर भी कहते खालो खालो|
घुसो पेट में मेरे भीतर.जाकर पता लगालो|
तुम्हें मिलेगा पेट लबालब.भरा ठसाठस है|”
बड़ी चकल्लस है|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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