विविधा

बिनायक सेन तो महज मोहरा है, असली मकसद तो कुछ और है

हे भारत मां इन्हें माफ करना

दानसिंह देवांगन

जब से रायपुर की एक अदालत ने पीयूसीएल के उपाध्यक्ष बिनायक सेन को उम्रकैद की सजा सुनाई है। देश-विदेश के सैकड़ों देशतोड़क तथाकथित बुद्धिजीवी एवं मानव अधिकार के ठेकेदार हायतौबा मचाने लगे हैं। कोई दिन ऐसा नहीं गया, जब अखबारों में बिनायक सेन के समर्थक कोर्ट और छत्तीसगढ़ सरकार को लानतमलानत करते नहीं दिखे। कुछ कलमघिस्सू बुद्धिजीवी अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट्स के माध्यम से आग उगलने में लगे हैं तो कुछ लोग धरने और रैली करने में। जिन्हें जो भी हथियार मिल रहा है, उससे वह वार करने से नहीं चूक रहा है। संयोग से ऐसे ही एक कट्टर समर्थक से कल मेरी भेंट हो गई। मैंने पूछा, कोर्ट का मामला है, इतनी हायतौबा क्यों मचा रहे हो। उस सान ने कहा कि बिनायक सेन निर्दोष है, उनके खिलाफ कोई केस बनता ही नहीं है, पुलिस का केस काफी कमजोर है। मैंने कहा- जब पुलिस का केस कमजोर है, तो इसमें इतनी हायतौबा मचाने की क्या जरूरत है, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा अभी खुला है, वहां केस लड़िए। यूं सड़कों पर या अखबारों में अदालत और सरकार के खिलाफ आग उगलने से क्या हासिल होने वाला है। मेरे इतना कहते ही वह अपने असली एजेंडे पर आ गया, जिसे सुनकर मेरे भी होश उड़ गए। उसने कहा कि बिनायक सेन तो केवल एक मोहरा है, असली उद्देश्य तो राय सरकार की लोकलुभावन योजनाओं की वजह से दिन-प्रतिदिन हमसे दूर होते जा रहे आदिवासी समाज को फिर से संगठित करना है। रायपुर की लोवर कोर्ट ने बिनायक सेन को जन सुरक्षा अधिनियम की धारा के तहत राजद्रोह का दोषी माना है। अब देखना, लोवर कोर्ट का यही फैसला कैसे रमन सरकार की गले की फांस बनती है। ये खुली चुनौती थी या बौखलाहट में निकला हुआ काला सच, मुझे नहीं पता। पर, एक बात तय है कि जिस अंदाज में बिनायक सेन के समर्थक देश और विदेश में रमन सरकार और देश की न्यायलीन संस्थाओं को कटघरे में लाने का प्रयास कर रहे हैं, उससे उस सान की बातों की पुष्टि होती नजर आ रही है।

इस बात की पुष्टि उस समय भी हुई, जब छत्तीसगढ़ के दस साल पर आधारित काफी टेबल बुक के लिए मुख्यमंत्री डा0 रमनसिंह ने छुरिया जाकर कुछ सक्सेस स्टोरी लेने के लिए कहा। पहले पहल तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि छत्तीसगढ़ के कुछ गांव ऐसे भी होंगे, जहां का एक भी व्यक्ति बेरोजगार नहीं है। चाहे वह पुरूष हो या महिला, स्वस्थ्य हो अपंग, प्रायमरी पढ़ालिखा हो या स्नातक। सबके हाथ में सम्मानजक काम हो, पर प्रदेश के मुखिया ने कहा है तो गलत होने का तो सवाल नहीं उठता। इसी उधेड़बुन में हम राजनांदगांव जिले के ग्राम सोमाझिटिया, देवरी, कुर्सीटिकुल, चांदो,कुमरदा, बुचाटोला, ढादूटोला, मेढ़ा, बचेराभाठा, झुरिया डोंगरी, कन्हरगांव, छुईखदान समेत एक आधा दर्जन गांव पहुंचे। वहां हमने जो देखा, उसे बयान करने के बजाय मैं जाकर देखने की सलाह देना चाहूंगा। मैंने जो महसूस किया, उसका कुछ अंश यहां उदृत कर रहा हूं।

ग्राम चांदो की 42 वर्ष की उर्मिला की चार-चार बेटियां हैं, पति बंशीलाल कोई अफसर नहीं है, न ही उनका कोई पुश्तैनी खेत। फिर भी उर्मिला खुश है, तीनों बड़ी बेटियों को अच्छे स्कूल में पढ़ा पा रही है। घर में कलर टीवी, डिश एंटीना है। यानि हर वह चीजें मौजूद है, जो एक मध्यमवर्गीय या बीपीएल परिवार का सपना होता है। ये सब कैसे हुआ, पूछने पर उर्मिला कहती है कि सरकार ने हमें घर पर ही बुनाई की सामग्रियां उपलब्ध करा दी है। हम जितना बुनना चाहते हैं, उतना काम हमें आसानी से मिल जाता है। पति सोसाइटी में जाकर कंबल, दरी, चादर बुनने का काम करता है। मैं महिला हूं, घर और बच्चों का भी ध्यान रखना पड़ता है, इसलिए घर पर ही काम कर लेती हूं। हम दोनों माह में 8 से 10 रूपए कमा लेते हैं। फिर सरकार हमें सस्ते में चावल दे देती है। बच्चों को निशुल्क गणवेश और पाठयपुस्तक दिया है। इस कारण अतिरिक्त खर्च भी बच जाता है। इससे यादा हमें और क्या चाहिए।

उर्मिला की कहानी तो महज एक संकेत भर है, ऐसे हजारों लोग हैं, जिनकी जिंदगी में खुशियों के रंग भरने लगे हैं। ये वो इलाकें हैं, जहां नक्सलियों का अच्छा-खासा दखल रहा है। अब सरकार के सहयोग से आदिवासी एवं पिछड़े लोगों की जिंदगी सुधरने लगी है, वहां नक्सलियों का प्रभाव भी कम होने लगा है। जनाधार खिसकने से नक्सली समर्थक बौखला गए हैं। यही वह प्रमुख वजह है जिसके कारण नक्सली समर्थक देश और दुनिया में हायतौबा मचा रहे हैं। उन्हें लगता है कि बिनायक सेन को मिली सजा को यदि सही तरीके से भुनाया जाए, तो पूरी दुनिया में वे साबित करने में कामयाब हो सकते हैं कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी और पिछड़ों का किस कदर शोषण और दमन किया जा रहा है। इससे आदिवासी और पिछड़े इलाकों में लगातार खो रहे जनाधार को भी फिर से प्राप्त कर सकेंगे, वहीं रमन सरकार को बदनाम करके जनसुरक्षा अधिनियम को भी समाप्त करने पर मजबूर कर सकते हैं।

इन लोगों को देखकर मैं इतना ही कह सकता हूं कि हे भारत माता इन्हें माफ करना, ये भी आपके ही बच्चे हैं, पर भटक गए हैं। बिनायक सेन, नारायण सन्याल समेत सभी नक्सल समर्थकों को इतनी सदबुद्धि दीजिए कि वे देशद्रोही नहीं, बल्कि देश और दुनिया में देशभक्ति के लिए जाने जाएं।