सिसके माँ का प्यार

5
183

peshawar 1

दर्ज़ हुई इतिहास में, फिर काली तारीख़।

मानवता आहत हुई, सुन बच्चों की चीख़।।

 

कब्रगाह में भीड़ है, सिसके माँ का प्यार।

सारी दुनिया कह रही, बार-बार धिक्कार।।

 

मंसूबे जाहिर हुए, करतूतें बेपर्द।

कैसा ये जेहाद  है, बोलो दहशतगर्द।।

 

होता है क्यूँकर भला, बर्बर कत्लेआम।

हिंसा औ’ आतंक पर, अब तो लगे लगाम।।

 

दुःख सबका है एक सा, क्या मज़हब, क्या देश।

पर पीड़ा जो बाँट ले,  वही संत दरवेश।।

 

5 COMMENTS

    • आपको यहाँ देख के ख़ुशी हुई…हार्दिक आभार…

  1. हिमकर जी के दोहे मार्मिक , सामयिक और पठनीय हैं । उन्हें बधाई ।

  2. हिमकर श्याम के दोहे मार्मिक , सामयिक और पठनीय हैं । पेशावर में बच्चों की निर्मम हत्या से भारत के कवियों का आहत होना स्वाभाविक है । जनता भी दुखी है ।

Leave a Reply to डा सुधेश Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here