जिस समय यूपीए सरकार संसद के सत्र के दूसरे चरण के शांतिपूर्ण ढंग से चलने को लेकर अपनी रणनीतियों को दस जनपथ के अपने सलाहकारों के साथ अंजाम दे रही थी उसी समय भाजपा भी एनडीए के सहयोगी दलों को साथ लेकर बोफोर्स के मुद्दे पर कांग्रेस द्वारा क्वात्रोची को रिहा करने की घटना को लेकर संसद एक बार फिर ठप करने की अपनी रणनीति पर काम कर रही थी…. लेकिन संसद सत्र के दरमियान सीबीआई ने भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को ४ साल की कैद की सजा सुनाकर भाजपा के संसद ठप करने के अरमानों पर एक तरह से पलीता ही लगा दिया … दूसरो से अलग और” पार्टी विथ डिफ़रेंस ” जैसे नारे देने वाली भाजपा के दामन पर दाग लग गए जब २००१ में तहलका के एक स्टिंग आपरेशन में एक नकली हथियार सौदे के लिए एक लाख रुपये लेने का सीधा दोषी उसके पूर्व अध्यक्ष रहे बंगारू को पाया गया.
दरअसल भाजपा के साथ इस दौर में सबसे बड़ी मुश्किल इस रूप में आई है वह देश की जनता को यह बता पाने में विफल साबित हो रही है आखिर वह कैसे यूपीए का विकल्प २०१४ में बन पाएगी और लोगो को एक पारदर्शी सरकार देगी….. पार्टी के साथ बड़ी दुविधा इस दौर में यह है जब जब वह यूपीए सरकार को घेरने की कोशिश करती है तब तब वह खुद भ्रष्टाचार के दलदल में फँस जाती है….. भ्रष्टाचार के दलदल में फसती जा रही भाजपा के नेताओ की बोलती उस समय बंद हो जाती है जब वह येदियुरप्पा को समय पर नही हटा पाती….. साथ ही निशंक को हटाते समय वह चुप्पी साध लेती है …. इसके बाद आडवानी की रथ यात्रा जब खुद भ्रष्टाचारियो की पोषक बन जाती है तो इसके बाद भी उसके प्रवक्ता इस पर अपनी चुप्पी नही तोड़ते है….. फिर बसपा से निकाले गए कुशवाहा को पार्टी जब विभीषण बताती है तो पार्टी का चाल चलन और चेहरा पूरे देश के सामने आ जाता है और पूरे देश में उसकी छवि को ग्रहण लग जाता है….
अब बंगारू लक्ष्मण के मुद्दे पर जब सीबीआई उन्हें दोषी मानती है और चार साल की सजा सुनाती है तो भाजपा की मुश्किलें इस दौर में और ज्यादा बढ जाती हैं….. स्वीडिश पुलिस के एक पूर्व प्रमुख लिंदस्टेन ने जब हूट वेबसाइट से बातचीत में यह खुलासा किया है कि इस मामले में राजीव गाँधी के खिलाफ कोई सबूत नही था और तत्कालीन सरकार ने इतालवी व्यापारी क्वात्रोची के खिलाफ इस मामले में जांच को धीमा जरुर किया था..शायद यह सोनिया से उनकी निकटता के चलते हुआ …..इसके बाद भाजपा ने फिर बोफोर्स का जिन्न संसद में निकालने की अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया लेकिन संयोग देखिये बरसो पुराने मामले को भुनाने में वह पीछे कैसे रह पाती ….. जब बात खुद की पार्टी के अध्यक्ष रहे बंगारू लक्ष्मण की आती है तो उसके प्रवक्ताओ को सांप सूंघ जाता है और वह इस मामले में अपना दामन साफ़ करती नजर आती है……
बंगारू के मसले पर जब सारी पत्रकारिता बिरादरी के लोग भाजपा के प्रवक्ताओ या नेताओ से सवाल करते हैं तो वह सीधे इस विषय पर कुछ भी कहने से परहेज करते दिखाई देते है……भाजपा के साथ सबसे बड़ी समस्या इस समय यह आई है कि वह यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल होने के बावजूद सरकार को घेर पाने में पूरी तरह विफल रही है….. एक अदद अटल और आडवानी की ९० के दशक वाली जोड़ी की दरकार इस समय भाजपा को है …. लेकिन भाजपा का सबसे बड़ा संकट यह है वह इस समय यह तय कर ही नही पा रही है कि आगामी २०१४ के लोक सभा के चुनावो में किसको प्रोजेक्ट कर चुनाव में जाया जाए….. भाजपा के सभी नेता इस समय जहाँ प्रधानमंत्री पद की कतार में खड़े है वहीँ राज्यों में भाजपा के बड़े नेताओ की गुटबाजी २०१४ में उसकी सेहद के लिए अच्छा संकेत नही है ….. गडकरी संघ की बिसात में जहाँ सिर्फ एक प्यादा भर है वहीँ मोदी की लालसा इस दौर में राष्ट्रीय हो चली है…. वह भाजपा के बजाए जहाँ राज्य में अपनी सरकार चलाना पसंद करते हैं तो वहीँ आडवानी ८० पार की उम्र में भी पीं ऍम इन वेटिंग बनने के सपने पालने लगते है ….. केन्द्रीय राजनीती करने वाले सुषमा, जेटली, मुरली मनोहर, यशवंत सिन्हा , जसवंत सिन्हा . अनंत कुमार उमा सरीखे नेता भी अपने को प्रधानमंत्री की कुर्सी में देखना चाहते है……
आज के गठबंधन युग में किसी भी पार्टी का अपने बूते पार्टी का बहुमत जुटाना मुश्किल काम है ….. वैसे भी उत्तर प्रदेश सरीखे बड़े राज्य में भाजपा का प्रदर्शन पिछले कई दशक से बहुत ही निराशाजनक रहा है … बिना यूपी फतह किये बिना दिल्ली में सरकार बनाने के सपने देखना वैसे भी मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने जैसा है …. ऐसे में आगे की डगर मुश्किल तो दिख रही है लेकिन राज्यों में भी पार्टी में आल इज वेल नही है….. राजस्थान में जहाँ महारानी पार्टी आलाकमान को अपने तेवर दिखाती रहती है तो वही कर्नाटक में येदियुरप्पा बार बार मुख्यमंत्री बनाये जाने का राग आलाकमान के सामने दोहराते रहते है…. यही स्थति मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ , उत्तराखंड, हिमांचल , पंजाब जैसे राज्यों में बनी है जहाँ पार्टी में राज्य स्तर पर बड़े पैमाने पर गुटबाजी देखने को मिलती है….दक्षिण, पूर्वोत्तर के कई राज्यों में तो पार्टी का अभी खाता खुलना ही बाकी है … ऐसे में पार्टी यूपीए का विकल्प कैसे बन पाएगी इसमें संशय है…. वह भी तब जब वह एन डी ए के अपने पुराने कुनबे को अभी तक एकजुट नही कर पायी है…. राजनीतिक हलको में ऐसे हालात पार्टी के उस सच को सामने लाते हैं जहाँ पार्टी के भीतर कुछ विजन भी सामने नही है और वहां हर नेता की लालसा पार्टी में सबसे बड़े पद पाने की हो चली है…..
इन सब के बीच पार्टी में जब भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाने को लेकर सहमति बनती है तो उसके नेता खुद इसमें घिर जाते है….. मिसाल देखिये कामनवेल्थ घोटाले में भाजपा कांग्रेस के खिलाफ मुखर हो गई लेकिन उसके खुद के नेताओ जैसे सुधांशु मित्तल का नाम इस मसले पर आने के बाद पार्टी को चुप होना पड़ा…. वही जब २ जी में राजा के साथ शाहिद बलवा , आर के चंदोलिया, सिद्दार्थ बेहुरा, करीम मोरानी,जैसी नामचीन हस्तिया लपेटे में आई तो भाजपा के हाथ मानो बटेर लग गई….. इसके बाद सुब्रमन्यम स्वामी चिदंबरम के पीछे क्या पड़े भाजपा को लगने लगा दिल्ली से यू पीए के सफाए की उलटी गिनती मानो शुरू हो गई है… लेकिन जब २ जी की जाँच का दायरा एनडीए तक बड़ा तो भाजपा डिफेंसिव हो गई…..अब संसद के इस सत्र में जब वह केंद्र सरकार को सदन में बोफोर्स पर घेरने वाली थी तब एक नई मुश्किल बंगारू को लेकर पार्टी के सामने आ खड़ी हो गई है जिससे भाजपा अलग होना चाहती है लेकिन अलग नही हो सकती क्युकि यह उसके एक पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष का मामला है
बंगारू भाजपा में एक समय ऐसे दलित चेहरे के रूप में जाने जाते थे जिसके हर फैसले पर अटल आडवानी की जोड़ी अपनी हामी भरती थी….. बंगारू पहली बार १९९६ में गुजरात से राज्यसभा के लिए चुने गए…. इससे पहले १९९२ में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय नरसिम्हा राव के खिलाफ उन्होंने उपचुनाव भी लड़ा लेकिन हार का मुह देखना पड़ा…..१९९९-२००० में अटल की सरकार में रेल राज्य मंत्री भी रहे….कुशाभाऊ ठाकरे के बाद पार्टी ने उनके हाथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान दी….वह भी ऐसा दौर था जब सभी लोग जनाकृष्णमूर्ति को पार्टी अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते थे…..लेकिन पार्टी के नीति नियंताओ ने अपने जनाधार को मजबूत करने के लिए लोगो के सामने पहली बार एक दलित के हाथ कमान दी जिससे बड़े कायाकल्प की उम्मीद पार्टी के कार्यकर्ताओ को थी…..लेकिन भाजपा की उम्मीदों पर बंगारू खरे नही उतर पाये….
२००१ में तहलका के ऑपरेशन वेस्टलेण्ड में खोजी पत्रकार अनिरुद्ध बहल ने खुद को ब्रिटेन की फर्जी हथियार कंपनी ऍम एस इंटर केस का एजेंट दर्शाते हुए भाजपा के दिल्ली मुख्यालय में बंगारू से सीधा संपर्क साधा …..उन्होंने भारतीय सेना के लिए दूरबीन थर्मल वाइनाकूलर की आपूर्ति का ठेका दिलाने के एवज में बंगारू के सामने एक लाख रुपये रिश्वत की पेशकश की…. इस दौरान अनिरुद्ध ने बंगारू से उनके दफ्तर में कई मुलाकाते की …..आखिरकार बंगारू एक दिन तहलका के जाल में फँस ही गए…. १३ मार्च २००१ का दिन भारतीय जनता पार्टी के लिए वह दिन साबित हुआ जिस दिन उसको बंगारू के रिश्वत लेने के कर्मो के चलते लोगो के बीच शर्मसार होना पड़ा…..यही नही इस मामले में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज भी फंसे.. साथ में उनकी समता पार्टी की नेता जया जेटली का नाम भी सामने आया… जिसके बाद फर्नांडीज से भाजपा ने इस्तीफ़ा लिया… यह मामला २००३ में कोर्ट तक गया जिसके बाद फर्नांडीज , जया को बरी कर दिया गया….. लेकिन केंद्र में यू पी ए सरकार आने के बाद यह मामला फिर खुला जब सी बी आई ने इस मामले में ९ केस दर्ज किये जिसमे बंगारू को छोड़कर सभी को बरी कर दिया गया….२००६ में इस मामले में अदालत में फिर आरोप पत्र दाखिल हुआ और लम्बी सुनवाई के बाद इस पूरे मामले में दोषी बंगारू को पाया गया जिनको बीते दिनों तिहाड़ जेल की यात्रा करते हुए सभी ने देखा ….
वह किसी पार्टी के पहले ऐसे राष्ट्रीय अध्यक्ष है जो तिहाड़ की सैर कर रहे है लेकिन भाजपा को देखिये वह इस पूरे मामले को बंगारू का निजी मामला बताकर अपने को दूर कर रही है…. वैसे तो जिनके घर शीशे के बने होते है वह दूसरो के घर में पत्थर नही मारते लेकिन भले ही इस दौर में गंगा कितनी मैली हो चुकी हो वर्तमान दौर की राजनीती की बिसात तो कुछ और ही है जहाँ हर दल बहती गंगा में अपने हाथ साफ़ करना चाहता है और इसके जरिये अपने वोट बेंक को साधने की कोशिश करता है ..देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा भी अगर आज के दौर में यही सब कर रही है तो समझा जा सकता है बहती हवा का मिजाज किस ओर है और यह देश आखिर किस ओर जा रहा है…………